विज्ञापन
Story ProgressBack
This Article is From Sep 19, 2016

पेस, सानिया और बोपन्‍ना : सितारों की 'जंग' और अहंकार से हारता देश

Shailesh Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    September 19, 2016 16:14 IST
    • Published On September 19, 2016 16:14 IST
    • Last Updated On September 19, 2016 16:14 IST
शनिवार की सुबह एक अखबार एक ‘इमेज कॉन्शस’ एथलीट पर सवाल उठाता है. स्पेन के खिलाफ डेविस कप टाई में 0-2 से पिछड़ने के बाद सवाल उठाता है कि रियो में लिएंडर पेस और सानिया मिर्जा के मिक्स्ड डबल्स में साथ न खेलने के पीछे कोई नियम नहीं था. टेनिस संघ ने मीडिया को गलत जानकारी दी थी. उसी रात स्पेन के खिलाफ डबल्स मुकाबला और टाई हारने के बाद लिएंडर पेस सवाल उठाते हैं कि रियो में सही टीम क्यों नहीं भेजी गई. उनका बयान था, ‘पिछली बार और इस बार भी ओलिंपिक में हमने सही टीम नहीं भेजी थी.

ओलिंपिक्स में मिक्स्ड डबल्स का मेडल जीतने का हमारे पास बहुत अच्छा मौका था.’ इसके कुछ देर बाद सानिया मिर्जा ने ट्वीट किया कि जीत का एकमात्र तरीका है कि ‘टॉक्सिक’ इंसान के साथ न खेला जाए. हालांकि इसमें किसी का नाम नहीं था. इसे रोहन बोपन्ना ने रीट्वीट किया और अपनी तरफ से एक ट्वीट किया, ‘फिर वही काम...साथी खिलाड़ियों पर आरोप लगाना.. .सिर्फ मीडिया में बने रहने के लिए. उन्होंने इसके साथ हैशटैग पैट्रियोटिज्म यानी देशभक्ति शब्द का भी इस्तेमाल किया.

आपसी लड़ाई में हारता जा रहा देश
बोपन्ना ने भी कोई नाम नहीं लिखा. लेकिन किसके बारे में लिखा गया, इसे समझने के लिए जीनियस होने की जरूरत नहीं है. ये सब हो रहा था और भारतीय टीम स्पेन के खिलाफ हार रही थी. आखिर 0-5 से हार गई. 43 साल के लिएंडर पेस, 36 साल के रोहन बोपन्ना, करीब 30 साल की सानिया मिर्जा. इस उम्र में भी ये सब भारतीय टेनिस के कर्णधार हैं. इनमें से किसी ने बताने की जरूरत नहीं समझी कि आखिर कब हमारे पास कोई एक खिलाड़ी ऐसा होगा, जो सिंगल्स के टॉप 100 में हो. ऐसा अगला खिलाड़ी कौन होगा, जो डबल्स में वो रोल निभा सके, जो अब तक लिएंडर निभाते हैं और पहले महेश भूपति निभाया करते थे. सब आपसी लड़ाई में ही लगे हैं. देश हारता जा रहा है.

टेनिस में बन चुके हैं खेमे पर किसी का ध्‍यान नहीं
डेविस कप टाई के दूसरे दिन की एक और घटना है, जब लिएंडर पेस और साकेत मायनेनी साथ बैठे थे. लिएंडर बता रहे थे कि साकेत के साथ वे अच्छी डबल्स जोड़ी बना सकते हैं. साथ बैठे साकेत ने एक बार भी इस पर हामी नहीं भरी. उन्होंने एक बार भी नहीं कहा कि वे लिएंडर के साथ खेलना चाहते हैं. कई साल हो गए. टेनिस में खेमे बने हुए लेकिन ऐसा लगता ही नहीं कि कोई उसे ठीक करना चाहता है. न खिलाड़ी, और न संघ.

टेनिस संघ को सिर्फ इसी बात की चिंता..
टेनिस संघ की फिक्र पिछले कुछ समय में सिर्फ यही रही है कि कैसे स्पोर्ट्स कोड से बचकर अनिल खन्ना को जोड़े रखा जाए. नियमों के मुताबिक उन्हें अध्यक्ष नहीं बनाया जा सकता था, इसलिए संघ में अभी कोई अध्यक्ष है ही नहीं. लेकिन संघ तो उनको ही चलाना है. इसलिए वो लाइफ प्रेसीडेंट यानी आजीवन अध्यक्ष बन गए. भारतीय टेनिस संघ में तीन आजीवन अध्यक्ष हैं-एसएम कृष्णा, यशवंत सिन्हा और अब अनिल खन्ना.   इन सारे अध्यक्षों से अगर यह पूछा जाए कि उन्‍होंने भारतीय टेनिस के उत्थान के लिए क्या किया तो इनके पास लंबी फेहरिस्त होगी. लेकिन जरा भारतीय टेनिस की तरफ नजर उठाकर देखें. क्या आपको एक भी खिलाड़ी ऐसा दिखाई देता है, जो हाल-फिलहाल सिंगल्स के टॉप 100 में आ सके या दशक-दो दशक से दिख रहे खिलाड़ियों के अलावा कोई ऐसा नाम, जो डबल्स में ही अपनी जगह बना सके.

सोमदेव 31 के हो चुके और साकेत 28 के हैं
टॉप के तीन खिलाड़ियों की उम्र बता चुके हैं आपको. सोमदेव देववर्मन लंबे समय से चोट की वजह से नहीं खेले हैं. वे फरवरी में 31 के हो चुके हैं. उसके बाद हैं साकेत, जो 28 के हैं. अभी वे चैलेंजर्स खेल रहे हैं. अब भी उन्हें टैलेंटेड बताया जा रहा है. आप खुद समझ लें कि टैलेंट को चैंपियन बनने में कितना समय लगेगा. टेनिस में हम सब जानते हैं कि 30 होने का मतलब है कि आप सिंगल्स के लिहाज से वेटरन हो गए हैं.  रामकुमार रामनाथन 2013 में सोमदेव को हराया था. दिसंबर का अंत था. यानी करीब ढाई साल हो गए हैं। उसके बाद से वे भी चैलेंजर्स ही खेल रहे हैं. अभी उन्हें इससे ऊपर के लेवल पर आने की जरूरत है, जो आमतौर पर ज्यादातर बड़े खिलाड़ी इस उम्र में कर चुके होते हैं. उसके बाद सुमित नागल हैं, जिन्होंने रिवर्स सिंगल्स खेला. मैच के बीच में उन्हें सांस की तकलीफ हो गई. टीम के नॉन प्लेइंग कैप्टन बता चुके हैं कि यह फिटनेस की कमजोरी का नतीजा था.

जैसी कोचिंग की जरूरत होती है वह भारत में नहीं है
कुछ समय पहले जब युकी भांबरी तेजी से आए थे तब उनकी टेनिस खिलाड़ी बहन अंकिता भांबरी से बात हुई थी. अंकिता बता रही थीं कि किसी भी भारतीय खिलाड़ी के लिए कैसे यह सबसे मुश्किल वक्त होता है. वहां तक भारतीय खिलाड़ी दुनिया के साथ या आसपास होता है. लेकिन इसके बाद तेजी से पिछड़ता है. तब उसे फिटनेस के लिए जिस तरह की ट्रेनिंग की जरूरत होती है, वह मिलना आसान नहीं. जिस तरह की कोचिंग की जरूरत होती है वो भारत में नहीं. टुअर में खिलाड़ी जिस तरह की टीम के साथ जाता है, वो बेहद खर्चीला है. सरकार इतनी मदद नहीं कर सकती. प्राइवेट स्पॉन्सर आते नहीं, क्योंकि वे तभी आएंगे, जब आप बड़े खिलाड़ी बन जाएंगे. युकी भी चोटिल हैं. वे 24 के हैं. 2009 में उन्होंने ऑस्ट्रेलियन ओपन का जूनियर खिताब जीता था. सात साल बाद भी वे जूनियर से सीनियर में बड़े स्तर पर जगह बनाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

आखिर हम कब तक वेटरन खिलाड़ि‍यों से उम्‍मीद करते रहेंगे
अब फेडरेशन का क्या रोल है. क्या वाकई भारत में इस तरह की कोचिंग उपलब्ध है. फेडरेशन ने देश में कितने ऐसे कोर्ट बनाए हैं, जो इनडोर हों, जहां बरसात के तीन-चार महीने में ट्रेनिंग की जा सकती हो. आखिर क्यों लिएंडर से लेकर रामनाथन और साकेत और सुमित नागल को देश से बाहर रहना पड़ता है. क्या स्पोर्ट्स कोड की काट ढूंढ रहे फेडरेशन ने कभी इस तरफ सोचा है. चलिए, ये भी न सही। क्या इतना सोचा है कि आपके पास जो चंद खिलाड़ी हैं, वो खेमों में न बंटें. दशक हो गए, खिलाड़ी लड़ते रहते हैं. फेडरेशन खामोश रहता है. न खिलाड़ी के लिए कुछ करता है,  न खेल के लिए. कब तक लिएंडर, सानिया, रोहन जैसे ‘वेटरन’ के सहारे उम्मीद करते रहेंगे कि कुछ चमत्कार कर दें और नडाल, फेरर, लोपेज जैसों को हरा दें...

शैलेश चतुर्वेदी वरिष्‍ठ खेल पत्रकार और स्तंभकार हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

इस लेख से जुड़े सर्वाधिकार NDTV के पास हैं। इस लेख के किसी भी हिस्से को NDTV की लिखित पूर्वानुमति के बिना प्रकाशित नहीं किया जा सकता। इस लेख या उसके किसी हिस्से को अनधिकृत तरीके से उद्धृत किए जाने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
डार्क मोड/लाइट मोड पर जाएं
Our Offerings: NDTV
  • मध्य प्रदेश
  • राजस्थान
  • इंडिया
  • मराठी
  • 24X7
Choose Your Destination
Previous Article
सॉरी विराट, सॉरी रोहित... भला ऐसे भी कोई अलविदा कहता है!
पेस, सानिया और बोपन्‍ना : सितारों की 'जंग' और अहंकार से हारता देश
रामलला लौटे अयोध्या, आस हुई पूरी -  अब फोकस सिर्फ देश की तरक्की पर
Next Article
रामलला लौटे अयोध्या, आस हुई पूरी - अब फोकस सिर्फ देश की तरक्की पर
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com
;