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This Article is From Feb 22, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : स्टेंट की क़ीमतों पर सरकार ने लगाई लगाम

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 22, 2017 21:35 pm IST
    • Published On फ़रवरी 22, 2017 21:32 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 22, 2017 21:35 pm IST
श्मशान और क़ब्रिस्तान से फुर्सत हो तो अस्पतालों की भी बात हो जाए, वर्ना इसकी प्रतिक्रिया में हम गुजरात के उन साढ़े चार हज़ार स्पेशल गधों की चर्चा करने लगेंगे जिनके लिए अमिताभ बच्चन ने विज्ञापन किया है. वैसे गुजरात से शेर इटावा के लायन सफारी में गए तो हैं. यूपी में कौन जीतेगा की जगह अगर यह सवाल पूछा जाए कि अस्पतालों में कौन बचेगा तो कैसा रहेगा. मान लीजिए आज आपको पता चले कि चार साल पहले आपके दिल में जो स्टेंट लगा था वो ज़रूरी नहीं था और उस स्टेंट के लिए आपने जो नब्बे हज़ार दिये थे वो तीस हज़ार का था तो आप क्या करेंगे. इलाज के लिए जिससे कर्ज़ लिया था, उसके सामने गिड़गिड़ायेंगे या ख़ुद को कोसेंगे कि पता क्यों नहीं था. दरअसल हमारा आपका ऐसे लोगों के प्रति ध्यान होता ही नहीं है जो आपके लिए लड़ते हैं. जो आपको हिन्दू- मुस्लिम के नाम पर लड़ाता है उसकी तरफ ही ज़्यादा ध्यान होता है

पेशे से वकील वीरेंद्र सांगवान ने 2014 में दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की कि अस्पतालों में स्टेंट की कीमत बहुत ज़्यादा वसूली जा रही है. सांगवान ने मांग की कि स्टेंट को National List of Essential Medicines (NELM) में डाला जाए. सांगवान को जब पता चला कि फरीदाबाद के एक अस्पताल में स्टेंट के लिए 1 लाख 26 हज़ार रुपये लिये गए और उसके बक्से पर कीमत भी नहीं लिखी थी तब इन्हें पता चला कि सरकार स्टेंट की कीमतों को रेगुलेट नहीं करती है, इसलिए अस्पताल या डीलर मनमाने दाम वसूलते हैं. इसी दौरान पता चला कि कंपनी से ऑपरेशन टेबल तक पहुंचते-पहुंचते स्टेंट की कीमतों में 1000 से 2000 गुना की बढ़ोत्तरी हो जाती है. सांगवान अपना केस जीत गए और दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश भी दे दिया, मगर सरकार ढिलाई बरतती रही. जुलाई, 2016 में अवमानना याचिका दायर की गई कि सरकार कोर्ट के आदेश के अनुसार काम नहीं कर रही है. दिसबंर 2016 में एक और याचिका दायर करने के बाद सरकार ने फैसला लिया. इसके तहत अब सरकार ने सारे अस्पतालों के लिए स्टेंट की कीमतें तय कर दीं.

इस फैसले से लाखों मरीज़ों को फायदा हो सकता है बशर्ते अस्पताल स्टेंट की कीमत फिक्स करने के कारण अपनी कमाई के दूसरे रास्ते न निकाल लें जिससे मरीज़ों को पहले जितना ही पैसा देना पड़े. अभी से सुनाई देने लगा है कि स्टेंट की कीमत फिक्स करने के बाद से अस्पतालों ने एंजियोप्लास्टी का पैकेज मंहगा करना शुरू कर दिया है. इस कहानी की एक और नायिका हैं ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की डॉक्टर मीरा शिवा. इन्होंने भी इसकी लड़ाई लड़ी है. आप जानते हैं कि स्टेंट कई तरह के होते हैं. ड्रग एल्यूटिंग स्टेंट और बायोरेज़ॉर्बेबल स्टेंट की कीमत 30,000 कर दी गई है. सिर्फ मेटल स्टेंट की कीमत 7,500 रुपये फिक्स कर दी गई है. पहले ड्रग एल्यूटिंग स्टेंट की कीमत 24,000 से 1.5 लाख तक हुआ करती थी. बायोरेज़ॉर्बेबल स्टेंट की कीमत एक लाख सत्तर हज़ार से लेकर दो लाख नब्बे हज़ार हुआ करती थी. अब दोनों ही 30,000 में मिलेंगे.

अच्छा फैसला तो है ही, इससे बहुतों को राहत मिलने वाली है. इस रिपोर्ट के दौरान इंटरनेट पर रिसर्च करते हुए जानकारी मिली कि 2016 के साल में भारत के अस्पतालों में 6 लाख स्टेंट का इस्तेमाल हुआ. अब सोचिये 30,000 का स्टेंट आपने डेढ़ पौने दो लाख में लगवाया. अस्पतालों ने स्टेंट के ज़रिये काफी कमाया है. कई जगह यह भी पढ़ने को मिला कि भारत से लेकर अमरीका तक में 25-30 प्रतिशत लोगों को स्टेंट लगाया गया जबकि वो सिर्फ दवा से ठीक हो सकते थे. अब जो आदेश हुआ है, उसके अनुसार अस्पताल अपने बिल में अलग से बतायेंगे कि स्टेंट की कितनी कीमत वसूली गई है.

इस फैसले की तारीफ के साथ एक सवाल उठ रहा है अगर उस पर कुछ नहीं किया गया तो इस तारीफ का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. मतलब अस्पताल आपसे स्टेंट के तीस हज़ार ही लेंगे मगर बाकी चीज़ों के दाम बढ़ा देंगे. तब आप क्या करेंगे. बात ये उठ रही है कि अमरीका में किस स्थिति में क्या करना है, इसकी पूरी प्रक्रिया तय है. वहां भी बिना ज़रूरत के स्टेंट लगाकर अस्पतालों में भारी मुनाफा कमाया है. इसलिए ऑपरेशन और स्टेंट लगाने की प्रक्रिया तय हो और फिर इस प्रक्रिया की निगरानी के लिए रेगुलेटर बने जो बाहर से आकर अस्पतालों का ऑडिट करे. 2009 में अमरीका में दिल के डॉक्टरों ने स्टेंट लगाने की एक गाइडलाइन बनाई थी. इसके बाद असर अच्छा हुआ. 766 अस्पतालों में 27 लाख स्टेंट प्रक्रिया का अध्ययन करने पर पाया गया कि वहां अब बेज़रूरी स्टेंट लगने कम हो गए. पहले 25 प्रतिशत फालतू स्टेंट लग रहे थे तो अब 13 प्रतिशत लग रहे हैं. गिरावट आई है.

एक बात उठ रही है कि क्लिनिकल इस्टैबलिशमेंट एक्ट की ज़रूरत होगी। ये क्या है, इससे क्या हो जाएगा हम बात करेंगे। टाइम्स आफ इंडिया की रेमा नागराजन ने इन बातों पर खूब रिपोर्टिंग की है. उनकी पुरानी रिपोर्ट से पता चलता है कि दिल्ली का जीबी पंत अस्पताल स्टेंट लगाने की फैक्ट्री बन गया था. महीने में वहां 1000 स्टेंट लगते थे. 14 मार्च, 2015 की रेमा नागराजन की रिपोर्ट कहती है कि ज़्यादातर मरीज़ों से डॉक्टरों ने कहा कि अस्पताल से स्टेंट की जगह प्राइवेट दुकानों से स्टेंट खरीद कर लाएं. सरकारी अस्पतालों में स्टेंट का रेट 23,625 रुपये है. प्राइवेट सप्लायरों ने मरीज़ों से 23,625 की जगह 68,000 और 42,000 रुपये में स्टेंट बेचा. 2014 के अगस्त तक इस अस्पताल में 12,000 स्टेंट लगे थे. इनमें से 7,200 स्टेंट अस्पताल के बाहर भारी कीमत देकर ख़रीदे गए थे. बाद में जब हंगामा हुआ तो अस्तपाल ने बाहर से स्टेंट लाने पर रोक लगा दी.

जिन लोगों को स्टेंट के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है उन्हें संक्षेप में बताना ज़रूरी है कि स्टेंट होता क्या है. ये एक तरह का छोटा छल्ला होता है, किसी छोटी स्प्रिंग या बैलून जैसा जिसे दिल की धमनियों में उस जगह फिट किया जाता है जहां कोलेस्ट्रॉल जमने की वजह से खून का प्रवाह बंद या फिर बहुत कम हो गया है. इस प्रक्रिया को एंजियोप्लास्टी कहा जाता है. शरीर में एक पतली ट्यूब जिसे कैथेटर कहते हैं उसके ज़रिए इसे पैर और हाथों की बड़ी धमनियों के रास्ते दिल तक पहुंचाया जाता है.

इस पूरी बातचीत के दौरान एक महत्वपूर्ण सरकारी महकमे की जानकारी भी आपको होनी चाहिए. ये है NPPA यानी National Pharmaceutical Pricing Authority. इस संस्थान का काम देश में दवाओं की क़ीमतों पर काबू रखना है. दवाओं की कमी पर निगाह रखना और उसे ठीक करना भी इसके काम के दायरे में आता है. NPPA दवाओं से जुड़ी नीतियों और क़ीमतों पर सरकार को सलाह भी देता है. पिछले ही साल मई के महीने में NPPA ने 81 दवाओं की क़ीमतों की सीलिंग तय कर दी थी. इनमें कैंसर, डायबिटीज़, हाइपरटेंशन, एपिलेप्सी, बैक्टीरियल इनफेक्शन जैसी बीमारियों की दवाएं शामिल थीं.

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