प्राइम टाइम इंट्रो : वित्त वर्ष बदलने का फायदा कितना?

प्राइम टाइम इंट्रो : वित्त वर्ष बदलने का फायदा कितना?

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

कई फैसले ऐसे होते हैं जो सुनने में बहुत अच्छे होते हैं, लगता है कि हां ये तो ठीक ही है बल्कि बढ़िया है. लेकिन क्या उन फैसलों से फायदा भी उतना ही होता है जितना सुनने में लगते हैं. भारत में 150 साल से बजट एक अप्रैल से शुरू होता रहा है. इसे ब्रिटिश परंपरा के तौर पर पेश किया जा रहा है. अब सरकार एक जनवरी से नया वित्त वर्ष बनाना चाहती है और केंद्र के इस फैसले के साथ मध्य प्रदेश भी जुड़ गया है. आंध्र प्रदेश ने भी हामी भर दी है. तो एक होड़ सी होने वाली है, इसलिए ज़रूरी है कि हम इस फैसले के बारे में भी विचार करें. कहीं यह बदलाव देखने सुनने में ही तो अच्छा नहीं है या इसके वाकई ऐसे क्रांतिकारी लाभ होने वाले हैं जिनका अंदाज़ा बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों को भी नहीं होने वाला है. नोटबंदी के समय भी यही कहा कि दर्द अभी का है, फायदा देर से मिलेगा मगर लंबा मिलेगा. क्या अंग्रेज़ी कैलेंडर के हिसाब से वित्त वर्ष का पालन करना सही है. 1582 में पोप ग्रेगरी ने एक जनवरी से चलने वाले कैलेंडर की शुरुआत की थी. भारत में भी अनेक कैलेंडर हैं और नये साल को लेकर हम अलग अलग महीनों में जश्न मनाते हैं, अपने बहीखातों की सफाई धुलाई करते हैं.

गुजरात में अक्टूबर नवंबर में जब भी दीवाली होती है, नया वर्ष मनाते हैं, इसी दौरान लोग नए बहीखाते रखते हैं और पुराने को समेट देते हैं. बेस्तु बरस कहते हैं. बंगाल में नया साल पोइला बैसाख को शुरू होता है जो 13, 14 या 15 अप्रैल को पड़ता है. वहां के व्यापारी इस दिन नया बहीखाता ख़रीदते हैं. महाराष्ट्र में मार्च अप्रैल में गुड़ी पड़वा मनाया जाता है. पंजाब में 13 अप्रैल को बैसाखी पड़ती है, इस दिन वहां के व्यापारी नया बहीखाता अपनाते हैं. कमाल यह है कि सरकारी वित्त वर्ष का पालन करते हुए हमारे व्यापारियों ने कभी भारतीय परंपरा को नहीं छोड़ा. बल्कि इन दिनों एक अप्रैल को नव संवत्सर मनाने की परंपरा तेज़ हुई है. इस दिन को एक जनवरी वाले हैप्पी न्यू ईयर के मुकाबले लोकप्रिय बनया जा रहा है. राजा विक्रम ने इसकी बुनियाद डाली थी. हम इसे विक्रम संवत कहते हैं. आधाकिरिक रूप में भारत में शक कैलेंडर को मान्यता दी गई है. इसके अनुसार शक 1939 चल रहा है लेकिन कई संगठन विक्रमी संवत को प्रचारित करने में लगे रहते हैं. इस वक्त विक्रमी संवत 2074 चल रहा है. विक्रमी संवत मार्च अप्रैल में पड़ने वाली चैत शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से शुरू होता है. इस साल यह तिथि 28 मार्च को पड़ी थी. तारीख भले न तय हो लेकिन एक अप्रैल से शुरू होने वाला बजट भारतीय पंरपरा के काफी करीब है. इस तारीख को हमेशा ब्रिटिश परंपरा के चश्मे से ही क्यों देखा जाता रहा है. हमने इसे ही भारतीय क्यों नहीं माना जो भारत जैसे कृषि प्रधान देश की सामाजिक परंपराओं के बिल्कुल क़रीब है. पश्चिमी कैलेंडर से शुरू होने वाला नया साल आधी रात से आता है, जबकि प्रतिपदा का नया साल सूर्योदय से शुरू होता है. हैरानी की बात है कि भारतीय पंरपराओं पर ज़ोर देने वाली सरकार ग्रेगेरियन कैलेंडर के हिसाब से वित्त वर्ष क्यों अपना रही है. अप्रैल से शुरू होने वाला बजट परंपरा और खेती के सीज़न के अनुकूल भी है. इसे ब्रिटिश परंपरा के चश्मे से ही क्यों देखा गया.

मगर सरकार ने इतना बड़ा फैसला परंपराओं के हिसाब तो नहीं किया होगा बल्कि आर्थिक नफा नुकसान का ही ख़्याल रखा गया होगा. तर्क दिया जा रहा है कि एक अप्रैल से लेकर अगले साल 31 मार्च तक के वित्त वर्ष से उतना फायदा नहीं हो रहा था जितना होना चाहिए. क्या हम ठीक ठीक जानते हैं कि ये उतना या इतना कितना है. आज इस संदर्भ में इंडियन एक्सप्रेस में शाजी विक्रमन
और हिन्दुस्तान अख़बार में हरजिंदर ने लेख लिखा है. इन दोनों अलग अलग लेखकों के लेख से लगा कि इस फैसले का कोई खास फायदा नहीं है. कहा जा रहा है कि अच्छा और व्यावहारिक फैसला है मगर यह देखने सुनने में ही ठीक लगता है, इससे इतना लाभ नहीं होने वाला जितना बताया जा रहा है. सपनों और कुंठाओं के देश अमेरिका का केंद्रीय वित्त वर्ष एक अक्टूबर से शुरू होता है. अमेरिकी राज्यों के वित्त वर्ष अलग अलग तारीख़ों से शुरू होते हैं. रूस और चीन का वित्त वर्ष एक जनवरी से शुरू होता है. ब्राज़ील, फ्रांस, ग्रीस का वित्त वर्ष एक जनवरी से होता है. कई देश हैं जिनका वित्त वर्ष एक जनवरी से नहीं होता है. कई देश ऐसे हैं जिनके वित्त वर्ष जुलाई से शुरू होते हैं और कुछ के अप्रैल से. यानी पूरी दुनिया में एक जनवरी से वित्त वर्ष शुरू होने का कोई सर्वमान्य पैटर्न नहीं है.
ईजिप्ट, बांग्लादेश, ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्‍तान का वित्त वर्ष एक जुलाई से शुरू होता है. दक्षिण अफ्रीका, हांग कांग, ब्रिटेन और कनाडा का वित्त वर्ष एक अप्रैल से शुरू होता है.

आप कह सकते हैं कि ज़्यादा देशों का वित्त वर्ष एक जनवरी से शुरू होता है. अप्रैल-मार्च, जुलाई-जून और सिंतबर-अगस्त भी वित्त वर्ष के रूप में देखे जाते हैं. एक जनवरी से शुरू होने वाले वित्त वर्ष का एक लाभ तो दिखता है कि मार्च लूट समाप्त हो जाएगी मगर क्या पता दिसंबर लूट का चलन शुरू हो जाए. भारत में 1950 के दशक से ही वित्त वर्ष जनवरी-दिसबंर करने की मांग उठती रही है मगर इस पर कोई ठोस फैसला नहीं हो सका. कई कमेटियों ने रिपोर्ट दी है मगर कुछ हुआ नहीं. मोदी सरकार ने शंकर आचार्या कमेटी भी बनाई थी. अब यह साफ नहीं है कि उस कमेटी के हिसाब से फैसला हो रहा है या फैसला हो चुका है. सरकारी लेखा जोखा पर स्वतंत्र रूप से नज़र रखने के लिए एक संवैधानिक संस्था है जिसे हम सीएजी के नाम से जानते हैं. संविधान के अनुच्छेद 150 के अनुसार संघ के और राज्यों के लेखाओं को ऐसे प्रारूप में रखा जाएगा जो राष्ट्रपति भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक की सलाह के अनुरूप हो.

हम नहीं जानते हैं कि लेखा जेखा का जो प्रारूप है, फार्मेट है उसमें नियंत्रक महालेखापरीक्षक यानी सीएजी की कितनी राय या सहमति है. अनुच्छेद में तारीख का ज़िक्र तो नहीं है. सरकार सिर्फ तारीख बदलने की बात कर रही है. फार्मेट बदलने की नहीं. 7 अप्रैल 2017 के बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी ख़बर के अनुसार वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि हम वित्त वर्ष बदलने की रिपोर्ट का अध्ययन कर रहे हैं. दुनिया का वित्त वर्ष अपने मुल्क की ज़रूरतों के अनुसार होता है, हम पुरानी ब्रिटिश पंरपरा का अनुसरण कर रहे हैं.

वित्त मंत्री जेटली शंकर अय्यर कमेटी के संदर्भ में यह बात कर रहे थे, जिसे इसके बारे में अध्ययन करने का काम दिया गया है. यानी 7 अप्रैल तक तो नए वित्त वर्ष के बारे में केंद्र ने फैसला नहीं किया था. 23 अप्रैल रविवार के दिन दिल्ली में नीति आयोग की गर्वनिंग काउंसिल की बैठक हुई. इस बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए नया वित्त वर्ष अपनाने पर ज़ोर दिया था. मीडिया की रिपोर्ट से तो नहीं लगता कि सरकार ने अभी तक जनवरी-दिसंबर वित्त वर्ष के बारे में फैसला कर लिया. तो आप स्वाभाविक है कि जिज्ञासा होगी कि केंद्र से पहले मध्य प्रदेश ने कैसे फैसला कर लिया. क्या मध्य प्रदेश ने भी किसी कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर फैसला किया है. केंद्र सरकार चाहती ज़रूर है कि अप्रैल-मार्च की जगह जनवरी-दिसंबर से वित्त वर्ष शुरू हो लेकिन उसके फैसले से पहले मध्य प्रदेश का यह फैसला काफी रोचक और उत्साहवर्धक लगता है.


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