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This Article is From Jan 20, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : दलित छात्र की खुदकुशी पर स्मृति ईरानी की सफाई

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 20, 2016 22:18 pm IST
    • Published On जनवरी 20, 2016 21:40 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 20, 2016 22:18 pm IST
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुले की आत्महत्या के मामले में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ने अपना पक्ष रखा। बुधवार की प्रेस कांफ्रेंस में उनके साथ तीन अन्य मंत्री भी आए मगर उन्होंने कुछ नहीं बोला न ही किसी पत्रकार ने अन्य मंत्रियों से कोई सवाल किया। प्रेस कांफ्रेंस में स्मृति ईरानी ने जिस आक्रामकता और मजबूती से अपना पक्ष और तथ्य रखा उससे लगा तो नहीं कि उनके साथ बाकी मंत्रियों की मौजूदगी भी जरूरी थी लेकिन खैर यह सरकार का अपना फैसला रहा होगा। शायद अन्य मंत्रियों की मौजूदगी से सरकार यह जाहिर करना चाहती होगी कि वह रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले में बेहद गंभीर है।

वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री निर्मला सीतारमण, सामाजिक न्याय आधिकारिता राज्य मंत्री विजय सांपला, सामाजिक न्याय आधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत के साथ मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस को संबोधित किया। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ने अपनी प्रस्तावना से लेकर हर सवाल के जवाब में इस बात पर जोर दिया कि इस मामले में भावनाओं को भड़काने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। किया जा रहा है इसलिए वे मजबूर हुई हैं कि अपनी तरफ से सिर्फ तथ्यों को सामने रखें। उन्होंने बार-बार चेतावनी के लहजे में और तथ्यों के लहजे में कहा कि यह मामला दलित बनाम गैर दलित का नहीं है, जैसा कि पेश करने की कोशिश हो रही है। उन्होंने मीडिया के कुछ हिस्से की तरफ इशारा किया कि उनकी बहसों से भावनाओं को भड़काने का प्रयास हो रहा है और इसे दलित बनाम गैर दलित बनाया जा रहा है। वैसे रोहित के दलित होने का सवाल हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भी उठा रहे हैं, अंबेडकर स्टूंडेंट एसोसिएशन के सदस्य और निलंबित छात्र भी उठा रहे हैं। कई तरह के दलित छात्र संगठन और नेता भी दलित होने के पक्ष को सामने ला रहे हैं। बेशक मीडिया में भी रोहित वेमुले को दलित लिखा गया और बोला गया। लेकिन क्या रोहित के दलित होने के पक्ष को इसलिए उभारा गया कि वह एक दलित भर था, क्या रोहित की आत्महत्या की परिस्थितियां एक दलित छात्र की विशिष्ट परिस्थिति का सवाल खड़ा नहीं करती है। 18 दिसंबर के वीसी के लिखे अपने पत्र में रोहित वेमुले ने भी दलित स्वाभिमान आंदोलन और दलित छात्रों को आत्महत्या की गोली और रस्सी देने की बात नहीं लिखी थी? हास्टल से बाहर आते हुए रोहित के हाथ में यह किसकी तस्वीर है। क्या यह अंबेडकर की तस्वीर नहीं है। क्या रोहित की राजनीति में दलित स्वाभिमान के सवाल नहीं थे। रोहित ने भले ही अपनी सुसाइड नोट में किसी का नाम नहीं लिया लेकिन रोहित ने लिखा तो है कि आदमी की कीमत तो बस उसकी फौसी पहचान में सिमट कर रह गई है। एक वोट से, एक संख्या से और एक चीज़ से। हो सकता है कि रोहित अपने संगठन की पहचान की राजनीति को लेकर सवाल उठा रहा हो, हो सकता है रोहित दूसरे संगठनों की पहचान की राजनीति को लेकर सवाल उठा रहा हो। स्मृति ईरानी की यह बात सही है कि पहचान पर ही इतना जोर न दिया जाने लगे कि तथ्यों के लिए जगह ही न बचे। क्या जो तथ्य पेश किए गए वे सिर्फ तथ्य ही थे या उन तथ्यों के पेश करने के तरीके में कोई राजनीति ही नहीं थी, अब इस पर राजनीतिक दल ही कहें तो बेहतर है।

जाति और धर्म का नाम न लिया जाए यह कुछ समय के लिए ठीक भी है, लेकिन क्या जब टकराव की परिस्थितियां और कारण जातिवाद और धर्म के सांप्रदायीकरण से जुड़े हों तब भी क्या यह पैमाना अपनाया जाएगा। क्या सोशल मीडिया पर रोहित के दलित होने पर ही सवाल नहीं किया गया। एक तरफ यह रोहित की जाति पर सवाल कर रहे थे, दूसरी तरफ जाति का नाम लेने का विरोध भी कर रहे थे। क्या यही लोग धर्म के हिसाब से मामले को तूल नहीं देते हैं। केंद्रीय मंत्री ने अपनी तरफ से जो तथ्य रखे उस पर वे शुरू से लेकर अंत तक कायम रहीं। यह स्पष्ट नहीं कि जो तथ्य रखे क्या उतने ही हैं और अंतिम हैं। केंद्रीय मंत्री रोहित को दलित बताने का विरोध करते हुए यह भी बताती जा रही थीं कि पूरे मामले में शामिल लोगों में से कौन दलित है और कौन ओबीसी। ऐसा बताते हुए हर बार उन्होंने कहा कि उन्हें मजबूरन ऐसा कहना पड़ रहा है क्योंकि लोग भावनाओं को भड़का रहे हैं।

स्मृति ईरानी ने मूल वक्तव्य अंग्रेजी में दिया इसलिए उसका हिन्दी अनुवाद पेश कर रहा हूं। ज्यादातर शब्दश: है लेकिन कहीं-कहीं सार रूप में भी मौजूद है। '4 अगस्त 2015 के रोज एक एफआईआर दर्ज की गई कि अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन से जुड़े छात्रों के समूह ने कथित तौर पर अन्य छात्र पर हमला किया है। हमने पता किया है और आज सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि यह दलित बनाम गैर दलित के टकराव का मामला नहीं है जैसा कि कुछ लोग भावनाओं को भड़काने का प्रयास कर रहे हैं। 4 अगस्त के रोज जिस छात्र पर हमला हुआ वह खुद ओबीसी छात्र है। उस मामले में भी एफआईआर दर्ज है, मुझे भरोसा है कि पुलिस आपको उसका डिटेल दे देगी। यूनिवर्सिटी के प्रोक्टोरियल बोर्ड ने मामले की जांच की। हालांकि यह बात सामने आई है कि पहली रिपोर्ट में उन्होंने किसी पक्ष से बात नहीं की। उनसे कहा गया था कि सभी पक्षों से बात कर अपनी रिपोर्ट दें। हमें विश्वविद्यालय ने यह जानकारी दी है। विश्वविद्यालय ने हमें यह भी बताया है कि कार्यकारी परिषद की उप-समिति ने अपनी बैठक में जो सजा दी गई थी उसे सही पाया। इस बीच चार अगस्त की रात जिस छात्र पर हमला हुआ था उसकी मांग हाई कोर्ट चली गई और हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि इस मामले में कार्यवाही की रिपोर्ट सौंपी जाए। कार्यकारी परिषद की जो उप-समिति थी उसके मुखिया वरिष्ठ प्रोफेसर थे और यहां भी मुझे मजबूर होकर कहना पड़ रहा है कि प्रोफेसर भी दलित ही थे। उप समिति ने सजा को सही पाया और सुझाव दिया कि इन छात्रों को निलंबित कर दिया जाए। इसके बाद 27 नवंबर को कार्यकारी परिषद की बैठक हुई और तय किया गया कि छात्र सभी विभाग में जा सकेंगे, लाइब्रेरी जा सकेंगे, अकादमिक बैठकों में जा सकेंगे लेकिन होस्टल, सार्वजनिक जगहों और प्रशासन की तरफ नहीं जा सकेंगे। यही बात कोर्ट को भी बता दी गई। जिस वार्डन ने इन छात्रों को बताया कि उन्हें हास्टल खाली करना है, यहां मैं एक बार फिर मजबूर हो रही हूं, कहने के लिए कि वे भी दलित समुदाय से थे। इन छात्रों ने निलंबन के आदेश को अदालत में चुनौती दी लेकिन हाई कोर्ट ने सजा पर रोक नहीं लगाई। छात्रों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया, और जैसा कि विश्वविद्यालय ने हमें बताया है कि एक छोटा सा तंबू भी लगा लिया।'

दलित प्रोफेसर, दलित वार्डन और जिसके साथ कथित रूप से मारपीट हुई यानी सुशील कुमार ओबीसी। वैसे अगर आप जातिगत हिंसा का इतिहास देखेंगे तो दलित हर तबके की हिंसा के शिकार रहे हैं। कहीं सवर्णों ने हिंसा की है तो कहीं ओबीसी ने भी उनके साथ हिंसा की है। कहीं-कहीं मुसलमानों ने भी। क्या मंत्री ने सारे तथ्य पेश कर दिए, उन्होंने ऐसा दावा भी नहीं किया बल्कि वे बार-बार कहती रहीं कि जांच के लिए गई दो सदस्यों की कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है। बहरहाल स्मृति ईरानी के तथ्यों से कुछ सवालों के जवाब नहीं मिलते हैं जैसे- पहली कमेटी ने बिना दोनों पक्षों से बात किए कैसे सजा सुना दी। उसके बाद की कमेटियों ने दोनों पक्षों को सुनकर फैसला किया या पहली कमेटी के फैसले को ही सही माना। इसका जिक्र नहीं आ सका कि रोहित की छात्रवृत्ति क्यों रोकी गई। क्या उसका संबंध मारपीट की इस घटना से था।

केंद्रीय मंत्री ने और भी बातें कहीं हैं लेकिन आगे बढ़ने से पहले आम आदमी पार्टी के नेता आशीष खेतान के एक ट्वीट का जिक्र करना चाहूंगा। आशीष खेतान ने प्रोक्टोरियल बोर्ड की रिपोर्ट के दो पन्ने ट्वीट किए हैं। मैंने अपनी तरफ से तस्दीक नहीं की है। इसलिए मानहानि उन्हीं के खिलाफ की जाए तो ठीक रहेगी। आशीष खेतान ने जिस रिपोर्ट के पन्ने ट्वीट किए हैं उस पर 12 अगस्त लिखा है। कार्यकारी समिति की उस समिति की रिपोर्ट नवंबर में आई थी। आशीष के अनुसार स्मृति ईरानी के बयान और प्रोक्टोरियल बोर्ड की रिपोर्ट में अंतर है। इन पन्नों में लिखा है कि कोई भी ऐसा ठोस सबूत नहीं मिला जिससे साबित होता है कि सुशील कुमार की पिटाई हुई है। न ही डाक्टर अनुपमा की रिपोर्ट भी नहीं बताती है कि सुशील का जो आपरेशन हुआ है उसका संबंध इस घटना से है। डाक्टर अनुपमा ने सुशील के बांए कंधे पर खरोंच के कुछ निशान देखे हैं। डाक्टर अनुपमा ने कहा है कि उन्होंने अस्पताल के डाक्टरों से बात कर यह रिपोर्ट दी है।

आशीष खेतान का कहना है कि केंद्रीय मंत्रियों के हस्तक्षेप के बाद प्रोक्टोरियल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट बदल दी और रोहित और उनके चार साथियों को निलंबित किया गया। आशीष खेतान ने जो पन्ना ट्वीट किया है उस पर चीफ प्रॉक्टर आलोक पांडे के दस्तखत हैं जिसके फैसले में लिखा है कि इन्हें विश्वविद्यालय से पूरी तरह से निकाल दिया जाता है। कक्षा से, कोर्स से, हास्टल और अन्य जरूरी सुविधाओं से वंचित किया जाता है जो छात्र विश्वविद्यालय से लेता है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि पांचों छात्रों को क्लास, लाइब्रेरी और अकादमिक बैठको में जाने की अनुमति थी। उन्हें सिर्फ हास्टल से निकाला गया और सार्वजनिक जगहों पर जाने से रोका गया है। निलंबित छात्रों के सहयोगी अनिल ने हमें बताया कि उन्हें अपनी क्लास में जाने की अनुमति थी। उसके अलावा कैंपस में कहीं भी जाने की इजाजत नहीं थी।

मंगलवार को हमने भी दिखाया कि केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की तरफ से विश्वविद्यालय को पांच-पांच पत्र लिखे गए और कार्रवाई का ब्यौरा मांगा गया था। स्मृति ईरानी ने कहा कि पत्र लिखे गए थे, लेकिन दखल देने के लिए नहीं। पहले से यह प्रक्रिया स्थापित है कि कोई भी सांसद अगर शिकायत करेगा तो उस मामले में जानकारी जुटाकर उन्हें सूचना दी जाएगी। फिर उन्होंने पिछले नवंबर में कांग्रेस नेता हनुमंथप्पा राव की चिट्ठी भी दिखाई जिसमें कांग्रेस नेता ने विश्वविद्यालय की गतिविधियों पर जवाब मांगा है। स्मृति ईरानी ने कहा कि उनके पत्र पर भी उनके विभाग ने छह-छह पत्र हैदराबाद विश्वविद्यालय को लिखे। मंत्री ने कहा कि कार्यकारी परिषद के सदस्य पिछली सरकार के बनाए हुए हैं। हमारी सरकार ने नहीं बनाए हैं। अब यह समझ नहीं आया कि जब स्मृति ईरानी तथ्यों को ही रखने आई थीं तो कार्यकारी समिति के सदस्य किसकी सरकार में बने थे यह बताना क्यों जरूरी हो गया। वे कांग्रेस को जवाब दे रही थीं। मंत्रालय की यह व्यवस्था अच्छी है कि जो भी सांसद पत्र लिखेगा उस पर जानकारी मांगी जाएगी लेकिन मंगलवार को वीसी प्रो अप्पा राव ने कहा कि ऐसे पत्र आते रहते हैं। रुटीन के हैं। हमने जवाब भी नहीं दिया। एक अच्छी प्रक्रिया का यह हश्र हो यह भी ठीक नहीं है। स्मृति ईरानी ने वीसी पर कार्रवाई की कोई बात नहीं की। अलबत्ता कांग्रेस नेता हनुमंथप्पा राव ने प्रेस कांफ्रेस कर जवाब दिया कि उनका पत्र बंडारू दत्तात्रेय से अलग है। उन्होंने अलग मसले को लेकर पत्र लिखा था। हनुमंथप्पा राव जी सुन नहीं पाए होंगे। स्मृति ईरानी ने भी साफ-साफ कहा कि उनका पत्र अलग मसले पर है और उस मसले पर भी उनके विभाग ने कार्रवाई की थी।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वे हैदराबाद इसलिए नहीं जा रही हैं कि इससे लगेगा कि वे मामले में दखल दे रही हैं। उन्होंने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में तथ्यों को रखते हुए एक बार भी एबीवीपी का नाम नहीं लिया। दलित बनाम गैर दलित न हो मगर यह लड़ाई एएसए बनाम एबीवीपी की तो है ही। जब पत्रकारों ने पूछा कि बंडारू दत्तात्रेय ने अपने पत्र में लिखा है कि विश्वविद्यालय में जातिवादी, राष्ट्रविरोधी और अतिवादी गतिविधियां चल रही हैं, तो उन्होंने इस सवाल का सीधे जवाब नहीं दिया बल्कि यही कहा कि बात सिर्फ तथ्यों तक सीमित रहे तो ठीक है।

चार मंत्रियों की साझा प्रेस कांफ्रेंस के शुरू होने से पहले केंद्रीय मंत्री बंडारू दत्तात्रेय जी का बयान आया। उनके बयान का जिक्र प्रेस कांफ्रेंस में तो नहीं था मगर उनके बयान के मजमून से हल्का कन्फ्यूजन हुआ कि वे सफाई दे रहे हैं या इस मामले से किनारा कर रहे हैं। यह आप तय कीजिए वैसे तथ्यों पर ही टिके रहिए और तथ्यों की मांग कीजिए तो ठीक रहेगा। जब सरकार के चार मंत्री मामले में पक्ष रख ही रहे थे तो एक मंत्री अलग से क्यों अपना पक्ष रख रहे थे। पत्रकार की आदत है, ऐसे कैसे चली जाएगी। तो बंडारू जी लिखते हैं कि 'केंद्रीय मंत्री के अलावा मैं सिकंदराबाद का सांसद भी हूं। 80 के दशक से राजनीति कर रहा हूं और तभी से मैं समाज के सभी वर्गों से जुड़ा रहा हूं। आम लोगों की शिकायतें लेना, उनकी अर्ज़ी लेना और उसे संबंधित मंत्रालयों को सौंप देना, इसे मैं एक सांसद के नाते अपना दायित्व मानता हूं। मीडिया में जो ताजा मामला चल रहा है मैं उस बारे में कुछ बातें स्पष्ट करना चाहता हूं। 10 अगस्त 2015 को मुझे हैदराबाद यूनिवर्सिटी में चल रहे मामलों को लेकर अर्ज़ी मिली। मैं काफी चिन्तित हुआ और उसे केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय को बढ़ा दिया। इस उम्मीद में कि चीज़ें कुछ बेहतर होंगी। 29 अगस्त को मुझे दूसरा प्रतिवेदन प्राप्त हुआ और उसे भी मैंने मंत्रालय को बढ़ा दिया। इस गुज़ारिश के साथ कि मामले को देखा जाए और जो जरूरी हो किया जाए। यूनिवर्सिटी आफ हैदराबाद एक स्वायत्त संस्था है, मेरा उसके प्रशासन में कोई दखल नहीं है। मेरी भूमिका सिर्फ इन दो प्रतिवेदनों को आगे बढ़ाने तक ही सीमित थी। मैं किसी भी छात्र संस्था के प्रतिवेदन को खुशी-खुशी आगे बढ़ा सकता हूं, अगर मुझसे वे संपर्क करें तो। मुझे उम्मीद है कि इस स्पष्टीकरण से मामला समाप्त हो जाएगा। -सादर, बंडारू दत्तात्रेय'

हमारी सहयोगी उमा सुधीर ने बीजेपी के एमएलसी से बात की। मारपीट की घटना के सिलसिले में वीसी से मिलने के कारण इस बीजेपी नेता का जिक्र आ रहा है। उन्होंने उमा सुधीर से कहा कि राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी हमारी पार्टी को बदनाम करना चाहती है इसलिए आत्महत्या के बाद दर्ज एफआईआर में उनका नाम जोड़ा गया है। तेलंगाना में टीआरएस की सरकार है।

उमा सुधीर ने वाइस चांसलर से भी बात की। आत्महत्या के बाद जो एफआईआर दर्ज हुई है उसमें उनका भी नाम है। वीसी ने दावा किया कि कोर्ट के कारण वे फैसला लेने पर मजबूर हुए। अब यह समझ नहीं आ रहा है कि वे ऐसा क्यों कह रहे हैं। क्या वे फैसले से संतुष्ट नहीं थे, क्या वे नहीं मानते कि छात्रों का निलंबन सही था और उन्हें कोर्ट के दबाव में फैसले के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने कहा कि वे इस्तीफा नहीं देंगे। पहले कोई उनकी गलती तो बताए।

जब कोई भी मामला धारणा के अनंत आकाश में घूमने लगे तब थोड़ा रुक जाना चाहिए। रोहित वेमुला की आत्महत्या से जो सवाल उठे हैं और जो भी परिस्थितियां रही हैं, सब वहां से काफी आगे निकल चुके हैं। कोई मंत्री के पुराने रिकार्ड तक जा पहुंचा है तो कोई दूसरी घटनाओं में इस घटना के सूत्र ढूंढने लगा है। हो सकता है कि बातें सही भी हैं लेकिन इस मोड़ पर बेहतर यही है कि तथ्यों की बात की जाए। तथ्यों का पता लगाया जाए और उसे ही सामने लाया जाए। उमा सुधीर ने विश्वविद्यालय के छात्रों से बातचीत की। पूरे मामले में और केंद्रीय मंत्री की प्रेस कांफ्रेंस के मामले में भी।

(रवीश कुमार NDTV इंडिया में सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं.)

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