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This Article is From Jun 17, 2024

जब मन उदास हो, तो एरिक्सन और युसरा मर्दिनी की कहानी ज़रूर सुनिए

Mayank Mishra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 17, 2024 17:39 pm IST
    • Published On जून 17, 2024 17:39 pm IST
    • Last Updated On जून 17, 2024 17:39 pm IST

चलिए, फ्लैशबैक से ही कहानी शुरू करते हैं. अंग्रेजी अखबार गार्जियन का तीन साल पुराना हेडलाइन दिल छू लेने वाला है. हेडलाइन कुछ इस तरह का है - वह दिन, जब डेनमार्क मानो ठहर गया.

कहानी 12 जून, 2021 की है, जब डेनमार्क और फिनलैंड के बीच यूरो 2020 का मैच खेला जा रहा था. मैच के 43वें मिनट में अनहोनी होती है. डेनमार्क के मिडफिल्डर क्रिस्चियन एरिक्सन अचानक मैदान में गिर जाते हैं. टीवी पर प्रसारित विज़ुअल्स के हिसाब से वह एकदम बेजान दिखते हैं - एकदम लाश की तरह.

सहयोगी भी बेखबर. आसपास कोई खिलाड़ी नहीं. कोई चोट की आशंका भी नहीं. फिर एक खिलाड़ी बेजान क्यों गिरा पड़ा है. साथी खिलाड़ियों ने तत्काल एरिक्सन को उठाकर मैदान के बाहर लिटाया. सहयोगियों ने एक ही काम सही किया - सुनिश्चित किया कि आसपास भीड़ इकट्ठा न हो. टीम के डॉक्टर को बुलाया गया. डॉक्टर की पहली प्रतिक्रिया - वह अब नहीं रहे. दिल का धड़कना बंद हो गया है.

पता चला, एरिक्सन को हार्ट अटैक आया था. तेरह मिनट तक वह मैदान में वैसे ही बेजान पड़े रहे. किसी तरह उनके दिल की धड़कन को वापस लाया गया. हॉस्पिटल जाते वक्त उन्हें एम्बुलेंस में होश आया. उन्होंने मेडिकल स्टाफ से कहा कि मेरा बूट उतारकर आप रख लीजिए. मेरे लिए अब यह किस काम का.

अब वापस आते हैं. 16 जून, 2024. रविवार का दिन. यूरो में डेनमार्क का मुकाबला स्लोवानिया से. मैच के 17वें मिनट में जादू हो गया. वही बूट और वही एरिक्सन. स्कोरलाइन : डेनमार्क 1 - स्लोवानिया - 0, गोल करने वाला - क्रिस्चियन एरिक्सन.

दुनिया में मिरेकल होता है, तो यही है वह मिरेकल. यही वे लम्हे हैं, जो भरोसा दिलाते हैं - हार के बाद जीत संभव है. यही वे पल हैं, जो हमे प्रेरणा देते हैं - 'यस, वी कैन'.

ऐसा ही एहसास दिलाने वाली कहानी है सीरिया की स्विमर युसरा मर्दिनी की. उनसे मेरा परिचय कराया नेटफ्लिक्स की फिल्म 'द स्विमर्स' ने. मैं फिक्शन समझकर फिल्म देख गया, लेकिन बाद में पता चला, वह तो सच्ची कहानी है.

साल 2015. कहानी दो बहनों की - छोटी बहन युसरा और बड़ी बहन सारा. दोनों अपने परिवार के साथ दमिश्क में रहती थीं. मन में सपना था ओलिम्पिक तैराकी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का, लेकिन उनका देश सीरिया गृहयुद्ध की चपेट में था. उनके लिए पहला वेकअप कॉल - उस स्टेडियम में बम फटना, जहां वे तैराकी प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही थीं. अब सपने का क्या करें. सीरिया में रहकर तैराकी हो नहीं सकती, लेकिन ओलिम्पिक का ख्वाब तो पूरा करना ही है. सो तय किया कि दोनों बहनें अपने एक दूर के रिश्तेदार के साथ जर्मनी जाकर शरणार्थी बनने की कोशिश करेंगी, लेकिन यूरोप कानूनी रास्ते से तो जा नहीं सकते, तो करें क्या.

गैरकानूनी रास्ते में मुसीबतें ही मुसीबतें हैं. लेकिन ओलिम्पिक का सपना पूरा करने का तो सिर्फ वही रास्ता है. फिर वे तीनों निकल पड़े अपने सपनों के साथ. पहला पड़ाव तुर्की. वहां से ग्रीस जाने के लिए समुद्र का रास्ता ही तय करना है. सही बोट हो, तो इस रास्ते को 45 मिनट में तय किया जा सकता है, लेकिन उनके भाग्य में डिंगी लिखी थी, और फिर अन्य 17 शरणार्थियों के साथ उसी छोटी-सी डिंगी में सवार हो गए.

लेकिन उनके नसीब में कुछ भी आसान नहीं था, सो बीच समुद्र में डिंगी खराब हो गई. अंधेरी रात. समुद्र की गहराई. डिंगी में पानी भरने लगा और किसी को पता नहीं कि किनारा कितना दूर है. दोनों बहनों में कमर में रस्सी बांधी और डिंगी से अपने आप को बांधकर समुद्र में छलांग लगा दी. और लगीं डिंगी को किनारे की तरफ खींचने.

मुझे तैरना आता है, लेकिन वह सीन देखकर मेरे में एक ही खयाल आया. अब वे बचने वाली नहीं हैं. ऐसा लिखते हुए भी मैं सिहर रहा हूं, लेकिन उन पर क्या बीत रही होगी, ज़रा सोचिए - किनारे का पता नहीं. और अगर किनारा मिल भी गया, तो क्या भरोसा - पकड़कर जेल में डाल दिए जाएंगे. लेकिन ओलिम्पिक का सपना खींचे जा रहा है. साढ़े तीन घंटे बाद किनारा मिल भी गया, लेकिन उसके बाद नई मुसीबतों का सिलसिला शुरू होता है. यूएन के शरणार्थी शिविर में कुछ खाने-पीने को मिल जाता है, लेकिन जर्मनी तो अब भी दूर है.

कई दिन के सफर के बाद आखिरकार मंजिल मिल जाती है. जर्मनी पहुंचे, तो शरणार्थी शिविर में कैद जैसी जिंदगी शुरू हो जा जाती है. अब ओलिम्पिक के सपने का क्या करें.

बहनों ने फिर दिलेरी दिखाई. एक स्विमिंग क्लब का पता लगाया और निकल पड़ीं कोच से मिलने. लेकिन क्लब में नो वेकेंसी का साइन लगा था. ये लड़कियां कहां हार मानने वाली थीं. कोच को किसी तरह मनाया और फिर तो जो हुआ, वह इतिहास है. शरणार्थी बनने के एक साल के अंदर ही युसरा रियो ओलिम्पिक के लिए क्वालिफाई कर गईं. अब वह खेल से संन्यास ले चुकी हैं, लेकिन वह पेरिस में रिफ्यूजी टीम की चीयरलीडर रहेंगी.

युसरा और एरिक्सन की कहानियों में कॉमन है मिरेकल का होना. और अगर आप इन कहानियों में भरोसा करते हैं, तो आप भी सारी मुसीबतों से लड़ते रहेंगे, और आपको हमसफर भी मिलते रहेंगे.

मैंने भी देखा है कि मुसीबतें - छोटी या बड़ी - आती रहेंगी, लेकिन ऐसी-ऐसी जगहों से साथ भी मिलता रहेगा, जहां से आपने कल्पना भी नहीं की थी. मेरे साथ भी हुआ है - एक नहीं, कई बार. शायद आपके साथ भी - लगातार.

मयंक मिश्रा NDTV में कन्सल्टिंग एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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