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This Article is From Jan 15, 2018

सुप्रीम कोर्ट में लगी है अंतरात्मा की अदालत

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 16, 2018 13:07 pm IST
    • Published On जनवरी 15, 2018 11:48 am IST
    • Last Updated On जनवरी 16, 2018 13:07 pm IST
सत्य ताले में बंद हो सकता है मगर उसमें अंतरात्मा को चीर देने की शक्ति होती है. जज लोया की मौत ने आज सुप्रीम कोर्ट को एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा कर दिया है. भाषा और शब्दों पर न जाइये. मगर जजों का इस तरह सड़क पर आना मुल्क को चेतावनी दे रहा है. मेडिकल कॉलेज और जज लोया की सुनवाई के मामले में गठित बेंच ने जजों को अपना फ़र्ज़ निभाने के लिए प्रेरित किया है या कोई और वजह है, यह उन चार जजों के जवाब पर निर्भर करेगा. कोर्ट कवर करने वाले संवाददाता बता रहे हैं कि बेंच के गठन और रोस्टर बनाने के मामले ने इन चार जजों के मन में आशंका पैदा की और उन्होंने आप मुल्क से सत्य बोल देना का साहस किया है. क्या बेंच का गठन कार्यपालिका की प्राथमिकता और पसंद के आधार पर हो रहा है?

जज लोया की मौत मुल्क की अंतरात्मा को झकझोरती रहेगी. आज विवेकानंद की जयंती है. अपनी अंतरात्मा को झकझोरने का इससे अच्छा दिन नहीं हो सकता. विवेकानंद सत्य को निर्भीकता से कहने के हिमायती थे. सवाल उठेंगे कि क्या सरकार ज़रूरत से ज़्यादा हस्तक्षेप कर रही है? क्या आम जनता जजों को सरकार के कब्जे में देखना बर्दाश्त कर पाएगी? फिर उसे इंसाफ़ कहां से मिलेगा. इन सारे सवालों के जवाब का इंतज़ार कीजिए. सवाल कीजिए.जज लोया सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में सुनवाई कर रहे थे. इस मामले में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह आरोपी थे. जज की मौत होती है. उसके बाद अमित शाह बरी हो जाते हैं. कोई सबूत नहीं है दोनों में संबंध कायम करने के लिए मगर एक जज की मौत हो, उस पर सवाल न हो, पत्नी और बेटे को इतना डरा दिया जाए कि वो आज तक अपने प्यारे वतन भारत में सबके सामने आकर बोलने का साहस नहीं जुटा सके. क्या यही विवेकानंद का भारत है?

शुक्र है भारत में कैरवान जैसी पत्रिका है, निरंजन जैसा पत्रकार है, विनोद और हरतोष जैसे संपादक हैं, जिन्होंने निर्भीकता को एक नया मक़ाम दिया है. उन वकीलों को सलाम जिन्होंने जज लोया की मौत की जांच की मांग की. आज ही सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया के मामले में महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेज कर पंद्रह जनवरी तक जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने जज लोया की मौत को गंभीर मामला बताया है. बांबे हाईकोर्ट में इसकी सुनवाई होने वाली थी.

दुष्यंत दवे और इंदिरा जयसिंह जैसे कुछ वकील चाहते थे कि सुप्रीम कोर्ट दखल न दे. कोई बात रही होगी कि सुप्रीमकोर्ट मामले को खारिज न कर दे. बताया जाता है कि इस मामले को एक बेंच विशेष को दिए जाने के विरोध में चार सीनियर जजों ने भारत के प्रधान न्यायाधीश को असहमति पत्र लिखा और प्रेस कांफ्रेंस की. पत्र में किसी ख़ास मामले का ज़िकर नहीं है. हमारे सहयोगी आशीष भार्गव ने जो पत्र दिया है उसका हिन्दी में सार इस तरह से भेजा है-

चिट्ठी का मजमून
- चीफ जस्टिस परंपरा से बाहर हो रहे हैं जिसमें महत्वपूर्ण मामलों में सामूहिक निर्णय लिए जाते हैं.
- चीफ जस्टिस केसों के बंटवारे में नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं.
- वो महत्वपूर्ण मामले जो सुप्रीम कोर्ट की अखंडता को प्रभावित करते हें वो बिना किसी वाजिब कारण के उन बेंचो को देते हैं तो चीफ जस्टिस की प्रेफेरेंस की हैं.
- इसने संस्थान की छवि खराब की है.
- हम ज्यादा केसों का हवाला नहीं दे रहे है.

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