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This Article is From Aug 13, 2015

ऋचा जैन कालरा की कलम से : वापस आ रही है मैगी सवालों के साथ

Richa Jain Kalra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 17, 2015 16:02 pm IST
    • Published On अगस्त 13, 2015 17:24 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 17, 2015 16:02 pm IST
बड़े दिनों से मैगी की कमी खल रही थी, खासकर जब कुछ बनाने पकाने का मन न हो। झटपट पकने वाली मैगी कई बार याद आई। हालांकि मुझे मैगी से बहुत लगाव कभी नहीं रहा, लेकिन लास्ट मिनिट फूड के तौर पर कभी-कभार खाने में मुझे गुरेज़ भी नहीं था। आज जब बॉम्बे हाईकोर्ट से मैगी पर लगी पाबंदी सशर्त हटने की खबर आई तो हज़ारों करोड़ के कारोबार वाली नेस्ले इंडिया के लिए इससे अच्छी खबर नहीं हो सकती थी।

अहम बात यह कि हाईकोर्ट ने माना है कि फूड रेग्यूलेटर से पाबंदी लगाने में इंसाफ के मूल सिद्धांत की अनदेखी हुई है। यानि फूड रेग्यूलेटर FSSAI ने मैगी का पक्ष सुने बगैर इस पर पाबंदी लगा दी। क्या वाकई मैगी के साथ नाइंसाफी हुई है? क्या FSSAI ने जल्दबाज़ी में इस मल्टीनेश्नल कंपनी के बेहद लोकप्रिय उत्पाद पर कमज़ोर नींव पर ये बड़ी रोक लगाई?

कमज़ोर नींव का मुद्दा उठता है बॉम्बे हाईकोर्ट की उस टिप्पणी से जिसमें कहा गया है कि जिन लैबोरेटरी की जांच के आधार पर ये पाबंदी लगाई गई वो जांच के लिए अधिकृत ही नहीं थीं। क्या खुद FSSAI को इसकी जानकारी नहीं थी या इस पर उसने गौर ही नहीं किया। हाईकोर्ट ने कहा कि अभी तक FSSAI की जांच जिन लैब से हुई वो National Accreditation Board for Testing and Calibration Laboratories (NABL) से संबद्ध नहीं हैं। इसलिए इससे अधिकृत मोहाली, जयपुर और हैदराबाद लैब से जांच कराई जाए। जांच होनी है लेड यानि सीसा की मात्रा की। Lead की मात्रा को लेकर अमेरिका और ब्रिटेन के FDA यानि फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की जांच के नतीजे मैगी को सुरक्षित बताते हैं।

सिंगापुर समेत कई देशों में भारत में बनी मैगी की बिक्री चल रही है। अमेरिका जैसे देशों में खाने की चीज़ों के मापदंड बेहद सख्त हैं। वहां इसके तय मानक के दायरे में आने से हमारी कई लैब में जांच पर सवाल खड़ा हो गया है। हमारे देश में ही गोवा में किए गए सैंपल जांच में खरे पाए गए। तो क्या सैंपल अलग-अलग थे या एक ही तरह के सैंपल के जांच के नतीजे अलग-अलग कैसै।

नेस्ले इंडिया का दावा है कि मैगी के 2700 सैंपल भारत और दुनियाभर में जांच के दायरे में आए हैं और हर जांच में lead की मात्रा तय मानक से कम मिली है।

दूसरा सवाल फूड रेग्यूलेटर की अथॉरिटी पर है। क्या FSSAI को किसी प्रोडक्ट को बैन करने का अधिकार है? ये सवाल नेस्ले इंडिया ने अपनी अर्ज़ी में उठाया था। कुछ हफ्तों पहले मैगी बैन के बाद फूड प्रोसेसिंग मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने FSSAI को सफेद हाथी बताया था जो कि फूड इडंस्ट्री में डर फैला रहा है। देश की फूड प्रोसेसिंग मंत्री के बयान को गंभीरता से लेना लाज़मी है। आखिर सरकार खुद ही संतुष्ट नहीं है तो फिर संस्था की विश्वसनीयता पर तो सवाल खुद भी खुद उठ जाता है।

वैसे मैगी को लेकर सरकार ने भी गज़ब की हरकत दिखाई। एक दिन पहले ही अनैतिक तरीके से कारोबार करने के आरोप में सरकार ने मैगी बनाने वाली नेस्ले इंडिया पर 640 करोड़ का दावा ठोक दिया। ये खाद्य सामग्री से जुड़े मामलों के संदर्भ में सरकार की तरफ से अप्रत्याशित कदम है। बॉम्बे हाईकोर्ट के ताज़ा कदम से सरकार को कहीं अपने कदम पीछे न खींचने पड़े।

मैगी पर लगी पाबंदी और आज के पाबंदी हटाने के फैसले ने इस बहस को तेज़ कर दिया है, दुनिया के दूसरे सबसे ज़्यादा आबादी वाले हमारे देश में लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ की इजाज़त नियमों की अनदेखी कर किसी कंपनी को नहीं होनी चाहिए। इसके लिए बड़े पैमाने पर हमारे फूड रेग्यूलेशन के ढांचे को झकझोरने की ज़रूरत है। मानदंड ऐसे होने चाहिए जिसकी जांच और नतीजों पर किसी कंपनी का दावा टिक न सके। आज के मैगी पर आए फैसले से नेस्ले इंडिया को ये कहने का मौका मिल गया है कि हमारे भारत में बनाए सैंपल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खरे उतरे हैं, भारतीय फूड रेग्यूलर की जांच ही खरी नहीं हैं।  

जो भी हो मैगी की वापसी 6 हफ्तों के बाद नतीजों के आधार पर मुमकिन है तो 2 मिनट में तैयार होने वाली मैगी के लिए क्या आप फिर अपनी रसोई के दरवाज़े खोलेंगे?

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