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This Article is From Feb 24, 2017

सुप्रीम कोर्ट, सरकार और सीबीआई संदेह के घेरे में - पुल के सुसाइड नोट पर हो पब्लिक ट्रायल

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 24, 2017 15:18 pm IST
    • Published On फ़रवरी 24, 2017 15:18 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 24, 2017 15:18 pm IST
दिल्ली की एक अदालत में सामान्य से अपराध में युवा कैदी पुलिस हिरासत में था और उसके पीछे लाचार पत्नी, बेबस बच्चा और बूढ़े मां-बाप रो रहे थे. वहीं दूसरी ओर हजारों करोड़ का घोटाला करने वाले विजय माल्या लंदन में सुरक्षित महसूस कर रहे हैं और भारत में उनके परिवार की मौज-मस्ती में तो कोई कमी है ही नहीं. हम सभी को असहज करने वाले ऐसे सवालों का जवाब अरुणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल के 60 पेज के सुसाइड नोट में मिल सकता है, जिसपर पिछले 6 महीने से सरकार और अदालत खामोश रही. सुप्रीम कोर्ट के कई जज, राष्ट्रपति, बड़े वकीलों समेत पूरी व्यवस्था पर यह संगीन आरोप-पत्र, क्या नीरा राडिया प्रकरण की तरह ही दफन हो जाएगा?

सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट और सरकार संदेह के घेरे में, फिर कैसे हो सही जांच -
सुसाइड नोट में बड़े वकील और जजों के नाम पर करोड़ों के लेन-देन की मांग का जिक्र है. सीबीआई के दो पूर्व मुखिया बड़े मामलों को दबाने के मामले में जांच का सामना कर रहे हैं फिर सीबीआई इस सुसाइड नोट की निष्पक्ष जांच कैसे कर पाएगी? सरकार भी इस सुसाइड नोट को संदेह के घेरे में लाकर जजों को बख्शने के पक्ष में दिखती है. सीबीआई सुप्रीम कोर्ट और सरकार जब संदेह के घेरे मे हों तो इस मामले का पब्लिक ट्रायल क्यों न हो?

अंकल जज और अभिजात्य तंत्र से कब मिलेगी मुक्ति -
कोलकाता हाईकोर्ट के जज कर्णन ने अदालती व्यवस्था को सामंतवादी तथा अभिजात्य करार दिया है और उनके खिलाफ अवमानना मामले की सुनवाई संविधान पीठ कर रही है. सुसाइड नोट में देश के वरिष्ठतम जज के वकील बेटे के माध्यम से मनमाफिक अदालती फैसले का विवरण न्यायिक व्यवस्था में भाई-भतीजावाद के बड़े मर्ज का छोटा नमूना है. न्यायिक व्यवस्था में सुधार हेतु देश को ज्यादा जजों की नहीं बल्कि ‘जनता के जजों’ की दरकार है. देश में जजों की नियुक्ति को हथियाने के लिए तो सरकार उत्सुक है लेकिन उन्हें जवाबदेह बनाने के लिए नए एमओपी (जजों की नियुक्ति प्रणाली का मेमोरेंडम) पर प्रभावी बदलाव के लिए राजी नहीं है.

क्या सरकारों का फैसला संविधान की बजाय पैसों की बोली से होता है -
उत्तराखंड में पर्दे के पीछे विधायकों की खरीदफरोख्त के सच को तमिलनाडु के नजरबंद विधायकों के माध्यम से पूरे देश ने सरे-आम देखा. अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा द्वारा सत्ता की बंदरबांट के लिए विधायकों को खरीदा गया, जिसका कड़वा सच पुल के सुसाइड नोट में है. पैसे के लेन-देन पर आधारित विधायकों और सरकार से जन कल्याणकारी शासन और बदलाव की अपेक्षा कैसे की जा सकती है?

सोशल मीडिया और पारदर्शी प्रशासन के दौर में सुसाइड नोट कैसे दबाया गया -
अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा द्वारा सत्ता बनाने के खेल में गवर्नर, राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट के विकृत तंत्र का पूर्व मुख्यमंत्री कलिखो पुल के सुसाइड नोट में विस्तार से विवरण है. छोटे-छोटे मामलों पर क्रांति करने वाला सोशल मीडिया की इस सुसाइड नोट पर चुप्पी क्या संदेहजनक और रहस्यमय नहीं है जो वाटर-गेट कांड की तरह भारतीय व्यवस्था में बदलाव ला सकता है?

सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के अनुसार मृत्यु पूर्व बयान निर्णायक सबूत होता है, जिसके बावजूद पूर्व मुख्यमंत्री के सुसाइड नोट पर संदेह क्या न्यायिक व्यवस्था का मर्सिया है? चुनावी भाषणों पर बड़ी चर्चा करने वाले समाज की कलिखो पुल के सुसाइड नोट पर चुप्पी, कहीं पूरे देश का शोक-गीत न बन जाए?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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