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This Article is From Feb 01, 2018

प्राइम टाइम इंट्रो : आम बजट में आम आदमी को क्या मिला?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    February 01, 2018 22:13 IST
    • Published On February 01, 2018 22:13 IST
    • Last Updated On February 01, 2018 22:13 IST
मोदी सरकार का पांचवा बजट पेश हो गया. आप इस और पहले के सभी बजट को सामने रखते हुए 2014 के बाद आई सरकार की आर्थिक नीतियों, प्रगतियों और नतीजों का मूल्यांकन कर सकते हैं. बताया जाता है कि मिडिल क्लास खुश नहीं है क्योंकि टैक्स में छूट नहीं मिली, शेयर मार्केट से कमाई पर टैक्स लगेगा. बहुत से लोग हिन्दू बिजनेस लाइन की खबर शेयर कर रहे हैं, 20 अप्रैल 2014 की, तब विपक्ष के नेता के तौर पर अरुण जेटली ने मांग की थी कि आयकर सीमा दो लाख से बढ़ाकर पांच लाख कर देनी चाहिए. यानी जिसकी कमाई सालाना पांच लाख हो उसी से टैक्स लेने की शुरुआत हो. हर बजट में मिडिल क्लास उस स्टोरी को पढ़ता है और फिर भूल जाता है. मोदी सरकार के पांचवे बजट के साथ यह स्टोरी एक्सपायर हो गई. इस पांच साल में तो अरुण जेटली ऐसा नहीं कर पाए. विपक्ष में उनके जाने के आसार नहीं लगते, इसलिए अब जेटली भी इस मांग को लेकर लेख नहीं लिख पाएंगे.

मिडिल क्लास में भी भांति-भांति के लोग हैं. उनका टैक्स नहीं घटा तो क्या हुआ मगर वे खुशी-खुशी गांवों के लिए राज़ी हैं. बहुत से हैं जो दुखी हैं कि हमारा नहीं हुआ, उसका हो गया.. चलता रहता है. टैक्स राष्ट्रवाद चलाने निकले मिडिल क्लास को समझना चाहिए कि आपका टैक्स आपका नहीं होता है. आप देते हैं व्यक्तिगत रूप से मगर सरकार के पास पहुंचकर वह सामूहिक रूप से जनता का हो जाता है. क्या कहते हैं, देश का हो जाता है. जो टैक्स नहीं देता है उसका भी होता है. टैक्स राष्ट्रवाद की नासमझी में अंग्रेज़ी चैनलों के सामने अपने कई साल बर्बाद कर चुके मिडिल क्लास के लिए लिटरेचर फेस्टिवल की कमी नहीं है. उसमें राष्ट्रवाद की अच्छी किताबें मिलती हैं. बात-बात पर टाई सरकाते हुए, 'व्हेयर इज़ माइ टैक्स मनी' पूछने वाले एंकर आज बहुत खुश होंगे, बता रहे होंगे. गोदी मीडिया में बदल चुके इन एंकरों के पास कोई चारा भी नहीं बचा होगा, स्वागत करने के. कोई अगर खुश नहीं है तो इसका मतलब है कि मार सब पर बराबर पड़ी है. कोई खुश है तो इसका मतलब है कि आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक. सुपर पावर इंडिया के बजट में सबको हेडलाइन के लिए बीमा ही मिला है. वित्त मंत्री अरुण जेटली के अनुसार 2014-15 में 6.47 करोड़ करदाता थे. 2016-17 में 8.27 करोड़ करदाता हो गए. नौकरीपेशा वालों को भले ही टैक्स छूट में कोई लाभ नहीं मिला है लेकिन इस बजट में एक दिलचस्प आकंड़ा मिला जिससे पता चलता है कि नौकरी पेशा वाले बिजनेसमैन से ज़्यादा टैक्स देते हैं.

2016-17 में 1.89 करोड़ वेतनभोगी व्यक्तियों ने एक लाख 44 हज़ार करोड़ टैक्स जमा किया है. औसत निकालेंगे तो एक आदमी ने 76,306 रुपये टैक्स जमा किया है. 1.88 करोड़ बिजनेसमैन और व्यक्तिगत बिजनेसमैन ने 48,000 करोड़ का कर भुगतान किया है. इस तबके का औसत बनता है 25, 753 रुपये जो नौकरीपेशा करदाताओं से काफी कम है.

जीएसटी के बारे में वित्त मंत्री ने कहा कि इसको सरल बनाने वे करदाता भी इससे जुड़े जिनकी ज़रूरत नहीं थी. मगर दर्शाया गया टर्नओवर उत्साहवर्धक नहीं हैं. वित्त मंत्री के ही ये शब्द हैं कि 2017-18 के अनुसार व्यक्तिगत कर दाताओं और 17.99 लाख रुपये के कम औसत टर्न ओवर वाले हिन्दू अविवाहित परिवार और फर्मों से 44.72 लाख विवरणियां, यानी रिटर्न प्राप्त हुई है जिनका औसत कर भुगतान मात्र 7000 रुपए है.

संख्या के हिसाब से 44 लाख रिटर्न सुनने में बड़ा लग सकता है मगर इसका प्रति व्यक्ति रिटर्न मात्र 7000 ही है. वित्त मंत्री ने कहा है कि व्यावसायियों द्वारा बेहतर कर अनुपालन आचरण प्रदर्शित नहीं किया जा रहा है, यानी वे कर चोरी कर रहे हैं जिसे वित्त मंत्री ने शिष्ट शब्दों में कहा है कि बेहतर अनुपालन नहीं किया जा रहा है. क्या जीएसटी के आने के बाद भी व्यापारियों की टैक्स चोरी या हेरफेर संभव है. एनजीओ और ट्रस्ट के लिए सरकार ने एक उपाय यह किया है कि वे मात्र 10000 ही नगद खर्च कर पाएंगे. उससे ज़्यादा नगद खर्च करने की अनुमति नहीं होगी. ये वो जानकारियां हैं जो कर लाभ या अन्य सूचनाओं के बीच रह जाती हैं.

अब आते हैं खेती-किसानी पर. वित्त मंत्री ने इस बजट में किसानों को लागत से डेढ़ गुना ज़्यादा दाम देने को सैद्धांतिक रूप से स्वीकार किया है. इस सवाल को लेकर विपक्ष और किसान नेता काफी घेरा करते हैं. वित्त मंत्री के मुताबिक रबी की अधिकांश घोषित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत से कम से कम डेढ़ गुना तय किया जा चुका है. अब हमने बची हुई अधिघोषित फसलों के लिए इस संकल्प को एक सिद्धांत की तरह लागू करने का फैसला किया है. मुझे यह घोषणा करते हुए अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है कि तय किए गए सिद्धांत के अनुसार सरकार ने आगामी खरीफ से सभी अधिघोषित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य उत्पादन लागत के कम से कम डेढ़ गुना करने का फैसला लिया है.

क्या वाकई रबी की फसलों के लिए लागत का डेढ़ गुना तय किया जा चुका है. रबी की फसल में गेहूं, जौ, चना, मसूर, तोरी, सरसों की उपज आती है. कृषि मंत्रालय के तहत आने वाले कृषि लागत व मूल्य आयोग की वेबसाइट पर हमने जाकर देखा कि इन अनाजों की उत्पादन लागत कितनी है और सरकार उसके बदले डेढ़ गुना दाम दे रही है या नहीं. वेबसाइट पर आर्थिक लागत और उत्पादन लागत नाम से दो कैटगरी हैं. आर्थिक लागत हुआ कोल्ड स्टोरेज का खर्चा, वितरण का खर्चा, बाज़ार शुल्क, कमीशन वगैरह. उत्पादन लागत में खाद, बीज और मज़दूरी होती है. स्वामिनाथन आयोग के अनुसार इसमें ज़मीन का भाड़ा भी शामिल होता है. इस हिसाब से तो किसानों को कुछ भी नहीं मिलता है. सरकार ने 2018-19 के लिए गेहूं के लिए 1735 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है.

मार्केटिंग सीज़न 2018-19 के लिए गेहूं की उत्पादन लागत है 1256 रुपये प्रति क्विंटल. इस लागत का डेढ़ गुना करने पर 1884 रुपया होना चाहिए, जबकि है 1735. आर्थिक लागत के हिसाब से जोड़ें तो 2345 रुपये प्रति क्विंटल होता है. इस हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य होता है 3517 रुपये प्रति क्विंटल मगर ऐलान हुआ है 1735 रुपये. तो आपने देखा कि कृषि लागत व मूल्य आयोग के दोनों पैमानों के अनुसार लागत का डेढ़ गुना नहीं मिल रहा है. आर्थिक लागत के हिसाब से तो लागत से बहुत कम भाव दिया जा रहा है. गेहूं के अलावा चना का भाव 4400 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि उत्पादन लागत है 3526 रुपये. उत्पादन लागत का डेढ़ गुना करेंगे तो 5289 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए. चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य लेकिन तय हुआ है कि 4400 रुपया. फिर से बता दें कि ये सारी जानकारी कृषि लागत व मूल्य आयोग की वेबसाइट से ली है. यह संस्था कृषि मंत्रालय के अधीन आती है.

खरीफ की फसल का टाइम अभी नहीं आया है. रबी की फसल का टाइम आ ही रहा है. मार्च-अप्रैल में गेहूं कटने लगेगा तब पता चलेगा कि सरकार लागत का डेढ़ गुना देती है या नहीं. फिलहाल कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं है. क्या किसानों को प्रति क्विंटल गेहूं का दाम 3517 रुपये मिलेगा? हम बस इतना बता रहे हैं कि सरकार ने अभी तक डेढ़ गुना कभी नहीं दिया है. 2017-18 के लिए 1625 रुपये प्रति क्विंटल ही तय हुआ है. देखते हैं 3750 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिलता है या नहीं, कुछ ही दिनों की बात है. अभी छह प्रतिशत किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है. वित्त मंत्री ने कहा है सभी को मिले इसलिए नीति आयोग केंद्र और राज्य सरकारों के बीच चर्चा होगी. लेकिन मंत्री नरेंद्र तोमर ने कहा है कि एमएसपी देने की व्यवस्था सही नहीं है.

आलू-प्याज़ और टमामटर के किसानों को नुकसान से बचाने के लिए 500 करोड़ ऑपरेशन ग्रीन्स नाम की योजना बनाई गई है जो इन फसलों के किसानों को व्यावसायिक प्रबंधन अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेगी. पिछले साल उत्तर प्रदेश में जब योगी सरकार आई थी तब ऐलान किया गया था कि सरकार आलू किसानों से 487 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से एक लाख मीट्रिक टन आलू खरीदेगी. यह कुछ भी नहीं है. पिछले साल ही यूपी में 160 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन हुआ था. 160 लाख मीट्रिक टन का एक लाख मीट्रिक टन खरीदने का ऐलान कुछ भी नहीं था मगर फिर भी किसानों को उम्मीद हुई कि कुछ तो मिलेगा. दिसंबर आते-आते आलू किसान अपना आलू सड़कों पर फेंकने लगे. आलू किसानों का कहना था कि लागत से बहुत कम दाम मिल रहा है. उन्हें एक पैसे का लाभ नहीं है जबकि कोल्ड स्टोरेज का किराया लेकर 900 से 1000 प्रति क्विंटल की लागत आ जाती है. मीडिया की खबरों से पता चलता है कि यूपी सरकार ने एक लाख टन आलू खरीदने का वादा किया था, मगर कहीं भी खरीदे जाने का आंकड़ा नहीं मिला. क्विंट की एक रिपोर्ट के अनुसार 1300 क्विटंल आलू खरीदा गया था. आगरा ज़िले के आलू किसान विकास समिति के अध्यक्ष राजवीर लवानिया तो कहते हैं कि आगरा से नौ क्विंटल खरीदा गया. यूपी में लाखों टन आलू का उत्पादन होता है, इसका एक लाख मीट्रिक टन कुछ भी नहीं है. हम अपनी तरफ से इन आंकड़ों की पुष्टि नहीं कर रहे हैं लेकिन राजवीर ने कहा यूपी सरकार ने उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की अध्यक्षता में एक समिति बनाई है जो आलू का भाव निर्धारित करेगी. आलू के किसान 1000 से 1500 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मांग रहे हैं.

किसानों को उपज का दाम कितना मिलेगा, यह आने वाले दिनों में साफ होगा, फिलहाल ऐसा कोई आंकड़ा नहीं है जिससे पता चलता हो कि रबी की उपज की कीमत लागत से डेढ़ गुना देने का फैसला किया गया है. किसानों को इस साल कर्ज़ के लिए 11 लाख करोड़ उपलब्ध होंगे. सरकार ने एक बड़ा फैसला यह लिया है कि बंटाई किसानों के लिए भी लोन उपलब्ध हो. इसके लिए नीति आयोग राज्य सरकारों से बात कर एक तंत्र बनाएगा. तंत्र क्या होगा, कब तक बनेगा इसका उल्लेख नहीं है. सरकार का दावा है कि छह करोड़ शौचालयों का निर्माण हो चुका है, गांवों में दो करोड़ और शौचालयों का निर्माण कराया जाएगा.

अब आते हैं आज के बजट की एक बड़ी घोषणा पर. सरकार ने कहा है कि 10 करोड़ ग़रीब परिवारों को पांच लाख रुपये का बीमा देगी. दस करोड़ से अधिक ग़रीब और कमजोर परिवारों को दायरे में लाने के लिए एक फ्लैगशिप राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना प्रारम्भ करेंगे. इसके तहत दूसरी और तीसरी श्रेणी के अस्पतालों में भरती होने के लिए प्रति परिवार पांच लाख रुपये प्रति वर्ष तक का कवरेज प्रदान किया जाएगा. यह विश्व का सबसे बड़ा सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य देखरेख कार्यक्रम होगा.

इस वक्त मोदी सरकार की कई योजनाओं में बीमा का प्रावधान है. प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना भी है. दो लाख तक का बीमा है. 12 रुपये सालाना प्रीमियम देना होता है. फिर इसके अलावा प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना भी है, 330 रुपये का सालाना प्रीमियम होगा. बीमा धारक की मौत के बाद दो लाख रुपये दिए जाने का प्रावधान है. प्रधानमंत्री जन धन योजना, मिनिमम बैलेंस रहित बैंक बचत खाता, रूपे एटीएम-डेबिट कार्ड,  जीवन और दुर्घटना बीमा एक लाख और 30,000 का है. इसके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना पहले से चल रही है. बीमारी या सर्जरी के लिए 50,000 रुपये का बीमा मिलता है जिसका प्रीमियम साल का 700 से 800 रुपये देना पड़ता है. पांच लाख बीमा का प्रीमियम कितना होगा, कौन देगा. विक्रम चंदरा ने राजस्व सचिव हंसमुख आधिया से पूछा तो उन्होंने कहा कि जब बड़े पैमाने पर बीमा होगा तो प्रीमियम कम हो जाएगा. आधिया ने कहा कि इसका 60 फीसदी हिस्सा सेंटर देगा और 40 फीसदी हिस्सा राज्य देंगे.  इस योजना का मॉडल क्या होगा, सब कुछ तय करके लांच करने में अक्टूबर आ जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि हो सकता है कि इस पूरे साल के लिए यह बीमा उपलब्ध न हो मगर सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है. वित्त मंत्री के साथ प्रेस वार्ता में भी यह सवाल आया था.

प्रीमियम के सवाल का जवाब अभी नहीं मिल रहा है. आपने देखा कि पचास हज़ार के स्वास्थ्य बीमा के लिए 700-800 का प्रीमियम लगता है. अगर अपोलो म्यूनिख के चार लोगों के परिवार के लिए पांच लाख कैशलेश बीमा कराएं तो 18 प्रतिशत जीएसटी मिलाकर प्रीमियम हो जाता है 17,391 रुपये. नेशनल इंश्योरेंस का प्रीमियम होगा 13,000 रुपये तक. एक अनुमानित राशि है ये. सरकार जब नीति बनाएगी तभी साफ होगा कि इसका बजट क्या होगा. कुल स्वास्थ्य बजट ही 52000 करोड़ का है, जो बहुत नहीं है.

डाउन टू अर्थ के कुंदन पांडे ने इस पर एक लेख लिखा है, बजट के तुरंत बाद. कुंदन का कहना है कि क्या यह कोई नई योजना है. 2015-16 के बजट में वित्त मंत्री ने इसी तरह कहा था कि एक लाख का बीमा परिवारों को मिलेगा. 15 अगस्त 2016 को प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में भी शामिल किया था. अभी तक यह प्रस्ताव नवंबर 2016 से कैबिनेट के पास पड़ा है. प्राइवेट अस्पतालों ने इस फैसले का दिल खोलकर स्वागत किया है. ज़ाहिर है उनकी कमाई होगी. हर तीन संसदीय क्षेत्र पर एक अस्पताल भी बनाने का ऐलान किया गया है. डेढ़ लाख स्वास्थ्य आरोग्य केंद्र बनाने की बात हुई है. क्या यह मोहल्ला क्लिनिक का मॉडल होगा, देखना होगा. इसके अलावा वित्त मंत्री ने कहा है कि 4, 46 गंगा ग्रामों को, जो नदी के किनारे बसे हैं, खुले में शौच से मुक्त किया जा चुका है, तो आप इसे खुद भी चेक कर सकते हैं. इनकम टैक्स में कोई कटौती नहीं हुई है पर इसका मतलब यह नहीं कि इस बजट में कुछ नहीं है. बहुत कुछ है पढ़ने के लिए. 76 प्रतिशत अगर महिलाओं को मुदरा लोन मिल रहा है तो इसका ज़मीन पर क्या असर है. रिपोर्टिंग तो बंद हो चुकी है, पता नहीं. कहीं ऐसा न हो कि बड़ा बदलाव नज़रों से छूट जाए या फिर बदलाव के नाम पर दावा करने वाले आंकड़ों पर हम आंख मूंदकर यूं ही यकीन कर लें. सरकारी नौकरी के रोज़गार को लेकर कुछ भी नहीं कहा गया, मगर ये ज़रूर कहा गया कि ग्रुप सी और डी में इंटरव्यू खत्म कर देने से समय बचा है. काश यही बता दिया जाता कि एक-एक भरती की प्रक्रिया पूरी होने में जो दो से तीन साल लग रहे हैं उसमें इंटरव्यू हटाकर कितना ही समय बच जाता है.

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