नमस्कार मैं रवीश कुमार, जिसे शोक न हो वो अशोक है लेकिन जिस तरह से अशोक को लेकर राजनीति हो रही है उससे उन लोगों को शोक तो होना ही चाहिए जो ऐतिहासिक पुरुषों को जाति के खांचे में देखने के आदी नहीं रहे हैं। इतिहास के पन्नों पर अशोक की औपचारिक यात्रा दो सदी पुरानी है लेकिन इन दौ सौ सालों में किसी को पता नहीं कि 2250 साल पहले के अशोक दिखते कैसे हैं। उनके नयन नक्श क्या हैं। अशोक के बारे में खोज की इस लंबी यात्रा में उनके दिखने का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिला है फिर भी ऐसा नहीं है कि वे हमें नहीं दिखते हैं।
अशोक हमें कुछ साल पहले तक शाहरूख ख़ान के रूप में करीना कपूर के साथ दिखे थे। उससे पहले अमर चित्र कथा के कवर पर किसी और रूप में। गूगल पर मौजूद अशोक की अलग अलग तस्वीरें मिलेंगी।
इतनी अलग कि आप सबके अलग-अलग नाम रख सकते हैं। कहीं मूंछें हैं तो कहीं नहीं है। पहली या दूसरी सदी में कर्नाटक के पास एक स्तूप में दो शिलालेख में औरतों से घिरे राजा की खंडित प्रतिमा मिलती है लेकिन यहां जो दो मूर्तियां मिली हैं वो एक दूसरे से मिलती भी नहीं हैं। शायद हमारे नेताओं ने भी अशोक को गूगल से खोजा होगा। बिना तस्वीर के जयंती कैसे मनेगी।
पिछले साल अप्रैल के महीने में यूपी के शिकोहाबाद फिरोज़ाबाद से गुज़रते हुए मुझे ये पोस्टर दिखा, अशोक जयंती की शोभायात्रा की ये तस्वीर आपकी नज़र करता हूं। टाटा 407 पर सम्राट अशोक बनकर किशोर अपने इतिहास का लाइव रिहर्सल कर रहे हैं।
आयोजन के राजनीतिक संबंध के बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन इस बारे में जब मैनपुरी से बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहीं संघमित्रा मौर्य से पूछा तो उन्होंने कहा कि हम तथागत भगवान बुद्ध के वंशज हैं। हमारे कई पुरखे शासक रहे हैं जैसे चंद्रगुप्त मौर्य, राजा बिंदुसार, सम्राट अशोक, गौतम बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन। लेकिन बिहार और पूर्वी यूपी के कुशवाहा लवकुश के वंशज मानते हैं और हिन्दू धर्म का अनुसरण करते हैं। बहुजन समाज पार्टी हमारे इतिहास को जगाने का प्रयास कर रही है।
एक साल बाद इसी 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के मौके पर दिल्ली के संसद मार्ग पर चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक के पोस्टर बिकते हुए देखा। लोकपरंपरा इतिहास की किताबों से अलग और समृद्ध होती है।
अशोक के होने के प्रमाण तो हैं बट लुक एंड डेट ऑफ बर्थ का नहीं। यूपी के पोस्टर में 6 अप्रैल लिखा है। बीएसपी नेता संघमित्रा मौर्य ने कहा कि विजयादशमी के दिन विजय धम्म दिवस के रूप में अशोक जयंती मनाते हैं। बिहार में 17 मई को अशोक जयंती मनाई गई। अगर कोई सरकार छुट्टी करना चाहे तो मेरा सपोर्ट है बस उस दिन न्यूज़ भी बंद होना चाहिए।
17 मई को पटना के श्रीकृष्ण मेमोरियल हाल में राष्ट्रवादी कुशवाहा परिषद ने सम्राट अशोक की जयंती मनाई तो दावा किया कि यह 2320 वी जयंती है।
इस सम्मेलन में बीजेपी के कई पूर्व मंत्री, विधायक और केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद भी मौजूद थे। मैं रविशंकर प्रसाद के भाषण को कोट कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि सरकार जल्दी ही सम्राट अशोक पर डाक टिकट जारी करेगी। मुझे एक बात याद आती है कि जो सुशासन अशोक ने देश को दिया वही सुशासन बिहार में भी आना चाहिए। मुझे इस बात से बड़ी पीड़ा होती है कि उनकी अभी तक कोई मूर्ति नहीं है। मैं देश का संचार मंत्री हूं। टेलिफोन का मंत्री हूं। आज मैं घोषणा करता हूं कि जल्दी ही सम्राट अशोक का एक बढ़िया पोस्टल स्टैंप निकाला जाएगा। साथ ही राष्ट्रवादी कुशवाहा परिषद से आग्रह करता हूं कि सम्राट अशोक की एक अच्छी मूर्ति लगे। अशोक की मगध में कोई मूर्ति नहीं होगी तो उनकी कीर्ति कैसे चलेगी। मैं हमेशा कहता हूं कि एकलव्य के साथ भारत के सांस्कृतिक इतिहास में अन्याय हुआ है और आज हमारे संघ परिवार ने कोशिश की है कि एकलव्य को भी महान नायक के रूप में सम्मान मिले। ये शब्द हैं केंद्रीय मंत्री के।
वैसे पटना में लगे अशोक के इस पोस्टर के हिसाब से अशोक की मूर्ति बनी तो वे ऐसे नज़र आएंगे। जैसे अशोक का हैप्पी बर्थ डे अलग अलग है वैसे ही मूर्ति बनने लगी तो एक जगह के अशोक दूसरी जगह के अशोक से अलग नज़र आएंगे।
अशोक ने अपने शिलालेखों में जाति और जन्मदिन का कोई ज़िक्र नहीं किया। ऐसा भी नहीं कि हम अशोक को भूल गए। तिरंगा से लेकर शासन व्यवस्था का चेहरा अशोक चक्र और स्तंभ के बिना पूरा हो ही नहीं सकता। लेकिन चुनावी राजनीति अशोक में कोई और अशोक ढूंढ रही है। जैसे भगत सिंह जाट बिरादरी के पोस्टरों पर आ जाते हैं तो सरदार पटेल कुर्मी बिरादरी के।
बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम कहते थे कि मेरे सपनों का भारत अशोक के समय का भारत होगा। डॉक्टर अंबेडकर और आगे चलकर कांशीराम की बीएसपी ने भी बौद्ध परंपरा के तहत अशोक को अपना प्रतीक बनाया। कांशीराम कहते थे कि मेरे सपनों का भारत सम्राट अशोक का भारत है। लेकिन बीजेपी के अशोक कौन हैं। बौद्ध या हिन्दू। हिन्दू में उनकी जाति क्या है। क्षत्रिय या कुशवाहा क्योंकि कई जगह मौर्य को क्षत्रिय भी कहा गया है। अगर बौद्ध परंपरा से अशोक किसी समाज के नायक बनते हैं तो बौद्ध परंपरा में जाति तो होती नहीं। 2012 के साल में बीजेपी ने बीएसपी से निकाले गए बाबू सिंह कुशवाहा को अपनी पार्टी में ले लिया। जब मीडिया ने उन पर पांच हज़ार करोड़ के घोटाले का मामला उठाया तो यह बयान आया कि कुशवाहा जी के आग्रह पर उनकी सदस्यता रद्द की जाती है। बाद में बाबू सिंह कुशवाहा की पत्नी शिवकन्या कुशवाहा समाजवादी पार्टी के टिकट से गाज़ीपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ी और हार गईं। इस तरह से एक आरोपी व्यक्ति से कुशवाहा बिरादरी के वोट की तलाश अब सम्राट अशोक की दहलीज़ तक पहुंच गई है।
इतिहास की किसी भी किताब को पलटेंगे तो बताया जाता है कि अशोक के बारे में विस्तार से ज़िक्र बौद्ध और जैन ग्रंथों में ही आया है, पौराणिक या वेदों में खास ज़िक्र नहीं मिलता है। पौराणिक ग्रंथों में अशोक को नज़रअंदाज़ किया गया। पुराणों का अशोक शूद्र है तो बौद्ध जैन ग्रंथों का अशोक क्षत्रिय मौर्य लेकिन जब बाबू सिंह कुशवाहा अल्प काल के लिए बीजेपी में आए तो क्षत्रिय नेताओं ने ही बगावत कर दी।
लोक परंपरा मे अशोक के बनने से कोई रोक नहीं सकता लेकिन जब वहां से उठाकर कर वोट बैंक की परंपरा में राजनीतिक दल बिठाएंगे तब लोक परंपरा को ही औपचारिक इतिहास समझने का खतरा हो सकता है। जहां इसी पर विवाद है कि अशोक ने जिस धम्म की बात की वो बौद्ध धर्म था या नहीं। अशोक के साम्राज्य में सामाजिक विविधता देखेंगे तो उत्तर पश्चिम में ग्रीक मिलेंगे तो गंगा घाटी में प्राकृत और खरोष्ठी। इतनी सामाजिक विविधता को अशोक ने अपने प्रशासन से साधा था। धम्म के ज़रिये उसने एक सार्वजनिक नैतिक आचरण पर बल दिया था। एक ऐसी विचारधारा जो सबको अपील करे। कहीं ज़िक्र आता है कि अशोक का शासन 27 साल का रहा तो कहीं आता है कि 36-37 साल का। अब मैं मेगास्थनीज के इंडिका का ज़िक्र नहीं करूंगा वर्ना आप एंकर को लाठी लेकर भगा देंगे। ख्वामखाह शाम के वक्त सीरीयस टापिक लेके बैठ गया है और वो भी हिस्ट्री का।
बेशक सम्राट अशोक एक महान शासक था लेकिन क्या वो कुशवाहा था, मौर्य था, हिन्दू था या बौद्ध था। क्या हम अपने ऐतिहासिक नायकों को बिना जाति के चश्मे से नहीं देख सकेंगे। क्या किसी मंत्री को ऐसे कार्यक्रम में जाना चाहिए जो अशोक के चिह्नों का इस्तमाल करता हो वो चिह्न जिनकी पहचान आधुनिक भारतीय राष्ट्र की है न कि किसी धर्म या जाति की। प्राइम टाइम
This Article is From May 21, 2015
ऐतिहासिक नायकों पर सियासत : जाति के खांचे में खिंचे सम्राट अशोक
Ravish Kumar
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Updated:मई 22, 2015 10:09 am IST
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Published On मई 21, 2015 21:48 pm IST
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Last Updated On मई 22, 2015 10:09 am IST
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