नागरिकता क़ानून के पास होते ही गृहमंत्री अमित शाह को मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में दौरा करना पड़ा. क़ायदे से जहां से इस क़ानून की उत्पत्ति हुई है वहां जाकर लोगों को समझाना था मगर एक महीना हो गया ग़हमंत्री असम या पूर्वोत्तर के किसी राज्य में नहीं जा सके हैं.
अमित शाह दिल्ली के चुनावों में लाजपत नगर का दौरा कर रहे हैं लेकिन डिब्रूगढ़ जाकर लोगों को नागरिकता क़ानून नहीं समझा पा रहे हैं. मुख्यमंत्री से दिल्ली में मिल रहे हैं.
वैसे क्या आपको पता है कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों की कश्मीर नहीं गए हैं. भाषण तो बड़ा दिया था कि कश्मीर के लोग हमारे हैं. हम गले लगाएंगे लेकिन अभी तक जाने का वक्त नहीं मिला.
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वैसे प्रधानमंत्री मोदी असम भी नहीं जा पा रहे हैं. 15-16 दिसंबर को जापान के प्रधानमंत्री के साथ ईवेंट था. दौरा रद्द करना पड़ा. तब वहां नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध हो रहा था. वो एक महीने बाद तक हो रहा था जिसके कारण वे. आज शुक्रवार को खेलो इंडिया के उद्घाटन करने जाने वाले थे मगर नहीं जा सके.
तो एक महीना हो गया है भारत के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री आठ राज्यों में नहीं जा पा रहे हैं. दोनों को इन सभी राज्यों में कहीं न कहीं जाकर इस धारणा को तोड़ना चाहिए कि असम और कश्मीर में उनके कदम का विरोध हो रहा है.
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यही नहीं नागालैंड के नागा पिपल्स फ़्रंट NPF के राज्य सभा सांसद के जी केन्ये को पार्टी ने बर्खास्त कर दिया है. उन्होंने सदन में नागरिकता संशोधन क़ानून के समर्थन में वोट किया था. NPF के लोक सभा सांसद ने भी समर्थन में वोट किया था उन पर अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है.
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नागरिकता संशोधन क़ानून में पश्चिमी देशों की आलोचना से बचने के लिए ईसाई को भी जोड़ा गया जबकि उनके भी बहुमत वाले कई देश है. लेकिन इसके बाद भी ईसाई समुदाय इस क़ानून की विभाजनकारी नीयत को समझ गया है. कर्नाटक में ईसाई समुदाय के कई नेताओं ने इस क़ानून का विरोध किया है. बंगलुरू के आर्कबिशप के नेतृत्व में प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया है. इसमें अपील की गई है कि धर्म के आधार पर नागरिकता न देख. ईसाई धर्मगुरुओं ने उन समुदायों के प्रति सहानुभूति जताई है जो इस क़ानून के कारण ख़ुद को अलग-थलग महसूस कर रहे हैं.
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