जीडीपी का आंकड़ा बढ़ा-चढ़ा कर बताने के लिए फ़र्ज़ी कंपनियों का इस्तमाल किया गया है. नेशनल सैंपल सर्वे (NSSO) ने एक साल लगाकर एक सर्वे किया मगर उसकी रिपोर्ट दबा दी गई. पहली बार सर्विस सेक्टर की कंपनियों का सर्वे हो रहा था. इसके लिए NSSO ने कारपोरेट मंत्रालय से सर्विस सेक्टर की कंपनियों का डेटा लिया. जब उन कंपनियों का पता लगाने गए तो मालूम ही नहीं चल पाया. 15 प्रतिशत कंपनियां ऐसी थीं जो लापता थीं. 21 प्रतिशत कंपनियां ऐसी निकलीं जिनका पता तो था मगर बंद हो चुकी थीं. क़रीब 36 प्रतिशत ऐसी फ़र्ज़ी कंपनियों का इस्तमाल कर भारत सरकार ने जीडीपी के आंकड़े को चमकाया है. मेरे हिसाब से भारत की जनता को उल्लू बनाया है. जब सर्वे रिपोर्ट में पोल खुली तो रिपोर्ट दबा दी गई.
आप जानते हैं कि 2015 में जीडीपी आंकने की पद्धति को बदल दिया गया. उस वक्त भी इस क्षेत्र के जानकारों ने सवाल उठाए. एन नागराज ने कहा कि जीडीपी जोड़ने के लिए कारपोरेट मंत्रालय से जिन कंपनियों का बहीखाता लिया गया है, वे सही हैं या नहीं इसकी स्वतंत्र जांच होनी चाहिए. नागराज ने फिर से यह मांग की है. एन नागराज मुंबई स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट में सांख्यिकीय विद्वान हैं. वे चाहते हैं कि राष्ट्रीय बहीखाते (जीडीपी) में इन आंकड़ों का इस्तमाल करने से पहले कारपोरेट मंत्रालय के डेटा को रिसर्चर के हवाले किया जाए ताकि वे सत्यता की जांच कर सके.
यह बहुत बड़ा घपला है. जनता से झूठ बोलने का अपराध गंभीर होता है. प्रधानमंत्री मोदी कई लाख काग़ज़ी कंपनियों को बंद करने का दावा करते हैं. लेकिन अब सामने आ रहा है कि वे ख़ुद इन काग़ज़ी कंपनियों का इस्तमाल कर रहे हैं ताकि जीडीपी की दर बढ़ी नज़र आए. क्या देश की अर्थव्यवस्था उन्होंने इतनी बर्बाद कर दी है कि जीडीपी के फ़र्ज़ी आंकड़े तैयार किए जा रहे हैं?
भारत में आंकड़ों के आधार पर आंकलन करने वाली जितनी भी संस्थाएं उन्हें बर्बाद कर दिया गया. दिसंबर महीने में राष्ट्रीय सांख्यिकीय परिषद (NSC) के दो सदस्यों ने इस्तीफ़ा दिया क्योंकि बेरोज़गारी की रिपोर्ट दबा दी गई. 45 साल में सबसे अधिक बेरोज़गारी के आंकड़े आ गए थे. इसके विरोध में दो सदस्यों ने इस्तीफ़ा दिया. छह महीने हो गए उनकी जगह नया सदस्य नहीं आया है. श्रम मंत्रालय जो सर्वे करता था, जिससे बेरोज़गारी की नियमित जानकारी मिलती थी उसे बंद कर दिया गया. जबकि दुनिया भर में भारत के इन आंकड़ों की विश्वसनीयता थी. कहा गया कि नई मुकम्मल व्यवस्था बनेगी मगर वो आज तक नहीं बन पाई.
नई जीडीपी में जब दिखा कि यूपीए के समय जीडीपी का औसत बढ़ गया है तो उसका खंडन कराया गया. वित्त मंत्री 8 प्रतिशत जीडीपी पहुंचाने की बात करते रहे. डबल डिजिट का भी झांसा दिया गया लेकिन अब उसकी बात नहीं होती. विश्व गुरु भारत अगर झूठ के आधार पर परचम लहराएगा तो दुनिया हम पर हंसेगी और हंस रही है.
जीडीपी वाली लाइव मिंट के प्रमित भट्टाचार्य की रिपोर्ट है. हाल ही में लाइव मिंट में सांख्यिकीय संस्थाओं में गिरावट पर अच्छी रिपोर्ट आई थी. हिन्दी के पाठक अवश्य पढ़ें. हिन्दी के अख़बार और चैनलों में ऐसी ख़बरें नहीं होतीं. वहां मोदी और शाह के बयानों से जगह भर दी जाती है. यह कोशिश है कि हिन्दी की जनता बेवक़ूफ़ बने.
यही नहीं झूठे आंकड़े देकर बीजेपी के समर्थकों को भी उल्लू बनाया गया. उन्हें लगा कि वाक़ई कमाल हो गया है. नरेंद्र मोदी भले ही राजनीति के लिए थर्ड क्लास भाषा बोल रहे हैं मगर अर्थव्यवस्था में एक नंबर का काम कर रहे हैं. अब तो यह भी झूठ पर आधारित निकला. व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी में ऐसे दर्जनों मीम बनाकर समर्थकों को फार्वर्ड करने के लिए दिया गया. समर्थकों को लगा कि भारत सुपर पावर बन गया है. यह पहली सरकार है जो अपने समर्थकों से भी झूठ बोलती है. समर्थक इस झूठ के आधार पर आईटी सेल का काम करने लग जाते हैं. पहले उन्हें बेवक़ूफ़ बनाती है फिर देश को. अगर सही डेटा आता तो लोग सवाल पूछ रहे होते. क्या मोदी जी ने भारत की अर्थव्यवस्था चौपट कर दी है?
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