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This Article is From Dec 12, 2019

क्या असम के प्रदर्शनों को न दिखाने के लिए सूचना मंत्रालय ने सुझाव भेजा है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 12, 2019 12:31 pm IST
    • Published On दिसंबर 12, 2019 12:31 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 12, 2019 12:31 pm IST

मशवरे की शक्ल में फ़रमान आया है. याद दिलाते हुए कि वक्त वक्त पर ऐसे सुझाव दिये जाते रहे हैं. उसी की परंपरा में 1995 में केबल एक्ट की याद दिलाई गई है और कहा गया है कि सभी टीवी चैनल ऐसी सामग्री दिखाने से बचे जिससे हिंसा भड़क सकती है. हिंसा को उकसावा मिल सकता है. जो राष्ट्रविरोधी नज़रिए को प्रोत्साहित करता है. जो देश की अखंडता पर असर करती है. सभी चैनलों से आग्रह किया जाता है कि इन दिशानिर्देशों का सख़्ती से पालन करें.

इसमें यह नहीं लिखा है कि यह आदेश पांच साल से चैनलों पर चल रहे हिन्दू मुस्लिम डिबेट को लेकर है या असम को लेकर है? आदेश जिस वक्त आया उस वक्त असम के लोग सड़कों पर थे. नागरिकता कानून पास होने के पहले से असम की यूनिवर्सिटी में ज़बरदस्त विरोध हो रहा था. असम के अलावा पूर्वोत्तर के दूसरे इलाकों में भी इस कानून का विरोध हो रहा है. सूचना मंत्रालय साफ साफ लिख देता है कि वैसे तो सारा गोदी मीडिया असम के प्रदर्शनों को नहीं दिखा कर राष्ट्रभक्ति का प्रदर्शन कर ही रहा है, हम चाहते हैं तो कि दो चार चैनल जो कभी कभी दिखा रहे हैं वो भी राष्ट्रहित का नाम लेकर असम की रिपोर्टिंग न करें. चर्चा न करें.

नागरिकता संशोधन बिल से खुश हैं ये शरणार्थी

क्या असम के लोगों का प्रदर्शन जायज़ नहीं है? क्या उनका प्रदर्शन राष्ट्र विरोधी है? तो सरकार पहले असम के प्रदर्शनों को राष्ट्रविरोधी घोषित कर दे? चैनलों के दिखाने से असम में हिंसा नहीं हो रही है. चैनलों के न दिखाने से उनका गुस्सा भड़का है. अगर उन्हें लगता कि उनकी बातें देश को बताईं जा रही हैं तो इतनी नाराज़गी न होती. राज्य सभा में पास होने तक असम के सारे प्रदर्शन शांतिपूर्ण ही रहें. टायर जलाकर प्रदर्शन करना और रात में मशालें लेकर जुलूस निकालना न तो हिंसा है और न ही राष्ट्रविरोधी प्रदर्शन. अगर असम के प्रदर्शनकारी हिंसा करने की ग़लती करते हैं तो यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि उसने इन लोगों से बात नहीं की. अभी जब प्रदर्शन हो रहे हैं तब भी इनसे कोई बात नहीं कर रहा है. क्या ये आदेश असम के आंदोलनों को न दिखाने के लिए हैं ? ऐसे तो कोई हां में नहीं कहेगा लेकिन आप अब चैनलों पर असम के कवरेज़ को लेकर पसरी चुप्पी से समझ सकते हैं.

एक देश एक कानून की सनक का मिसाल है नागरिकता बिल

रही बात आप जनता की. आप चाहें कोई हों. अगर आपको लगता है कि यह आदेश सही है तो आप अपने मौजूदा और भविष्य में होने वाले सभी प्रदर्शनों को राष्ट्रविरोधी घोषित कर स्थगित कर दें. ख़ुद को भी राष्ट्रविरोधी घोषित कर दें. गन्ना किसानों को कान पकड़ कर खेत में बैठ जाना चाहिए कि उनसे राष्ट्र विरोधी ग़लती हुई है कि उन्होंने दाम न मिलने पर आंदोलन करने को सोचा और मीडिया से आग्रह किया कि दिखा दीजिए. ऐसे न जाने कितने नागरिक समूह होंगे जो अपनी परेशानियों को लेकर सड़क पर उतरने वाले होंगे. उतरे ही होंगे. इस तरह के आदेशों का क्या मतलब है? संसद के भीतर गोड्से को महान बताया जाता है. क्या वो राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं है?

क्या हमने CAB पर पूर्वोत्तर की शिकायतों को ठीक से सुना?

नागरिकता कानून का विरोध वैध है. संसद में हुआ है. सड़क पर भी हो रहा है. इंडियन एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय में लिखा है कि यह कानून ज़हरीला है. इसे सदन में ही रोक दिया जाना चाहिए था. अब न्यायपालिका को संविधान की रक्षा में अपना इक़बाल दिखाना होगा. हिन्दी अख़बारों ने फिर से हिन्दी पाठकों को मूर्खता के अंधेरे में धकेले रखने की ज़िम्मेदारी निभाई है. कब तक आप नफ़रत और अज्ञानता के कमरे में बंद रहेंगे. इंसान की फितरत मोहब्बत होती है. उसका जुनून ज्ञान होता है. वह ज़्यादा दिन हिन्दी अख़बारों के क़ैद में नहीं रह सकता है.

आप एक्सप्रेस का यह संपादकीय देखिए. हिन्दी अख़बार दैनिक भास्कर की ख़बर की हेडलाइन देखिए. अपनों और असम अलग अलग है. बीच में एक और नहीं है क्या वो अपना नहीं है? आप यह खेल समझ पा रहे हैं ?

यह कानून संवैधानिक मूल्यों और नैतिकताओं पर खरा नहीं उतरता है. यह कहने का अधिकार बहुमत को ही नहीं है. सिर्फ असम विरोध नहीं कर रहा है. देश के कई हिस्सों में विरोध हो रहा है. कई संगठन और व्यक्ति विरोध कर रहे हैं. कई राजनीतिक दल विरोध कर रहे हैं. क्या वे सबके सब राष्ट्रविरोधी करार दे दिए जाएंगे?

नागरिकता संशोधन बिल में मुस्लिम शरणार्थी क्यों नहीं?

सूचना प्रसारण मंत्रालय को अपना नाम अंग्रेज़ी में इंफोर्मेशन ब्लॉकेड मिनिस्ट्री रख लेना चाहिए. हिन्दी में सूचना अप्रसारण मंत्रालय. या फिर जॉर्ज ऑरवेल की किताब 1984 से सीधे उठाकर मिनिस्ट्री ऑफ ट्रूथ रख लेना चाहिए. चैनलों को बंद कर जगह जगह टेलिस्क्रीन लगा देनी चाहिए जिसके नीचे लिखा आना चाहिए- बिग ब्रदर इज़ वाचिंग यू. ऑरवेल के 1984 में जो मंत्रालय यातना देता था उसका नाम मिनिस्ट्री ऑफ हैपिनेस है. जो झूठ फैलाता है उसका नाम मिनिस्ट्री ऑफ ट्रूथ है. ऑरवेल की कल्पना भारत में साकार होती दिख रही है.

1984 के मिनिस्ट्री ऑफ ट्रूथ के संदर्भ का हिन्दी में मतलब यह हुआ कि आप ग़ुलाम बनाए जाएंगे या बना लिए गए हैं. आप वही सोचेंगे और उतना ही सोचेंगे जितना सरकार आपको बताएगी. उससे ज्यादा सोच रहे हैं इस पर सरकार नज़र रखेगी. ज़्यादा जानना और ज़्यादा सोचना गुनाह होगा. क्या आप करीब करीब यही होता नहीं देख रहे हैं. गोदी मीडिया कुछ और नहीं. मिनिस्ट्री ऑफ ट्रूथ के ही अंग हैं. आप ही बताएं कि इन चैनलों पर सूचना कहां हैं, आपके ही विरोध प्रदर्शनों या सवालों की कोई सूचना है? जब मीडिया सरकार का अंग बन जाए, उसके आदेशों पर झुकने लगे तब लोगों को सोचना चाहिए कि आप इस मीडिया को अपना वक्त और पैसा क्यों दे रहे हैं?

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एक नागरिक के तौर पर आपकी क्या ज़िम्मेदारी है? क्या आप यह मंज़ूर कर रहे हैं कि किसी चीज़ का विरोध न दिखाया जाए? क्या आप मंज़ूर कर रहे हैं कि विरोध प्रदर्शन न हों? क्या आप मंज़ूर कर रहे हैं कि सरकार जो कहेगी वही सही होगा? आप अपनी नागरिकता को ही ख़त्म करने की मंज़ूरी दे रहे हैं. जो आप पर ही भारी पड़ेगी. आपकी चुप्पियां घाव बन जाएंगी. एक दिन मवाद फूटेगा. आप दर्द सहन नहीं कर पाएंगे. विवेक का इस्तमाल कीजिए. कुछ सोचिए. जो हुआ है वह सही नहीं है. इन दरारों से क्या मिलेगा?

कश्मीर पर आप चुप रहे हैं. असम पर आप चुप हैं. जिस हिन्दू मुसलमान को गर हाने में गाते रहे ये दिखाने के लिए आप नफ़रतों से ऊपर हैं, उस मुसलमान को इस कानून में छोड़ दिए जाने से आप चुप हैं. आपका वो गाना सिर्फ दिखावा था. कल किसी और राज्य या समुदाय को लेकर चुप रहेंगे. एक दिन ख़ुद पर बीतेगी तो बोली नहीं निकलेगी. इसलिए लोकतंत्र में बोलने को हमेशा प्रोत्साहित कीजिए. बोलने वालों का साथ दीजिए.

कमेंट बाक्स में गाली देने वालों को देखकर डरने की ज़रूरत नहीं है. ये मिनिस्ट्री पर हैपिनेस के सिपाही हैं. इनका काम यातनाएं देना है. इनका काम लोकतांत्रिक संस्कृति को बर्बाद करना है. आप अगर इतनी सी बात के लिए खड़े नहीं होंगे तो फिर आप जहां हैं वहीं सदियों के लिए बैठ जाइये. पत्थर में बदल जाइये.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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