श्रीलंका मलेरिया से मुक्त हो गया है. मलेरिया मुक्त श्रीलंका की घोषणा महत्वपूर्ण है ऐतिहासिक नहीं क्योंकि दुनिया के कई देश मलेरिया से मुक्ति पा चुके हैं और 90 के करीब देश मुक्ती पाने के प्रयास में हैं या मुक्ति के नाम पर नियंत्रण कर रहे हैं. मलेरिया से श्रीलंका की मुक्ति पर बात होनी चाहिए क्योंकि मच्छरों से हम भी तो परेशान हैं. कई बार आप सोचते होंगे कि हम ऐसे विषयों पर बात क्यों नहीं करते. आज जो मुश्किल आई वो बताना चाहता हूं. हमारी नज़र में जिन भी लोगों के नाम आए उनसे संपर्क करते करते पूरा दिन निकल गया. जिन्होंने शानदार काम किये हैं वो अमेरिका चले गए. जो भारत में थे उनमें से कुछ को हिन्दी नहीं आती थी. जिन्हें हिन्दी आती थी उन्होंने दूसरे का नाम बताया तो दूसरे ने तीसरे का. जिन लोगों ने भारत के ही दूरदराज़ इलाके में काम किया है उन तक स्काइप ज़रिये पहुंचना जोखिम भरा काम है. तो इतना आसान नहीं है कि आप हिन्दी में मलेरिया पर जब चाहें बात कर लें. ये इसलिए बता रहा हूं कि सिर्फ चाहने से कुछ नहीं हो जाता. फिर भी आज मलेरिया पर बात करके रहूंगा.
भारत की राजधानी दिल्ली में मलेरिया से मौत की एक दुखद ख़बर सामने आई है. प्रवीण शर्मा 4 अगस्त के रोज़ सफदरजंग अस्पताल में भर्ती हुआ लेकिन बच नहीं सका. दिन भर बताया जाता रहा कि दिल्ली में पिछले पांच सालों में मलेरिया से यह पहली मौत है. फिर पता चला कि इसी जुलाई में एक और मौत हो चुकी है. दूरदराज़ के इलाकों का डेटा किस हाल में दर्ज होता होगा आप समझ सकते हैं. प्रवीण के भाई राजन शर्मा का कहना है कि 28 तारीख को मैक्स पटपड़गंज में मलेरिया का पता चला था. हालत बिगड़ी तो 3 अगस्त को सफदरजंग रेफर कर दिया गया जहां उसकी मौत हो गई.
मलेरिया से मौत पर हम क्यों चौकन्ने हुए. जांच से लेकर इलाज की तमाम आधुनिक सुविधा होने के बाद भी कोई इस बीमारी से मर जाए तो हमारे कान खड़े हो जाने चाहिए. सरकारी आंकड़ा है कि इस साल जुलाई तक भारत में करीब 4 लाख 71 हज़ार मलेरिया के मामले रिपोर्ट हुए हैं. 119 लोगों की मौत हुई है. भारत में जाने कब से मलेरिया से मुक्ति के प्रयास चल रहे हैं. बाकायदा विभाग है और कर्मचारी तैनात हैं और बजट भी है. अकेले दिल्ली में तीनों निगमों में चार हज़ार कर्मचारी इसके लिए तैनात किये गए हैं. इनका काम मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया से मुक्ति दिलाना है. कुल मिलाकर 78 करोड़ का सालाना बजट है.
देश के तमाम निगमों के संसाधन को जोड़ लें तो पता चलेगा कि मच्छरों के पीछे कितने लोग लगे हैं. मच्छरों से मुक्ति का अभियान सरकार भी समय समय पर चलाती है जिन पर हम समय समय पर ध्यान नहीं देते हैं. खुद भी मच्छर पैदा करने के हालात पैदा करते हैं और बाज़ार से क्रीम और क्वायल खरीद कर समझते हैं कि मच्छर हमारा क्या बिगाड़ लेगा. सोचिये ये मच्छर जब भारत सरकार से नहीं डरा तो आपके क्वायल से डरेगा. इनके कारण देश भर में तमाम तरह की बीमारियां फैल रही हैं फिर भी हम नहीं फैल रहे हैं. सामान्य होते जा रहे हैं. श्रीलंका ने मलेरिया से मुक्ति कैसे हासिल की. पहले इस कथा को सुनिये फिर बात करेंगे कि भारत में क्या दिक्कतें हैं. हम कहां तक सफल हुए हैं. हमारे सहयोगी परिमल ने बताया कि भारत को मलेरिया मुक्त होने में 2030 तक का वक्त लग जाएगा. डेंगू और चिकनगुनिया से मुक्ति कब मिलेगी पता नहीं.
आज से साठ साल पहले श्रीलंका पूरी दुनिया में मलेरिया से सबसे अधिक प्रभावित माना जाता था. पिछले साढ़े तीन साल में श्रीलंका में एक भी मलेरिया का मरीज़ नहीं हुआ है. श्रीलंका ने 1911 में एंटी मलेरिया कैंपेन शुरू किया था, उस दौरान हर साल मलेरिया के 15 लाख मामले दर्ज हुआ करते थे. श्रीलंका ने 1963 तक मलेरिया को करीब करीब खत्म ही कर दिया था जब सिर्फ 17 केस रिपोर्ट हुए. तब श्रीलंका ने इसका बजट कहीं और खपा दिया. और मच्छर फिर से लौटने लगे. फिर से पचास साल लग गए मलेरिया मुक्त होने में. श्रीलंका में भारत से चार गुना ज़्यादा बारिश होती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक नब्बे के दशक में श्रीलंका ने मलेरिया से निपटने की रणनीति बदली. इसमें मच्छर के अलावा मलेरिया के पैरासाइट यानी परजीवी को भी निशाना बनाया गया. आम ज़ुबान में हम समझे कि हम मच्छरों को भगाने के लिए फोगिंग करने लगते हैं. लेकिन पैरासाइट को निशाना बनाने का मतलब है मच्छर के भीतर जो मलेरिया के तत्व हैं उन्हें खत्म करना. श्रीलंका ने मलेरिया से निपटने के लिए इंटरनेट का इस्तमाल किया. हर तरह के बुखार के मरीज़ का मलेरिया के लिए भी टेस्ट किया गया और हर केस स्वास्थय मंत्रालय के एंटी मलेरिया मुहिम को नोटिफाई किया गया. इसका एक राष्ट्रीय डेटा तैयार किया गया. मलेरिया ग्रसित मुल्कों में यात्रा करने वालों की पहचान की गई. उन पर निगरानी रखी गई. शांति मिशन पर दूसरे मुल्कों पर गए सेना के लोगों का भी टेस्ट किया गया. मलेरिया की दवाइयां सिर्फ एंटी मलेरिया कैंपेन के पास ही मौजूद थी, इसके कारण मजबूरन प्राइवेट हेल्थ सेंटर को भी बताना पड़ा कि उनके यहां मलेरिया का मरीज़ है. एंटी मलेरिया कैंपेन ने 24 घंटे की एक हॉटलाइन चलाई. बीमारी को फैलने से बचाने के लिए मरीज़ों का अलग से ईलाज किया.
श्रीलंका कैबिनेट का फैसला है कि मलेरिया मुक्ति अभियान को हर साल दस फीसदी अधिक बजट मिलेगा और मिलता है. इस पूरे मामले में दो शब्दों का ज़िक्र आएगा. वेक्टर और पारासाइट. वेक्टर का मतलब जो वाहक होता है. जो ढोता है. वेक्टर का मतलब मच्छर हुआ. फीमेल एनोफिलेस मच्छर. पैरासाइट प्लासमोडियम इस मच्छर के अंदर होता है और जब मच्छर काटता है तो वो पैरासाइट इंसान में जाकर मलेरिया जैसी बीमारी को जन्म देता है. श्रीलंका के अभियान ने इस पलासमोडियम पैरासाइट का इलाज करने का सोचा. यानी इस पर अटैक किया. 1999 के बाद से मलेरिया के मरीज़ों में तेज़ी से गिरावट आने लगी और 2008 तक तो हर साल सिर्फ 1000 केस ही रिपोर्ट होते रहे. सड़कों की सफाई पर खास ध्यान रखा गया. पानी जमा नहीं होने दिया गया ताकि मच्छर न पनपें. ग्रामीण इलाकों में इलाज मुहैया कराने के लिए मोबाइल मलेरिया क्लीनिक्स बनाए गए.
भारत ने भी इसी तरह पोलियो से मुक्ति पा ली थी. पोलियो मुक्ति अभियान भी कम शानदार नहीं है. कभी वक्त निकालकर इस अभियान की डिटेल पढ़ियेगा फिर पता चलेगा कि कैसे एक नियत समय पर पोलियो की दवा लेकर कोई आपके दरवाज़े पर आकर खड़ा हो जाता है. एक ऐसे मौसम में जब भारत में लोग डेंगू चिकनगुनिया से कराह रहे हैं, श्रीलंका से मलेरिया मुक्ति की यह ख़बर हमारे भीतर भी सपनों को जगाती है. तो सोचा कि बात करते हैं. पूरी दुनिया में 320 करोड़ लोग मलेरिया के खतरे के बीच रहते हैं. पूरी दुनिया में मुक्ति अभियान चल रहे हैं. 2015 में मलेरिया से दुनिया भर में 4 लाख लोगों की मौत हुई है. 21 करोड़ मलेरिया के मामले सामने आए हैं.
संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को, मालदीव, आर्मिनिया, तुर्कमेनिस्तान जैसे कई देश हैं जिन्होंने पिछले सात आठ सालों में मलेरिया से मुक्ति पाई है. WHO का टारगेट है कि 2030 तक 35 देशों को मलेरिया फ्री करने का. जिसमें भारत और इंडोनेशिया भी शामिल हैं. WHO का कहना है कि अगले 15 साल तक फंडिग को तिगुना करना पड़ेगा अगर ये टारगेट पूरा करना चाहते हैं तो. भारत सरकार ने भी इस साल फरवरी में 2030 तक मलेरिया से मुक्ति का लक्ष्य लिया है. उस दौरान हैदराबाद के फ्रीलांस पत्रकार विवेकानंद नेमाना और उनके साथ लोगों के पैसे से चलने वाले WNYC रेडियो के लिए काम करने वाली पत्रकार अंकिता राव ने हिन्दू और अलजज़ीरा डॉट काम के लिए लंबा और पठनीय लेख लिखा है. दोनों के इस रिसर्च को पाठकों ने फंड किया था. आप दर्शकों के फंड से अब बहुत सी वेबसाइट चल रही हैं जहां न्यूज़ चैनलों से अच्छा काम हो रहा है. बहरहाल विवेकानंद और अंकिता ने भारत में मलेरिया उन्मूलन से संबंधित तमाम आंकड़ों का गहराई से अध्ययन कर बताया है कि 2014 में मलेरिया नियंत्रण के बजट का 90 फीसदी हिस्सा प्रशासनिक कार्यों में ही खर्च हो गया. दवा, मच्छरदानी और छिड़काव के लिए 10 प्रतिशत ही बजट बचा. जबकि इस बीमारी से भारत की अर्थव्यवस्था को हर साल करीब 13000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. आदिवासी इलाकों में मलेरिया का भयानक आतंक है.
विवेकानंद और अंकिता राव का कहना है कि किसी को पुख्ता तौर पर पता नहीं है कि मलेरिया से हर साल कितनी मौतें होती हैं. 2015 में मलेरिया से मरने वालों का सरकारी आंकड़ा 300 है जबकि ब्रिटेन का प्रतिष्ठित हेल्थ जर्नल लांसेट का अनुमान है कि भारत में हर साल 50,000 लोग मलेरिया से मर जाते हैं. मलेरिया से होने वाली हर मौत की रिपोर्टिंग होती ही हो इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है. बहुत लोग अस्पताल पहुंचने से पहले ही बुखार से मर जाते हैं. दोनों लेखकों ने यह भी बताया था कि दवा युक्त मच्छरदानी बांटने का लक्ष्य था कि 25 करोड़ लोगों में बांटेंगे लेकिन एक प्रतिशत लोगों में भी नहीं बंटा. दोनों के लेख में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि मलेरिया से मुक्ति पर ज़ोर होना चाहिए. ये अर्जेंट मामला है लेकिन महज़ घोषणा से कुछ हासिल नहीं होगा.
This Article is From Sep 06, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : भारत मलेरिया मुक्त क्यों नहीं बन पाया?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 06, 2016 22:06 pm IST
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Published On सितंबर 06, 2016 22:06 pm IST
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Last Updated On सितंबर 06, 2016 22:06 pm IST
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