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This Article is From Oct 25, 2021

क्या गरीब की ही कटेगी जेब, उद्योगपति बस रियायत लेंगे...?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 26, 2021 09:41 am IST
    • Published On अक्टूबर 25, 2021 22:06 pm IST
    • Last Updated On अक्टूबर 26, 2021 09:41 am IST

जब भी आपको बेरोज़गारी से परेशान कोई युवा मिले, ऐसा कोई मिले जिनकी सैलरी कम हो गई हो या जिनका बिज़नेस नहीं चल रहा हो और सभी पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों से परेशान हों, तो आप उसकी बेचैनी सिर्फ एक लाइन से दूर कर सकते हैं. उसके कान में धीरे से कहिए, कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है. उसका चेहरा खिल जाएगा. इसे सुनते ही जो पब्लिक 100 रुपया लीटर पेट्रोल भराने से परेशान थी, 114 रुपया लीटर पेट्रोल भराने लग जाएगी और कहेगी, जाने दीजिए, कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है. लोग मारे ख़ुशी के बालकनी में थाली पीटने लगेंगे. आखिर भारत की ग़रीब, निम्न मध्यमवर्गीय, मध्यमवर्गीय जनता ने 114 से 119 रुपया लीटर पेट्रोल भरा कर इस बात को साबित किया है कि अगर कोई दूसरा विकल्प न हो तो वह 200 रुपया लीटर पेट्रोल भी आराम से ख़रीद सकती है. इतनी समझदार जनता को मंत्री भी वही बात समझा रहे हैं कि पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स इसलिए अधिक हैं क्योंकि मुफ्त वैक्सीन दिया जा रहा है. मुफ्त अनाज दिया जा रहा है.

करोड़ों रुपये खर्च कर देश भर में लगे इस होर्डिंग ने जनता को ठीक से समझा दिया था कि टीका मुफ्त लगा है और इसके लिए धन्यवाद मोदी जी कहना है तभी पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने याद दिला दिया कि यह इतना भी मुफ्त नहीं है. पेट्रोल और डीज़ल पर टैक्स इसलिए अधिक है क्योंकि टीका मुफ्त है. अनाज मुफ्त है. छह महीने के दौरान हुए पेट्रोल डीज़ल, रसोई गैस और सरसों तेल के दाम और अन्य चीज़ों की महंगाई का खर्चा जोड़िए. पता चलेगा कि आपने कई हज़ार रुपये इसके नाम पर सरकार को दे दिए जबकि पांच सौ हज़ार का टीका लगा लेते तो वो सस्ता पड़ता.

मतलब ग़रीब की ऊपर वाली जेब से सौ रुपया निकाल कर नीचे वाली जेब में दस रुपया डाल कर सरकार कह रही है कि हम उनका कल्याण कर रहे हैं. मंत्री जी अगर यही बात कोरपोरेट को कहते कि हमने जो टैक्स कम किया था उसे बढ़ा रहे हैं ताकि ग़रीब जनता को राहत मिल सके. लेकिन वे यह बात नहीं कहेंगे.

सरकार यह नहीं बता रही है कि कितने लोगों ने पैसे देकर टीका लगाया है. उसके पास डेटा नहीं है. सरकार यह बात कैसे कह सकती है? प्राइवेट सेक्टर के लिए 25 परसेंट का कोटा तो सरकार ने तय किया, तो सरकार को कैसे नहीं पता कि कितना टीका प्राइवेट सेक्टर ने लिया. प्राइवेट अस्पतालों में टीका लगाने पर को-विन की साइट से ही टीका लगता है. को-विन की साइट से पता चल ही सकता है, प्राइवेट अस्पताल ही बता दें कि कितनों को टीका लगाया. क्या प्राइवेट अस्पताल टीके का रिकार्ड ही नहीं रखते हैं? भारत बायोटेक और सीरम इंस्टिट्यूट दो ही तो कंपनियां हैं, क्या दो कंपनियों से हम नहीं जान सकते कि इन्होंने प्राइवेट अस्पतालों को कितना टीका दिया है? तो फिर सरकार कैसे कह सकती है कि उसके पास डेटा नहीं है मगर फ्री वैक्सीन का पोस्टर हर जगह है. जिन लोगों ने पैसे देकर टीके लगाए क्या उन्हें भी मुफ्त टीका में गिना जा रहा है?

ब्रिटेन में उल्टा हो रहा है. ब्रिटेन के तीस करोड़पतियों ने सरकार को पत्र लिखा है कि अगर सरकार कोविड की चुनौतियों का सामना करने के लिए पैसे की तंगी का सामना कर रही है तो वह हम अमीरों पर टैक्स बढ़ा दे. कम कमाने वाले और नौजवानों पर इसका बोझ न डाले.

गार्डियन में छपी एक खबर को भारत के अमीर पसंद नहीं करेंगे और ग़रीब परवाह नहीं करेंगे क्योंकि वे अच्छी तरह जान गए हैं कि कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है. ख़ैर इस खबर के मुताबिक तीस करोड़पतियों ने वित्त मंत्री को पत्र लिखा है कि अमीर ही टैक्स दे सकते हैं इसलिए अमीरों पर टैक्स बढ़े. अस्पतालों में काम करने वाले कर्मचारियों, सफाईकर्मी, शिक्षकों पर भार नहीं पड़ना चाहिए. अमीरी पर टैक्स लगना चाहिए. ब्रिटेन के अमीर समझ रहे हैं कि अगर गरीबों पर बोझ पड़ा, आर्थिक असमानता बढ़ी तो समाज में अस्थिरता फैलेगी जिससे आर्थिक विकास पर बुरा असर पड़ेगा इसलिए अमीरों पर टैक्स लगा कर गरीबों का भला किया जाना चाहिए.

भारत में गरीबों पर टैक्स का बोझ है, ब्रिटेन में टैक्स का बोझ गरीबों पर न पड़े इसलिए अमीर ही मांग कर रहे हैं कि अमीरों पर टैक्स लगे. गार्डियन वाली इस खबर को पढ़ते पढ़ते हमें एक आंदोलन के बारे में पता चला. देशभक्त करोड़पति आंदोलन.

progresspartners.org पर इस आंदोलन की जानकारी मिली. इसमें कोरपोरेट से ही जुड़े लोग हैं जो मानते हैं कि जब तक पैसा आम लोगों के हाथ में नहीं पहुंचेगा, अर्थव्यवस्था को गति नहीं मिलेगी. लोगों को गरीब बना कर अर्थव्यवस्था नहीं चल सकती है. इस वेबसाइट पर लिखा है कि हम इस बात को गलत मानते हैं कि अमीर व्यक्ति और कारपोरेट टैक्स से बचने के लिए अपनी पूंजी बाहर के देशों में बेनामी तरीके से रखते हैं. इस कारण खरबओं डालर दूसरे देश में जमा हैं. इसके कारण असमानता बढ़ती जा रही है.

भारत के भी अमीर टैक्स बचाने के लिए भारत से बाहर पैसा भेज रहे हैं जिसके बारे में कई दिनों से इंडियन एक्सप्रेस में खबरें छप रही हैं. अच्छा है कि हिन्दी अख़बारों और चैनलों के ज़रिए आप ऐसी खबरों को नहीं पढ़ते हैं वर्ना आपकी इस खुशी पर पानी फिर जाता कि एक तरफ आप टैक्स के कारण गरीब हुए जा रहे हैं और दूसरी तरफ देशभक्त अमीर लोग टैक्स बचाकर बाहर पैसा भेज रहे हैं ताकि वे और अमीर हो जाएं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में 300 से अधिक भारतीयों के नाम हैं. टैक्स बचाने वाले नवरत्नों में भारत रत्न सचिन तेंदुलकर भी हैं. ये लोग भारत में नहीं, बलीज़ में पैसा रखते हैं. बलीज़ केन्ने है, गूगलवा में खोज लीजिएगा. भारत में ऐसी खबर पर कोई हलचल नहीं है जबकि ब्रिटेन के अमीर ही इस पर्दाफाश का हवाला देकर सरकार को पत्र लिख रहे हैं कि टैक्स बचाने के लिए बाहर के देशों में इतना पैसा रखना गलत है. इससे जनता और गरीब होगी.

ग़रीबों की जेब से पैसे निकाल कर ग़रीबी दूर करने का यह जादू वाकई कमाल का है. इसके लिए भारत की जनता को बधाई दी जानी चाहिए क्योंकि कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है. अब आते हैं आर्यन ख़ान की ख़बर पर. इस ख़बर के बहाने नौकरशाही के भीतर के कंकाल जिस तरह से बाहर आ रहे हैं उससे चिन्तित होने की ज़रूरत है.

चूंकि कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है इसलिए आप इस प्रसंग को भूल गए होंगे जब सीबीआई के दफ्तर को दिल्ली पुलिस से घेरवाया गया था और देर रात नए निदेशक को कुर्सी पर बिठाया गया था. तब सीबीआई के दो बड़े अफसर एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे थे. एक दूसरे को गिरफ्तार करवाने पर आमादा हो गए थे. दोनों ही किसी के करीबी थे लेकिन आपस में दुश्मनी हो गई. ठीक उसी तरह जैसे फिल्मों में लूट के माल को लेकर गैंग में झगड़ा हो गया हो.

सुशांत सिंह राजपूत के प्रसंग में भी देश की संस्थाएं अपने राजनीतिक आका के लिए आपस में झगड़ती नज़र आईं. मुंबई पुलिस डाल डाल चले और बिहार पुलिस पांत पात. मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे परमबीर सिंह कहां हैं किसी को पता नहीं है. किसी के ज़रिए कोर्ट से कहलवा दिया कि वे अदालत की कार्रवाई के लिए निजी तौर पर हाज़िर नहीं हो सकेंगे. जांच आयोग के सामने हाज़िर होने के लिए उनके खिलाफ वारंट जारी हुआ है. क्या ऐसा ही कुछ आर्यन ख़ान के मामले में हो रहा है? हर दिन कुछ नया आरोप आता है और यह मामला और संदिग्ध हो जाता है. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के निदेशक समीर वानखेडे पर जिस तरह के आरोप लग रहे हैं, उसमें राजनीति तो होगी ही लेकिन अगर वे आरोप सही हैं तो यह कितना भयानक है कि फर्ज़ी गवाहों को खड़ा कर किसी नौजवान की ज़िंदगी से खेला जा रहा है.

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