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This Article is From Jul 17, 2022

विपक्ष ने फिर से विपक्ष को हरा दिया!

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 17, 2022 15:01 pm IST
    • Published On जुलाई 17, 2022 14:59 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 17, 2022 15:01 pm IST

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उप राष्ट्रपति पद के लिए भाजपा के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ की तारीफ "किसान पुत्र" के रूप में की है, लेकिन पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ के पास यही एक महत्वपूर्ण योग्यता नहीं है - वह बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कट्टर विरोधी रहे हैं, और वह उनकी हर कोशिश को नाकाम करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहे हैं.

धनखड़ को 2019 में राज्यपाल नियुक्त किया गया था. वह वस्तुतः उस ममता बनर्जी के लिए मुख्य विपक्ष रहे हैं, जो मुख्यमंत्री के रूप में अपने तीसरे कार्यकाल में हैं.

उपराष्ट्रपति राज्यसभा की अध्यक्षता करने और विपक्ष को संयमित रखने और बांधकर रखने का महत्वपूर्ण कर्तव्य निभाता है.

धनखड़ के चुने जाने के बाद, संसद के दोनों पीठासीन अधिकारी (दूसरे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला हैं) राजस्थान से हो जाएंगे. कांग्रेस शासित राजस्थान में अगले साल चुनाव होना है. धनखड़ अगड़ी जाति से ताल्लुक रखते हैं और उनका उप राष्ट्रपति पद प्रत्याशी के रूप में चयन पूरे उत्तर भारत में उच्च जाति के बीच एक सकारात्मक संदेश भेजता है, जो मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को मजबूती से वोट देता रहा है.

इस बार राष्ट्रपति पद की दौड़ तीक्ष्ण, बारीक और अतिवादी राजनीति के तौर पर चिह्नित की गई है, जिसने विपक्ष को सामूहिक रूप से थका हुआ और मोदी सरकार को घेरने के सभी तरह के विचारों से बाहर कर दिया है.

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झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू, सभी संभावित राजनीतिक समीकरणों पर सटीक बैठती हैं. 18 जुलाई को निर्वाचित होने के बाद मुर्मू राष्ट्रपति बनने वाली पहली आदिवासी महिला होंगी. एनडीए ने उनका चयन कर बीजू जनता दल, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और उनके जैसे लोगों को अपना पूरा समर्थन देने के लिए मजबूर कर दिया. मुर्मू ओडिशा की रहने वाली हैं.

शिवसेना के उद्धव ठाकरे को उनके ही सांसदों ने विपक्ष से नाता तोड़ने और मुर्मू का समर्थन करने के लिए वस्तुतः मजबूर कर दिया. शिवसेना सांसदों ने एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली सेना में जाने की धमकी दी, जो वर्तमान में भाजपा के साथ गठबंधन में महाराष्ट्र पर शासन कर रही है. हालांकि, ठाकरे ने जोर देकर कहा कि उन्हें उनके सांसदों ने ब्लैकमेल नहीं किया है और वह मुर्मू को समर्थन की पेशकश कर रहे थे क्योंकि वह उनकी उम्मीदवारी से प्रभावित थे. फिर भी, बीजेपी के उस दिमाग की दाद देनी होगी, जिसने द्रौपदी मुर्मू का चयन किया था.

यशवंत सिन्हा, जो राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष की पसंद हैं, पहले से ही पराजित और भागे हुए लग रहे हैं. रायसीना हिल्स की दौड़ में शामिल होने से पहले वह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में थे, फिर भी पार्टी ने उनके लिए प्रचार करने का कोई प्रयास नहीं किया. ममता बनर्जी, जिन्होंने भाजपा से मुकाबला करने के लिए एक संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार के लिए कदम बढ़ाए थे, वो खुद आदिवासी महिला उम्मीदवार मुर्मू के सामने रस्सी कसती हुई पा रही हैं.

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कांग्रेस पार्टी, जिसने सिन्हा का समर्थन किया है, ने विपक्षी उम्मीदवार के लिए समर्थन जुटाने का कोई सार्थक प्रयास नहीं किया है. राहुल गांधी इस साल अपने पांचवें विदेश दौरे पर हैं और वो मतदान के दिन लौटेंगे. हालांकि, कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने फोन पर काम किया और यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी पर कुछ समर्थन जुटाने के प्रयास किए हैं.

दूसरी तरफ, भाजपा का स्पष्ट राजनीतिक लक्ष्य था - मुर्मू और धनखड़ की उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे अकाली दल जैसे सहयोगियों को वापस जीतना और बीजू जनता दल को मजबूती से अपने पाले में करना.

यहां तक ​​कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो इन दिनों किसी भी बात पर भाजपा से बमुश्किल सहमत होते हैं, वे भी इस लाइन में लग गए हैं और राष्ट्रपति चुनाव पर बीजेपी की स्क्रिप्ट पर एक्ट कर रहे हैं. दो साल बाद होने वाले आम चुनावों से पहले ही, भाजपा दो उच्च पदों (राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति) पर अपने  वफादारों की तैनाती के लिए बहुत पहले से स्पष्ट  नजरिया रखे हुई थी.

कुछ लोग तो इस उम्मीद और सियासी गहमागहमी में थे कि भाजपा, मुख्तार अब्बास नकवी, जिन्होंने चौथी बार राज्यसभा का कार्यकाल नहीं दिए जाने के बाद अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री का पद छोड़ दिया था और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, जिन्होंने पिछले साल कांग्रेस छोड़ दी थी, को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना सकती है.

विपक्ष भी यह जानते हुए कि उसके उम्मीदवार की हार होगी, उम्मीदवारों की एक ऐसी ही प्रतियोगिता में कल्पनाशील रहा. पहले तो प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी और महात्मा गांधी के पोते गोपाल गांधी ने राष्ट्रपति पद का संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार होने से इनकार कर दिया, फिर लेफ्ट के सीताराम येचुरी ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी को उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष का उम्मीदवार बनाने को कहा लेकिन गांधी की तरह कुरैशी ने भी विनम्रता से मना कर दिया. येचुरी ने स्पष्ट रूप से उनसे कहा था कि यह एक ऐसी प्रतियोगिता है, जिसमें उनका हारना निश्चित है लेकिन दौड़ना महत्वपूर्ण है. यह आपके लिए हमारा विपक्ष है, जो दौड़ में बने रहने के लिए दौड़ रहा है.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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