राहुल गांधी की नई कांग्रेस...

राजनीति के जानकारों का यह मानना है कि लखीमपुर में कांग्रेस का प्रदर्शन हाथरस या अन्य प्रदर्शनों से अलग है क्योंकि अभी तक होता था कि राहुल या प्रियंका या कभी दोनों ही होते थे विरोध में और बाकी पार्टी नदारद रहती थी. मगर इस बार पूरी कांग्रेस साथ दिखी.

Lakhimpur Kheri Violence: लखीमपुर खीरी में किसानों को कुचले जाने की घटना के बाद जिस ढंग ने कांग्रेस ने आंदोलन खड़ा किया या कहें जिस ढंग से विरोध प्रदर्शन किया उससे सभी चौंक गए. खासकर प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया, उसको लेकर कई बातें होने लगीं. राजनीति के जानकारों का यह मानना है कि लखीमपुर में कांग्रेस का प्रदर्शन हाथरस या अन्य प्रदर्शनों से अलग है क्योंकि अभी तक होता था कि राहुल या प्रियंका या कभी दोनों ही होते थे विरोध में और बाकी पार्टी नदारद रहती थी. मगर इस बार पूरी कांग्रेस साथ दिखी. प्रियंका को पुलिस ने सीतापुर में हिरासत में ले रखा था तो राहुल अपने दो मुख्यमंत्रियों के साथ लखनऊ हवाई अड्डा पर धरने पर बैठे थे. दूसरी तरफ सचिन पायलट मुराबाद में हिरासत में लिए गए. राहुल ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को अपने साथ हमेशा रखा. 

यही नहीं, महिला कांग्रेस, यूथ कांग्रेस, एनएसयूआई भी जगह जगह प्रदर्शन कर रही थी. अगले दिन पंजाब से नवजोत सिद्धू काफिला लेकर लखीमपुर के लिए निकल पड़े. यानी पूरी कांग्रेस ने इस बार जान झोंक दी और जानकार कहने लगे कि राहुल नई कांग्रेस बनाने में लगे हैं जहां उनके पसंद के नेताओं को जगह होगी. इस पूरे प्रदर्शन से G-23 के नेता एकदम गायब थे. मानो राहुल ने साफ कर दिया हो कि आपकी मुझे जरूरत नहीं है. अब इन G-23 नेताओं के पास कहने के लिए कुछ नहीं है सिवाय सोशल मीडिया पर किए गए कुछ ट्वीट के. हाल के दिनों में कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी का कांग्रेस में आना इसी ओर संकेत करता है. हालांकि इसकी शुरूआत पंजाब से हुई. पहले सिद्धू  को प्रदेश अध्यक्ष बनाना फिर दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाना, जिसे मास्टर स्ट्रोक कदम बताया जा रहा है.
 
यही नहीं, जिस ढंग से चन्नी को लखीमपुर प्रदर्शन में शामिल किया गया उससे साफ हो गया कि कांग्रेस उन्हें एक बड़े दलित नेता के तौर पर पेश करने वाली है, ठीक बूटा सिंह की तरह. फिर जब छत्तीसगढ़ और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने 50-50 लाख के मुआवजे का ऐलान किया तो लगा कि कांग्रेस इस बार गंभीरता और प्लानिंग के साथ मैदान में उतरी है. मगर राहुल गांधी को यहां तक पहुंचने में 3 साल लग गए. 2019 में हार के बाद उन्होंने इसकी जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था मगर बाकी लोग चुप रहे. खास कर उन राज्यों के मुख्यमंत्री या नेता जहां कांग्रेस ने खराब प्रदर्शन किया था. सत्ता किसे नहीं प्यारी होती है. फिर सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनना पड़ा और फिर वही सब शुरू हुआ जो राहुल नहीं चाहते थे. जैसे फलां नेता तो राजीव गांधी के दोस्त थे उनके साथ काम किया तो फलां नेता को इंदिरा जी राजनीति में लेकर आई थीं. फिर G-23 भी बन गया. 

कहा जाता है कि राहुल कमलनाथ, गहलोत और कैप्टन को मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में नहीं थे मगर सोनिया के सामने उनकी नहीं चली. मगर अब पंजाब में कैप्टन को हटाने की सहमति देकर लगता है सोनिया गांधी ने कांग्रेस की चाबी राहुल के हाथ में सौंप दी है और अब राहुल और प्रियंका एक साथ काम कर रहे हैं न कि दो पावर सेंटर की तरह और इसका सबूत लखीमपुर में किया गया कांग्रेस का प्रदर्शन है. यानी राहुल जिस कांग्रेस को दुबारा बना रहे हैं वहां उनकी जगह है जो जमीन पर उतर कर सरकार से लड़ने के लिए तैयार हैं, चाहे वो बघेल हों या चन्नी या पायलट तो दूसरी तरफ आंदोलन से निकल कर राजनीति में आने वाले कन्हैया, जिग्नेश या हार्दिक. यानी राहुल ने G-23 को संकेत दे दिया है कि नयी कांग्रेस की नींव पड़ चुकी है और साथ रहना है तो जमीन पर उतरिए वरना मैं तो ऐकला चलो रे कर ही रहा हूं.

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...

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