आवश्यकता है आंदोलन पर बैठे किसानों को एक परिभाषा की. 26 दिन से आंदोलन चल रहा है कि अभी तक सरकार के मंत्री और बीजेपी के विधायक, सांसद आंदोलन पर बैठे किसानों की एक ऐसी परिभाषा नहीं खोज पाए हैं जो सभी को मंज़ूर हो. बीजेपी के वरिष्ठ विधायक और बिहार के कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने आंदोलन पर बैठे किसानों को दलाल कहा है. यही नहीं कृषि मंत्री के अनुसार किसान आंदोलन तभी किसानों का कहलाएगा जब देश के 5 लाख गांवों में भी आंदोलन होगा और उन्हें दिखाई देगा.
वैसे ये तस्वीरें उन लोगों की हैं जो दलाल नहीं थे, किसान थे. दलाल होते तो ऐसे धरने पर नहीं बैठते और ठंड व अन्य कारणों से खुले आसमान के नीचे मर नहीं जाते. दलालों में नैतिक बल नहीं होता है. किसानों में होता है. रविवार को आंदोलन के दौरान मरने वाले किसानों को श्रद्धांजलि दी गई जिन्हें बिहार के कृषि मंत्री दलाल कहते हैं.
हरियाणा के कैथल से भाजपा विधायक लीलाराम गुज्जर ने तो किसानों को एक सांस में आतंकवादी, खालिस्तानी, पाकिस्तानी सब कह डाला. बीजेपी के विधायक लीलाराम क्या हरियाणा के पूर्व विधायकों को भी पाकिस्तानी खालिस्तानी कह देंगे जिनके संगठन ने किसान आंदोलन को समर्थन दिया है और प्रधानमंत्री से अपील की है कि हठधर्मिता और अहंकार छोड़ कर किसानों की मांग पूरी करें. गृहमंत्री अमित शाह ने भी कहा है कि जल्दी ही कृषि मंत्री किसानों से बात करेंगे.
किसानों ने साफ कर दिया है कि कानून वापस लिया जाए. वे आंदोलन के दिन नहीं गिन रहे बल्कि सरकार के फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं. कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव विवेक अग्रवाल ने किसान नेता डॉ. दर्शनपाल को लिखी चिठ्ठी में कहा है कि आपने 9 दिसंबर को भारत सरकार के लिखित प्रस्ताव (नए कृषि कानूनों के सम्बन्ध में) का जो जवाब 16 दिसंबर को भेजा वो अत्यंत संक्षिप्त है. इससे ये स्पष्ट नहीं होता है कि ये आपका अपना विचार है अथवा सभी संगठनों का भी ये मत है. यह भी अनुरोध है कि भेजे गए उत्तर में किस कारण से प्रस्ताव अस्वीकृत किया गया है ये स्पष्ट नहीं है. विनम्रतापूर्वक अनुरोध है कि पुनः वार्ता हेतु सुविधा अनुसार तिथि अवगत करने का कष्ट करें जिससे विज्ञान भवन में पुनः बैठक आयोजित करके समाधान किया जा सके.
मंजीत राय ने साफ कहा है कि छह महीने तक बैठे रहेंगे, सरकार तीनों कानून को रद्द करे. उधर सिंघु बार्डर पर किसानों की भूख हड़ताल शुरू हो गई है. रविवार को एलान हुआ था कि हर दिन 11 किसान 24 घंटे भूख हड़ताल पर बैठेंगे. 11 बजे 11 किसानों ने भूख हड़ताल शुरू कर दी. इसके अलावा 5 किसान हरियाणा से भी होंगे. 22 दिसंबर की सुबह 11 बजे किसानों का दूसरा बैच भूख हड़ताल पर बैठेगा. संयुक्त किसान मोर्चा ने अडानी और रिलायंस के उत्पादों का बहिष्कार का भी एलान किया है. 23 दिसंबर को किसान दिवस मनाया जाता है. इस दिन के लिए किसानों ने अपील की है कि आंदोलन के समर्थन में दोपहर का खाना छोड़ दें. रविवार को जब प्रधानमंत्री मन की बात का प्रसारण होगा तब विरोध में थाली बजाएं.
26 और 27 दिसंबर को दुनिया के अन्य देशों में भारतीय दूतावास के बाहर किसान आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन होगा. इसके पहले भी दुनिया भर के देशों में किसानों के समर्थन में काफी प्रदर्शन हुए हैं. सौ से लेकर कई हज़ार कारों की रैलियां निकली हैं. रविवार को किसान एकता मोर्चा के फेसबुक और इंस्टा पेज के बंद होने की खबर आई थी जिसे फेसबुक ने कुछ देर बाद ही बहाल कर दिया था.
कैलिफ़ोर्निया स्थित फेसबुक मुख्यालय पर 16 दिसंबर को किसान आंदोलन के समर्थक प्रदर्शन करने पहुंच गए कि फेसबुक किसान आंदोलन की सामग्री के प्रसार में अड़चन न डाले. आत्मनिर्भर भारत का आत्मनिर्भर आंदोलन है. सिंघु बार्डर से लेकर कैलिफोर्निया में फेसबुक मुख्यालय के बाहर तक है. यही कारण है कि जब 20 दिसंबर को फेसबुक पेज बंद हुआ आलोचनाओं का अंबार लग गया और पेज चालू हो गया. आज फेसबुक ने विस्तृत बयान जारी कर कहा है कि ऑटोमेटिक सिस्टम से ऐसा हुआ. सिस्टम ने नोटिस किया कि किसान एकता मोर्चा के पेज पर काफी गतिविधियां बढ़ गई हैं. कम्युनिटी स्टैंडर्ड के उल्लंघन के कारण इसे बंद कर दिया. हमने 3 घंटे के भीतर पेज को वापस चालू कर दिया. सिर्फ फेसबुक पेज बंद हुआ था. इंस्टाग्राम नहीं. दूसरी तरफ यू ट्यूब पर किसान आंदोलन ने अपना न्यूज़ चैनल लांच कर दिया है. 10 मिलयन सब्सक्राइबर तय करने के लक्ष्य के साथ. इस यू ट्यूब चैनल पर आंदोलन से संबंधित वीडियो अपलोड किए जा रहे हैं. क्या किसान अपने इस चैनल के लिए 10 मिलियन सब्सक्राइबर हासिल कर पाएंगे?
किसान आंदोलन को कवर करने का मतलब है इस आंदोलन के काउंटर में जो प्रोपेगैंडा चल रहा है, जो प्रचार अभियान चल रहा है उसे ज्यादा कवर करना है. उसका स्केल इतना बड़ा हो गया है कि बहुत चीज़ें पकड़ में नहीं आ पाती हैं. प्राइम टाइम के पास उतने संसाधन भी नहीं हैं. फिर भी किसान आंदोलन पर प्राइम टाइम का यह 18वां एपिसोड आप देख रहे हैं. एनडीटीवी इंडिया के यू ट्यूब चैनल पर सारे एपिसोड मौजूद हैं. किसान आंदोलन भी अपने भौगोलिक प्रसार को लेकर सक्रिय हो गया है.
आज संयुक्त किसान मोर्चेा के गुरनाम सिंह चढ़ूनी पटना पहुंचे और वहां किसानों से बात की और बिहार के किसानों से अपील की कि वे भी आंदोलन में कूदें क्योंकि बिहार के किसान एमएसपी नहीं मिलने के कारण ही गरीब हुए हैं. किसान नेताओं का पटना जाना काफी महत्वपूर्ण है. बार-बार बिहार का उदाहरण देकर कृषि कानूनों को अच्छा बताया जा रहा है लेकिन बिहार पहुंच कर किसान मोर्चा ने संकेत दे दिया है कि वे भी बिहार के किसानों से अपनी बात कहेंगे.
अब दिल्ली जयपुर हाइवे की रिपोर्ट दिखाने से पहले बिहार के संदर्भ में थोड़ी बात करना चाहता हूं. बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी के ट्वीट के कारण ज़रूरी हो गया है. एक तरफ पूरी सरकार पूरी ताकत लगा कर बताने में लगी है कि मंडी खत्म नहीं होगी. लेकिन उसी बीजेपी के सुशील मोदी ट्वीट करते हैं और लिखते हैं कि प्रधानमंत्री ने मंडी खत्म कर दी है. उनका ट्वीट स्पैनिश में नहीं है इसलिए आप भी मेरे साथ हिन्दी में पढ़ सकते हैं.
'2006 में बिहार की पहली एनडीए सरकार ने सालाना 70 करोड़ के राजस्व का नुकसान उठाकर बाजार समिति अधिनियम समाप्त किया और लाखों किसानों को 1 फीसद बाजार समिति कर से मुक्ति दिलायी. कांग्रेस ने 2019 के घोषणापत्र में मंडी-बाजार समिति व्यवस्था खत्म करने का वादा किया था. जो मंडी व्यवस्था बिहार में 14 साल पहले खत्म हो गई और जिसे कांग्रेस 2019 में खत्म करना चाहती थी वह काम प्रधानमंत्री मोदी ने देशव्यापी कानून के जरिए कर दिया तो राहुल गांधी छाती क्यों पीट रहे हैं.'
इसमें तो सुशील मोदी यही कह रहे हैं कि 2006 में बिहार की मंडियों की तरह इस बार प्रधानमंत्री ने देश भर में कर दिया. प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि मंडी खत्म नहीं होगी. इसी ट्वीट में सुशील मोदी एक और बात कहते हैं. कि मंडी खत्म कर लाखों किसानों को 1 परसेंट बाज़ार समिति कर से मुक्ति दिलायी. 1868 रुपये प्रति क्विंटल धान की MSP है. किसान 900-1100 रुपये क्विंटल धान बेचने पर मजबूर हुए हैं. कमाल है कि किसान का 5 रुपया बचाने के नाम पर 500 का नुकसान किया गया. बताया जा रहा है कि फायदा हो गया.
धान के किसान क्या मुक्ति का गान गा रहे हैं? या रो रहे हैं कि धान का दाम नहीं मिला. सुशील मोदी ज़ोर देते हैं कि बिचौलिये खत्म हो गए. लेकिन वो यह नहीं बताते कि उनके खत्म होने से किसानों को दाम क्यों नहीं मिला?
सुशील मोदी का ही यह ट्वीट भी देखिए. लिख रहे हैं कि पंजाब में मंडी शुल्क 8 फीसदी है जिससे राज्य सरकार और आढ़तियों बिचौलियों को मोटी कमाई होती है लेकिन किसान को नुकसान होता है. पर सुशील मोदी ने यह नहीं लिखा कि 8 परसेंट मंडी टैक्स कौन देता है, किसान देता है या सरकार आढ़तियों को देती है.
भरमाया जा रहा है या बताया जा रहा है, इतना सारा प्रचार और प्रोपेगैंडा लांच कर दिया गया है कि वाकई एक दर्शक और पाठक के लिए तय करना मुश्किल हो जाएगा कि सही क्या. सुशील मोदी चाहें तो इन दो बातों पर जवाब दे सकते हैं अपने ट्वीट में.
सितंबर महीने में द वायर में छपा था. सूचना आरटीई की है कि 2020-21 में 2020-21 में केंद्र और राज्य सरकार ने रबी फ़सलों के मार्केट सीज़न में बिहार में हुई गेहुं की फ़सल का 1% भी किसानों से नहीं ख़रीदा. ज़ाहिर है किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिला तो यह उनके लिए मुक्ति कैसे हुई? मैं यह सवाल पोर्चुगीज़ में नहीं कर रहा है.
24 सितंबर के लाइव मिंट में प्रो हिमांशु का एक लेख छपा है. हिमांशु बताते हैं कि 2006 APMC के खत्म होने से पहले बिहार में 95 मार्केट यार्ड थे. राज्य कृषि बोर्ड को 2004-05 में 60 करोड़ टैक्स प्राप्त हुआ. इसमें से काफी पैसा मंडी के बुनियादी ढांचे के विकास पर खर्च हुआ. अब वो टैक्स नहीं है तो सारा खत्म हो चुका है. बिहार में निजी निवेश भी खास नहीं हुआ.
सरकार का ही डेटा और आप भी भारत सरकार की डिपार्टमेन्ट ऑफ फूड एण्ड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन की बेबसाईट पर जाकर सरकारी खरीद का डेटा देख सकते हैं. इस साइट पर उपलब्ध डेटा के अनुसार 2015 से 2019 तक बिहार में कुल 2 करोङ 83 लाख 13 हजार मिट्रीक टन गेहूं का उत्पादन हुआ. लेकिन सरकार ने मात्र 26000 मिट्रिक टन गेहूं की खरीदारी की. यानी पूरे पांच साल में 0.9% यानी 1% से भी कम खरीद हुई. 2015, 2016, 2017 में इन आंकड़ों के हिसाब से शून्य खरीद हुई.
सुशील मोदी बता सकते हैं कि गेहूं नहीं ख़रीदने से बिहार के किसान अमीर हुए या और ग़रीब हो गए? रविशंकर प्रसाद का दावा सही है कि हर जगह वही जीतते हैं, बिहार के किसान भी जदयू औऱ बीजेपी को वोट करते हैं, यह तथ्य है लेकिन यह भी तथ्य है कि बिहार के किसान ग़रीब हैं. देश भर में सबसे कम कमाने वाले राज्यों में गिने जाते हैं.
बिहार के नालंदा ज़िले की सोह सराय मंडी. व्यापारियों की बनाई इस मंडी को भारत की पहली आलू मंडी कहा जाता है. 1960 से 1980 तक इस मंडी में खूब बिज़नेस हुआ. इतना काम होता था कि रात की पाली भी चलती थी. यहां से आलू बर्मा तक जाता था. बाद में सरकार ने पास में नालंदा बाज़ार समिति बनाई तो यहां के व्यापारी वहां चले गए और कारोबार दोनों मंडियों में बंट गया. धीरे धीरे इस मंडी का कारोबार कम होने लगा. ट्रेन सेवाएं बंद हो गईं. आलू का उत्पादन भी कम हो गया. 2006 में जब एपीएमसी एक्ट खत्म कर दिया गया तो कारोबार 10 प्रतिशत से भी कम रह गया. हमें यह जानकारी बिल गेट्स फाउंडेशन समर्थित एक अध्ययन रिपोर्ट से मिली है जिसे पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के लिए चार लोगों ने लिखा है. सौमित्र चटर्जी, मेखला कृष्णमूर्ति, देवेश कपूर और मार्शल बाओटन ने इस रिपोर्ट पर काम किया है. ये सभी काफी प्रतिष्ठित नाम हैं. आलू के किसानों को सुनें कि मंडी खत्म होने से वे खुश हैं या दुखी हैं.
क्या इसलिए इन्हें भाव नहीं मिलना चाहिए क्योंकि ये किसी को हर बार वोट करते हैं? क्या आपको अभी तक सरकार के ज़रिए यह पता चला कि वह ऐसा कौन सा ढांचा बनाने जा रही है जिससे किसानों को दाम मिले? क्यों समस्तीपुर के सब्ज़ी उत्पादकों को दाम नहीं मिलता है.
मध्य प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम मिलने पर उतना पैसा सरकार देती है. इसे भावांतर योजना कहते हैं. 2018 के बजट में भारत सरकार ने ठीक यही बात कही थी. बस सुशील मोदी बिहार के किसानों के लिए ये बात नहीं करते हैं.
2018 के बजट में भी सरकार ने साफ-साफ लिखा है कि यह आवश्यक है कि अगर कृषि उत्पाद का मूल्य MSP से कम है तब सरकार उसे खरीदेगी या कुछ ऐसा करेगी कि किसानों को दूसरे तरीके से MSP उपलब्ध कराएगी. याद दिलाना ठीक रहता है. you get my point?
नेशनल हाइवे 8 पर भी किसानों का आंदोलन चल रहा है. अब आप दिल्ली जयपुर हाइवे का नज़ारा देख रहे हैं. यहां 3 किलोमीटर तक किसानों ने अपना डेरा बना लिया है. 8 से 10 हज़ार लोगों का डेरा लगा हुआ है. यहां पर श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, सीकर, नागौर, कोटा, बारां, अलवर, रेवाड़ी, चुरु, बीकानेर, जयपुर, जोबनेर, चोमू से किसान आए हैं. श्रीगंगानगर ग्रामीण किसान समिति हर रोज़ श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ से पांच बसें चलवा रही है. 2 लंगर चल रहे थे अब तीसरा भी शुरू होगा. 150 से 200 ट्रॉलीयों में जो लोग आए हैं वे अपना अलग लंगर चला रहे हैं. 2000 लोगों के लिए टेंट का इंतज़ाम है. पानी गरम करने के लिए 100 हमाम हैं. सुबह 9 बजे समिति की मीटिंग होती है. मेडिकल इमर्जेन्सी के लिए हर समय 4 गाड़ियां ड्राइवर के साथ तैयार रहती हैं. रणदीप ने बताया कि आस-पास के गांवों से आंदोलन को रोज़ राशन दान में दिया जा रहा है. कहते हैं कि वो सिर्फ़ प्रदर्शनकारियों को ही नहीं पूरी दिल्ली को दो महीने खाना खिला सकते हैं.
गांव के लोग आंदोलन कैसे चलाते हैं ये शहर को पता नहीं. शहर को यही पता था कि धरने वाले आते हैं धरने के बाद चले जाते हैं. पहली बार शाहीन बाग़ ने धरनों को स्थायीत्व दिया मगर वो आंदोलन कुचल दिया गया. दिल्ली यूपी बॉर्डर पर बुलंदशहर के किसान सुनील कुमार उर्फ झापाटा आये है. रागिनी के जरिये विरोध प्रदर्शन कर किसानों में जोश भर रहे हैं.