कांग्रेस ने अपनी प्रेस रिलीज़ में तो बकायदा इन जज़ों के नाम लिए हैं। हम नाम नहीं ले पा रहे हैं, लेकिन मोटा-मोटी जो आरोप हैं, उनमें एक बात गौर करने लायक है...वो है अरबिंदों कॉलेज की। ये एक निजी मेडिकल कॉलेज है। इस कॉलेज की इतनी नेक नामी है कि इसके सर्वेसर्वा व्यापमं घोटाले में जेल के अंदर हैं और यही वो कॉलेज है, जहां 8 जजों के नाते-रिश्तेदारों को दाखिला मिलने का आरोप लगाया गया है। बड़ा सवाल है कि ये कॉलेज पहली पसंद क्यों है? और दूसरा एक जज को छोड़कर बाकी के लोगों ने कांग्रेस पर अवमानना का केस अब तक क्यों नहीं किया है।
सिस्टम की ये तो सिर्फ एक बानगी है। अभी तो उन अफसरों के नाम आना बाकी है, जिन्होंने अपने नाते-रिश्तेदारों को व्यापमं के इसी गोरखधंधे से मदद पहुंचाईं। क्या राज्य की सरकार उन अफसरों के नाम नहीं जानती? एसटीएफ की जांच के दौरान घोटालेबाज़ों ने इनके भी नाम लिए, लेकिन रिकॉर्ड पर अभी बहुत कुछ आना बाकी है। ये राज्य का 'सटीक सिस्टम' ही है कि इस गोरखधंधे में जिन बड़े आईएएस अफसर का नाम आया, उन्हें एसटीएफ ने गवाह बना डाला। बड़ा सवाल है कि क्या सीबीआई भी इन सब तक पहुंचना चाहेगी?
मध्य प्रदेश के सिस्टम की एक और कहानी आपको नम्रता दामोर के केस में अब साफ दिखने लगेगी। मेडिकल के स्टूडेंट ने खुदकुशी की है, इसे साबित करने के लिए राज्य का पूरा पुलिसिया सिस्टम लग गया। अब सीबीआई आई तो पहली नज़र में उसे हत्या मानकर केस दर्ज कर लिया। बड़ा सवाल है कि राज्य में ये कैसा तंत्र काम कर रहा है, जहां मां-बाप हत्या का शक जता रहे हैं। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर चीख-चीखकर कह रहे हैं कि ये हत्या का केस है, लेकिन उज्जैन की पुलिस इस पर एक दूसरी राय लेने मेडिकोलीगल इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉक्अर बडकुल के पास चली गई, जिसने इसे आत्महत्या मान लिया।
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अब पता चल रहा है कि डॉक्टर बडकुल और मौजूदा व्यापमं के चेयरमेन आपस में जुड़े हुए हैं। जिस डॉक्टर पुरोहित ने अपनी रिपोर्ट में नम्रता की मौत का राज़ खोला था वो अब सरकारी पहरे में जीएंगे, क्योंकि उनकी जान को खतरा है। बड़ा सवाल है कि हम कैसे मान लें कि नम्रता की मौत को दबाने, छिपाने के पीछे 'सिस्टम' काम नहीं कर रहा था ? ऐसा क्या था जो राज्य के मुख्यमंत्री को इस केस को फिर से खोलने और हत्या का मुकदमा दर्ज करने से रोक रहा था?
अभी तो व्यापमं के चीफ सिस्टम एनालिस्ट नितिन मोहेन्द्रा की उस हार्ड डिस्क के राज़ भी गहरा रहे हैं, जिसके आधार पर पूरे राज्य में गिरफ्तारियां हुई हैं। मोहेन्द्रा अपने कंप्यूटर में राज्य के उस सिस्टम का काला चिट्ठा रखा करता था, जो व्यापमं में होता था। आरोप हैं कि मुख्यमंत्री से लेकर गवर्नर तक सबकी सिफारिशों पर दाखिले और भर्तियां हुईं और इस हार्ड डिस्क में ये सब कैद है। कांग्रेस कह रही है कि मुख्यमंत्री के कहने पर इस काले चिट्ठे को बदल दिया गया और बीजेपी कह रही है कि कांग्रेस का दावा फर्जी है। बड़ा सवाल है कि क्या सीबीआई अब उन तीन आईपीएस अफसरों से पूछताछ करेगी जिन पर इस हार्डडिस्क से छेड़छाड़ के आरोप लग रहे हैं? क्या ये तीनों आईपीएस उस बड़े से 'सिस्टम' का हिस्सा तो नहीं हैं?
बड़ा सवाल है कि क्या मध्य प्रदेश में ऐसा सिस्टम नहीं बन गया है, जहां कहीं राज़ छिपे हैं। सारे राज़दार एक हो गए हैं? क्या राज्य में ऐसा सिस्टम नहीं बन गया है, जहां इंसाफ बहुत मुश्किल लगने लगे? क्या राज्य में ऐसी व्यवस्था नहीं काम कर रही जो नीचे से लेकर ऊपर तक 'अपने वालों' को बचाने में लगी है।