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This Article is From May 21, 2020

आर्थिक मोर्चे पर बताइये, आपकी नौकरी और सैलरी के क्या हाल हैं?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 21, 2020 09:49 am IST
    • Published On मई 21, 2020 09:49 am IST
    • Last Updated On मई 21, 2020 09:49 am IST

आर्थिक मोर्चे पर सबकी गाड़ी पटरी से उतर गई है. आने वाले कुछ सालों तक में खास सुधार नहीं होगा. इस वक्त ही सैलरी इतना पीछे चली जाएगी कि वहां तक वापस आने में कई साल लगेंगे. हमारे देश में सैलरी कम होने या नौकरी जाने का डेटा नहीं होता. जिस तरह आप अमरीका में जान पाते हैं कि 2 करोड़ से अधिक लोगों की नौकरी गई उस तरह का आंकड़ा भारत सरकार नहीं बताती. जो पहले का सिस्टम था वो भी बंद कर दिया गया है.

धीरे-धीरे नौकरियां जाने की ख़बरें आने लगी हैं. ओला कंपनी ने 1400 कर्मचारियों को विदा कर दिया है. फूड प्लेटफार्म स्वीगी ने भी 1000 कर्मचारियों की छंटनी कर दी है. ज़ोमाटो ने भी 600 कर्मचारियों को हटा दिया है और सैलरी में 50 प्रतिशत की कटौती कर दी है. कर्नाटक के नंजनगुड की रीड एंट टेलर कंपनी ने 1400 कर्मचारियों को निकाल दिया है. उबर कंपनी ने दुनिया भर में एक चौथाई कर्मचारी निकाल दिए हैं.

बड़ी कंपनियों की खबरें तो छप जाती हैं लेकिन मझोले किस्म की कंपनियों का पता भी नहीं चलता. मुझे अब ऐसे मैसेज आने लगे हैं कि किसी कंपनी ने 100 तो किसी ने 200 लोगों को निकाल दिया है. कंपनियां भी दबाव में हैं. इस अर्थव्यस्था को चोट पहुंचाने वाले सिर्फ मौज में हैं. उनकी मौज आजीवन जारी रहे यी दुआ है. लेकिन अब आप भूल जाएं आर्थिक मोर्चे पर तरक्की आने वाली है. वैसे भी 6 साल से डगर रहे थे, अब आगे के 4 साल भी डगरने के ही होंगे.

हैदराबाद से उमा सुधीर ने रिपोर्ट फाइल की है कि प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने वाले करीब 2 लाख शिक्षक बेरोज़गार हो गए हैं. उन्हें सैलरी नहीं मिली है. इसलिए वे मज़दूरी कर रहे हैं और सब्ज़ी बेच रहे हैं.

मीडिया में ही कितने पत्रकारों और दूसरे कर्मचारियों की नौकरियां चली गईं. उन पर कितना पहाड़ टूटा होगा. इस वक्त में कहां तो राजनीति को विनम्र होना था लेकिन यह दौर ही अहंकार के स्वर्ण युग का है.

जनवरी, फरवरी और मार्च के महीने की लापरवाही और तमाशेबाज़ी भारत को महंगी पड़ेगी. बिना सोचे समझे और किसी तैयारी औऱ मकसद से की गई तालाबंदी अब मज़ाक में बदल चुकी है. 564 मामलों पर तालाबंदी करने वाला देश 1 लाख से अधिक केस होने पर तालाबंदी को अलग अलग तरीके से समाप्त कर चुका है. पहले भी गलत था और अब भी गलत राह पर जा रहा है.

अपने दुखों के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएं. किसी से कहने का क्या लाभ. आप कुछ कर भी नहीं सकते. हो सके तो सुन लीजिए. और वो जब भी कहें बालकनी में थाली बजाने ज़रूर जाएं ताकि उनकी लोकप्रियता विराट और प्रचंड नज़र आए. मोमबत्ती भी जलाते रहें. व्हाट्स एप यूनिवर्सिटी की मीम तो छोड़िएगा नहीं. वही तो असली अफीम है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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