ट्रिगर का दबना और ठाक... गर्दन का घूमना। वाल्थर (गन) में पैलेट (कारतूस) डालना। सांस खींचकर शॉट के बारे में सोचना। निशाना लगाना और फिर 10 मीटर दूर टारगेट पर अचूक निशाना साधना। 120 साल के ओलिंपिक इतिहास में गोल्ड मेडल (निजी स्पर्धाओं में) हासिल करने वाले इकलौते भारतीय अभिनव बिन्द्रा ये काम पिछले 20 साल से कर रहे हैं... बिना थके, लगातार, अकेले। ये एक बंदूकधारी संत की तपस्या है।
चंडीगढ़ शहर से बाहर निकलते ही ज़िरपुर में अभिनव बिन्द्रा अपने घर पर (11.5 एकड़ में फ़ैले घर पर) अपने ही शूटिंग रेंज में लगातार अभ्यास में जुटे हैं। उनका निशाना इस बार रियो का पोडियम है। वैसे वो कहते हैं, "मैं बेस्ट शूट करना चाहता हूं। नतीजे की फ़िक्र नहीं। नतीजा अहम है, लेकिन ज़रूरी नहीं। शूट बेहतरीन होनी चाहिए।"
आपने सब हासिल कर लिया है। वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड, कॉमनवेल्थ में गोल्ड, ओलिंपिक खेलों में गोल्ड। फिर अपने आपको फिर से झोंकने की क्या ज़रूरत है? ये पूछे जाने पर वो कहते हैं, "महानता की कोई लकीर नहीं होती। मैं इन खेलों में एक बार और खुद को आज़माना चाहता हूं।"
दरअसल अभिनव बिन्द्रा की तैयारी का तरीका ना सिर्फ़ खिलाड़ियों के लिए बल्कि हर उस आम इंसान के लिए एक बड़ा सबक है। किसी भी बड़ी चीज़ को हासिल करने के लिए कितनी मेहनत और उससे भी बड़ी बात किस हद तक योजना बनाने और उस पर अमल करने की ज़रूरत होती है, बिन्द्रा उसका शानदार उदाहरण हैं। मसलन इस बार अभिनव बिन्द्रा क़रीब हफ़्ते भर के लिए रियो गए। वहां टेस्ट इवेंट में हिस्सा लेने के बाद लौटे तो अपने घर के 10 मीटर शूटिंग रेंज को भी रियो डि जेनेरो ओलिंपिक शूटिंग रेंज की तरह बनवा लिया। शूटिंग रेंज की दीवारों के रंग रियो की तरह ही हरे रंग के कर दिए गए और टारगेट को भी रियो की तरह हरा और सफ़ेद रंग का कर दिया गया।
खुद को प्रेरित करने के लिए उनकी शूटिंग लैबोरेटरी (इसे वो अपनी लैब यानी लैबोरेटरी ही कहते हैं) के हर दरवाज़े पर ओलिंपिक्स के पांच रिंग के साथ रियो 2016 लिखा है। अपने ही एक पोस्टर पर खुद को रियो मेडल का देवेदार भी लिखा है।
ओलिंपिक्स के इम्तिहान से पहले बिन्द्रा हर बारीक बात का ख़्याल रखते हैं। उस पर पूरा ध्यान देते हैं और उस पर जम कर मेहनत करते हैं। उनके अभ्यास का यही तरीका उन्हें दुनिया भर के शूटर्स से अलग करता है।
बातचीत के दौरान बिन्द्रा से कहता हूं, "ये चीनी शूटर्स तो कमाल के हैं। वर्ल्ड नंबर 1 यिफेई काओ तो सिर्फ़ 26 साल के हैं और ज़बरदस्त शूटिंग कर रहे हैं।" बिन्द्रा कहते हैं, "हां, ओरैन यैंग (वर्ल्ड नंबर 2) तो उनसे भी छोटे हैं। सिर्फ़ 20 साल के। ये सभी बहुत प्रतिभाशाली भी हैं। इसलिए उनसे आगे निकलने के लिए मैं बहुत मेहनत करता हूं।"
रियो से पहले एक संत की तरह बिन्द्रा अपने अभ्यास के ज़रिये खुद को मंत्रसिक्त कर रहे हैं। सिर्फ़ उनकी कामयाबी नहीं, उनके अभ्यास का तरीका भी उन्हें महान बनाता है। बिन्द्रा की गिनती हमेशा एक महान एथलीट के तौर पर होगी तो उसकी कई वजहें हैं।
(विमल मोहन एनडीटीवी इंडिया में कार्यरत हैं...)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।
This Article is From Jun 07, 2016
रियो के दावेदार : बंदूक से अभ्यास करता 'संत'
Vimal Mohan
- ब्लॉग,
-
Updated:जून 07, 2016 19:16 pm IST
-
Published On जून 07, 2016 19:16 pm IST
-
Last Updated On जून 07, 2016 19:16 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं