सीएनएन पर ब्रसेल्स आतंकवादी हमले की रिपोर्ट देख कर ज़रा देर के लिए ठहर गया। जैसे ही ब्रेक आया एक सीसीटीवी कंपनी का विज्ञापन आने लगा। मेरे पास अधिकृत सूचना नहीं है कि सीसीटीवी कैमरे का यह विज्ञापन पहले से ही आ रहा था या हमले के बाद आने लगा है। अगर यह संयोग है तब भी और अगर हमले के बाद विज्ञापन आने लगा है, तब तो और भी हमें जानना चाहिए कि आतंकवाद को रोकने में सीसीटीवी की क्या भूमिका है। मैं न तो सीसीटीवी फुटेज का विशेषज्ञ हूं और न ही आतंकवादी हमलों का। फिर भी सवाल करने में हर्ज़ ही क्या है कि सीसीटीवी कैमरा हमले के बाद सबूत जुटाने के लिए होता है या आतंकी हमलों को रोकने के लिए। इन कैमरों से हम क्या खास सबूत जुटाते हैं, जो आगे के हमलों को रोकने में हमारी मदद करता है। हम रोक पाते भी हैं या सिर्फ इसी बात से संतुष्ठ हो जाते हैं कि हमलवारा कैसा दिखता था और कौन था।
आपने देखा होगा इन दिनों किसी भी आतंकवादी हमले के बाद हज़ारों न्यूज़ चैनलों पर सीसीटीवी फुटेज चलने लगता है। घटना स्थल पर चीज़ें बिखरीं हुईं हैं और लोग बदहवास भागे जा रहे हैं। थोड़ी देर में हमलावर की तस्वीर भी आ जाती है और उसका हुलिया दुनिया भर के चैनलों पर चलने लगता है। नाम तक आ जाता है कि कौन है और कहां कहां से यहां आया है। यह सब ज़रूरी सूचनाएं तो हैं और इनके ज़रिये काफी कुछ पता चलता भी है, लेकिन इसके बाद भी तो अगला हमला हो ही जाता है। अब जो मरने आया हो वो अपने बाद के सबूतों के लिए सीसीटीवी की चिंता भला क्यों करेगा।
कोई सुरक्षा विशेषज्ञ ही पर्याप्त उदाहरणों से बता सकता है कि सीसीटीवी कैमरे के फुटेज से हम क्या हासिल कर रहे हैं। दुर्घटना और अन्य मामलों में हो सकता है कि यह फायदेमंद हो, लेकिन आतंकवाद को रोकने में कितना कारगर है जानना दिलचस्प रहेगा। आप गूगल करेंगे तो सीसीटीवी बनाने और बेचने वाली तमाम कंपनियों और वितरकों के नाम ऊपर आ जाते हैं। इनका कुल कारोबार भी हज़ारों करोड़ रुपये का होगा ही। यह देखा जाना चाहिए कि क्या आतंकवादी हमले के बाद सीसीटीवी कैमरे का कारोबार बढ़ता है। अब तो लोग अपने घरों और दुकानों में चोरों से बचने के लिए सीसीटीवी लगा लेते हैं। सरकार और जनता जमकर इस पर पैसे खर्च कर रही है और हम टैक्स दे रहे हैं कि सरकार पुलिस के ज़रिये हमारी सुरक्षा करेगी। टैक्स भी दे रहे हैं और सीसीटीवी भी लगा रहे हैं।
क्या सीसीटीवी सिपाही का विकल्प है? क्या सीसीटीवी कैमरे से आतंकवाद को रोकने में मदद मिली है? क्या सीसीटीवी कैमरे से चोरी और अन्य वारदात को रोकने में मदद मिली है। आए दिन हम खबरें पढ़ते रहते हैं कि सीसीटीवी कैमरा लगा होने के बाद भी चोर एटीएम मशीन ही ले भागे। कुछ चोर ज़रूर पकड़े जाते हैं, मगर चोरी तो तब भी हो ही रही है। सोने चांदी की दुकान से भी चोरी होती रहती है और चैनलों को चलाने के लिए फुटेज मिल जाता है। हो सकता है इसके आधार पर बाद में चोर पकड़ा भी जाता होगा, लेकिन हम आंकड़ों के रूप में जानते हैं या हमारी सारी जानकारी हो सकता है आंकड़ों पर आधारित होती है।
ब्रसेल्स हवाई अड्डे के भीतर धमाके के थोड़े समय के भीतर दुनिया भर के टीवी सेंटर से धमाके के बाद की तस्वीरें चलने लगती हैं। धमाके के कारण सीमेंट से लेकर शीशे के टुकड़े बिखरे पड़े हैं। लोग बदहवास भाग रहे हैं। ऐसी तस्वीरें अब हम हर हमले के बाद देखते हैं। इन तस्वीरों से दुनिया भर में आतंक का भय बनता है, लेकिन साथ में भय का बाज़ार भी बनता है। सीसीटीवी फुटेज को आतंकवाद विरोधी लड़ाई का एक महत्वपूर्ण सहयोगी मान लिया जाता है। ऐसा लगता है कि जब तक सीसीटीवी है, तब तक कोई भाग कर नहीं जा सकता। लेकिन आप ध्यान से देखिये, कौन भाग रहा है? आम लोग या आतंकवादी... हमलावार तो आत्मघाती होता है। वह वहीं मार कर मर जाता है। भागता तो आम आदमी है, जिसे देखते हुए हम दहशत में थर्राते रहते हैं।
ज़रूर आतंकवादियों की तस्वीर भी आ जाती है। कभी वे दो दिखते हैं, तो कभी तीन दिखते हैं। उनका नाम पता चल जाता है। हज़ारों टीवी चैनलों पर इनका हुलिया दिखाया जाने लगता है। वैसे ही जैसे रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर गुमशुदा लोगों से लेकर आतंकवादियों की तस्वीरें चिपका दी जाती हैं। पता करना मुश्किल हो जाता है कि कौन आतंकवादी है और कौन घर से भागा हुआ। यह भी जानकारी आती है कि ये आतंकवादी किस जगह से चले थे और किस टैक्सी में बैठ थे। खूब विश्लेषण होता है, मगर यह कोई नहीं बताता कि हम कौन सी लड़ाई लड़ रहे हैं जो आतंकवाद को रोक नहीं पा रहे हैं।
जब दुनिया के तमाम ताकतवर मुल्क रोज़ एलान करते हैं कि वे आतंकवाद से लड़ रहे हैं तो इस लड़ाई का नतीजा क्या है। कभी मैदान इराक होता है, तो कभी सीरीया हो जाता है। आतंकवादी अपनी जगह चुनते हैं और आराम से हमला कर जाते हैं। तो क्या आतंकवाद से लड़ने के नाम पर सिर्फ बयान ही दिए गए या कुछ हुआ भी। इन घटनाओं के संदर्भ में कुछ ठोस तो होता नहीं दिख रहा है। दुनिया के सारे एयरपोर्ट आतंकवाद के ख़तरे को लेकर संवेदनशील रहते हैं, इतनी जांच होती है कि हवाई यात्रा करने का मन नहीं करता। फिर भी ब्रसेल्स की घटना हो गई।
भारत में भी आतंकवादी हमले या हमले से बचने के लिए सीसीटीवी की बहुत बात होती रहती है। 26 नवंबर 2011 के मुंबई हमले के बाद मुंबई में सीसीटीवी कैमरों की तैनाती को लेकर खूब वादे हुए। तब की सरकार ने कमेटी वमेटी बनाकर कुछ एलान भी कर दिया, लेकिन चार साल तक कोई खास प्रगति नहीं हुई। 15 मई, 2015 की टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर से पता चलता है कि बीजेपी-शिवसेना की सरकार ने फैसला किया है कि सितंबर 2016 तक मुंबई में 6600 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगा दिए जाएंगे। इसके लिए करीब साढ़े नौ सो करोड़ का ख़र्चा आएगा।
दिल्ली में भी आतंकवादी हमलों और निर्भया कांड के बाद सीसीटीवी कैमरे पर काफी विश्वास जताया गया था। 17 जनवरी 2015 की इंडिया टुडे की खबर के अनुसार, दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार की खींचाई की है कि आपने बराक ओबामा के लिए दिल्ली शहर में 15000 सीसीटीवी लगा दिए, लेकिन नागरिकों के लिए नहीं। अब सोचिए अगर ओबामा के आगमन के लिए कुछ हफ्तों के भीतर दिल्ली में 15000 सीसीटीवी कैमरे लगाए जा सकते हैं, तो 26 नवंबर 2011 के हमले के बाद 6600 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाने में पांच साल क्यों लगते हैं। इसका मतलब है कि सरकारें चाहें तो हफ्ते भर के भीतर सारे कैमरे लगा सकती हैं। वैसे 15000 सीसीटीवी कैमरे लगाने का कितना ख़र्चा आया होगा?
टाइम्स ऑफ इंडिया की 20 मई 2015 की ख़बर है कि दिल्ली पुलिस ने अदालत से कहा कि 44 गंभीर अपराध क्षेत्रों में वह 6 हज़ार से अधिक कैमरा लगाना चाहती है, जिसका खर्चा 400 करोड़ से अधिक आएगा। अदालत ने यह कहकर इनकार कर दिया कि वह अनुमति नहीं दे सकती, क्योंकि उन्हें इस बजट में कमाई की मंशा नज़र आती है।
अब आप देखिये। मुंबई में भी 6000 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगने हैं, लेकिन वहां का बजट है 949 करोड़। दिल्ली में भी 6000 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगने की बात होती है और वहां का बजट है 400 करोड़। मुंबई का बजट दुगना! ये सब मैं अख़बारों की रिपोर्ट के आधार पर लिख रहा हूं। वैसे यह भी जानना चाहिए कि हर राज्य में सीसीटीवी का बजट क्या है और प्रति कैमरा लागत क्या है। ज़ाहिर है आतंकवाद से लड़ने के नाम पर कैमरों से ज़्यादा कैमरों के नाम पर होने वाली कमाई की ज़्यादा चिंता की जाती है।
मेल ऑनलाइन इंडिया पर 25 मई 2013 को छपी एक खबर से हमें प्रति कैमरे लागत का थोड़ा सा अंदाज़ा हो सकता है। ख़बर के अनुसार सूचना के अधिकार कार्यकर्ता हरपाल सिंह राणा को दिल्ली पुलिस ने जानकारी दी है कि 1337 सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं, जिन पर 68 करोड़ की लागत आई है। नई दिल्ली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ने सूचना दी है कि उसने अपने क्षेत्र में 53 कैमरे लगाए हैं जिन पर एक करोड़ 2 लाख का खर्चा आया है, यानी एक कैमरे पर 2 लाख 30 हज़ार का खर्च आया है। अगर आप सावधानी से गुणा भाग करेंगे तो अलग-अलग विभागों के सीसीटीवी लगाने के अनुमान में अंतर साफ दिख जाएगा।
सीसीटीवी कैमरा एक महत्वपूर्ण उपकरण तो है और इसकी भूमिका को नकारने की बेवकूफी नहीं करना चाहता, लेकिन इसकी कामयाबी और लागत को लेकर सवाल करना बेवकूफी नहीं होगी। आतंकवाद से सीसीटीवी उद्योग को फायदा हो रहा है या सीसीटीवी से आतंकवाद रुक रहा है? इस सवाल पर अगर ठोस जवाब मिल जाए तो क्या कोई नुकसान हो जाएगा।
This Article is From Mar 24, 2016
सीसीटीवी का कारोबार और आतंकवाद
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मार्च 24, 2016 23:58 pm IST
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Published On मार्च 24, 2016 23:16 pm IST
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Last Updated On मार्च 24, 2016 23:58 pm IST
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