मुद्दा तो दोनों है। रोहिता वेमुला और जेएनयू में लगे नारे का। बीजेपी के नेता विपक्ष को बार-बार जेएनयू के नारों पर लाकर घेरते रहे लेकिन केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को छोड़ दें तो बीजेपी के नेताओं ने या तो रोहित वेमुला के मसले की कम चर्चा की या छोड़ ही दिया। राज्यसभा में वित्त मंत्री जेटली, गुलाम नबी आज़ाद और सीताराम येचुरी का भाषण, विपक्ष ने भी कम से कम सीधे सवाल किये और सरकार ने भी जवाब दिया। वित्त मंत्री जेटली ने लोकसभा में तृणमूल के सोगातो राय की तरह बारीकियों का इस्तमाल करते हुए जेएनयू में बर्बादी के नारों को लेकर कांग्रेस और विपक्ष को घेरते रहे, खासकर कांग्रेस की सीमा को टेस्ट करते रहे कि क्या वो अति वामपंथ के समर्थन के हद तक भी जा सकती है। सीपीएम नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि अति वामपंथ से सबसे अधिक उनकी पार्टी ने संघर्ष किया है उतना किसी ने नहीं किया है।
कांग्रेस की तरफ से गुलाम नबी आज़ाद सवालों को लेकर मुखर रहे। वेमुला मामले से लेकर वकीलों की हिंसा, उनके खिलाफ कार्रवाई में हुई देरी को लेकर सवाल किया और ज्योतिरादित्य सिंधिया के कमज़ोर भाषण की भरपाई की। जेटली ने राज्यसभा में भारत की बर्बादी के नारों को अपने तर्कों के केंद्र में रखा। कहा कि इन बयानों की निंदा या दूरी बना लेने से ही विपक्ष बच नहीं सकता। जेटली ने पीडीपी को लेकर साफ किया कि कश्मीर की मुख्यधारा की पार्टी से समझौता करना किसी भी राष्ट्रीय दल की मजबूरी है और राष्ट्रहित में है, इसे लेकर शर्मिंदा होने की ज़रूरत नहीं है। विपक्ष पूछने से चूक गया कि बीजेपी अफज़ल का समर्थन करने वाली पीडीपी और जेएनयू में नारे लगाने वाले कुछ लड़कों में कैसे फर्क करती है। अफज़ल को लेकर इतनी बहस हुई लेकिन पीडीपी चुपचाप रह गई। क्या ये अपने आप में संकेत नहीं है कि पीडीपी की राय अब बदल गई होगी। येचुरी ने जेएनयू में पुलिस एक्शन को लेकर सवाल किये तो जेटली ने कहा कि भारत को तोड़ने के नारे लगेंगे तो पुलिस क्या देखती रहेगी। क्या ये पूरा जवाब है, क्या विपक्ष ने पलटकर पूछा। जब उमर खालिद लौट कर आया तो पुलिस क्यों इंतज़ार करती रही। येचुरी ने न्यूयॉर्क टाइम्स के संपादकीय को पढ़कर सुनाया जिसमें कहा गया है कि भारत में हिंसक टकराव हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके राजनीतिक सहयोगी असहमतियों को कुचल रहे हैं। वकील और बीजेपी समर्थक भारत माता और देशद्रोही भारत छोड़ो के नारे लगा रहे हैं। पत्रकारों और छात्रों पर हमला हो रहा है।
वैसे येचुरी भारतीय अखबारों और चैनलों को कोट करते तो पता चलता कि कौन चुप है, कौन उलझन में हैं और कौन मुखर, कौन संपूर्ण समर्थन में है। दावा तो नहीं कर सकता पर सुना है कि जब प्रधानमंत्री अमेरिका दौरे पर गए थे तो वहां के बड़े अख़बारों ने पहले पन्ने पर जगह भी नहीं दी। वहीं जब ओबामा जी भारत आते हैं तो पहला पन्ना तो छोड़िये नेता पत्रकार सब ओबामा बन जाते हैं। लेकिन जब हम उनकी तारीफ पर चहकते हैं तो आलोचना पर क्यों न सहमें। सीताराम येचुरी का भाषण राष्ट्रवाद, बहुलतावाद, संविधानवाद को समझने में मदद तो कर रहा था लेकिन जेटली और बीजेपी के नेताओं की इसमें दिलचस्पी नहीं थी। वो लेक्चर सुनने नहीं आए थे, पूछने आए थे कि भारत की बर्बादी के नारे क्यों लगे। पर यह नहीं पता चला कि नारे लगाने वाले कौन लोग थे। जेएनयू के थे या बाहर के या वो जो पकड़े गए वो नारे लगा रहे थे। इस पर सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया।
स्मृति ईरानी के भाषण की खूब चर्चा हो रही है। आक्रामकता और भावुकता किसी भी राजनेता का अचूक हथियार है और इसका इस्तेमाल सब करते हैं। पर क्या स्मृति अपनी ललकार और हुंकार में केंद्रीय मंत्री होने की गरिमा से आगे निकल गईं या उन्होंने भाषण कला का एक नया मुकाम कायम किया है। क्या उनके भाव में सत्ता का गुरूर भी झलका कि उनकी हर बात ही सत्य है तथ्य है। गुस्सा और क्रोध में फर्क होता है। रोहित को चाइल्ड कहती रहीं जबकि वो 28 साल का नौजवान था। फिर भी जिस बच्चे की मौत पर आहत वो गरज़ रही थीं ठीक उसी समय के आस पास रोहित की याद में कैंडल मार्च निकालने वाले कुछ समर्थकों और रोहित की मां को दिल्ली पुलिस ने थाने में बिठा लिया था। अगर स्मृति ईरानी मां होने के अधिकार से बात कर रही थीं तो क्या उनका अधिकार रोहित की मां से बड़ा था जिसके बेटे की मौत पर लोकसभा में बहस हो रही थी। मायावती को बेशक ललकारा जा सकता है मगर नीचे उंगली दिखाकर और सर कटाने की बात क्या अति नाटकीय नहीं है। क्या बात ग़लत निकलने पर नेता सर तक कटा लेंगे। यह सब सवाल हम तब कर रहे हैं जब उनका भाषण काफी लोकप्रिय हुआ है। उन्हीं के फेसबुक पर 14 लाख से अधिक लोगों ने देखा है और हमारी अपनी साइट पर आठ लाख से अधिक। अन्य जगहों पर भी बेहिसाब सुना जा रहा है। भारतीय भाषण पंरपरा के लिहाज़ से उस भाषण में बहा ले जाने के सारे तत्व मौजूद थे। इससे असहमत नहीं हुआ जा सकता लेकिन जो उन्होंने कहा क्या उन बातों से असहमत हुआ जा सकता है। जब हम सब स्मृति ईरानी के भाषण के उफान में बह रहे थे उसी वक्त कोलकाता का अंग्रेजी अखबार दि टेलिग्राफ और इंडियन एक्सप्रेस तथ्यों की जांच कर रहे थे। टेलिग्राफ का फ्रंट पेज इन दिनों काफी चर्चा में रहता है मगर स्मृति ईरानी को आंटी नेशनल कहना बहुत लोगों को पसंद नहीं आया। खूब आलोचना हो रही है, बचाव भी किया जा रहा है। कोई इसे स्त्री विरोधी बता रहा है तो कोई कह रहा है कि एंटी नेशनल की तुकबंदी में आंटी नेशनल लिखा गया है।
क्या स्मृति ईरानी को उनके विरोधी हमेशा उनके अभिनय के दौर के फ्रेम में ही देखते हैं और कमतर समझते हैं। अगर ऐसा है तो यह एक किस्म का तिरस्कार है और हो सकता है कि ईरानी का आक्रोश इसका प्रतिकार भी हो। लेकिन क्या यह भी हो सकता है कि स्मृति ईरानी को बेवजह ही ऐसा लगता है और वे इसके बहाने प्रतिकार के अतिरेक में बह जाती हैं। लोकसभा में स्मृति ईरानी ने तेलंगाना पुलिस का बयान पढ़ा कि जब वो यूनिवर्सिटी गई तो कमरा खुला पाया, पार्थिव शरीर उतार कर बिस्तर पर रखा हुआ था। हाथ से लिखा हुआ सुसाइड नोट था जिसमें किसी पर आरोप नहीं था। फिर केसीआर की पार्टी के सांसद से बहस होती है और वे आगे कहती हैं कि किसी ने बच्चे के करीब डॉक्टर को नहीं जाने दिया। पुलिस ने रिपोर्ट किया है कि बच्चे को पुनर्जीवित या बचाने का एक भी प्रयास नहीं हुआ। उसे डॉक्टर तक ले जाने का एक भी प्रयास नहीं हुआ। साढ़े छह बजे सुबह तक पुलिस को वहां पहुंचने नहीं दिया गया। उसके शव को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया। ये सब तेलंगाना पुलिस कह रही है।
प्रधानमंत्री ने स्मृति के भाषण को ट्वीट किया है और लिखा है कि सत्यमेव जयते। पर जब हमारी सहयोगी उमा सुधीर ने उस डॉक्टर से बात की तो एक और सत्य सामने आ गया लेकिन इस भाषण के बाद रोहित वेमुला के दोस्त ज़िलारुल्लाह निशा ने एक वीडियो दिया है। इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि घटनास्थल पर पुलिस के साथ डॉक्टर भी हैं। दावा किया जा रहा है कि पता चलते ही पुलिस और डॉक्टर को बुलाया गया और कमरे में रोहित के शव को दोनों की मौजूदगी में पंखे से उतार कर बिस्तर पर रखा गया। हमारी सहयोगी उमा सुधीर ने बताया कि यह सही है कि वेमुला के शव को सुबह साढ़े छह बजे हटाया गया। तेलंगाना पुलिस भी अपनी रिपोर्ट में यही कहती है कि पुलिस कमरे में चली तो गई थी मगर शव को अगली सुबह तक हटाने नहीं दिया गया। लेकिन स्मृति ईरानी ने कहा कि किसी भी डॉक्टर को उसे देखने की अनुमति नहीं दी गई। किसी ने बच्चे के रिवाइव यानी बचाने का प्रयास नहीं किया। जबकि उमा सुधीर से डॉक्टर राजश्री ने कहा कि वह हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी की चीफ मेडिकल अफसर हैं। उन्हें जैसे ही बुलाया गया वे चार मिनट में पहुंच गईं। उनके सामने शव को उतारा गया और जब चेक किया, कोई धड़कन नहीं बची थी। उन्होंने ने ही 17 जनवरी को साढ़े सात बजे रोहित वेमुला को मृत घोषित किया था। उसे बचाया नहीं जा सकता था।
डॉक्टर राजश्री ने एनडीटीवी की संवाददाता उमा सुधीर से कहा कि उन्होंने पुलिस को भी यही बयान दिया था और वीसी को भी यही कहा था पर पता नहीं पुलिस की रिपोर्ट में यह सब क्यों नहीं है। तेलंगाना पुलिस अब नहीं बोल रही है। पुलिस का बयान ज़रूरी है क्योंकि केंद्रीय मंत्री ने पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर ही कहा। अब जब उनकी बात को चुनौती दी जा रही है, ये कैसे मान लिया जाए कि केंद्रीय मंत्री सदन में जो कह रही थीं वो तथ्य ही थे या वहीं अंतिम तथ्य थे। केंद्रीय मंत्री ईरानी ने राज्यसभा में भी जवाब दिया मगर लोकसभा की तरह आक्रामक नहीं थी। लोकसभा में कहा कि राजनीति नहीं होनी चाहिए, राज्यसभा में रोहित के उस फेसबुक पोस्ट को पढ़ने लगीं जिसमें उसने मार्क्सवाद की आलोचना की थी। दरअसल अंबेडकर फोरम तो बीएसपी की भी आलोचना करता है क्या इसके सहारे उसकी मौत की परिस्थितियां बनाने में प्रशासनिक चूक की कोई भूमिका है या नहीं इस पर कुछ साफ नहीं हुआ। हो सकता है जो जांच चल रही है, उससे हो। राज्यसभा में स्मृति ईरानी जब जवाब दे रही थी तब काफी नोंकझोंक हुई। सीताराम येचुरी ने कहा भी कि मंत्री डांटती हुई लग रही हैं तो मंत्री ने खंडन किया। काफी नोंकझोंक के बाद उनका जवाब पूरा नहीं हुआ है और गुरुवार सुबह तक के लिए सदन स्थगित हो गया।
This Article is From Feb 25, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : स्मृति ईरानी का भाषण चर्चा में, पर उठ रहे सवाल
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 25, 2016 21:42 pm IST
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Published On फ़रवरी 25, 2016 21:33 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 25, 2016 21:42 pm IST
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