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This Article is From Jul 25, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : बाल मजदूरी संशोधन बिल पर अवाम में चर्चा आम क्यों नहीं?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 25, 2016 21:37 pm IST
    • Published On जुलाई 25, 2016 21:31 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 25, 2016 21:37 pm IST
19 जुलाई को राज्यसभा में एक बिल पास हुआ है, The Child Labour (Prohibition and Regulation) Amendment बिल 2016। जब भी बच्चों की मजदूरी से संबंधित कानून बनाने की बात होती है, बहाने बहुत से याद आने लगते हैं। सन 1986 में जब संसद ने कानून बनाया कि 18 साल से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी नहीं कराई जा सकती है तब भी यह सवाल उठा था कि गरीब परिवारों के लिए मुश्किल हो जाएगी। दूसरी तरफ यह भी कहने वाले लोग होते हैं कि ऐसा करने से बचपन छिन जाता है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों को पढ़ने-खाने की सुविधा दे और उनसे मजदूरी कराने की नौबत न आए। साल 2012 में भी इसमें कुछ ढील दी गई और 2016 में कहा जा रहा है कि इस कानून को नरम बना दिया गया है। क्या वाकई ऐसा हुआ है?

बाल सुधार संशोधन बिल 14 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी तरह के उद्यम या नौकरी में रखने के खिलाफ है। लेकिन 14 से 18 साल तक के बच्चों को non-hazardous यानी जिनमें कोई खतरा न हो, वहां मजदूरी करने की इजाजत है। यह बच्चे परिवार के कारोबार जैसे राशन की दुकान वगैरह में काम कर सकते हैं लेकिन किसी केमिकल फैक्टरी में नहीं।

श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने इसे पेश किया और पास हो गया। इस बिल को लोकसभा में पेश किया जाना है। इस बिल के अनुसार 14 से 18 साल के बच्चे को किशोर माना गया है। बच्चा वह है जिसकी उम्र 14 साल से कम है। इस उम्र के बच्चे को 2009 के कानून के अनुसार मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने की जिम्मेदारी सरकार की है। नया बिल कहता है कि कोई भी बच्चा किसी काम में नहीं लगाया जाएगा। लेकिन जब बालक अपने परिवार या परिवार के रोजगार में मदद कर रहा हो, स्कूल के बाद के खाली समय में या छुट्टियों में और रोजगार खतरनाक नहीं है तो यह कानून लागू नहीं होगा। अगर बच्चा टीवी, फिल्म, विज्ञापन आदि में कलाकार के रूप में काम करता है तो कानून लागू नहीं होगा। यह सुनिश्चित करना होगा कि यह सब करते हुए स्कूल की पढ़ाई प्रभावित न हो।

केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारू दत्तात्रेय का कहना है कि पारिवारिक कारोबार में मालिक-मजदूर का संबंध नहीं होता है। 14 साल के नीचे के बच्चों को एक अपवाद में मौका दिया जा रहा है। माता-पिता के लिए वह अपवाद हैं। यही नहीं खतरनाक उद्योगों की संख्या 83 से घटाकर 3 कर दी गई है। अब सिर्फ खदान, ज्वलनशील पदार्थ और विस्फोटक उद्योग को ही खतरनाक माना गया है। ज़री, चूड़ी बाजार, कपड़ों की दुकान या कारखाने में बच्चे काम कर सकते हैं। नए बिल में सजा का प्रावधान सख्त किया गया है।

बाल श्रम के मामलों में अब कम से कम 6 महीने से लेकर 2 साल तक की सजा होगी। जुर्माने की राशि 20,000 से लेकर 50,000 कर दी गई है। अगर मां-बाप ने काम की इजाजत नहीं दी है तो उन्हें सजा नहीं मिलेगी। मां-बाप या संरक्षक एक बार से ज्यादा अपराध करते हैं तो उन पर 10,000 रुपए का जुर्माना लग सकता है।

जबकि संसदीय समिति ने कुछ और ही सुझाव दिए थे जिनमें से कई अहम सुझावों को बिल में शामिल नहीं किया गया है। 13 दिसंबर 2013 को श्रम व रोजगार संबंधित संसदीय समिति ने अपनी चालीसवीं रिपोर्ट में कहा था...
  • बच्चों द्वारा स्कूल के घंटों के बाद अपने परिवार की मदद करने का प्रावधान बिल से हटाया जाना चाहिए।
  • जोखिम वाले काम की परिभाषा में उन कार्य को भी शामिल किया जाए जो किशोरों के स्वास्थ्य सुरक्षा और नैतिकता को नुकसान पहुंचाते हैं।
  • किशोरों को किसी भी रोजगार में कार्यरत होने से पहले अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करनी चाहिए।
  • जिला मजिस्ट्रेट के बजाय स्थानीय सासंदों के नेतृत्व वाली सतर्कता और निरीक्षण कमेटियों को बाल श्रम एक्ट के कार्यान्वयन की समीक्षा का कार्य सौंपा जाना चाहिए।

बिल के सेक्शन 17 में जोड़ा गया है कि सरकार अपनी शक्तियां और कतर्व्य जिलाधिकारी को दे सकती है। जिला अधिकारी यह देखेगा कि इस कानून के प्रावधान ठीक से लागू होते हैं या नहीं। जिला अधिकारी चाहे तो अपने मातहत को यह पावर दे सकता है। क्या यह पर्याप्त है? 14 साल से कम के बच्चों को बाल श्रम से मुक्त किया गया है। क्या 14 साल से 18 साल के बच्चों को खतरनाक उद्योगों से मुक्त किया गया है? खतरनाक उद्योग ही नहीं होते, कई जगह उद्योग खतरनाक नहीं हो सकता है मगर काम करने की स्थिति खतरनाक हो सकती है। क्या इसके बारे में कोई स्पष्टता है? बाल श्रम दुनिया भर में एक अहम मुद्दा है। इसके नाम पर बच्चों के साथ क्या-क्या नहीं होता है और उनसे क्या-क्या नहीं कराया जाता है। बाल श्रमिक का मामला कम मजदूरी में ज्यादा काम कराने का भी है। यह बच्चे की अपनी मजबूरी हो सकती है मगर उससे ज्यादा उद्योगों के लिए जरूरी हो जाता है। बाल मजदूरी के खिलाफ समय-समय पर अभियान चलते रहते हैं। अब एक बिल पास हुआ है तो उसे लेकर जश्न क्यों नहीं है? आवाम में चर्चा आम क्यों नहीं है?

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