कोरोना के दौर में लोगों को चुनाव नहीं वैक्सीन की जरूरत

इंग्लैंड में कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए अथक प्रयासों से मिल रही कामयाबी, भारत को उससे सीख लेने की जरूरत

कोरोना के दौर में लोगों को चुनाव नहीं वैक्सीन की जरूरत

मंगलवार को स्वास्थ्य मंत्रालय के द्वारा रिलीज किए गए डेटा के हिसाब से पिछले 24 घंटों में भारत में 1,61,736 कोरोना केस आए हैं. 879 लोगों की मौत हुई है. पिछले तीन दिनों से डेढ़ लाख से भी ज्यादा केस आ रहे हैं जबकि पिछले 7 दिनों से 1 लाख से ज्यादा केस रिकॉर्ड किए गए हैं. मार्च 2020 में जब भारत में लॉकडाउन लगाया गया तब देश में 500 के करीब केस थे. अब जब देश में रोज डेढ़ लाख से ज्यादा केस आ रहे हैं तब भी कई राज्यों  में चुनाव हो रहे हैं. रोड शो और रैली हो रही हैं. हज़ारों की संख्या में लोग बिना मास्क पहने, बिना सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए रैली और रोड शो में शामिल हो रहे हैं. पीएम से लेकर ममता तक सब अपनी-अपनी रैलियां कर रहे हैं. पीएम हमेशा "दो ग़ज़ की दूरी, मास्क है जरूरी" की बात करते हैं लेकिन पीएम की रैली में हज़ारों की संख्या में लोग बिना मास्क पहने, बिना सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए शामिल होते हैं. पीएम कभी उनसे अपील नहीं करते हैं कि मास्क पहनकर आएं, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें. दिल्ली में "दवाई और कड़ाई" की बात करने वाले पीएम बंगाल की रैली में इस बात को भूल जाते हैं. बंगाल चुनाव देखकर लगता है कि बंगाल भारत में नहीं किसी दूसरे देश में है जहां कोरोना का कोई डर नहीं है?

दिल्ली की मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पिछले 10-15 दिनों में दिल्ली में जितने लोग संक्रमित हुए हैं उसमें से 65 प्रतिशत 45 साल से कम उम्र के हैं. ऐसा क्या हुआ कि 45 साल से कम उम्र के लोग ज्यादा संक्रमित होने लगे हैं? पहले तो 45 साल के ज्यादा उम्र के लोग ज्यादा संक्रमित हो रहे थे. इसके पीछे यह वजह हो सकती है कि युवा कोरोना गाइडलाइंस की पालन नहीं कर रहे हैं. वैसे 45 साल से ज्यादा उम्र वालों को वैक्सीन भी लगाई जा रही है. इसका भी फायदा हो रहा है. 

जनवरी के महीने में सरकार ने जब वैक्सीन लगाना की शुरू की तब लोगों को लगने लगा कि वैक्सीन बाजार में आ गई है तो अब कोरोना से क्यों डरना है. लोग अपने मनमानी करने लगे. सरकार ने पूरी तरह ढील दी दी. मेट्रो और बस में लोग 100 प्रतिशत कैपेसिटी पर सफर करने लगे. शादियों में लोग शामिल होने लगे. लगभग हर चीज नॉर्मल हो गई.

सरकार तर्क देती है कि लॉकडाउन का कोई फायदा नहीं है. अगर लॉकडाउन का कोई फायदा नहीं है तो रात्रि कर्फ्यू क्यों लगाया गया है? वैसे भी लोग रात में घर से बाहर नहीं निकलते हैं. कोरोना रोकने के लिए सरकार के पास एक मौका था लेकिन सरकार फिर से विफल हो गई. सरकार को पूरी तरह रिस्ट्रिक्शन तब हटाना चाहिए था जब ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लग जाती. सरकार ने कहा था कि जुलाई तक 30 करोड़ लोगों को वैक्सीन दी जाएगी. कम से कम जुलाई तक सरकार की नज़र कोरोना पर होनी चाहिए थी लेकिन वैक्सीन के अति आत्मविश्वास में सब बह गए. सब कुछ नार्मल हो गया. मुम्बई में लोकल ट्रेन चलने लगी. ऐसी स्थिति में कोरोना को कैसे रोका जा सकता था? 

लोगों को भी अपनी ज़िम्मेदारी समझना चाहिए. कोरोना गाइडलाइंस का पालन करना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. लोग बिना मास्क के बाहर निकल रहे हैं. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं कर रहे हैं. लोगों को लगता है कि सरकार सब ठीक कर देगी. अगर सरकार इतनी काबिल होती तो आज स्वास्थ्य सेवा सबसे ऊपर होती. लोगों को ऑक्सीजन की कमी की वजह से मरना नहीं पड़ता. अस्पतालों में बेड और वेंटिलेटर की कमी नहीं होती.

जनवरी के महीने इंग्लैंड में भी इस तरह की स्थिति पैदा हो गई थी. केस 80000 के करीब आने लगे थे. तब भारत में इंग्लैंड की चर्चा हो रही थी. यह कहा जा रहा था कि कोई नया वैरिएंट आ गया है. आज भारत की चर्चा इंग्लैंड में हो रही होगी. इंग्लैंड कोरोना को कंट्रोल करने में कामयाब हुआ है लेकिन भारत में सबसे ज्यादा केस आने लगे हैं. इंग्लैंड में 12 अप्रैल को 3568 केस आए हैं,13 लोगों की मौत हुई है. पिछले सात दिनों में इंग्लैंड में 19209 केस आए हैं, 238 लोगों की मौत हुई है. सवाल यह है कि इंग्लैंड ने कोरोना की दूसरी वेव को कैसे कंट्रोल किया? 26 जनवरी को इंग्लैंड के पीएम बोरिस
जॉनसन भारत की गणतंत्र दिवस की परेड में चीफ गेस्ट के रूप में शामिल होने वाले थे. कोरोना की बढ़ती संख्या को देखते हुए पीएम जॉनसन ने अपना दौरा रद्द कर दिया. इंग्लैंड के 78 प्रतिशत लोगों के ऊपर टियर-4 कर्फ्यू लगा दिया गया. टियर-4 कर्फ्यू सबसे कठोर कर्फ्यू है. लोगों की आने जाने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई. लोगों को सलाह दी गई कि टियर 4 इलाके में प्रवेश न करें. टियर 4 में रहने वाले लोग जो यात्रा कर रहे थे उन्हें तुरंत वापस आ जाने की सलाह दी गई. किसी भी दूसरे देश में घूमने जाने पर पाबंदी लगा दी गई. दुकान से लेकर सैलून तक सब बंद कर दिया गया. 

केस दोबारा बढ़ने के बाद इंग्लैंड ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग करने लगा. 25 दिसंबर 2020 को एक दिन में इंग्लैंड में 3 लाख 40 हज़ार के करीब टेस्ट हुए थे. उस समय 7 दिन के औसत टेस्ट 3 लाख 92 हज़ार थे. 21 मार्च को एक दिन में इंग्लैंड ने 19 लाख के करीब टेस्ट किए और 7 दिन के औसत टेस्ट 12 लाख 26 हज़ार थे. 11 अप्रैल को भी इंग्लैंड में 12 लाख से भी ज्यादा टेस्टिंग की गई है. इंग्लैंड लगातार टेस्टिंग पर फोकस कर रहा है. इंग्लैंड की कुल जनसंख्या 7 करोड़ से नीचे है लेकिन वहां 13 करोड़ 34 लाख के करीब टेस्ट किए जा चुके हैं. अगर औसत निकाला जाए तो एक व्यकि का दो बार टेस्ट हो चुका है.12 अप्रैल को भारत में 14 लाख टेस्टिंग हुई थी. भारत की कुल टेस्टिंग 25 करोड़ 92 लाख के करीब है. भारत की जनसंख्या 130 करोड़ है. अगर औसत निकाला जाए तो भारत में हर 100 व्यक्तियों में से 19 लोगों का टेस्ट हुआ है जबकि इंग्लैंड में हर व्यक्ति का 2-2 बार टेस्ट हो चुका है. 

लॉकडाउन, टेस्टिंग के साथ-साथ इंग्लैंड ने वैक्सीन पर भी जोर दिया. इंग्लैंड में कुल 4 करोड़ के करीब लोगों को वैक्सीन लग चुकी है. 3 करोड़ 22 लाख लोगों को पहला डोज लगा है जबकि 76 लाख 56 हज़ार लोगों को दूसरा डोज लगा है. दोनों डोज के बीच समय 21 दिन का था, इंग्लैंड सरकार से उसे बढ़ाकर 12 हफ्ते यानी 84 दिन कर दिया ताकि पहला डोज ज्यादा से ज्यादा लोगों को दिया जा सके. इंग्लैंड सरकार का मानना है कि AstraZeneca वैक्सीन पहले डोज के बाद भी काफी कारगर साबित हो रही है. इंग्लैंड की जनसंख्या 7 करोड़ से नीचे है. वहां 4 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी है. प्रति 100 में व्यक्तियों में से 60 को डोज लग चुकी है. भारत में प्रति 100 व्यक्तियों को 7.5 डोज दी गई है. इंग्लैंड में 60 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन लग चुकी है जबकि भारत में 8.3 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन लगी है. आज इंग्लैंड में स्थिति कंट्रोल में है जबकि भारत में स्थिति कंट्रोल के बाहर है.

इंग्लैंड सरकार ने कहा है कि 8 दिसंबर और मार्च के बीच वैक्सीन की वजह से 60 साल के ऊपर 10400 लोगों की जान बच सकी है. अगर भारत को कोरोना कंट्रोल करना है तो रिस्ट्रिक्शन के साथ-साथ टेस्टिंग बढ़ाना पड़ेगी, ज्यादा से ज्यादा लोगों को वैक्सीन देना पड़ेगा. भारत में रोज एक करोड़ लोगों को वैक्सीन देने की जरूरत है. जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक कोरोना को कंट्रोल करना मुश्किल है. भारत सरकार को समझना चाहिए कि कोरोना के इस दौर में लोगों को चुनाव नहीं वैक्सीन की जरूरत है.

(सुशील मोहपात्रा NDTV इंडिया में Chief Programme Coordinator & Head-Guest Relations हैं)

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