यह ख़बर 19 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

योजना आयोग ख़त्म करने की तैयारी

नई दिल्ली:

नमस्कार... मैं रवीश कुमार। क्या आप योजना आयोग जैसी भारी भरकम संस्था के विकल्प के बारे में कोई आइडिया रखते हैं। यही कि अमुक योजनाओं पर केंद्र और राज्यों को मिलकर कितने पैसे खर्च करने चाहिए? किसी राज्य की ज़रूरत का पैमाना क्या हो, उसमें किस तरह के लोग हों, विकास कार्यों के मूल्यांकन का पैमाना क्या है?

अगर आप इन सब बातों पर राय रखते हैं तो आप के लिए ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार सुबह ट्वीट किया है, योजना आयोग की जगह नई संस्था की शक्ल क्या हो इस पर आपकी राय मांग रहा हूं। हम प्रस्तावित संस्था को ऐसा रूप देना चाहते हैं जो 21 वीं सदी के भारत की आकांक्षाओं को पूरी कर सके और राज्यों की भागीदारी को मज़बूत कर सके। इसके लिए सरकार ने www.mygov.nic.in पर सुझाव मांगे हैं।

जब हम माइ गवनर्मेंट की साइट पर गए तो वहां संस्था की रूप रेखा से संबंधित राय देने के लिए कॉलम नज़र नहीं आया। हो सकता है बना नहीं हो, पर वहां पर आपसे नई संस्था का नाम प्रतीक चिन्ह यानी लोगो और टैगलाइन यानी नारा पूछा गया है।

पंद्रह अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने कहा था कि योजना आयोग अब 21वीं सदी के भारत की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं है। अपने समय की ज़रूरतों को पूरा करने में इसका अच्छा योगदान रहा होगा और उसके प्रति आदर भी है, लेकिन अब इसकी ज़रूरत नहीं है क्योंकि भारत के फेडरल स्ट्रक्चर की अहमियत पिछले साठ सालों में जितनी थी, उससे ज़्यादा आज के युग में है। हमारे संघीय ढांचे को मज़बूत बनाना है।

मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की एक टीम का फॉरमेशन हो इस काम को अब प्लानिंग कमीशन के नए रंग रूप से सोचना पड़ेगा। कभी-कभी पुराने घर की रिपेयरिंग में खर्चा ज्यादा होता है, लेकिन संतोष नहीं होता। फिर मन करता है कि एक नया ही घर बना लें। इसलिए बहुत ही कम समय के भीतर योजना आयोग के स्थान पर एक क्रिएटिव थिंकिंग के साथ राष्ट्र को आगे ले जाने की दिशा, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप की दिशा संसाधनों प्राकृतिक संसाधनों का आप्टिमम युटिलाइज़ेशन, राज्य सरकारों को ताकतवर बनाना, संघीय ढांचे को ताकतवर बनाना, नए शरीर नई आत्मा के साथ एक नए इंस्टीटूशन का हम निर्माण करेंगे। मोटा मोटी खाका खींचने के बाद चार दिन बाद इसी नई संस्था के बारे में पीएम ने आपसे राय मांगी है।

यह कोई शिकायत कर सकता है कि योजना आयोग समाप्त किया जाए इस पर तो राय नहीं मांगी गई, लेकिन ऐसे लोग फिलहाल संतोष कर सकते हैं कि नया क्या हो इस पर राय मांगी गई है। अब सवाल है कि प्रधानमंत्री जिन उद्देश्यों को गिना रहे हैं, उसकी पूर्ति के लिए क्या वाकई योजना आयोग सक्षम नहीं हैं। क्या आयोग केंद्र राज्य संबंधों में अड़चन था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पहले भी कई विचारक योजनाकार योजना आयोग को समाप्त करने से लेकर इसमें बदलाव की वकालत करते रहे हैं।

आज के द हिन्दू अख़बार में पूवर् राज्यपाल गोपाल गांधी ने एक लेख लिखा है यह धारणा सही नहीं है कि योजना आयोग की कल्पना जवाहर लाल नेहरू ने की थी। योजना आयोग की परिकल्पना नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गणितज्ञ मेघनाद साहा की देन है। 1938 के हरिपुरा कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि गरीबी से लड़ने के लिए आज़ाद भारत में पहला काम यह हो कि राष्ट्रीय योजना आयोग बने।

जानकारों ने ऐसा कहा था कि प्रधानमंत्री नेहरू की विरासत से मुक्त होना चाहते हैं। मगर प्रधानमंत्री ने जो ज़रूरत बताई है नई संस्था का फोकस उसी पर रहना चाहिए। संघीय ढांचे का मतलब केंद्र और राज्य सरकारों के संबंधों से होता है। गोपाल गांधी ने आगे भी लिखा है कि योजना आयोग ने संघीय ढांचे की आत्मा को बनाए रखा है। योजना आयोग कमज़ोर और मज़बूत राज्य छोटे और बड़े राज्यों के बीच योजना बनाने और केंद्र की राशि को बांटने में एक पुल का काम करता है। यह काम 60 के दशक तक स्वतंत्रता से तो हुआ, मगर एक समय ऐसा भी आया जब कांग्रेस सरकार में इसकी स्वतंत्रता नहीं रही।

इन सबके बीच कई मौकों पर कई लोगों ने योजना आयोग को बेहतर तरीके से चलाकर केंद्र और राज्य संबंधों को मज़बूत किया। नए−नए फॉर्मूले भी निकाले। योजना आयोग को समाप्त कर देने से राज्य संघीय भावना से दूर हो जाएंगे। अब वह कौन सी संस्था होगी जो योजनाओं की समीक्षा करेगी आत्म आलोचना करेगी। होना तो यह चाहिए था कि योजना आयोग को उसके मूल उद्देश्यों की तरफ ले जाना चाहिए था, मगर फांसी दे दी गई।

गोपाल गांधी ने योजना आयोग की स्वायत्तता बहाल न होने देने के लिए यूपीए सरकारों की भी आलोचना की, लेकिन आज कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा कि पी चिदंबरम भी इसके ढांचे में बदलाव की बात करते रहे। लागू क्यों नहीं कर पाए ये नहीं बताया।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा योजना आयोग को समाप्त कर देने से देश को नुकसान होगा। वित्तीय मामलों को मुक्त अर्थव्यवस्था के हाथों सौंप देना ख़तरनाक होगा। उम्मीद है सभी दशर्क मुक्त अर्थव्यवस्था की खूबियों और ख़तरों से अवगत होंगे ही।

वरिष्ठ पत्रकार अशोक मलिक ने इकोनोमिक टाइम्स में लिखा है कि मोदी का सपना तभी पूरा होगा जब राज्य मोदी के एजेंडे पर चलें। अगर राज्य भी फेल हो गए तो मोदी सफल नहीं होंगे। मलिक का नई संस्था के पक्ष में तर्क है कि राजीव गांधी ने पंचायतों को सीधे पैसे देने की तरकीब निकाली, जिसने मुख्यमंत्री की संस्था को कमज़ोर किया गया। कांग्रेस ने क्षेत्रीय दलों को रोकने के लिए राज्यों को सिर्फ केंद्रीय बजट का दस प्रतिशत ही खर्च करने का अधिकार दिया। योजना आयोग और पर्यावरण मंत्रालय के बहाने गैर कांग्रेसी राज्यों को प्रताड़ित किया गया। मुख्यमंत्रियों को योजना आयोग के अफ़सरों के पास जाना पड़ता थालेक्चर सुनना पड़ता था।

तो अब क्या ये सब नहीं होगा। पंचायतों को सीधे पैसे नहीं मिलेंगे मुख्यमंत्री को दस प्रतिशत से ज्यादा खर्च करने के अधिकार होंगे। नई संस्था में सलाह मशविरे की प्रक्रिया क्या होगी? क्या वित्त मंत्रालय या नई संस्था में मुख्यमंत्री को किसी अफसर से नहीं मिलना होगा ये सब सवाल हैं। फिर नई संस्था क्यों न बने यह भी एक सवाल है। कई लोग योजना आयोग के पक्ष में और योजना आयोग के ख़िलाफ लिख रहे हैं। आप इन लेखों को ध्यान से पढ़िये।

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कई बार लगता है कि मोदी का विरोध करना है इसलिए विरोध हो रहा है या मोदी का समर्थन ही करना है इसलिए स्वागत हो रहा है। कुछ ही लेख हैं जो पेशेवर तरीके से पक्ष विपक्ष में लिखे गए हैं।

(प्राइम टाइम इंट्रो)