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This Article is From Oct 19, 2018

3800 आरोपियों वाले व्यापम घोटाले पर प्रधानमंत्री मोदी बोल सकते हैं?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 19, 2018 14:22 pm IST
    • Published On अक्टूबर 19, 2018 13:20 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 19, 2018 14:22 pm IST
लखनऊ की डॉक्टर मनीषा शर्मा ने इसी महीने आत्महत्या कर ली. मनीषा मध्यप्रदेश के व्यापम मामले में गिरफ़्तार हो चुकी थीं और उन्हें सीबीआई के बुलाने पर ग्वालियर भी जाना था मगर ज़हर का इंजेक्शन लगा लिया. उन पर किसी और छात्र के बदले इम्तिहान देकर पास कराने के आरोप थे. आत्महत्या के कारणों की प्रमाणिक बातें नहीं आईं हैं क्योंकि मीडिया अब भारत के इतिहास के सबसे बड़े परीक्षा घोटाले में दिलचस्पी नहीं लेता है. व्यापम मामले से जुड़े कितने लोगों की इन वजहों से मौत हो गई फिर भी इसे लेकर चुप्पी है.

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व्यापम मामला इतना बड़ा था कि उसमें भारत के सैंकड़ों घोटालों के आरोपी समा जाएं. सीबीआई ने 3800 लोगों को आरोपी बनाया है. सीबीआई ने 170 मामले दर्ज किए हैं. इसमें से 120 में चार्जशीट फ़ाइल हुई है. 50 मामले में जांच चल रही है. सोचिए यह कितना बड़ा घोटाला होगा. इतने तो दंगे फ़साद में आरोपी नहीं बनते. व्यापम में लुटेरों की भीड़ होगी जो ईमानदार और परिश्रमी छात्र को डॉक्टर बनने से रोक रही थी. सिर्फ मेडिकल ही नहीं ट्रांसपोर्ट कांस्टेबल, कनिष्ठ आरक्षी और ठेके पर रखे जाने वाले शिक्षकों की नियुक्ति में भी धांधली की जांच हो रही है.

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हिन्दुस्तान टाइम्स के पुण्य प्रिया मित्र और श्रुति तोमर की रिपोर्ट पढ़ रहा था. सीबीआई से पहले एस टी एफ जांच कर रही थी. उसने मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मी कांत शर्मा को आरोपी बनाया था और जेल गए थे. जब बहुत दिनों बाद छूटे तो भव्य स्वागत किया गया था. मार्च 2014 में प्रत्यर्पण निदेशालय ने व्यापम से ही संबंधित फ़ेमा उल्लंघन के मामले में लक्ष्मीकान्त शर्मा, विनोद भंडारी, नितिन महिंद्रा, जगदीश सागर के ख़िलाफ़ केस किया था. चार साल हो गए सिर्फ सागर और भंडारी के ख़िलाफ़ चार्जशीट दायर हुई है. आनंद राय का तो कहना है कि सीबीआई ने एस टी एफ की जांच से आगे कोई जांच ही नहीं की है. एस टी एफ के काम को अपना लिया है.

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पांच साल हो गए, यह केस धीमी गति के समाचार से भी धीमा चल रहा है. प्रधानमंत्री को इस चुनाव में व्यापम पर भी बोलना चाहिए. मध्यप्रदेश के छात्रों को भी ट्वीट करना चाहिए कि हमें व्यापम पर कुछ सुनना है. जिस मामले में 3800 लोग आरोपी हों क्या उस मामले में आप प्रधानमंत्री से नहीं सुनना चाहेंगे? उनसे नहीं तो अमित शाह से ही पूछ लें या फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ही कि 2013 में व्यापम का मामला आया था, पांच साल में किसी को सज़ा हुई. नहीं हुई तो क्यों नहीं हुई? चुनाव में अगर इतने बड़े केस की चर्चा नहीं तो फिर वहां चुनाव नहीं, चुनाव के नाम पर नौटंकी हो रही है. प्रधानमंत्री अगर व्यापम पर नहीं बोल रहे हैं तो फिर क्या बोल रहे हैं.

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मैं हमेशा कहता हूं जब मध्यप्रदेश के नौजवान व्यापम डकार गए. इसलिए केवल उम्र के नाम पर युवाओं से कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिए. बल्कि देश के अलग अलग राज्यों के नौजवान अगर परीक्षा घोटाले को राजनीतिक मुद्दा नहीं समझते हैं तो उन्हें राजनीतिक रूप से क्या समझा जाएं? युवा लोग ही बता दें. व्यापम के भुक्तभोगियों की संख्या लाखों में होगी मगर इससे जुड़े सवालों को छोड़ अगर नौजवान किसी और मुद्दे में उलझा है तो फिर मान लेना चाहिए कि उसने अपने लिए भविष्य के नाम पर गर्त चुन लिया है. गर्त यानी गड्ढे का चुनाव कर लिया है.

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