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This Article is From Sep 16, 2019

रवीश कुमार का ब्लॉग : क्या अब भी इंजीनियर होना श्रेष्ठ है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 16, 2019 00:44 am IST
    • Published On सितंबर 16, 2019 00:44 am IST
    • Last Updated On सितंबर 16, 2019 00:44 am IST

पूर्णियां की सड़कों पर गुज़रते हुए विश्वेश्वरैया की छोटी सी प्रतिमा देखी थी. वहा के अभियंता समाज ने दिखाया था. आज उनकी जयंती पर इंजीनियरों के बारे में अच्छी अच्छी बातें कही जा रही हैं. उन शुभकामना संदेशों में ऐसी कोई तस्वीर नहीं है जो बताती है कि इंजीनियरों ने उनकी विरासत को कैसे आगे बढ़ाया है. उनकी मौलिकता किस तरह से दुनिया के इंजीनियरों से अलग करती है. हाल फ़िलहाल की कई तस्वीरें मिल सकती थीं. दूसरी तरफ इंजीनियरिंग पास करने वालों के आर्थिक जीवन की सच्चाई का भी प्रकटीकरण हो सकता था.

पता चलता कि लाखों रुपये लोन लेकर पढ़ने वाले जब ये इंजीनियर कॉलेज से निकलते हैं तो उन्हें किस तरह की नौकरी मिलती है? उसमें इंजीनियरिंग कितनी होती है? क्या अब भी इंजीनियर होना श्रेष्ठ है? क्या सरकारी महकमों में इस पद की गरिमा और रचनात्मकता बची रह पाई है? बधाइयों का क्या है, उसकी तो दुकान खुली है. ऐसा कोई दिन नहीं जो किसी महान आत्मा की जयंती से शुरू नहीं होता. सबको मौका मिलेगा बधाई देकर निकल चलो. इंजीनियरों पर बात मत करो. आप चाहें तो अपने अनुभव लिख सकते हैं ताकि दूसरे लोग भी आप इंजीनियरों के जीवन में झांक सकें.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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