क्या किसी सहकारिता बैंक में पांच दिन के भीतर 750 करोड़ रुपये जमा हो सकते हैं, इनकी बदली हो सकती है. सही बात है कि इसका प्रमाणिक जवाब मेरे पास नहीं है फिर भी एक प्रयास कर सकते हैं जिसे आप कयास भी कह सकते हैं. क्या ऐसा हो सकता है कि पहले हम पता करें कि बैंकों में रखी नोट गिनने की मशीन एक घंटे में या 12 घंटे में कितने नोट गिन देती है. बैंकों में आम तौर पर कैशियर के पास नोट गिनने की एक ही मशीन होती है. आम तौर पर किसी शाखा में एक ही कैशियर होता है. तो वह कितने नोट उस मशीन से गिन सकता है?
इसका कोई सही पैमाना नहीं मिल पाया कि कोई मशीन एक घंटे में कितने नोट गिनती है. कुछ कैशियरों से बात की तो उन्होंने कहा कि एक नोट की गड्डी को गिनने में एक से दो मिनट का समय लगता है. पुराने नोटों की गड्डी होती है तो उसे फिर से सजाना पड़ता है, यानी सभी नोटों को एक दिशा में रखना पड़ता है और इधर-उधर से देखना पड़ता है, इसमें एक दो मिनट लग जाते हैं. एक गड्डी में 100 नोट होते हैं. नई गड्डी तो जल्दी गिन ली जाती है मगर पुराने नोटों की गड्डी में थोड़ा वक्त लग जाता है. हज़ार रुपये की एक गड्डी में एक लाख होते हैं. कैशियरों ने अलग-अलग रकम बताई. एक ने कहा कि एक ब्रांच में एक कैशियर होता है, वहां आप एक दिन में भी 10 करोड़ से ज्यादा नहीं गिन सकते. इस हिसाब से 5 दिन में 750 करोड़ रुपये को गिनना बहुत मुश्किल है. एक और कैशियर ने कहा कि मशीन से गिनने के लिए नए नोटों के पैकेट तैयार होने चाहिए लेकिन 750 करोड़ तीन से पांच दिनों में मुमकिन नहीं है. मैं अपनी स्पीड बहुत अच्छी मानता हूं फिर भी ये मेरे लिए संभव नहीं है. इस कैशियर ने बताया कि 10, 11, 12, 13 नवंबर 2016 को अपने चार साथी कैशियर लेकर हाई एफिशिएन्सी वाली मशीनों पर नोटों को गिना था तब चार लोग चार दिनों में मात्र 26 करोड़ ही गिन पाए थे. चारों ने सुबह 8 बजे से रात के 10 बजे तक गिनती की थी. इस लिहाज़ से नहीं लगता कि एक ब्रांच में इतने नोट जमा हो सके होंगे. कैशियरों की मानें तो हो ही नहीं सकते. कैशियर ने यह भी बताया कि सिर्फ गिनना ही नहीं होता है. 500, 1000 के हिसाब से खाते में फीड करना होता है. असली-नकली पहचानना होता है. उनका अलग-अलग पैकेट या बंडल बनाना होता है तो टाइम लग जाता है.
अब हम नहीं जानते हैं कि नोटबंदी के दौरान पांच दिनों में 750 करोड़ अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक के एक ब्रांच में जमा हुआ या फिर अलग-अलग ब्रांचों में. इसकी तीन ज़िलों में 190 ब्रांच हैं. अगर अलग-अलग ब्रांचों में जमा हुआ होगा तो हो सकता है. फिर जब ये पता चला कि 190 ब्रांच हैं तो हमने कुछ कैशियरों से बात की कि क्या 190 ब्रांच में 750 करोड़ पांच या छह दिन में जमा हो सकता है, तो उन्होंने जो हिसाब भेजा है वो मैं आपको बताना चाहता हूं.
750 करोड़ का मतलब है 1000 रुपये के 40,000 पैकेट और 500 रुपये के 80,000 पैकेट. इस तरह 500 और 1000 के करीब सवा लाख पैकेट होते हैं. सवा लाख पैकेट गिनने के लिए औसतन 500 से 800 कैशियर और इतनी ही मशीनें चाहिए. सहकारी बैंकों के पास इतनी सुविधा ही नहीं होती है. 190 ब्रांच के हिसाब से औसत 4 करोड़ प्रति ब्रांच होता है जो सहकारी बैंक में जमा मुमकिन नहीं है.
क्या अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक के पास 500 से 800 कैशियर हैं? नोट गिनने की इतनी मशीनें उस वक्त थीं? इस बैंक का विस्तार तीन ज़िलों में हैं क्या तीन ज़िलों में 500 कैशियर होंगे? कुछ अजीब नहीं लग रहा है आपको लेकिन दावे के साथ कुछ भी नहीं कह सकते क्योंकि ये सब तो जांच के बाद ही पता चल सकता है. वैसे कई कैशियरों से बात करने पर पता लगा कि एक नोट गिनने की मशीन लगातार भी काम करे तो तीन से चार घंटे के बाद टें बोल देती है. यानी गरम हो जाती है उसके बाद वो कम गिनने लगती है. काम रोकना होता है और मशीन के मेंटेनेंस वालों को बुलाना पड़ता है. यही नहीं जब कैशियर किसी से पैसे लेता है तो एक उपभोक्ता से बात भी करता है, उसे बताता है. इसलिए सारा काम एक से दो मिनट में नहीं हो सकता है.
नोट गिनने की मशीन के बारे में इसलिए बता रहा हूं क्योंकि 21 जून को बिजनेस स्टैंडर्ड, इकोनोमिक टाइम्स, मनीलाइफ डॉट इन, न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी वेबसाइट पर एक खबर छापी. मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय ने आरटीआई से जानकारी हासिल की है कि अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक में नोटबंदी के दौरान 8 से 14 नवंबर के बीच 745 करोड़ रुपये जमा हुआ. देश भर में सबसे ज्यादा पैसा इसी बैंक में जमा हुआ. अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक की वेबसाइट पर लिखा है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ही इसके अध्यक्ष हैं. सन 2000 से अध्यक्ष हैं. इसी के साथ राजकोट के ज़िला सहकारिता बैंक में भी 693 करोड़ रुपये जमा हुए हैं. जिसके चेयरमैन गुजरात सरकार के कैबिनेट मंत्री विट्ठलभाई रडाडिया हैं. आरटीआई कार्यकर्ता के हवाले से छपी खबरों में कहा गया है कि मनोरंजन राय को यह जानकारी नाबार्ड की तरफ से दी गई है. आरटीआई की सूचना में यह नहीं लिखा है कि इसमें असमान्य बात क्या है, क्यों उन्हें शक है कि इतने पैसे जमा हुए, मगर इस बैंक के अध्यक्ष अमित शाह हैं, इसलिए इस जानकारी को अलग तरीके से देखा गया कि पांच दिनों में 745 करोड़ यहां जमा हुए यानी बदले गए. लेकिन इस ख़बर का राजनीतिक आयाम अपने आप बड़ा हो गया.
हमारे सहयोगी और अन्य पत्रकारों ने भी दिन भर आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन राय से संपर्क करने का प्रयास किया. उन्होंने मुलाकात नहीं की और न बात की जबकि वे दिल्ली में ही थे. वे क्यों चुप हो गए और क्यों बात नहीं की, वही बेहतर बता सकते हैं. बाद में उन्होंने फोन बंद कर दिया लेकिन कहा कि ये मामला ऐसा नहीं है जैसा मीडिया दिखा रहा है. इधर स्क्रोल डॉट इन ने लिखा है कि कई वेबसाइट ने जो पहले ये खबर छापी थी उन्होंने हटा ली. इन न्यूज वेबसाइट ने यह ख़बर क्यों हटाई इसका विवरण स्क्रोल की रिपोर्ट में नहीं है. यह खबर सबसे पहले इंडो एशियन न्यूज़ सर्विस के हवाले से प्रकाशित हुई थी. जनता का रिपोर्टर और मनीलाइफ ने यह स्टोरी छापी है और नहीं हटाई है. बिजनेस स्टैंडर्ड, वायर, क्विंट और नेशनल हराल्ड में भी यह ख़बर छपी है. कुछ जगहों पर खबर तो छपी है मगर उसमें अमित शाह का नाम नहीं है. इस अर्थ में कि वे इस बैंक के चैयरमैन हैं जहां नोटबंदी के दौरान देशभर में सबसे अधिक पुराने नोट जमा हुए या बदले गए.
आरटीआई के हवाले से छपी खबर में कहीं नहीं लिखा है कि क्या गड़बड़ी हुई, मगर दो चीज़ें जिससे ये खबर बड़ी हुई वो ये कि पूरे देश में सबसे अधिक पुराने नोट यहां बदले गए और दूसरा इसके चेयरमैन बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस पर चुटकी लेते हुए ट्वीट कर दिया कि "अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक के निदेशक अमित शाह जी को बधाई. आपके बैंक को पुराने नोट को नए नोट में बदलने का पहला पुरस्कार प्राप्त हुआ है. 5 दिनों में 750 करोड़. नोटबंदी के कारण लाखों भारतीयों का जीवन बर्बाद हो गया. आपकी उपलब्धि को सलाम.''
हमने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का ट्विटर हैंडल देखा मगर वहां इस खबर से जुड़ी किसी किस्म की प्रतिक्रिया नहीं थी जबकि आम तौर पर बीजेपी के नेता राहुल गांधी के किसी भी आरोप या चुटकी पर जवाब देना नहीं भूलते हैं. बीजेपी के प्रवक्ताओं के ट्विटर हैंडल पर भी राहुल के इस बयान पर हमला नहीं किया गया जिसमें उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष को निशाना बनाया गया था. वैसे केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आज बकायदा प्रेस कांफ्रेंस भी की, अब हम दावे के साथ नहीं कह सकते कि वहां उनसे इस बारे में कोई सवाल पूछा गया या नहीं मगर जितना हम देख पाए उसमें उनसे ये सवाल नहीं किया गया था. क्या राजनीतिक पत्रकारों ने खुद से तय कर लिया कि ये कोई ख़बर नहीं है या फिर उनके ज़हन में किसी का ख़्याल आ गया. कई बार ऐसा भी होता है. वैसे रविशंकर प्रसाद ने साफ-साफ कह दिया कि उनकी प्रेस कांफ्रेंस कश्मीर पर दिए गए सिर्फ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद और सैफुद्दीन सोज़ के बयान पर है. फिर भी कोई सवाल तो कर ही सकता था. मगर नहीं किया. नहीं बोलने से और नहीं पूछने से मामला और संदेहास्पद हो जाता है. इससे बहेतर था कि बोलकर खंडन कर देना चाहिए था. कांग्रेस ने इस पर बकायदा प्रेस कांफ्रेंस भी की. पार्टी प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला आए और कहा कि बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर हम उपस्थित हुए हैं.
अच्छा होता कि आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन राय अपनी बात कहते, बीजेपी अपनी बात रखती तो बात आगे बढ़ती और बात समझ में भी आती, मगर कोपरेटिव बैंक में सबसे अधिक पैसा नोटबंदी के दौरान जमा हुआ इसमें चुप रहने वाली बात क्या है. अमित शाह अहमदाबाद कोआपरेटिव बैंक के अध्यक्ष आज से नहीं हैं, 2000 के साल से हैं. वैसे भारत सरकार ने कई बार कहा है कि नोटबंदी के दौरान कई खातों की जांच हो रही है जिनमें अस्वाभाविक रूप से रातोंरात करोड़ों जमा हो गए. सरकार के मंत्री ने खूब ज़ोरशोर से ये बात कही है, तो फिर यही बात अहमदबाद ज़िला कोआपरेटिव बैंक के बारे में भी कही जा सकती थी कि जांच होगी कि किन-किन खातों में कितना और किसका पैसा जमा हुआ है.
रणदीप सुरजेवाला ने सिर्फ दो बैंकों के बारे में नहीं बल्कि अमरेली के ज़िला सहकारिता बैंक के बारे में भी आरोप लगाया है कि वहां 205 करोड़ जमा हुए और इसके चैयरमैन बीजेपी के पूर्व सांसद हैं. भरुच के कोआपरेटिव बैंक में भी 100 करोड़ जमा हुए जिसके चेयरमैन बीजेपी विधायक हैं. महाराष्ट्र के उत्तर मुंबई से बीजेपी सांसद गोपाल शेट्टी ने कहा है कि कांग्रेस के पास काम नहीं है इसलिए पुराने मुद्दे उठाती रहती है.
उधर नाबार्ड ने कहा है कि दोनों ज़िला सहकारिता बैंकों में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है. इसी की तरफ से मनोरंजन राय को आरटीआई की सूचना दी गई थी. बिजनेस स्टैंडर्ड ने पीटीआई के हवाले से खबर छापी है. नाबार्ड ने कहा है कि अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक में प्रति खातेदार औसत जमाराशि 46, 795 रुपये हैं. जो कि गुजरात के 18 कोआपरेटिव बैंकों के औसत से कम है. नोटबंदी के दौरान एक लाख 60 हज़ार उपभोक्ताओं ने बैंक में 746 करोड़ जमा किए जो कुल जमा राशि का मात्र 15 प्रतिशत है.
नाबार्ड ने यह भी कहा कि अहमदाबाद ज़िला सहकारिता बैंक में देश की शीर्ष कोपरेटिव संस्था है जिसे हाल ही में श्रेष्ठ प्रदर्शन का पुरस्कार मिला है. तो आज जितना हुआ उतना आपके सामने है.
This Article is From Jun 22, 2018
750 करोड़ रुपये और बैंक कैशियरों की नोट गिनने की क्षमता का सवाल
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:जून 22, 2018 22:45 pm IST
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Published On जून 22, 2018 22:45 pm IST
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Last Updated On जून 22, 2018 22:45 pm IST
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