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This Article is From Mar 31, 2017

देश का दूसरा सबसे कुपोषित राज्य है यूपी - योगी आदित्यनाथ कैसे दूर करेंगे कुपोषण

Rakesh Kumar Malviya
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 31, 2017 15:55 pm IST
    • Published On मार्च 31, 2017 15:55 pm IST
    • Last Updated On मार्च 31, 2017 15:55 pm IST
लीजिए, आखिरकार नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण के उत्तर प्रदेश के आंकड़े भी आ गए. इन आंकड़ों को पहले जारी किया जाता, तो हो सकता था कि ये चुनावी चर्चा का विषय बने होते, तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार का अच्छा-बुरा काम दिखाते. अखि‍लेश का जो हुआ, सो हो गया, अब देश में सबसे ज्यादा चर्चा में मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही हैं. अब उनके सामने चुनौती होगी कि महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित जो तस्वीर सामने आई है, उसका वह क्या और कैसे करने वाले हैं...? सबसे बड़ी चुनौती तो उनके राज्य में बच्चों के कुपोषण को लेकर सामने आई है. यह बताती है कि देश में बिहार के बाद सबसे ज्यादा ठिगने बच्चे उत्तर प्रदेश में ही हैं. रिपोर्ट यह भी बताती है कि एक साल तक के बच्चों की मौत के मामले में उत्तर प्रदेश पूरे देश में टॉप पर है. अब देखना होगा कि शाकाहार को बढ़ावा देने वाली सरकार उत्तर प्रदेश के इस कलंक को कैसे बेहतर पोषण से ठीक करती है...?
 
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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं कल्याण मंत्रालय की ओर से पूरे देश में कराया जाता है. इस सर्वेक्षण का यह चौथा दौर है. इससे पहले 2006 में इसके तीसरे दौर को पूरा किया गया था. चौथे दौर के लिए सारे राज्यों के नतीजे पहले जारी किए जा चुके थे, केवल उत्तर प्रदेश की तस्वीर सामने आनी बाकी थी. इसमें सामने आया है कि उत्तर प्रदेश में पांच साल तक के 46.3 फीसदी बच्चे ठिगनेपन का शिकार हैं. इसका मतलब यह होता है कि उनकी ऊंचाई उनकी उम्र के हिसाब से नहीं बढ़ती. कुपोषण का एक दूसरा प्रकार उम्र के हिसाब से वजन नहीं बढ़ना है, इसमें भी उत्तर प्रदेश के 39.5 प्रतिशत बच्चे सामने आए हैं, जबकि भारत में अभी 35.7 प्रतिशत बच्चे कम वजन के हैं. यानी उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय औसत से ज्यादा गंभीर स्थिति में है, सो, ऐसे में यह देखना लाजिमी होगा कि योगी सरकार इस मसले पर कितनी गंभीरता से कदम उठाती है.
 
kuposhan chart

दरअसल स्वास्थ्य का यह मुद्दा सीधे-सीधे पोषण से आकर जुड़ता है. बीजेपी-शासित राज्यों में यह पहले से बहस का विषय रहा है कि सरकारी माध्यमों से पोषण के सस्ते विकल्पों को लागू किया जाना चाहिए अथवा नहीं. आपको याद होगा कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने पिछले साल चार जिलों में कुपोषित बच्चों की सेहत जल्दी ठीक करने के लिए अंडे खिलाने के बने-बनाए प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था, क्योंकि इसके लिए जैन संतों का भी दबाव था. भोजन के अधिकार अभियान और कुपोषण दूर करने के लिए अभियान चलाने वाले समूह का मानना था कि अंडा पोषण का सबसे सस्ता और सहज उपलब्ध विकल्प है, लेकिन शिवराज सरकार ने उनकी नहीं सुनी, और इसके बदले आंगनवाड़ी और स्कूलों में सप्ताह में तीन दिन दूध पिलाने की बात कही गई. अलबत्ता अब यहां पर पाउडर वाला दूध ही बच्चों को पिलाया जा रहा है.
 
shishu mrutyu dar chart

देश में और अब ज्यादातर राज्यों में जब बीजेपी सत्तासीन है, और उसमें भी एक मुख्यमंत्री पूरी तरह भगवाधारी है, तो यह तो अब संभव होता दिखता नहीं कि लोगों को पोषण का कोई ऐसा विकल्प सरकारी माध्यमों से मिलने वाला है. बूचड़खानों को बंद करने या दूसरी जगह ले जाने की कवायदों ने इस बात को और पुख्ता ही किया है, तो फिर बच्चे पोषित कैसे होंगे. कुपोषण और एक साल तक के बच्चों की सबसे ज्यादा मौतों की दर उत्तर प्रदेश में है, और यह भी साफ है कि ये मौतें केवल बेहतर खान-पान और सुविधाओं से ही रोकी जा सकती हैं.

अखिलेश यादव सरकार की लाख आलोचनाओं के परे यदि इन नए नतीजों को देखा जाए तो निश्चित तौर पर 10 साल पहले और अब की परिस्थितियों में फर्क तो आया है. हां, यह ज़रूर है कि उतना फर्क नहीं आया, जितना एक स्वस्थ राज्य में होना चाहिए. लेकिन काम तो उनका बोल ही रहा है. देखिए, संस्थागत प्रसव की संख्या पिछले सर्वे के 20 प्रतिशत से बढ़कर 67 प्रतिशत तक जा पहुंची. पहले जहां 22 प्रतिशत डॉक्टर-नर्स-मिडवाइफ प्रसव अटैंड करते थे, वह आंकड़ा बढ़कर अब 70 प्रतिशत तक जा पहुंचा है. 12 से 23 माह तक के बच्चों में ज़रूरी टीकाकरण 23 से बढ़कर 51 प्रतिशत हुआ है, इसमें अभी आधा काम योगीजी को करना बाकी है. बीसीजी का टीका भी 61 प्रतिशत से बढ़कर 87 प्रतिशत तक पहुंचा.

10 साल पहले 58 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह हो रहा था, जो घटकर 21 तक आ गया है. पहले 51 प्रतिशत लड़के बाल विवाहित थे, यह आंकड़ा भी घटकर 29 तक आया है. लेकिन बहुत-से संकेतक ऐसे भी हैं, जो अभी काम करने की बहुत मांग करते हैं. जैसे - महिलाओं में एनीमिया. तकरीबन 52 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी की शिकार हैं. 25 प्रतिशत महिलाओं का बॉडी मॉस इंडेक्स तयशुदा मानकों से कम है. केवल 12 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं ही आयरन फॉलिक एसिड की पूरी 100 गोलियां खाती हैं. जन्‍म के एक घंटे के अंदर शि‍शु को स्‍तनपान कराने के मामले में भी उत्तर प्रदेश सबसे पि‍छड़ा राज्‍य है. संस्‍थागत प्रसव बढ़ने के बाद भी यहां 25 फीसदी बच्‍चों को यह सबसे ज़रूरी खुराक नहीं मि‍ल पाती.

यह पूरा एक चक्र है जो एक महिला की शादी से लेकर उसके मां बनने तक चलता है, और इसकी कोई भी कड़ी कमजोर होने से बेहतर करने की कोशिश धरी की धरी रह जाती है. यूपी में सबसे ज्यादा बुरे हालात हैं. अब देखना यह होगा कि शाकाहार के रास्ते पर चल रही सरकार भरपूर शाकाहारी पोषण का सहज रास्ता क्या निकालती है...?

राकेश कुमार मालवीय एनएफआई के पूर्व फेलो हैं, और सामाजिक सरोकार के मसलों पर शोधरत हैं...

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