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This Article is From Aug 08, 2017

वर्ल्ड क्लास विश्वविद्यालय बनाने का एक और नायाब ऐलान

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 15, 2017 02:20 am IST
    • Published On अगस्त 08, 2017 15:56 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 15, 2017 02:20 am IST
योजनाओं के ऐलान का ढेर खड़ा होता जा रहा है. पिछले तीन साल में पांच सौ से ज्यादा बड़े कार्यक्रमों और योजनाओं के ऐलान हो चुके हैं, लेकिन उनके कार्यान्वयन की क्या स्थिति है, इसकी बात नहीं होती. ऐलान करने वाले कह सकते हैं कि काम होने में वक़्त लगता है, लेकिन यह भी तो पता नहीं चलता कि कितना वक़्त लगेगा. देश में बेरोज़गारी, सफाई, चमक दमक के लिए स्मार्ट सिटी, तेज़ रफ्तार के लिए बुलेट टेन, 400 लाख करोड़ के कालेधन की बरामदगी, स्क्लि इंडिया, डिजिटल इंडिया, गांव में सड़कें, किसानों की आमदनी बढ़ाने के ढेरों ऐलान हुए हैं, लेकिन ये पता नहीं चलता कि इनमें किस पर ज्यादा जोर देकर काम हो रहा है. हालांकि इसका जवाब अगर यह दिया जाए कि सब मोर्चों पर काम हो रहा है तो उसे चुनौती भी नहीं दी जा सकती, क्योंकि किसी योजना या परियोजना के क्रियान्वयन की स्थित पता करने का हमारे पास एक ही तरीका है कि उस पर कितना पैसा खर्च हो रहा है. योजनाओं की स्टेटस रिपोर्ट भी खर्च के आधार पर बनती है. खैर, फिलहाल यह प्रत्यक्ष है कि नए ऐलानों का सिलसिला नहीं थम रहा है. सरकार का बिल्कुल नया ऐलान ये है कि देश में 20 ऐसे विश्वविश्वविद्यालय बनेंगे जो वर्ल्ड क्लास होंगे. क्या वाकई ये नए विवि होंगे.

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केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री का यह ऐलान बिल्कुल ही नया-नया है. सो अभी ज्यादा तो पता नहीं लेकिन इतना तय है कि अपनी सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में विश्वस्तरीय गुणवत्ता पैदा करने की बात ठानी है. हालांकि नए ऐलान की भाषा से अनुमान लगता है कि इरादा नए विश्वविद्यालय बनाने का है. अब तय किया जाएगा कि यह काम होगा कैसे? कहां-कहां बनेंगे. चूंकि नए विश्वविद्यालय के इरादे में विश्वस्तरीय गुणवत्ता का विशेषण भी लगा है, सो अब हमें विश्वस्तरीय गुणवत्ता के मायने समझना पड़ेंगे. और जब पता चल रहा होगा कि विश्वस्तरीय गुणवत्ता क्या होती है तो अपने आप ही इस सवाल से सामना होगा कि हमारे पास जो इस समय लाखों शिक्षण संस्थाएं हैं वे किस गुणवत्ता की हैं.

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विश्व स्तरीय गुणवत्ता के मानक ही गा़यब
चाहे विश्वस्तरीय हो या देश स्तरीय या प्रदेश या जिला या तहसील स्तरीय, हमें ये तो पता होना ही चाहिए कि विश्वस्तरीय गुणवत्ता के मानक क्या हैं? एक तथ्य है कि शिक्षा के क्षेत्र में यह विश्व स्तर विश्वस्तर पर रैंकिंग से तय हो रहा है. हमें पता कि इस समय हमारा कौन-सा विश्वविद्यालय किस रैंक पर है. हां, अंतरराष्टीय स्तर पर जो भी संस्थाएं ये रैंकिंग काम करती हैं, उनके मुताबिक हमारा कोई भी विवि विश्वस्तरीय गुणवत्ता में कहीं नहीं ठहरता. अपनी साख बचाने के लिए कुछ कर सकते हैं तो यही तर्क खड़ा कर सकते हैं हमारी गुणवत्ता को कमतर आंकने वाली ये संस्थाएं होती कौन हैं.

वैसे विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय के मायने समझने के लिए विश्वस्तर पर जो भी विचार-विमर्श हुए हैं वे भी तय नहीं कर पाए कि किसे विश्वस्तरीय कहें. उनका अपना निर्णय यह है कि विश्वस्तरीय का मसला विषयगत है. यानी कोई भी वस्तुनिष्ठ मानक उपलब्ध नहीं है जो यह तय करता हो कि विश्वस्तरीय विश्वविद्यालय में क्या-क्या गुण होंगे. फिर भी आमतौर पर यह मान लिया जाता है कि विश्वविद्यालय का मुख्य काम शोध का है. ज्यादा से ज्यादा यह देख लिया जाता है कि उस विश्वविद्यालय के पास कितने ऐसे शिक्षित शिक्षक हैं जिनकी दुनिया भर में प्रसिद्धि है. वैसे शिक्षण प्रशिक्षण के लिए हमारे पास डिग्री कॉलेज जैसी संस्थाएं है, जिनकी पहचान स्थानीय संस्थाओं के रूप में ही होती हैं. 
तो फिर इस ऐलान मतलब क्या निकलता है.

मानक हमारे पास है नहीं. मानद विश्वविद्यालय नाम से सैकड़ों व्यापारिक शिक्षण संस्थाएं हम खड़ी करते जा रहे हैं. बेशक, इन संस्थाओं की गुणवत्ता औसत सरकारी संस्थाओं से कहीं बेहतर समझी जा रही है. तो अब सवाल है कि सरकार नए विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों के ऐलान से हासिल क्या करना चाहती है. ज़रा गौर करें तो पाते हैं कि उच्च शिक्षा जिस तरह महंगी होती जा रही है उस लिहाज़ से जनता में सरकारी कॉलेज की मांग वाकई बहुत है, क्योंकि उनकी फीस कम होती है. भले ही उनमें दाखिला सौ में से एक को मिल पाता हो. इस आधार पर सरकार पर सरकारी उच्च शिक्षा संस्थाओं की संख्या बढ़ाने का दबाव साफ समझ में आता है. वाकई कोई ऐसा ज़िला नहीं जहां के नागरिकों में एक विश्वविद्यालय पाने की तमन्ना न हो, लेकिन मुश्किल यह है कि जिले स्तर के उन डिग्री कालेजों को जिनका वित्त पोषण सरकार करती है वे ही बड़ी मुश्किल से चल पा रहे हैं.

सो नए विश्वविद्यालय के ऐलान से माहौल में उम्मीद के रूप में एक स्फूर्ति तो आती ही है. यह उम्मीद और बढ़ जाती है जब प्रस्तावित विश्वविद्यालयों के आगे विश्वस्तरीय लगा हो, लेकिन सवाल यह खड़ा होगा कि छह सौ से ज्यादा आकांक्षी जगहों में से 20 जगह तय कैसे करेंगे.

केंद्रीय मंत्री के इस ऐलान की एक और खास बात
उन्होंने साफ तो नहीं कहा, लेकिन कम शब्दों में एक इशारा किया है कि नए विवि के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी वाला तरीका अपनाया जाएगा. इस इशारे से सरकार इस सवाल का जवाब देने से बरी हो जाती है कि भारी भरकम खर्च वाले विवि को बनाने के लिए धन कहां से आएगा, लेकिन गौर करने की बात यह है कि शिक्षण संस्थाएं खोलने के लिए लंबी चौड़ी ज़मीनों का इंतजाम करने में सरकार हद से ज्यादा मदद कर देती हैं. और ये सब जानते हैं कि सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी आधार वाली योजनाओं में निजी क्षेत्र का प्रभुत्व कितना हो जाता है. सो यह सोचना बहुत दूर की बात है कि सरकार की सदइच्छा फलीभूत होने की संभावना बनी रहेगी.

सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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