प्राइम टाइम इंट्रो : आरएसएस से जुड़ा बयान वापस नहीं लेंगे राहुल गांधी

प्राइम टाइम इंट्रो : आरएसएस से जुड़ा बयान वापस नहीं लेंगे राहुल गांधी

कांग्रेस उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी (फाइल फोटो)

अक्सर कहा जाता रहा है कि कांग्रेस के भीतर भी हिन्दूवादी तत्व हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक से सहानुभूति और सहमति रखने वाले लोग हैं, कई मामलों पर वो भी नरम हिन्दुत्व की राजनीति करती है. 90 के दशक के बाद इस अंतर पर चर्चाएं फीकी पड़ने लगीं क्योंकि आर्थिक नीतियों और योजनाओं को लेकर कांग्रेस, बीजेपी या किसी भी दल में फर्क मिटने लगा. वैचारिक विभाजन के लिए कांग्रेस और बीजेपी के बीच एक ही रेखा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. संघ भी बीजेपी के साथ रहते हुए उससे अंतर को उभारने में काफी मेहनत करता है. आपने चुनावों के वक्त खबरें भी देखी होंगी कि बीजेपी को जिताने संघ के सैंकड़ों लोग बिहार असम गए हुए हैं.

यहां तक कि गोवा के प्रांत प्रमुख सुभाष वेलिंगकर को इसलिए पद से हटा दिया गया कि वे राजनीतिक दल बनाना चाहते थे. राजनीति कर रहे थे. ये संघ का आधिकारिक बयान है. गोवा में वेलिंगकर की हैसियत संघ और बीजेपी में उस्ताद की रही है. उनके पद से हटाये जाने के विरोध में 400 स्वयंसेवकों ने इस्तीफे का एलान कर दिया है. मीडिया में ऐसी बातें छप रही हैं कि वेलिंगकर भारतीय भाषा सुरक्षा मंच के मुखिया थे जो बीजेपी सरकार की आलोचना कर रहे थे कि अंग्रेजी को बढ़ावा मिल रहा है, कोंकणी और मराठी को नहीं. अलग अलग दावे हैं, आने वाले दिनों में वेलिंगकर के मुखर होने से उनका पक्ष भी सामने आएगा. वही बताएंगे कि क्या उन्हें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को काला झंडा दिखाने के कारण पद से हटाया गया है. ये उदाहरण इसलिए नहीं दिया कि इस पर चर्चा करूंगा, बल्कि इसलिए क्या संघ बीजेपी से अपनी पहचान के अंतर को लेकर पहले की तरह मेहनत नहीं करना चाहता.

अब आते हैं राहुल गांधी पर. राहुल गांधी पिछले कुछ महीनों से लगातार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर बयानी हमला कर रहे हैं. सवाल है कि क्या राहुल गांधी ज़मीन पर उतर कर आरएसएस से लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. क्या राहुल गांधी इस लड़ाई में कांग्रेस को भी झोंक देंगे. क्या कांग्रेस का आम कार्यकर्ता और नेता भी संघ से लड़ने के लिए तैयार है. तैयार का मतलब ये है कि क्या उसकी वैचारिक तैयारी है. सिम्पल शब्दों में क्या उसकी पढ़ाई हुई है. क्या राहुल गांधी आरएसएस से लड़ते हुए अपनी पार्टी के भीतर हिन्दुत्व के प्रति सहानुभूति रखने वालों से भी लड़ेंगे. क्या राहुल के नेतृत्व में मौजूदा कांग्रेस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सड़क पर लड़ने की तैयारी में है या दिल्ली में बयानों के ज़रिये ही लड़ने की खानापूर्ति होती रहेगी. कांग्रेस की सरकारों के दौरान तो ऐसी घमासान लड़ाई नहीं दिखी लेकिन क्या राहुल वाकई सीरीयस हैं. 2014 में महाराष्ट्र के भिवंडी में राहुल गांधी ने बयान दिया था कि आरएसएस के लोगों ने गांधी की हत्या की. मानहानी का केस हो गया. सुप्रीम कोर्ट में पिछली सुनवाई में ऐसा सुनने को मिला कि राहुल गांधी अपने बयान से पलट गए हैं. गुरुवार को खबर आई कि राहुल अपने बयान से पीछे नहीं हटेंगे और ट्रायल का सामना करेंगे.

इसके लिए राहुल गांधी को भिवंडी की अदालत में खुद पेश होना होगा. पंजाब हरियाणा कोर्ट ने बापू की हत्या के मामले में 21 जून 1949 को सुनाते हुए नाथूराम गोड्से को फांसी की सज़ा दी थी. 1949 के बाद फिर से मुकदमे की फाइल कोर्ट और पब्लिक में खुलेगी. गांधी की फिर से हत्या होगी और मुकदमा चलेगा. बंगाल चुनाव के दौरान टीवी चैनलों पर हर दूसरे तीसरे दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस की फाइल खुल जाती थी. चुनाव बीत जाने के बाद फाइलें बंद हो गईं हैं. अगर चुनावी राजनीति के लिए यह सब हो रहा है तो दुखद है. अगर वाकई कांग्रेस आरएसएस को लेकर अपनी कोई ठोस समझ बनाना चाहती है तो देखते हैं और राहुल के वकील कपिल सिब्बल क्‍या कहते हैं वह भी पढ़ लीजिए. सिब्‍बल कहते हैं, 'आज जब मामला अदालत के सामने आया तो आरएसएस ने कोर्ट के सामने हमारे लिए एक बयान कहने को कहा, कि हम मानते हैं कि आरएसएस ने गांधीजी की हत्या नहीं की और आरएसएस दोषी नहीं है. तो हमने कहा कि जो हमने पहले कहा है हम उस पर कायम हैं. हम कोई और बयान नहीं देने वाले. अगर आप समझते हैं कि मामला स्पष्ट होना चाहिए तो हम अदालती लड़ाई के लिए तैयार हैं. ये लड़ाई अदालत की नहीं है. वहां तो हम लड़ेंगे ही लड़ेंगे. इस लड़ाई में ये फैसला होगा कि असली हिंदू कौन है, ये फ़ैसला होगा.'

सिब्बल साहब का यह बयान मुकदमे की ब्रीफ से बहुत आगे का है. असली हिंदू कौन है से लेकर पहचान की राजनीति के सवाल तक ले जाते हैं. फिर तमाम प्रकार की लड़ाइयों को मिक्स करने लगते हैं. बीजेपी के तमाम नेताओं ने राहुल गांधी के स्टैंड पर हमला किया है. संबित पात्रा, राजीव प्रताप रूडी, किरण रिजीजू से लेकर कई नेताओं ने आलोचना की है.

30 जनवरी 1948 के रोज़ महात्मा गांधी की हत्या हुई थी. अगर आपको लगता है कि इस विषय में जानना चाहिए तो टीवी छोड़कर लाइब्रेरी में समय बिताइये. वर्ना एक पक्ष ये कहेगा कि सरदार पटेल ने संघ की तारीफ की थी, एक पक्ष कहेगा कि सरदार पटेल ने आरएसएस को बैन किया था. कोई कहेगा नेहरू और गांधी ने आरएसएस की तारीफ की थी, कोई कहेगा आरएसएस ने गांधी को ही मार दिया. जैसे गुरुवार शाम कांग्रेस पार्टी ने एक ट्वीट किया है. इंडियन एक्सप्रेस अखबार की कतरन, अंग्रेजी में है, मैं हिन्दी में पढ़ दे रहा हूं. 'आरएसएस नेता ने गोड्से को रिवॉल्वर दिया. गोपाल गोडसे का बयान हाईलाइट किया गया है कि सभी भाई आरएसएस में थे. नाथूराम, दत्तात्रेय, मैं और गोविंद. आप कह सकते हैं कि हम अपने घर की बजाए संघ में ही पले बढ़े. संघ हमारे लिए परिवार समान था.'


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