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This Article is From Nov 25, 2015

विराग गुप्ता की कलम से : जंगलराज में तब्दील होता संसदीय लोकतंत्र

Written by Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 14:34 pm IST
    • Published On नवंबर 25, 2015 15:54 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 14:34 pm IST
एक रोचक घटनाक्रम में लोकसभा अध्यक्ष ने सांसदों को पत्र लिखकर जंगल के जानवरों से प्रेरणा लेते हुए संसद के शीतकालीन सत्र में मर्यादित आचरण और संसदीय सहयोग प्रदान करने का गंभीर आग्रह किया है। हंगामे और काम न होने की वजह से पिछले सत्र में देश को 260 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। बिहार में नवनिर्वाचित विधायकों ने सरकारी बंगलों पर गैरकानूनी कब्ज़ा कर सुशासन की शुरुआत कर दी है। पूर्व राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने कहा था कि चरित्र और क्षमताओं से कमजोर सांसद एक अच्छे संविधान का भी विनाश कर देंगे। देश में 5 हजार विधायकों-सांसदों में 1,500 से अधिक के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। पिछले वर्ष बाबासाहेब अम्बेडकर के जन्मदिन पर आयोजित समारोह में (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी ने कहा था कि वह सत्ता में आने पर एक वर्ष में संसद को अपराधियों से मुक्त कर देंगे। इस संकल्प को पूरा करने में विफल प्रधानमंत्री क्या सत्तारूढ़ बीजेपी के सांसद और विधायकों के विरुद्ध आपराधिक मामलों का 'फास्ट ट्रैक ट्रायल' करवाकर नई मिसाल पेश कर सकते हैं, जिससे वह विपक्षी सांसदों के ऊपर 'काम नहीं तो वेतन नहीं' के नियम का कड़ाई से पालन करा सकें।

अंबेडकर ने संविधान दिवस में यह अपेक्षा की थी कि देश में 'एक व्यक्ति एक वोट' के प्रावधान से न सिर्फ राजनीतिक, वरन आर्थिक और सामाजिक समानता लाने का स्वप्न भी पूरा हो सकेगा, परंतु आज़ादी के बाद देश में गरीबी, अशिक्षा तथा असमानता और भी बढ़ी है। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 29 करोड़ लोग अशिक्षित हैं और देश में 65 करोड़ आबादी के पास शौचालय नहीं है और इन तक विकास पहुंचाने की संवैधानिक जिम्मेदारी पूरा करने की जगह बीजेपी-शासित राज्यों द्वारा वंचित लोगों को पंचायतों में चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जा रहा है। देश के ताकतवर 10 प्रतिशत लोगों के पास 76 प्रतिशत से अधिक संपत्ति है। इस आपराधिक सिंडीकेट का विस्तृत विवरण वोहरा कमेटी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एसआईटी रिपोर्ट में है, परंतु कोई भी सरकार इनके विरुद्ध ठोस कार्रवाई करने में विफल रही है।

देश में इतने तरह के कानून हैं, जिनका ज्ञान न तो आम जनता को है, न अधिकारियों को। कानून की मनमाफिक व्याख्या कर बड़ों को बेल तथा गरीबों को जेल में भेज दिया जाता है। डिजिटल इंडिया के तहत सारे कानून तथा आदेशों का केंद्रीकृत संकलन और मोबाइल ऐप अगर बना दिया जाए तो 'कानून के शासन' की सही शुरुआत हो सकेगी। बहुत ज़रूरी होने पर अगर नया कानून बनाना पड़े तो उसमे सनसेट का प्रावधान होना चाहिए, जिससे एक निश्चित अवधि के बाद कानून अपने आप खत्म हो जाएं।

अंबेडकर के अनुसार स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी न्याय व्यवस्था में निहित समानता में है। तानाशाह देश पाकिस्तान में 80 परिवारों ने पूरी सरकार पर और लोकतांत्रिक देश भारत में 200 परिवारों ने न्यायिक तंत्र पर कब्ज़ा किया हुआ है। इस दमनकारी शासन व्यवस्था में बड़े लोग, लंबी जांच के नाम पर बेदाग़ रहते हैं और छोटे लोग पिसते हैं।

इसकी एक बानगी है 3.5 करोड़ से अधिक लंबित मुकदमे, जिनसे भारत में एक चौथाई से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नवीनतम आदेश से कोलेजियम को मान्यता देते हुए जजों की नियुक्ति प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है, जिसके तहत जज ही फिर से जजों की नियुक्ति करेंगे। संविधान के अनुच्छेद 124 (6) और 219 के तहत खुलासे का हलफनामा देने से जजों की नियुक्ति में भाई-भतीजावाद और भ्रष्ट सिंडीकेट के अंत की शुरुआत हो सकती है।

देश में चार लाख लोग जेलों में बंद हैं, जिनमें अधिकांश गरीब, अशिक्षित, महिलाएं, आदिवासी, बच्चे और बेगुनाह हैं। जिस प्रकार डॉक्टरों को गांवों में चिकित्सकीय सेवा की अनिवार्यता है, उसी प्रकार प्रत्येक जज को नियुक्ति से पहले अपने इलाके के 1,000 कैदियों की जमानत प्रक्रिया पूरी करने का उत्तरदायित्व अगर दे दिया जाए तो प्रधानमंत्री का 'सबको न्याय सबको विकास' का आश्वासन भी पूरा हो सकेगा।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने प्रार्थना गीत में भारत के लोगों को आस्थावान और निराश न होने वाला बताया था। उस जनता ने केंद्र में मोदी और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को इसी विश्वास से बैठाया, जिससे वे भ्रष्ट तंत्र को तोड़कर संवैधानिक संस्थानों में जनता के विश्वास की बहाली कर सकें। वादों को पूरा करने की बजाय, राजनीतिक तिकड़म और प्रतीकों पर काम कर रही सरकारों को संविधान दिवस के दौरान संसद को बिजली की रोशनी में सजाते समय अंबेडकर की चेतावनी भी याद रखनी चाहिए, जिसमें उन्होंने भविष्य के अंधेरे का ज़िक्र करते हुए कहा था कि "संविधान का दुरुपयोग होने पर मैं पहला व्यक्ति होऊंगा, जो इसे जला दूंगा..." और ऐसी नौबत भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत त्रासद होगी।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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