सतलुज में लुधियाना शहर के नाले गिरते हैं. नाले की गंदगी राजस्थान तक जाती है. इस पानी से सिंचाई होती है. फिर लोग अनाज और सब्ज़ी खाते हैं. फिर कैंसर होता है. फिर इंसान अस्पताल जाता है. फिर इलाज कराते हुए कंगाल हो जाते है. फिर वह मर जाते है. फिर मरे हुए की जगह जो बचा होता है वो अनाज और सब्ज़ी खाता है. फिर उसे कैंसर होता है. फिर वह अस्पताल जाता है. फिर वह इलाज कराते हुए कंगाल हो जाता है. फिर वह मर जाता है. फिर अख़बार में ख़बर छपती है. फिर अख़बार में फ़ीचर छपती है. पंजाब की कैंसर पट्टी. मरने वाले लोगों को यक़ीन होता है कि जागरूकता आ रही है. फिर टीवी पर इसे कवर करने के लिए भाग दौड़ करते हैं. फिर टीवी पर कवर होता है. मरने वाले ख़ुश होते हैं कि देश में मुद्दा बना है. अगली सुबह वही लोग इस ज़हरीले पाने से उगे अनाज और सब्ज़ी खाने लगते हैं. कैंसर होता है. इलाज होता है. कंगाल होते हैं और मरने लगते हैं. फिर यही स्टोरी हर साल छपती है. फिर उसी स्टोरी को लोग पढ़ना छोड़ देते हैं. सतलुज को गंदा करने के लिए कचरा पैदा करने लगते हैं. सतलुज के गंदे पानी से अपने शरीर का कचरा बनाने लगते हैं.
![eckg5tjo](https://c.ndtvimg.com/2019-06/eckg5tjo_ravish_625x300_25_June_19.jpg)
लुधियाना का नाला बंद नहीं होता है. बुढ़ा दरिया कहलाता था. पहले नाले ने बुढ़ा दरिया को नाला किया. अब वह बुढ़ा नाला कहलाता है. एक दिन सतलुज को नाले में बदल देगा. नदियों को लेकर योजनाएँ बन रही हैं. योजनाओं के नाम बदल रहे हैं. मंत्रालय बन रहे हैं. मंत्रालय के नाम बदल रहे हैं. नदी नहीं बदल रही है. मरने वाले लोग भी नहीं बदल रहे हैं. जैसे कोई मंत्री बन रहा है, वैसे कोई कैंसर से मर रहा है. कैंसर से मरना भी मंत्री बनना है.
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