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This Article is From Mar 09, 2019

काशी के कायाकल्प के नाम पर ये क्या किया?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    March 09, 2019 02:04 IST
    • Published On March 09, 2019 02:04 IST
    • Last Updated On March 09, 2019 02:04 IST

काशी विश्वनाथ का बनारस बदल गया है. आगे और बदल जाएगा. बनारस के जिस हिस्से को दुनिया के प्राचीन बसावटों में गिना जाता था उसका काफी कुछ अब ग़ायब हो चुका है. सारा बनारस भले बनारस है मगर असली बनारस वही है जो बाबा की नगरी कहलाता है. जहां बाबा विश्वनाथ का मंदिर है और मंदिर के आस पास गलियों का संसार था. आम तौर पर दुनिया के किसी भी देश में ऐसी पुरानी बसावट में ज़रा भी हस्तक्षेप होता तो हलचल मच जाती. मगर बात-बात पर बोलने वाली काशी भी कोलाहल पैदा नहीं कर सकी. काशी की इस चुप्पी को अपने हिसाब से कौन पढ़े जब बोलने के लिए मशहूर लोग ही न बोल पाए. 

मगर चर्चा होनी चाहिए थी. शहर में भी और शहर के बाहर भी. हर बदलाव को रिकार्ड किया जाना चाहिए था. बनारस में मौजूद एक सज्जन ने कहा कि बाबा विश्वनाथ अब बाबा सोमनाथ से हो गए हैं. मतलब यही था कि उन तक पहुंचने का रास्ता चौड़ा और सपाट हो गया है. गलियां ग़ायब हैं और मैदान सा आ गया है. 8 मार्च को प्रधानमंत्री ने काशी विश्वनाथ धाम प्रोजेक्ट का शिलान्यास किया. उन्होंने भी कहा कि जो हुआ वो रिसर्च का विषय है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि इतना बड़ा प्रोजेक्ट बगैर किसी बड़े राजनीतिक विरोध के पूरा हो रहा है यह कोई सामान्य बात नहीं है. लोगों की तरफ से भी मामूली विरोध हुआ. इस प्रोजेक्ट पर बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी को रिसर्च करना चाहिए. प्रोजेक्ट का नाम है काशी विश्वनाथ मंदिर विस्तारीकरण सौंदर्यीकरण योजना. अप्रैल 2017 में यह योजना आई कि विश्वनाथ मंदिर के सरस्वती फाटक से लेकर ललिता घाट मणिकर्णिका घाट होते हुए 24,000 वर्ग फीट इलाके में एक गंगा पाथवे बनाया जाएगा जिसका नाम होगा विश्वनाथ कोरिडोर. विश्वनाथ मंदिर न्यास ट्रस्ट के तहत इस मार्ग में पड़ने वाले 250 मकानों को मुआवज़ा देकर खरीद लिया जिनके बारे में प्रधानमंत्री ज़िक्र कर रहे थे कि लोग चुपचाप बिना किसी एतराज़ के बाबा के लिए अपना घर देकर चले गए. पुराने घरों से 33 मंदिर भी निकले हैं जिनका पुनरोद्धार किया जाएगा.

काशी का यह हिस्सा पूरी तरह नया है. वैसा नहीं है जो इस धरती पर काशी को देखने वाले ज़िंदा लोगों की स्मृतियों में हैं. उन्हें अब इस नए काशी को अपनी स्मृतियों में जगह देनी होगी. कई लोग इसे लेकर उत्साहित भी हैं और कई बहुत कुछ खो देने के कारण उदास भी. बनारस में बनारस को जानने वाले पुराने बनारस के बीच उगाए जाने वाले इस नए बनारस को हैरत से देख रहे हैं. आंखें फाड़ कर देखते हैं तो पुराना बनारस नज़र नहीं आता और खुलकर बोलते हैं तो नया बनारस चुप करा देता है. मंदिर में प्रवेश से लेकर पूजा के बाद निकलने पर चौड़ा मैदान सा दिखने लगा है. गंगा तक का रास्ता भी अब खुला मैदान सा दिखता है. यह तो अभी पहला चरण है. दूसरे चरण में प्राचीन मंदिरों का पुनरोद्धार होगा. तीसरे चरण में यहां म्यूज़ियम बनेगा. लाइब्रेरी बनेगी. रेस्ट हाउस बनेगा. 40 फुट चौड़े गलियारे के किनारे यह सब बनेगा. इतने बड़े स्केल पर सब कुछ हो रहा है लोग न आशंकाओं पर बात कर रहे हैं न उत्साह को लेकर छलक रहे हैं. प्रधानमंत्री रिसर्च की बात कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में इस प्रोजेक्ट के बारे में काफी कुछ कहा. मगर इस प्रोजेक्ट को लेकर जो विज्ञापन छपा था, उसके बारे में मैं कुछ कहना चाहता हूं. जिस प्रोजेक्ट पर वे रिसर्च करवा कर दुनिया को भेंट करना चाहते हैं.

उस प्रोजेक्ट के विज्ञापन में यह छपे कि काशी विश्वनाथ प्रोजेक्ट में पंखा और कूलर लगेगा. छावनी बनेगी और पीने के पानी की व्यवस्था होगी. यह प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की गरिमा के अनुकूल नहीं लगता है. लगता है यूपी जनसंपर्क विभाग को इस प्रोजेक्ट का महत्व पता नहीं था वरना वो इतनी छोटी बात नहीं लिखता कि पंखा और कूलर लगेगा. ये सब तो हमारे यहां के श्रद्धालु और सेठ लोग चुपचाप कर जाते हैं. मगर इसका विज्ञापन अखबारों में होगा कि कूलर और पंखा लगेगा ठीक नहीं है. जनसंपर्क विभाग को थोड़ी और मेहनत करनी चाहिए थी.

2017 से लेकर 2019 तक काशी का यह हिस्सा काफी कुछ बदल चुका है. इसके एक एक बदलाव को दर्ज किया जाना चाहिए था. प्रशासन ने तो किया ही है उसके पास वीडियोग्राफी है मगर उम्मीद है बनारस की जनता, पत्रकारों और शहरों का अध्ययन करने वालों ने इसे अलग से दर्ज किया होगा. पुराना चला गया है. जो नया आ रहा है क्या वही अंतिम और बेहतर विकल्प था. इस पर बहस का वक्त चला गया है. बनारस के पुराने दिग्गज बोल रहे हैं, बस उनका बोलना ही है. हमारे सहयोगी अजय सिंह इस बदलाव को दर्ज करते रहे हैं. आज उन्होंने चंद आवाज़ों के साथ उन बदलावों की तस्वीरें भेजी हैं. आप देखिए. उस पुराने बनारस को जाते हुए और इस नए बनारस को आते हुए.

यही नहीं बाबा के सामने अब भी सब बराबर ही होंगे मगर जिसके पास 300 का टिकट कटाने की क्षमता होगी वो बस लाइन में आगे होंगे. ऑनलाइन टिकट कटाकर आप समय रिजर्व करा सकते हैं. 300 के टिकट वालों को ईश्वर कभी तकलीफ न दे. उन्हें कभी लाइन न दे. भले उनसे 300 की फाइन ले ले. बनारस के बाद प्रधानमंत्री गाज़िबाद आए जहां हिण्डन एयरपोर्ट का उद्घाटन किया. 30,274 करोड़ की योजना, क्षेत्रीय रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम एवं मेट्रो सर्विस के प्रथम कॉरिडोर दिल्ली गाज़ियाबाद मेरठ पर खर्च होगी जिसका फैसला 19 फरवरी के कैबिनेट में किया गया था. 14 परियोजनाओं में से सीवर लाइन योजना, नन्दीपार्क गौशाला का सदृढ़ीकरण का शिलान्यास किया तो मेट्रो रेल विस्तार योजना का उद्घाटन भी किया. लोनी में दो मॉडल इंटर कॉलेज का उद्घाटन किया.

 

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