लिहाज़ा जब कभी टीवी देखने का मौक़ा मिल पाता है, हल्का-फुल्का मनोरंजक कार्यक्रम देखने की इच्छा रहती है। शायद मैं अकेला नहीं हूं। मेरी तरह बहुत से लोग हैं जो हिंदी में "पलायनवादी प्रवृति" के और इंग्लिश में "एस्केपिस्ट" हैं। तभी शायद पिछले कुछ समय से कॉमेडी फ़िल्में 'हिट' और कॉमेडी शो की टीआरपी 'हाई' रहती है। हमारी पीढ़ी व्यवस्था से लड़ते-लड़ते थक चुकी लगती है। हम "सिस्टम" में "सेट" हो चुके हैं। 70 के दशक में लोगों में उम्मीद थी। तब देश को आज़ाद हुए ज़्यादा वक्त नहीं हुआ था। तभी सिस्टम से लड़ने वाले एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन सबके नायक बने।
बात कहां से से कहां जा रही है। लौटते हैं अपनी कहानी पर।
पहले "कॉमेडी नाइट्स विद कपिल" देखता था। "एस्केपिस्ट" मन को कपिल शर्मा का हल्का-फुल्का चुटीला-शरारती अंदाज़ भाता था। थोड़ी राहत देता था। लेकिन कपिल भी अब "बाबा जी का ठुल्लू" से आगे नहीं बढ़ पा रहे थे। लिहाज़ा चैनल वालों ने कपिल को बाय-बाय कहने में देर नहीं की। सब कुछ बाज़ार पर टिक गया है। चीची गोविंदा गुमनाम नहीं हो रहे हैं तो इसके पीछे 2 वज़हें हैं। पहला- संतोष बटेश्वर राय नाम के एक शख्स को 7 साल पहले मारा एक थप्पड़ जिसकी कीमत आज 5 लाख तक जा पहुंची है और दूसरी वजह जिसके कारण गोविंदा आज भी चर्चा में आ जाते हैं वो है उनका भांजा कृष्णा। भारती सिंह के साथ कृष्णा "कॉमेडी नाइट बचाओ" शो कर रहे थे। मामा गोविंदा की नकल कर। अब उन्हें कपिल का शो भी दे दिया गया है। अच्छा होता कि शो को नए नाम और नए अंदाज़ के साथ लॉन्च किया जाता। कपिल से तुलना भी हो रही है और कृष्णा को गालियां भी पड़ रही हैं। शक है कि ये नया शो चल पाएगा।
शनिवार की रात थी। "कॉमेडी नाइट बचाओ" देखकर उठा था। उस रात सारे शो के सारे मेहमान तमीज़ और समझ से नफ़रत करने वाले व्यक्तित्व के थे-केआरके यानी कमाल आर ख़ान। राहुल महाजन। अयाज़ खान। सना खान। सभी बिग बॉस के बिग हेड! गज़ब का दौर है। बदतमीजी और बेवकूफियां भी बिकने लगी हैं। फूहड़ता का बाज़ार तो पहले से ही है।
शो देखने के बाद सोने का समय था। लेकिन एक काम अब भी बाक़ी था। घर के सारे मोबाइल और टैब को चार्ज में लगाने का। सोने के पहले ''वाट्सअप'' चेक करना अब तो आदत में शुमार हो गया है। बिना देखे बैचेन मन नींद को आने कहां देता है।
स्कूल के दोस्तों का हमारा एक एक ग्रुप है-बीरपुर के संगी। बीरपुर बिहार के सहरसा जिले में था अब सुपौल नया जिला बन गया है, यहीं से हमने मैट्रिक यानी दसवीं पास की थी। यहां से थोड़ी दूर नेपाल है। तब हम साइकल से ही कोसी बैराज पार कर नेपाल चले जाते थे। चाइनीज पेन खरीदने। तब चीन ने भारतीय बाज़ार या यूं कहें विश्व बाज़ार पर कब्ज़ा नहीं किया था। मौसम साफ रहता था तो बीरपुर से हिमालय की चोटियां भी नज़र आती थीं। वो भी क्या दिन थे। अल्हड़। मदमस्त। बेफ़िक्र। स्कूल के दोस्तों की बात ही कुछ और होती है। 'वाट्सअप' आया तो हमने ग्रुप बना लिया। अब हर रोज़ एक-दूसरे को अभिवादन ज़रूर करते हैं।
उस रात हमारे ग्रुप में बहुत ज़्यादा हलचल दिखी। पता चला कि कोई बुजुर्ग सज्जन शहीद एक्सप्रेस से अकेले यात्रा कर रहे थे। वे अचानक बहुत ज़्यादा बीमार पड़ गए। उनकी नाक से लगातार खून आ रहा था और वे चिल्लाए जा रहे थे। "ब्रेन हैमरेज" की आशंका थी। ये तमाम जानकारी हमारे ग्रुप का एक दोस्त संजीव झा डाल रहा था। उसके ऑफ़िस के सीनियर बीमार यात्री के साथ सफर कर रहे थे। वे चाह रहे थे कि कोई इस खबर को रेल मंत्रालय को टैग कर ट्वीट करे ताकि मदद मिल सके और बुजुर्ग सज्जन की जान बचाई जा सके। पिछले दिनों हम सब ने कई ख़बरें पढ़ीं थीं कि किस तरह से ट्वीट करने से रेल मंत्रालय ने परेशान और मुसीबत में फंसे यात्रियों की मदद की। लेकिन ट्वीट के पहले हम निश्चिंत हो लेना चाहते थे कि उन्हें वाकई मदद की ज़रूरत थी। रेल मंत्री को टैग कर ट्वीट करना एक ज़िम्मेदारी की बात होती है। जल्द ही ये सुनिश्चित हो गया कि उन्हें वाकई मदद की ज़रूरत थी।
सोने के पहले मैंने ट्वीट कर दिया। हालांकि मुझे बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं थी। 121 करोड़ के देश में एक अनुमान के मुताबिक हर रोज़ 2.3 करोड़ लोग ट्रेन पर होते हैं। यानी समूची जनसंख्या का करीब 1.9 प्रतिशत हिस्सा 7000 ट्रेनों के जरिए सफ़र कर रहा होता है। ऐसे में रेल मंत्रालय को हर दिन कितने ट्वीट पहुंचते होंगे, ये समझा जा सकता है।
@sureshpprabhu 09931457943- Suresh jha 65 year old. Needs urgent medical help sir
— Sanjay Kishore (@saintkishore) February 6, 2016
बीमार यात्री सुरेश झा की उम्र 65 साल थी। उनका मोबाइल नंबर भी दूसरे ट्वीट में डाल दिया। सुबह उठा तो ये जानने की उत्सुकता थी कि ट्वीट पर कोई कार्यवाही हुई या नहीं। मेरे लिए हैरान होने की बारी थी।
@saintkishore @sureshpprabhu sir, patient attended at Lko/stn by SRDMO/LKO nd advised to admit him.
— SRDCM/MB (@srdcmmb) February 6, 2016
मेरे ट्वीट के आधे-पौन घंटे के बीच ही सुरेश झा को लखनऊ स्टेशन पर मेडिकल मदद उपलब्ध करा दी गयी थी। उन्हें ट्रेन से उतार कर अस्पताल में एडमिट करा दिया गया था और उनके परिवार को सूचित भी कर दिया गया था। धन्यवाद का ट्वीट बनता था।
"कलयुग" में "प्रभु' ने मेरी सुन ली थी। एक अनजान बुजुर्ग सज्जन की जान बच गयी। ऐसे वाक़यात से व्यवस्था से समझौता कर चुकी पीढ़ी की उम्मीदों की बुझती लौ फिर से टिमटिमा जाती है।@srdcmmb @sureshpprabhu thank you very much for immediate medical help. "प्रभु" की कृपा बनी रहे। really a commendable job Indian Railway.
— Sanjay Kishore (@saintkishore) February 7, 2016
संजय किशोर एनडीटीवी के खेल विभाग में एसोसिएट एडिटर हैं...
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