नमस्कार मैं रवीश कुमार। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में नसबंदी के दौरान 13 महिलाओं की मौत के मामले में अब जवाबदेही कैसे तय हो। स्वास्थ्य मंत्री के इस्तीफे से तय हो, स्वास्थ्य सचिव के तबादले से, स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक के तबादले से तय हो, चार डाक्टरों को सस्पेंड करने से तय हो या एक डॉक्टर की गिरफ्तारी से। यह इन बातों पर निर्भर करता है कि ऐसे ही मामलों में बीजेपी ने दूसरे राज्यों में क्या किया था। पहले इस्तीफा मांगा था, जांच रिपोर्ट का इंतज़ार किया था। वैसे यह भी देखिये कि इस्तीफा मांगने से हुआ भी क्या। फिर भी सबसे अलग होने का दावा करने वाली छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार ने जो कदम उठाए हैं क्या वो पर्याप्त हैं।
नरेंद्र मोदी की सरकार काम न करने पर अपने मंत्रियों के विभाग बदल देने का दावा करती है, लेकिन उन्हीं की पार्टी के मुख्यमंत्री आज जब रायपुर के अपोलो अस्पताल में भर्ती महिलाओं को देखने पहुंचे तो साथ में स्वास्थ्य मंत्री ब्रजमोहन अग्रवाल को भी लेकर गए। क्या वो ये संदेश दे रहे थे कि स्वास्थ्य मंत्री का कुछ नहीं हो सकता। रमन सिंह पहले भी बयान दे चुके हैं कि नसबंदी डॉक्टर करता है स्वास्थ्य मंत्री इसलिए मंत्री को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं।
जबकि नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री से बातकर चिंता जताई थी कि गहराई से जांच हो और कार्रवाई सुनिश्चित हो। क्या रमन सिंह उस चिन्ता पर खरे उतर रहे हैं। पत्रकार पूछते रहे और वे जांच की बात करते रहे। क्या कि इस वक्त जान बचाना प्राथमिकता है लेकिन एक बार भी नहीं कहा कि इसकी जवाबदेही स्वास्थ्य मंत्री की भी बनती है। अपोलो अस्पताल में 24 महिलाएं भर्ती हैं और 60 महिलाएं अलग-अलग अस्पतालों में। कई महिलाएं वेंटिलेटर पर हैं और कुछ की हालत बहुत गंभीर है।
राजनीति सिर्फ इस्तीफे पर फोकस करेगी लेकिन यह घटना पूरे सिस्टम पर सवाल उठाती है। जिस जगह पर ऑपरेशन के लिए कैंप लगा वो भी अपने आप में किसी घोटाले से कम नहीं है।
हमारे सहयोगी सिद्दार्थ ने बुधवार को वहां दौरा किया था। उन्होंने बताया कि आठ महीने से यह अस्पताल बंद है। महीनों से ऑपरेशन थिएटर काम नहीं कर रहा था, जंग लगे बिस्तर भी दिखा। सिद्धार्थ की इन तस्वीरों को देखकर आप सहज समझ सकते हैं कि इसके लिए तो स्वास्थ्य मंत्री की जवाबदेही बनती ही है। ऑनलाइन हो चुके सरकारों के इस दौर में ऐसे अस्पताल में ऑपरेशन हुए तो वे उनका कहीं तो डेटा फीड हुआ होगा। आज के इंडियन एक्सप्रेस में आशुतोष भारद्वाज और अबंतिका घोष ने इसी अस्पताल की रिपोर्ट लिखी है। अस्पताल के प्रबंधकों ने इन्हें बताया कि उन्हें तो पता ही नहीं कि वहां कैंप लगा था। किसी ने उनसे पूछा तक नहीं थी। जबकि रिकॉर्ड बताते हैं कि जुलाई और सितंबर महीने में डॉक्टर गुप्ता यहां दो कैंप लगा चुके हैं। तो क्या प्रशासन ने वहां ताले तोड़़ कर कैंप लगवाए। यह वो पहलु है जो इस कांड में शामिल डॉक्टरों के तबादले से ज्यादा बड़ी जवाबदेही की मांग करते हैं। बंद पड़े इस अस्पताल में कई बार शिविर का साबित कर सकता है कि लापरवाही का एक पैटर्न रहा होगा। जिसमें डॉक्टरों के अलावा और भी शामिल होंगे।
नसबंदी ऑपरेशन की प्रकि्रया के दौरान गड़बड़ी से मौत हुई या जो दवा दी गई उससे ये तो जांच से पता चलेगा। रायपुर में हमारे सूत्रों ने बताया कि एक दवा की भूमिका सामने आ रही है। हो सकता है वो नकली हो। सरकार ने छह दवायें प्रतिबंधित भी की हैं। कुछ लोग दवाओं के ट्रायल की भी आशंका व्यक्त कर रहेहैं। जिन महिलाओं की मौत हुई है वो बेहद साधारण घरों की हैं। वो अपनी व्यथा बताने में इतनी दक्ष भी नहीं कि सोशल मीडिया के पन्नों को हैशटैग से भर दें। कोई भी डॉक्टर एक दिन में दस से ज्यादा नसबंदी नहीं कर सकता।
लेकिन, जिस डॉक्टर आरके गुप्ता को गिरफ्तार किया गया है उन्होंने यहां एक दिन में 83 नसबंदी कर डाली। वो भी पूरे दिन में नहीं बल्कि सिर्फ पांच घंटे में। एक ऑपरेशन में पांच मिनट से भी कम लगाया। अब जब आप इसकी कल्पना करेंगे तो समझ पायेंगे कि फेसबुक और ट्वीटर से बाहर का गरीब आदमी किस तरह सिस्टम का शिकार हो जाता है। कायदे से एक दिन में तीस से ज्यादा ऑपरेशन नहीं होने चाहिए। दस ऑपरेशन के बाद लैप्रोस्कोप को स्टरलाइज़ किया जाता है। ऑपरेशन के सामानों को इंफेक्शन यानी संक्रमण से बचाने के लिए स्टरलाइज करना बेहद ज़रूरी होता है। एक उपकरण को स्टरलाइज करने में आधे घंटे का समय लग जाता है। अगर ये बातें पूरी तरह सही हैं तो इस हिसाब से 83 ऑपरेशन हो ही नहीं सकता था। तो क्या बिना स्टरलाइज़ेशन के ही ऑपरेशन होते रहे।
हमारे सहयोगी ने बताया कि सरकार ने जांच के लिए कुछ दवाओं को लैब में भेजा है। जिसकी रिपोर्ट आने में पंद्रह दिनों का वक्त लग सकता है। कुल मिलाकर न्यायिक जांच की रिपोर्ट जल्दी नहीं आने वाली। जब से हमने किसी भी सरकार की उपलब्धियों को प्रतिशत के आंकड़ों को गिनना शुरू कर दिया है तब से कामयाबी और नाकामी की ऐसी डिटेल पब्लिक के दिमाग से गायब हो गई है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने 2013−14 के लिए टारगेट तय किया था कि 165000 महिलाओं की और 26000 पुरुषों की नसंबदी की जाएगी। चिकित्सा विज्ञान कहता है कि पुरुषों की नसबंदी आसान है मगर औरतों को बराबरी की बात करने वाली पार्टियों की सरकारें इस मामले में भी औरतों के साथ बेइमानी कर जाती हैं। छत्तीसगढ़ में ही दो साल पहले मोतियाबिंद के शिविर में कई लोगों की आंखें चली गईं। क्या कार्रवाई हुई इसकी जानकारी मुझे नहीं है। कहा जा रहा है कि जंग लगे उपकरणों का इस्तमाल हुआ तो ऐसे उपकरण किसी अस्पताल में है ही कैसे। वो भी रमन सिंह के छत्तीसगढ़ में।
यहां तक की बैगा जनजाति की दो महिलाओं की भी नसबंदी कर दी जिनकी नसबंदी पर केंद्र सरकार ने 1998 से प्रतिबंध लगा रखा है। यह तो और भी सीरीयस मामला है। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य मंत्री के इस्तीफे की मांग पर कहते हैं कि न्यायिक जांच का इंतज़ार कीजिए तो डॉक्टर आरके गुप्ता को ही क्यों गिरफ्तार किया गया। वो भी जांच से पहले। 50000 ऑपरेशन करने का रिकॉर्ड बना चुके डॉक्टर गुप्ता के बयान भी सरकार पर सवाल उठा रहे हैं। उन्होंने कहा है कि उनकी कोई गलती नहीं हैं।
मुझ पर लक्ष्य पूरा करने का दबाव डाला गया था। मेरे साथ मेरे सीनियर भी थे। मैं ऑपरेशन में पूरी तरह दक्ष हूं। हमने मरीज़ों को टैबलेट दी थी जो टेंडर के बाद अस्तपालों को मिलती हैं। मेरा काम ऑपरेशन करना है। मुझे बलि का बकरा बनाया जा रहा है, ताकि प्रशासन को नुकसान न हो।
टेंडर से दवाएं आती हैं तो टेंडर किस राजनीतिक दल के ठेकेदार को मिलता होगा। आरके गुप्ता के बयान के बाद कि प्रशासन को बचाने के लिए गिरफ्तार किया है, क्या यह नैतिक रूप से उचित नहीं होता कि स्वास्थ्य मंत्री से लेकर नीचे तक के अधिकारी को बर्खास्त किया जाए।
(प्राइम टाइम इंट्रो)