सवर्ण आरक्षण, ये सामान्य वर्ग का आरक्षण है. हम इसके लागू करने के तरीके का विरोध कर रहे हैं. बिना किसी जांच, आयोग, सर्वे और सर्वेक्षण के इन्होंने मात्र कुछ घंटों में संविधान में संशोधन कर दिया. हम गरीब सवर्णों के पक्ष में हैं. जल्दबाजी में लागू किए गए इस आरक्षण का हश्र नोटबंदी जैसा ही होगा. हमारे पलटू चाचा को ही देख लीजिये. नीतीश कुमार ने उछल कर जल्दबाजी में स्वर्ण आरक्षण को समर्थन देने का फैसला कर लिया. अब राजद के स्टैंड का शर्माते-शर्माते समर्थन कर रहे हैं. थोड़े दिन बाद खुलकर हमारी मांग का भी समर्थन करेंगे क्योंकि जनता मालिक होती है. वो उन्हें मजबूर कर देगी.
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हम इतने दिन से मांग कर रहे थे, हमारा सीलिंग नहीं बढ़ाया लेकिन यहां बिन मांगे उन्हें दे दिया. क्योंकि उन्हें आपके वोट से डर नहीं लगता. हम इस आरक्षण की पद्धति पर सवाल उठा रहे हैं. बताइये 8 लाख सालाना कमाने वाला यानी महीने के 66,666 रु कमाने वाला गरीब कैसे हुआ? केंद्र सरकार की अजीब गणित है भाई? अगर आप सालाना 8 लाख कमाते हैं तो आपको 20 फीसदी टैक्स देना पड़ता है. मतलब 8 लाख सालाना कमाने पर आपको 72,500 रु सालाना टैक्स देना पड़ रहा है और मोदी जी कहते हैं वो ग़रीब हैं. बताइये जो व्यक्ति 72,500 रुपये टैक्स सरकार को देता है, सरकार उसे आरक्षण दे रही है. मोदी जी कहते हैं जिसके पास 5 एकड़ ज़मीन है, यानी 160 कट्ठा यानी 8 बीघा ज़मीन, वो भी ग़रीब है. और उन्हें आर्थिक आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए. बताइये...
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आरक्षण विरोधी पहले मेरिट-मेरिट चिल्लाते थे अब बहुत ख़ुश हैं. उनकी दोहरापंथी नहीं चलेगी. या तो आप ये मानिए कि आप जातिवादी हैं, इसलिए क़ाबिल, योग्य और प्रतिभाशाली दलित-पिछड़ों को काटने में लगे हैं और उन्हें प्रतिनिधित्व नहीं दे सकते. या फिर ये मानिए की वो आरक्षण के सबसे बड़े अधिकारी हैं.
आप दूसरों की हकमारी भी करेंगे और वर्ण-व्यवस्था में खुद को दूसरों से श्रेष्ठ भी समझेंगे. दूसरों का सामाजिक तिरस्कार भी करेंगे. उनकी जात का मजाक भी बनाएंगे. शोषण करेंगे लेकिन समानता का अधिकार नहीं देंगे. उनकी जाति की भी गणना नहीं करेंगे और ना ही होने देंगे. और अपनी जाति भी नहीं गिनेंगे क्योंकि आपकी पोल खुल जाएगी कि कैसे मुट्ठी भर लोगों ने देश के सभी क्षेत्रों और संसाधनों पर जातीय बाहुबल और ठगी के दम पर क़ब्ज़ा जमा रखा है.
देश के 52% OBC को 27% रिजर्वेशन देने के लिए मंडल कमीशन बना 1978 में. रिपोर्ट आई 1980 में. लागू होने की घोषणा हुई 1990 में. लागू हुआ 1993 में. वह भी उच्च शिक्षण संस्थानों में 2008 में लागू हो पाया. कितना आंदोलन हुआ, कितने खून बहे, कितने लोग लाठियां खाए, इन सबकी कल्पना की ही नहीं जा सकती. अब भी पूरी तरह से ओबीसी आरक्षण लागू नहीं हुआ है. 15% स्वर्णों को 10% आरक्षण देने के लिए कोई कमीशन नहीं बना और 72 घंटे में आरक्षण दे दिया गया.
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देश में SC/ST को पुरानी जनगणना के मुताबिक़, आबादी के अनुपात में 22.5% समान आरक्षण मिला था लेकिन आज दलितों की भी आबादी बढ़ी है, इसलिए SC/ST का भी आरक्षण बढ़ना चाहिए. हम इसकी पुरज़ोर मांग कर लड़ाई का ऐलान करते हैं.
1931 की जनगणना के मुताबिक, पिछड़ों की आबादी 52% थी. लेकिन पिछड़ों को आज़ादी के 46 साल बाद 1993 में मात्र 27% ही आरक्षण मिला. उच्च शिक्षा में 2008 में मतलब 61 साल बाद आरक्षण मिला वो भी मोदी जी की मनुवादी सरकार ने दो दिन पहले समाप्त कर दिया.
हमारी मांग है कि पिछड़ों को कम से कम आज से 88 साल पहले यानी 1931 की पिछड़ों की जनसंख्या (52%) के हिसाब से तो कम से कम 52% तो आरक्षण मिलना चाहिए. और फिर जातीय जनगणना के बाद उसे जातीय अनुपात में बढ़ाया जाए. हमारी मांग है कि अतिपिछड़ों को 40% आरक्षण मिले. हम आज एक नए आंदोलन की घोषणा करते हैं 'बेरोजगारी हटाओ, आरक्षण बढ़ाओ'...
'जातीय जनगणना करवाओ और जातीय अनुपात में आरक्षण बढ़ाओ. देश में SC/ST और OBC का आरक्षण बढ़ाकर 90% करो. निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करो'... किस आधार पर ये लोग जातिगत आरक्षण को बदल कर आर्थिक आरक्षण में तब्दील कर रहे हैं? किस रिपोर्ट, आयोग और सर्वेक्षण के आधार पर? अगर आज हम और आप संविधान के साथ छेड़छाड़ का विरोध नहीं करेंगे तो बाबा साहब और आने वाली पीढ़ियां हमें माफ़ नहीं करेंगी!
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अगर आपका सांसद पिछड़ा और दलित है तो उसे अपने क्षेत्र में मत घुसने दो, क्योंकि उन्होंने आपके और बहुजनों का आरक्षण बढ़ाने की मांग नहीं की. ऐसे कायर और डरपोक लोग आपके सांसद बनने के लायक नहीं हैं. अगर वो आपके हकों के लिए अपनी पार्टी में आवाज ही नहीं उठा सकते तो ऐसे सांसदों को धिक्कार है. देश में जितने भी दलित-पिछड़े सांसद हैं उनका बॉयकॉट किया जाए. उन्हें क्षेत्र में घुसने नहीं दिया जाए. उनसे सवाल-जवाब किया जाए.
तेजस्वी यादव बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और राजद के नेता हैं....
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