प्राइम टाइम इंट्रो : समान सिविल संहिता से जुड़े सवाल

प्राइम टाइम इंट्रो : समान सिविल संहिता से जुड़े सवाल

गुरुवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि वे लॉ कमिशन की प्रश्नावली का बहिष्कार करते हैं. आप जानते हैं कि लॉ कमिशन ने पर्सनल लॉ में सुधार को लेकर अपनी वेबसाइट पर 16 सवालों पर 45 दिन के अंदर जनता से राय मांगी है. आप अपनी राय ईमेल या डाक से लॉ कमिशन को भेज सकते हैं. पर्सनल लॉ बोर्ड इन प्रश्नावलियों से सहमत नहीं है. इसके जवाब में शुक्रवार को केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि पर्सनल लॉ बोर्ड अपना मत किसी दूसरे पर न थोपे और इसे राजनीतिक न बनाए. अगर आपको लॉ कमिशन का बहिष्कार करना है तो आपकी मर्जी है. तीन तलाक को समान आचार संहिता से जोड़ा जा रहा है लेकिन मुख्य मुद्दा जेंडर जस्टिस का है. औरतों के सम्मान का है. हम इस पर स्वस्थ्य बहस की मांग करते हैं. किसी पर कुछ नहीं थोपा जाएगा.

गुरुवार को लॉ कमिशन के प्रमुख रिटायर जस्टिस डॉ. बी एस चौहान ने भी कहा कि किसी पर कुछ नहीं थोपा जाएगा. वेंकैया नायडू ने भी कहा कि किसी पर कुछ नहीं थोपा जाएगा. वेकैंया नायडू ने इस बयान के ज़रिये जो कहा है वो यह कि अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को लॉ कमिशन का बहिष्कार करना है तो उसकी मर्ज़ी.

लखनऊ में इसी सवाल को मुलायम सिंह यादव से भी पूछा गया. सपा नेता ने कहा कि वे इस मुद्दे पर ज़्यादा कुछ नहीं कहेंगे लेकिन इस पर मतभेद नहीं होना चाहिए. इस मुद्दे को धार्मिक नेताओं पर छोड़ देना चाहिए. देश और मानवता के मुद्दे पर सभी को एक होना चाहिए. इस सवाल का जवाब हां या ना में कोई देता नहीं है. हेल्दी डिबेट की बात कही है कि वेंकैया जी ने. डिबेट तो इस मसले पर संविधान सभा के समय से हो रही है. आप ख़ुद से भी गूगल करेंगे तो पाएंगे कि
दो चार सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के अलावा कुछ भी नया नहीं कहा जा रहा है. पुरानी बातों को निकाल कर फिर से वही कहा जा रहा है. सरकार किस तरह की समान नागरिक संहिता चाहती है, उसका ड्राफ्ट क्या है, आज तक किसी ने समाने नहीं रखा. तो फिर हेल्दी डिबेट किस चीज़ को लेकर होगी. जैसे पहला सवाल है कि क्या आप जानते हैं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 में यह कहा गया है कि राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल प्राप्त कराने का प्रयास करेगा? इसका हां या ना में जवाब देना है. इस तरह के सवाल तो सर्वे में पूछे जाते हैं. 16 में से 11 सवाल ऐसे पूछे गए हैं जिनका जवाब हां या ना में देना है. बाकी के पांच सवाल हां या ना की शैली में पूछे गए हैं लेकिन उनके नीचे जगह दी गई है ताकि आप विस्तार से अपना पक्ष रख सकें. हां या ना की शैली में पूछे गए ये सवाल क्या सही सवाल हैं, पर्याप्त सवाल हैं, क्या इन सवालों से इतने गंभीर विषय को गहराई से समझने का मौका मिलता है. कुछ सवाल इस तरह से पूछे गए हैं...

- क्या समान सिविल संहिता से लोगों को फायदा पहुंचेगा?
- क्या समान सिविल संहिता की ज़रूरत है?
- क्या इससे जेंडर जस्टिस आएगा?
- क्या यह वैकल्पिक होनी चाहिए?

सवाल है कि क्या लोगों को फायदा पहुंचेगा, फिर पूछते हैं कि जेंडर जस्टिस आएगा, क्या फायदा और जेंडर जस्टिस दो अलग अलग चीज़ें हैं. अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि लॉ कमिशन ने जो सवाल पूछे हैं क्या वो सिर्फ मुस्लिम पर्सनल लॉ से संबंधित पूछे हैं. एकाध ही सवाल हैं जो हिन्दू और ईसाई समुदाय से संबंधित हैं, बाकी के कुछ सवालों में धर्म का ज़िक्र नहीं है लेकिन उनका संबंध मुस्लिम पर्सनल लॉ से लगता है. फिर भी इस पर बात होनी चाहिए कि लॉ कमिशन के सवाल क्या वाकई इतने क्रांतिकारी हैं जिनसे ये लगता हो कि आयोग तमाम धार्मिक और जातीय समाजों की प्रथाओं को समाप्त कर सबको एक कानून की छत के नीचे लाने की प्रयास करना चाहता है. सवाल नंबर दो में पूछा गया है कि विभिन्न धार्मिक संप्रदाय कुटुंब विधि के विषयों पर भारत में पर्सनल लॉ और रूढ़िवादी प्रथाओं द्वारा शासित किए जाते हैं, क्या एक समान सिविल संहिता में इन सभी विषयों या उनमें से कुछ विषयों को शामिल किया जाना चाहिए. जैसे विवाह, तलाक, दत्तक ग्रहण, संरक्षकता और बाल अभिरक्षा यानी चाइल्ड कस्टडी, मेंटेनेंस, उत्तराधिकार, विरासत.

हम जानने का प्रयास करेंगे कि चाइल्ड कस्टडी, उत्तराधिकार को लेकर सभी धर्मों में एक कानून नहीं है, सभी राज्यों में एक कानून नहीं है, क्या समान सिविल संहिता का यह भी मतलब होगा कि सभी राज्यों में अब एक ही कानून लागू होगा, क्या इस वक्त सभी राज्यों में एक ही कानून लागू है. हमारा मकसद सवाल को ठीक से समझना और जवाब जानना है ताकि इस पर हेल्दी डिबेट हो सके जैसा कि वेंकैया जी ने कहा है. अब सवाल नंबर दो में डाइवोर्स यानी तलाक का सवाल पूछ लिया गया है तो फिर सवाल नंबर सात में अलग से तीन तलाक के बारे में पूछने की क्या ज़रूरत थी. क्या तीन तलाक के अलावा दूसरे समाजों में भी तलाक को लेकर समस्याएं हैं. क्या उन पर हिन्दू कोड बिल या संसद के बनाए नए कानून लागू नहीं होते हैं. ख़ैर सवाल नंबर सात यह है कि क्या तीन तलाक की प्रथा को

- पूर्ण रूप से समाप्त कर देना चाहिए
- रूढ़ि को बने रहने देना चाहिए
- उपयुक्त संशोधनों के साथ बने रहने देना चाहिए

वैसे पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए तो ये सवाल आसान ही है. उनकी मर्जी के भी इसमें विकल्प दिये गए हैं. फिर बहिष्कार क्यों किया. सवाल नंबर 6 में बहुविवाह समाप्त करने के विकल्प पूछे गए हैं. तीन तलाक़ से तो साफ हो जाता है कि मुस्लिम समाज से ताल्लुक है लेकिन बहुविवाह वाले सवाल में किसी धर्म का ज़िक्र नहीं है. क्या हिन्दू कोड बिल के बाद भी ये किसी ग़ैर मुस्लिम समाज में प्रचलित है. अव्वल तो सुप्रीम कोर्ट ही कह चुका है कि ज़मीनी हकीकत है कि बैन होने के बाद भी यह आज भी हिन्दुओं में प्रचलित है. सवाल नंबर 6 में मैत्री करार यानी फ्रेंडशिप डीड की बात की गई है वो क्या है. ये किस धर्म, बिरादरी या इलाके से ताल्लुक रखता है. सवाल से साफ नहीं होता है.

सवाल 8 में पूछा गया है कि हिन्दू स्त्री संपत्ति के अधिकार को बेहतर तरीके से इस्तमाल कर सके इसके लिए क्या कदम उठाये जाने चाहिए, अक्सर पुत्र के नाम ही वसीयत कर दी जाती है. इस सवाल का समान सिविल संहिता से क्या संबंध है. क्या लॉ कमिशन कानूनों को लागू कराने को लेकर भी कोई यूनिफॉर्म सिविल कोड बना रहा है. बात समान कानून बनाने की हो रही है या लागू कराने की भी हो रही है. तो यह भी पूछा जाना चाहिए था कि समान नागरिक संहिता की मांग करने वाले भी पिता की संपत्ति में बेटी और बहनों को हिस्सा क्यों नहीं देते हैं. बहुत कम ऐसे होंगे जो हिस्सा देते हैं. क्या सरकार यह व्यवस्था करने जा रही है कि सभी परिवारों को सरकार के यहां रिपोर्ट करना होगा कि पिता की संपत्ति बंटते वक्त बेटियों और बहनों को कितना दिया गया. बल्कि सरकार इसे बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ अभियान का हिस्सा बना सकती है. समाज में क्रांतिकारी बदलाव आएगा. सवाल नंबर दस में पूछा गया है कि क्या आप सहमत हैं कि सभी पर्सनल लॉ और प्रथाओं के लिए शादी की एक समान आयु होनी चाहिए?

हिन्दू मैरेज एक्ट और स्पेशल मैरेज एक्ट में लड़कियों के लिए शादी की उम्र 18 है और लड़कों के लिए 21. व्यापक तौर पर तो यह कानून लागू होता है लेकिन यह भी सही है कि कम उम्र में शादियां हो रही हैं. हम जानने का प्रयास करेंगे कि मुसलमानों में शादी की उम्र क्या है और उसका पालन किस हद तक होता है. क्या सवाल नंबर दस का संबंध मुस्लिम पर्सनल लॉ से ही है या अन्य समुदायों से भी है.


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