Delhi Pollution: दिल्ली-एनसीआर में पॉल्यूशन का स्तर इतना बढ़ गया है कि ये किसी हेल्थ इमरजेंसी से कम नहीं है. रोजाना अस्पतालों में लोगों की भीड़ बढ़ रही है और बाहर निकलने वाले लोगों को तमाम तरह की परेशानी हो रही है. फिलहाल इस पॉल्यूशन का इलाज किसी के पास नहीं है और कुछ कदम उठाकर इसे कंट्रोल करने की कोशिश की जा रही है. दिल्ली-एनसीआर में ग्रैप के प्रतिबंध लागू होने के बावजूद पॉल्यूशन पर कोई असर नहीं पड़ रहा है. ऐसे में सोशल मीडिया पर कुछ लोग लॉकडाउन लगाने की भी बात कर रहे हैं. आइए जानते हैं कि दिल्ली में अगर कोरोना जैसा लॉकडाउन लगाया जाता है तो प्रदूषण का स्तर कितना कम हो जाएगा.
ग्रैप से कंट्रोल करने की कोशिश
दुनिया के तमाम देशों में प्रदूषण के ऐसे हालात का मतलब लॉकडाउन जैसा ही होता है. हालांकि भारत में पॉल्यूशन को लेकर पूरी तरह से लॉकडाउन कभी भी नहीं लगाया गया है. यहां ग्रैप यानी ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान के तहत प्रतिबंध लगाए जाते हैं. इसमें कंस्ट्रक्शन पर रोक, कमर्शियल वाहनों की एंट्री बंद, स्कूलों और दफ्तरों के वर्क फ्रॉम होम और बाकी तरह के कई प्रतिबंध लगाए जाते हैं.
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लॉकडाउन लगा तो क्या होगा?
भारत में पहली बार कोरोना महामारी के आने के बाद लॉकडाउन लगाया गया था. मार्च 2020 से अलग-अलग चरणों में लॉकडाउन लगाए गए थे, जिसमें संपूर्ण लॉकडाउन भी शामिल था. इस दौरान इमरजेंसी सेवाओं के अलावा किसी को भी बाहर निकलने की इजाजत नहीं दी गई थी. इस लॉकडाउन का दिल्ली की हवा पर भी काफी ज्यादा असर पड़ा था.
मृत्यु दर में भी आ सकती है कमी
आईआईटी की इस स्टडी में ये भी बताया गया था कि अगर दिल्ली में इसी तरह हवा की गुणवत्ता हर साल रहती है तो सालाना मृत्यु दर में 6.5 लाख की कमी आ सकती है. लॉकडाउन के दौरान गाड़ियों के निकलने वाला धुआं और उद्योगों से होने वाला प्रदूषण पूरी तरह से खत्म हो गया था. यही वजह है कि PM 2.5 का स्तर तेजी से गिरा था.
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