शराबबंदी पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश : संवैधानिक तिकड़म और देशव्यापी अराजकता

शराबबंदी पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश : संवैधानिक तिकड़म और देशव्यापी अराजकता

इलाहाबाद हाईकोर्ट की 150वीं सालगिरह मनाई गई

इलाहाबाद हाईकोर्ट की 150वीं सालगिरह पर प्रधानमंत्री मोदी और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस खेहर ने न्यायिक सुधारों और मुकदमों के बोझ को कम करने के बारे में प्रभावी भाषण दिया. वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय राजमार्गों के 500 मीटर के दायरे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा शराब की बिक्री बंद करने के आदेश से भ्रष्टाचार, मुकदमेबाजी और अराजकता को बढ़ावा मिल रहा है!

राज्यों में अजब प्रतिबंधों के बीच शराब का बढ़ता व्यापार - उत्तरप्रदेश में 18 साल तो दिल्ली में 25 साल से कम उम्र का व्यक्ति शराब नहीं पी सकता. महाराष्ट्र में निर्धारित मात्रा से अधिक शराब घर में रखने के लिए एक्साइज विभाग से जनता को परमिट लेना पड़ता है तो दिल्ली में शुक्रवार को शराब नहीं बिकती. इन प्रतिबंधों के बावजूद देश की 30 फीसदी आबादी शराब की लत का शिकार हो गई है जिससे भ्रष्टाचार के कारोबार का अनुमान लगाया जा सकता है.

राष्ट्रीय राजमार्गों पर बंद हुई शराब की दुकानें अब शहर के भीतर कैसे खुलेंगी - देश के अधिकांश गांवों में शराब के ठेकों के खिलाफ महिलायें आंदोलन कर रही हैं, जिसे देखते हुए अनेक पंचायतों ने 5 किलोमीटर के दायरे में शराब की दुकान पर प्रतिबंध लगा दिया है. स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, धर्मस्थान इत्यादि के नजदीक शराब की दुकान नहीं चल सकती, तो फिर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राजमार्गों पर बंद शराब की दुकानें कहां खुलेंगी?

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नकारने के लिए राज्यों में होड़ - सुप्रीम कोर्ट के आदेश से शराब व्यापारियों को घाटे के अलावा राज्यों को लगभग 50 हजार करोड़ के राजस्व का घाटा हो सकता है. क्या राष्ट्रीय राजमार्ग के नगरपालिका के दायरे में लाने के कागजी नियम से सड़कों पर दुर्घटनाएं बंद हो जाएंगी? सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नकारने के लिए राज्यों द्वारा बगैर केंद्र सरकार की अनुमति के राष्ट्रीय राजमार्गों के दर्ज़ा बदलने की कवायद, क्या संविधान के साथ धोखाधड़ी नहीं है?

शराबबंदी की तर्ज पर वाहनों की स्पीड क्षमता पर क्यों न लगे पाबंदी - राष्ट्रीय राजमार्गों पर लगभग 4 फीसदी दुर्घटनाएं और मृत्यु शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण, जबकि 48 फीसदी दुर्घटनाएं और मौत तेज रफ्तार गाड़ी चलाने से होती हैं. तो फिर 100 किमी. प्रति घंटा रफ्तार से ज्यादा स्पीड क्षमता के वाहन बनाने पर भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए, जिससे तेज रफ़्तार में गाड़ी चलने ही ना पाए.
   
गरीब और अमीर के शराब पीने पर भेद क्यों - क़ानून के अनुसार घर और लाइसेंसशुदा जगह को छोड़कर अन्य जगहों पर शराब पीना अपराध है. जिस वजह से पुलिसिया कार्रवाई की तलवार गरीब लोगों पर ही गिरती है. अमीरों को शराब पीने के लिए पब और होटल की सहूलियत तथा गरीबों को जेल भेजना, क्या संविधान के समानता के खिलाफ नहीं है?

सभी पक्षों को सुने बगैर सुप्रीम कोर्ट ने कैसे पारित किया शराबबंदी का आदेश - सरकारी विज्ञापनों में मुख्यमंत्री की फोटो नहीं लगाने का आदेश, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को सुने बगैर पारित कर दिया था, जिसे राज्यों के दखल के बाद बदलना पड़ा. सुप्रीम कोर्ट ने एक्साइज एक्ट और मोटर क़ानून  की व्याख्या करते हुए शराबबंदी का आदेश पारित करने के पहले सभी राज्यों का पक्ष तो सुना ही नहीं, तो क्या शराबबंदी के आदेश पर भी आगे चलकर बदलाव होगा?
 
उत्तराखंड हाई कोर्ट द्वारा शराबबंदी के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने रोका - उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा तीन जिलों में शराबबंदी का आदेश पारित कर दिया गया जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. संविधान बेंच द्वारा कई मामलों में यह कहा गया है कि अदालतों का काम सरकार चलाना नहीं बल्कि कानून की सही व्याख्या करना है. इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट द्वारा शराबबंदी जैसे आदेश पारित करने की प्रवृत्ति से सरकारी अफसर बेवजह ही मुकदमेबाजी में व्यस्त रहते हैं.

विफल होने के बावजूद राज्यों में शराबबंदी की होड़ - तमिलनाडु ने 1952 में शराबबंदी की शुरुआत कर दी थी पर बाद में शराब की बिक्री बहाल करनी पड़ी. और अब तमिलनाडु सरकार को शराब की बिक्री से लगभग 30 हजार करोड़ के राजस्व की प्राप्ति होती है, जो देश के सभी राज्यों में सबसे ज्यादा है. आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मिजोरम और मणिपुर में शराबबंदी का फार्मूला विफल होने के बावजूद शराबबंदी को अन्य राज्यों में नेताओं द्वारा राजनीतिक लाभ के लिए लागू करने की बढ़ती होड़ से भ्रष्टाचार और अराजकता बढ़ रही है.

शराबबंदी देश में सबसे बड़ा संवैधानिक पाखंड - संविधान के अनुच्छेद 47 के तहत शराबबंदी होनी चाहिए, जिसके तहत सभी सरकारों ने मद्यनिषेध विभाग बनाए हैं. दूसरी ओर अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए शराब की बिक्री को बढ़ावा देकर सरकारें न सिर्फ जनता के स्वास्थ्य बल्कि संविधान के साथ भी खिलवाड़ करती हैं.

शराब की फैक्ट्रियों से महाराष्ट्र में किसानो को जल संकट - महाराष्ट्र के राजनेताओं ने शराब की फैक्ट्री में पानी की सप्लाई के लिए विशेष व्यवस्था कर ली जिससे किसानों को सूखे का संकट हो गया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई थी. शराबबंदी पर आदेश की तर्ज़ पर क्या शराब की फैक्ट्रियों पर भी प्रतिबंध का आदेश नहीं लागू होना चाहिए?

नीति आयोग के सीईओ ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए शराबबंदी का विरोध किया -  शराब के सेवन से 33 लाख लोग असमय मर जाते हैं पर शराबबंदी होने से गरीब जनता जहरीली शराब और खतरनाक ड्रग्स का शिकार होती है. इन समस्याओं से परे नीति आयोग के सीईओ ने दावा किया है कि शराबबंदी से पर्यटन क्षेत्र में 10 लाख लोगों के रोजगार पर संकट आ सकता है.

स्मृति ईरानी मामले में शराब पीकर गाड़ी चलाने के नाम पर सभी छात्रों की गिरफ्तारी पर सवाल - दिलचस्प बात है कि भगवंत मान का शराब पीकर संसद की कार्रवाई में भाग लेना और यूपी में सपा के पूर्व मंत्री के केबिन में शराब की बोतल मिलना कोई अपराध नहीं माना जाता है. लेकिन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की शिकायत पर दिल्ली विश्वविद्यालय के 4 छात्रों को शराब पीकर गाड़ी चलाने के जुर्म में पुलिस गिरफ्तार कर लेती है. हालांकि क़ानून के अनुसार तो पुलिस इस मामले में  सिर्फ उसी छात्रा को ही गिरफ्तार कर सकती है जो शराब पीकर कार चला रहा था. क्योंकि शराब पीकर गाड़ी में बैठना तो कोई अपराध नहीं है!

शराबबंदी के दौर में क़ानून को धता दिखाने का नशा कैसे बंद हो, इस सवाल के सही जवाब से ही मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्नेंस का सपना साकार हो सकेगा.

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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