विज्ञापन
This Article is From Nov 23, 2015

सुधीर जैन : आतंकवाद पर कब सोचना शुरू करेंगे वैज्ञानिक विशेषज्ञ...?

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 18, 2016 18:22 pm IST
    • Published On नवंबर 23, 2015 11:00 am IST
    • Last Updated On जुलाई 18, 2016 18:22 pm IST
पेरिस कांड ने एक बार फिर आतंकवाद पर शोधपरक बातचीत का मौका पैदा किया था, लेकिन इस बार भी ऐसा कोई सार्थक विमर्श नहीं हो पाया। हां, हमेशा की तरह आतंकवादी हमले की रिपोर्टिंग चौकस हुई। सनसनी और चिंता जताने में इस बार भी कोई कमी नहीं दिखी। यह नया कांड एक संपन्न-समृद्ध देश में हुआ था, सो, बड़े-बड़े देशों के मीडिया में नेताओं, धर्मगुरुओं, आंतरिक सुरक्षा अधिकारियों, रिटायर्ड फौजियों और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के जानकारों ने मौके के लिहाज से टीवी विमर्श की रस्म ज़रूर अदा की, जिनका सीधा-सीधा काम है, यानी, विभिन्न देशों के मुखियाओं की तरफ से भी इससे ज़्यादा सुनने को नहीं मिला कि उनका वित्त-पोषण रोका जाए, करारा जवाब देंगे, सारे देश एकजुट होकर लड़ें वगैरह-वगैरह...

ज़्यादा देर नहीं चलता विमर्श
आतंकवादी हमले अब नियमित घटनाओं का रूप ले चुके हैं, सो, ऐसी वारदात के बाद मीडिया में यह घटनाएं अब ज़्यादा देर तक नहीं चलतीं। और अगर इस बार चिंता कुछ ज़्यादा दिख भी रही है तो इसलिए, क्योंकि हफ्ते भर के भीतर ही माली में एक और आतंकवादी वारदात ने कई देशों को बोलने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन सब कुछ के बाद यह उम्मीद अभी भी नहीं जगी है कि विश्व के नेता किसी निर्णायक विचार तक पहुंच जाएंगे। यानी, इस बार भी यह विमर्श किसी अंजाम तक पहुंचे बगैर फिर बंद या निलंबित हो जाएगा।

एक नई बात की फुसफुसाहट
फिर भी इस बार के विमर्श में एक नई बात तो दिखी है कि नेताओं की तरफ से आतंकवाद के मूल कारणों पर इशारे होना शुरू हुए हैं। दूसरी नई बात यह दिखी है कि कुछ शौकिया विशेषज्ञों की ओर से इस समस्या को दशकों के इतिहास की रोशनी में दिखाने की भी कोशिश शुरू हुई। वरना इसके पहले सभी नेता, राजनयिक और तेजतर्रार मीडियाकर्मी आतंकवाद के अमानवीयता वाले पहलू से आगे किसी और पहलू पर बातचीत कर नहीं पाते थे।

विशेषज्ञ विद्वान अब भी गायब
हमेशा की तरह जो नया नहीं हुआ, वह यह है कि आतंकवाद जैसी जटिल समस्या पर संबंधित विशेषज्ञ विद्वान इस बार भी दिखाई नहीं दिए। चलिए, भारत में तो नए ज्ञान-विज्ञान का टोटा हो सकता है, लेकिन ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में फ्रांस और अमेरिका जैसे उन्नत-विकसित देशों में भी इस जटिल समस्या के समाधान के लिए अपराधशास्त्रियों, आपराधिक मनोविज्ञान और सामाजिक विघटन के विद्वान समाजशास्त्रियों का बिल्कुल भी न दिखना हैरत की बात है। ऊंची गुणवत्ता के कुछ अकादमिक विद्वानों ने इस बारे में नया ज्ञान सृजित किया भी हो, तो उसे उन्होंने अपने शोधग्रंथों के लिए बचाकर रखा होगा।

अपराधशास्त्रीय नजरिया : मत्स्य न्याय बनाम सहअस्तित्व
अपराधशास्त्रीय नजरिये से देखें तो विश्व में आतंकवाद, उग्रवाद, अलगाववाद, क्षेत्रवाद, धर्मरक्षा के लिए क्रूर हिंसा और धार्मिक असहिष्णुता की प्रवृत्तियों का इतिहास कोई 25-50 साल पुराना ही नहीं है। लोकतंत्र के आधुनिक रूप की खोज से पहले राजसत्ताएं और धर्मसत्ताएं भी युद्ध के रूप में यही प्रवृत्तियां अपनाती थीं। मानव समाज इन्हें सहस्राब्दियों से भोग रहा है।

लोकतांत्रिक राज व्यवस्था को लगभग सारी दुनिया में अपनाए जाने के बाद मानव समाज में निश्चिंतता आई थी और पृथ्वीवासियों में उम्मीद जगी थी कि इस संत्रास से मुक्ति मिलेगी, लेकिन मत्स्य न्याय (सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट) की पारंपरिक मजबूरी में मानव समाज आज भी हिंसा में उलझा दिखता है। एक से एक धार्मिक और नैतिक आधार वाली सत्ताएं भी सह-अस्तित्व के सिद्धांत पर भरोसा नहीं कर पा रही हैं। यहां हमें यह सवाल उठाना है कि मौजूदा आतंकवाद के विमर्श की शुरुआत क्या इस तरह के विमर्श से भी नहीं हो सकती...?

आतंकवाद पर वैज्ञानिक विमर्श का प्रस्ताव
आधुनिक प्रबंधन प्रौद्योगिकी आजकल व्यापार जगत की अपनी जटिल समस्याओं के समाधान के लिए बुद्धि-उत्तेजक विमर्श का खूब इस्तेमाल कर रही है। ये प्रबंधन विशेषज्ञ एक से बढ़कर एक जटिल समस्याओं का समाधान ढ़ूंढने के लिए संबधित विद्वानों और समाज के जागरूक नागरिकों के बीच बुद्धि-उत्तेजक विमर्श सत्र आयोजित करवाने में पटु हो गए हैं, लेकिन प्रबंधन प्रौद्योगिकी के ऐसे विशेषज्ञ यह काम हाथ में लेने से पहले आयोजकों या प्रायोजकों से निम्नलिखित चीजों की मांग करेंगे...
 
  • दुनिया के मशहूर विश्वविद्यालयों के 10 प्रोफेसरों की सूची, जिन्होंने आतंकवाद या उग्रवाद विषय पर अपराधशास्त्रीय शोध अध्ययन किए हों या करवाए हों...
  • चार ऐसे प्रोफेसरों के नाम, जिन्होंने आपराधिक मनोविज्ञान की सैद्धांतिकी पर शोध किए हों...
  • समाजशास्त्री, जो समाज मनोविज्ञान, खासतौर पर सामाजिक विघटन विषय को स्नातकोत्तर कक्षाओं में पढ़ाते रहे हों...
  • राजनैतिक अर्थशास्त्र के दो प्रोफेसर...
  • कम से कम पांच वैज्ञानिक दर्शनशास्त्री, यानी अकादमिक दर्शनशास्त्री... इनमें से कम से कम एक-एक बौद्ध और जैन दर्शन का अकादमिक विद्वान जरूर हो...
  • दो मानवविज्ञानी (एन्थ्रोपोलॉजिस्ट - Anthropologist)
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय स्तर के चार विश्वविद्यालयों से प्रबंधन प्रौद्योगिकी के चार प्रोफेसर, जो व्युत्पन्नमति-संपन्न हों...
  • साहित्य में नोबेल पुरस्कार पाए चार साहित्यकार...
  • रूसी, अंग्रेज़ी, फ्रेंच, इतालवी, जर्मन जैसी 10 भाषाओं के कुशाग्र दुभाषिये...
  • कम से कम 15 देशों के कम से कम 15 जनप्रतिनिधि या राष्ट्राध्यक्ष या टूआईसी, जो विद्वानों के प्रति आदर-भाव का प्रदर्शन सुनिश्चित करते हों... ऐसे जनप्रतिनिधि, जो कुछ समय के लिए श्रोता की भूमिका का निर्वहन कर सकें, और जो बिना आक्रामकता के अपने सुझाव विचारार्थ प्रस्तुत कर सकें...

आतंकवाद पर प्रस्तावित बुद्धि-उत्तेजक विमर्श के आयोजन के प्रतिभागियों की बहुत लंबी सूची सुझाई जा सकती थी, लेकिन वैसे शौकिया विद्वानों के सुझाव हमारे पास पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित उनकी ख़बरों और आलेखों के रूप में उपलब्ध होंगे। थोड़ी-सी मेहनत से उन्हें वर्गीकृत और संक्षेपीकृत किया जा सकता है।

कठिन सवाल अगर आ सकता है तो वह ऐसे आयोजनों के भारी खर्चे का होगा, क्योंकि आतंकवाद के अकादमिक पहलू के आयोजन से देशों की अर्थव्यवस्था को तत्काल लाभ का कोई बिंदु नहीं निकल सकता, क्योंकि इसमें आतंकवाद से निपटने के लिए साजो-सामान के उत्पादन या खरीद-फरोख्त के जरिये आर्थिक गतिविधियां शामिल नहीं हो सकतीं, और किसी तरह का उत्पादन भी सुनिश्चित नहीं होता। सो ज़ाहिर है, आतंकवाद पर विमर्श जैसे सामाजिक उद्यम के लिए प्रायोजक का मिलना ज़रा कठिन होगा। हालांकि आजकल कॉरपोरेट जगत सामाजिक उद्यमिता में उत्साहित है, और उस सीएसआर के पैसे से ऐसे आयोजन होना कोई मुश्किल काम नहीं...

बहरहाल, आतंकवाद की समस्या पर ऐसे आयोजनों से लाभ का सवाल उठे तो इससे कम से कम विचारों के उत्पादन का तर्क तो दिया ही जा सकता है... उन विचारों का, जिनका नितांत अभाव स्वयंसिद्ध है।

- सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
आतंकवाद पर विमर्श, पेरिस में आतंकी हमला, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, आपराधिक मनोविज्ञान, Discussion On Terrorism, Paris Terror Attacks, Electronic Media, Criminal Psychology
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com