आज देश में कई जगह रावण के पुतले जलाए गए, यह सोचकर कि बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत होगी, लेकिन कहां है जीत? काश लोग रावण के पुतले के साथ अपने अंदर छुपे हुआ रावण को जलाकर राख कर देते। जिस देश में दादरी जैसी घटना होती है, जहां पड़ोस में रहने वाले एक मुस्लिम परिवार के कुछ सदस्यों की जमकर पिटाई करते हैं... कभी सोचा है आपने, अगर आपके साथ भी ऐसा होता! जब कुछ लोग रात के अंधरे में आपके घर का दरवाजा तोड़ रहे हों, आपको मारने की धमकी दे रहे हों, आप भागने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन वह लोग आपको भगा-भगाकर मार रहे हों... पूरा परिवार रोते, चिल्लाते हुए मदद की भीख मांग रहा हो और... आसपास रहने वाले आपके पड़ोसी सब देखते हुए भी मदद करने के लिए सामने नहीं आ रहे हों... एक मां के सामने उसके बेटे की हत्या कर दी जाए... तब आप पर क्या गुजरेगी? बस इसके बाद राजनेता वहां पर पहुंच जाते हैं और राजनीति की रोटियां सेंकने में लग जाते हैं।
जिस राम के नाम पर हम जश्न मनाते हैं उस राम के नाम पर राजनीति भी करते हैं। हमारे समाज का यह चेहरा तो रावण से भी भयानक है। आज अगर रावण जिन्दा होता तो शायद शर्म से भाग गया होता। रावण तो इतना खतरनाक नहीं था जैसा हमारा समाज हो गया है। अब रोज 92 नए रेप केस सामने आते हैं, बच्चियां भी रेप की शिकार होती हैं... लेकिन हमारा समाज ऐसी घटनाओं को नज़रअंदाज़ कर देता है। यहां सलाह सब देते हैं लेकिन सीखता कोई नहीं है। आजतक हम अपने समाज को एक नहीं कर पाए। दलितों के ऊपर अत्याचार करते रहते हैं, उसे हमारा समाज हिंसा नहीं मानता। सन 2014 में 744 दलितों की हत्या कर दी गई और 2233 दलित औरतें बलात्कार की शिकार हुईं। इस पर भी हम कहते हैं, रावण बुरा था, हम अच्छे हैं।
रावण के अंदर कई अच्छे गुण भी थे। रावण एक अच्छा शासक था जो अपनी प्रजा का ख्याल रखता था। लेकिन ऐसा हमारे समाज में नहीं दिखाई दे रहा है। कई राजनेता राम बनकर रावण का पुतला जलाएंगे, रावण के नाम पर राजनीति की रोटी सेकेंगे। अगर सच में हमारे राजनेता राम होते तो आज हमारे देश में रामराज्य होता। हम करप्शन के दलदल में नहीं होते, जाति और धर्म के नाम पर वोट नहीं मांगते, हिन्दू और मुसलमान को दो तराजुओं में नहीं तौलते।
हम खुद को सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का नागरिक मानते हैं, क्या सच में हम सभी सभ्य और सजग नागरिक का धर्म निभाते हैं। जब चुनाव होता है तो हम ऐसे उम्मीदवार को चुनते हैं जो नेता बनने के लायक नहीं, जो विकास को नजरअंदाज कर देते हैं। हम यह देखते हैं हमारे धर्म और जाति से कौन खड़ा हुआ है, उसे चुनकर आगे भेजते हैं। फिर जब वह काम नहीं करता तो रोते रहते हैं। हमारे पड़ोस में अगर किसी की हत्या हो जाती है तो हम देखते रहते हैं। अगर कोई मुसीबत में है तो उसकी मदद नहीं करते हैं। लेकिन जब प्रोटेस्ट की बात होती है तो डंडा लेकर खड़े हो जाते हैं। हम मीडिया वाले भी कोई दूध के धुले नहीं हैं। आजकल मीडिया को लेकर भी लोग सवाल उठा रहे हैं। मीडिया के अंदर भी करप्शन है। पत्रकार भी किसी न किसी पार्टी के प्रवक्ता के रूप में बात करने लगे हैं।
मैं यह नहीं कहता कि हमारे समाज के सभी लोग खराब हैं। कई नागरिक अच्छा काम भी करते हैं। कई नेता भी समाज के हित में काम कर रहे हैं। कई पत्रकार भी पत्रकारिता का मान रखते हुए इस जीविका को बचाए रखें हैं। लेकिन सवाल यह उठता है यह दिखावट क्यों ? हम अपने सोच को बदल नहीं पाए लेकिन रावण के पुतले को जलाते रहते हैं, यह सोचकर कि बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत होगी। अगर रावण का पुतला जलाने से यह हो जाता तो आज देश का नागरिक इतना असुरक्षित न होता। देश तरकी कर रहा होता।
This Article is From Oct 22, 2015
सुशील महापात्रा : अगर रावण जिंदा होता तो शर्म से भाग गया होता
Sushil Kumar Mohapatra
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 22, 2015 22:23 pm IST
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Published On अक्टूबर 22, 2015 22:15 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 22, 2015 22:23 pm IST
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