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This Article is From Jan 15, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : स्वप्रेरणा से ऑड-ईवन फॉर्मूला जारी रखने के लिए अब दिल्ली वासियों की परीक्षा

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 15, 2016 23:01 pm IST
    • Published On जनवरी 15, 2016 22:22 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 15, 2016 23:01 pm IST
भारत एक समस्या प्रधान देश है। प्रवक्ता उन समस्याओं के भाग्य विधाता हैं। एंकर उन समस्याओं के निर्माता निर्देशक। कई बार ऐसा भी होता है जब हमारे लिए मुश्किल हो जाता है कि किस मुद्दे पर बहस करें। कई बार ऐसा भी होता है जब मुद्दा ढूंढना मुश्किल हो जाता है। कुछ मिले, कि बहस करें। कई बार हम उस लायक भी नहीं होते कि किसी खास मुद्दे के साथ न्याय कर सकें और कई बार ऐसा भी होता है जब मुद्दा मिल जाता है मगर उनका भाग्य विधाता यानी प्रवक्ता नहीं मिल पाता। तो हमने सोचा, बल्कि कई बार किया भी है कि क्यों न दो तीन मुद्दों को लेकर उन पर विस्तार से रिपोर्ट तैयार की जाए ताकि आपका समय ज़ाया न हो।

तो क्या आप दिल्ली में ऑड-ईवन फॉर्मूले को जारी रखना चाहते हैं। 15 जनवरी को इसका पहला चरण समाप्त हो गया लेकिन मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा है अच्छा होगा कि लोग अपने स्तर पर इस दौरान जो नई आदतें बनीं हैं उसे जारी रखें।

ऑड-ईवन लागू होने से पहले और लागू होने के दौरान इस फॉर्मूले का जो पोस्टमार्टम हुआ है वह इसकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। यह योजना शुरू होने से पहले दिल्ली सरकार भी उस तरह से आश्वस्त नहीं थी। इसलिए दिल्ली सरकार को भी लग रहा था कि कहीं यह नियम उनके खिलाफ नकारात्मक माहौल न बना दे। शायद यही वजह थी कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी नियम लागू होने से पहले ही कह दिया कि सिर्फ 15 जनवरी तक... अगर लोगों को पसंद नहीं आया तो स्कीम वापस ले लेंगे। दिल्ली सरकार ने विज्ञापनों का अभियान चलाया बल्कि खुद मुख्यमंत्री केजरीवाल ने विज्ञापन में आने का बड़ा ही ऑड तरीका निकाल लिया। इस विज्ञापन में उनका चेहरा नहीं दिख रहा था मगर आवाज आ रही थी। वे फोन पर बात करते हुए अपना संदेश लोगों तक ले गए। इस विज्ञापन को लेकर भी खूब चर्चा हुई। अगर जेल जाने का डर न हो तो कॉमेडी कलाकार विज्ञापन के इस तरीके पर कई आइटम बना सकते हैं। कुल मिलाकर पंद्रह दिनों तक यह योजना लोगों की भागीदारी की मिसाल बन गई।

भारत ही नहीं पूरी दुनिया की नजर इस पर थी। रोहतक, अहमदाबाद, मुंबई और बेंगलुरु में भी इसे आजमाने की बात चल रही है। इसी तरह की भागीदारी की उम्मीद स्वच्छता अभियान से की गई है। इस अभियान ने भी कई लोगों और संगठनों को प्रेरित किया है, रेलवे प्लेटफॉर्म पहले से साफ नजर आते हैं मगर शहरों को साफ करने में जनभागीदारी सफल नहीं हो सकी है। केंद्र के अभियान से प्रेरित होकर इसी दिल्ली सरकार ने एमसीडी के साथ मिलकर जनभागीदारी के जरिये दिल्ली को स्वच्छ बनाने का संकल्प किया था। कभी सरकार ने यह नहीं बताया कि उसका क्या रिजल्ट निकला। क्या पूरी दिल्ली साफ हो गई। क्या ऐप में फोटो डालने से कचरा अभी भी उठ रहा है। आखिर स्वच्छता के मामले में जनभागीदारी सफल क्यों नहीं हुई, ऑड-ईवन के मामले में सफल क्यों हो गई। इसकी भी समीक्षा होनी चाहिए।

15 तारीख को मुख्यमंत्री केजरीवाल और परिवहन मंत्री गोपाल राय ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर दिल्ली की जनता को बधाई दी। अरविंद केजरीवाल ने कहा कि लोगों ने 2000 रुपये के जुर्माने के भय से ऑड-ईवन नहीं अपनाया। मात्र 9,144 लोग ऐसे थे जो गलत नंबर की कार लेकर निकले और सरकार को जुर्माने के तौर पर 1 करोड़ 82 लाख से अधिक की रकम दे आए। ऑड-ईवन की कामयाबी में इन फाइन देने वालों का भी योगदान सराहनीय है। लोगों को डर था कि ऑड-ईवन के दौरान ऑटो वाले काफी वसूली करेंगे लेकिन गोपाल राय ने बताया कि सिर्फ 917 चालकों की शिकायतें आई हैं और पहले से ज्यादा अनुशासित तरीके से ऑटो वालों ने काम किया है।

मुख्यमंत्री ने सोमवार को दिल्ली के लोगों को उत्तरी दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में बुलाया है जहां वे इस योजना की सफलता पर आपको बधाई देना चाहते हैं। छत्रसाल स्टेडियम आप ऑड और ईवन दोनों नंबर की कारों से जा सकते हैं। छत्रसाल स्टेडियम मॉडल टाउन के पास है। तो क्या बधाई के अंदाज में इस कामयाबी को राजनीतिक रूप भी दिया जाएगा। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने बताया कि स्कीम लागू होने से पहले 47 लाख लोग दिल्ली की बसों में सफर करते थे, स्कीम लागू होने के बाद हर दिन औसतन 53 लाख लोगों ने बसों में सफर किया। यानी बसों में 6 लाख अधिक लोग सफर करने लगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली की बसों के फेरे भी बढ़ गए हैं।

मुख्यमंत्री ने बताया कि जिन बसों को एक दिन में 200 किलोमीटर चलना होता था वे ट्रैफिक के कारण 160 किलोमीटर ही चल पाती थीं। लेकिन ऑड-ईवन के लागू होने के बाद वे एक दिन में 220 किलोमीटर की दूरी तय करने लगीं। एक बस ने 60 किलोमीटर अधिक यात्रा की। इस वजह से दिल्ली की 6000 बसों ने 9000 बसों का काम किया। यह एक दिलचस्प आंकड़ा है। इसकी विश्वसनीयता का ठीक से अध्ययन होना चाहिए। क्या इसका यह मतलब है कि दिल्ली में नई बसों की जरूरत नहीं होगी। अगर ट्रैफिक कम हो तो क्या मौजूदा बसों से ही दिल्ली की जरूरत पूरी की जा सकती है। योजना लागू होने से पहले दिल्ली सरकार ने कहा था कि 3000 अतिरिक्त बसें चलाई जाएंगी। नई बसों के खरीदे जाने की भी बात हुई थी, इस मामले में सरकार को ठोस रूप से भरोसा देना होगा। अगर दिल्ली के लोगों ने सरकार का साथ दिया है तो क्या दिल्ली सरकार को भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था को भरोसेमंद नहीं बनाना चाहिए।

29 दिसंबर को दिल्ली सरकार ने ऑड-ईवन योजना का खाका पेश किया था। साल के पहले दिन जब यह योजना लागू हुई तो कई लोगों ने कहा कि ज्यादातर लोग छुट्टी पर दिल्ली से बाहर हैं और जो हैं वे 31 तारीख की मदहोशी से उबर नहीं पाए हैं इसलिए पहली जनवरी को सड़कें खाली रहीं। लेकिन जल्दी ही हकीकत सामने आने लगी और धीरे-धीरे एकाध दिनों को छोड़ यह योजना अपने इम्तहान में पास होने लगी।

दिल्ली के लोग इस योजना को मौका भी दे रहे थे और शक की नजर से भी देख रहे थे कि क्या मुख्यमंत्री केजरीवाल का कार पूल से जाना उसी तरह से तो नहीं है, जब वे वैगन आर से शपथ लेने गए थे। मेट्रो से चलने लगे, बाद में वे इनोवा से दफ्तर जाने लगे। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी साइकिल चलाते नजर आए और साइकिल ट्रैक बनाने की बात करने लगे। पिछले बीस साल से दिल्ली में साइकिल ट्रैक की बात हो रही है। दिल्ली में एक अनुमान के मुताबिक बीस लाख से ज्यादा लोग साइकिल से काम पर जाते हैं। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों से कहा है कि वे ऑड-ईवन को अपने स्तर पर जारी रखें। क्या वे और उनके मंत्री भी आगे ऑड और ईवन को जारी रखेंगे। कार पूल करेंगे या साइकिल से दफ्तर जाते रहेंगे। क्या वे मिसाल पेश करने के लिए तैयार हैं।

कई लोगों को इस योजना से बाहर रखा गया लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई जजों ने भी इस योजना को अपनाया। वे या तो कार पूल में गए या फिर पैदल भी। अदालत का रुख भी ऑड-ईवन के प्रति सकारात्मक होने लगा और वह इसकी शुरुआती कामयाबी से संतुष्ट होने लगी। यहां तक कि अदालत ने खास श्रेणी की नई डीज़ल कारों के पंजीकरण पर रोक लगा दी। उसे अभी तक नहीं हटाया गया है।

हालांकि अभियान सिर्फ दिल्ली सरकार ने नहीं चलाया, एनडीटीवी ने #Icantbreathe के जरिए इस अभियान को सफल बनाने की मुहिम शुरू की। और कई संस्थाएं और स्कूल भी अपने स्तर पर इस अभियान को सफल बनाने में लग गए। अफवाहों ने भी अपना काम किया। सोशल मीडिया पर मेट्रो में भीड़ की तस्वीर वायरल होने लगी। कहा गया कि मीडिया इस हकीकत को नहीं देख रहा है और ऑड-ईवन का गुणगान किए जा रहा है। बाद में पता चला कि कुछ लोग इस योजना को फेल कराने में भी लगे हुए थे। लेकिन अंत में वही फेल हो गए। उन तस्वीरों की पोल खुल गई कि पुरानी हैं और दीवाली के समय की हैं। वैसे मेट्रो स्टेशन में दफ्तर आने और जाने के टाइम में रोजाना भीड़ रहती है। दिल्ली मेट्रो ने चुपचाप यहां के लाखों लोगों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की संस्कृति विकसित की है जिसकी सराहना की जानी चाहिए, लेकिन इन तस्वीरों को ऐसे पेश किया गया जैसे लोगों को धक्के खाने के लिए मजबूर किया जा रहा हो। वैसे स्वच्छ भारत अभियान में भी कई ऐसी तस्वीरें जारी की गईं थीं जिनमें सफाई का दावा किया गया था, बाद में वे फर्ज़ी निकलीं। यह सब किसी भी बड़े अभियान में चलता रहेगा। बहुत से लोग स्वच्छ भारत अभियान के तहत ईमानदारी से काम भी तो कर रहे हैं।

इस अभियान में डॉक्टर नरेश त्रेहान की ट्वीट की हुई उस तस्वीर ने भी बड़ा असर किया था जिसमें दिल्ली और हिमाचल के मरीज के फेफड़े की तुलना की गई थी। दिल्ली के मरीज का फेफड़ा बुरी तरह काला हो चुका था। बाद में दिल्ली सरकार ने भी लोगों के फेफड़ों की जांच शुरू की, अब पता नहीं वह जांच जारी है या नहीं लेकिन फेफड़ों की जांच के नतीजों ने कई लोगों को बुरी तरह हैरान कर दिया। प्रदूषण की वजह से अब साक़िब जैसे 28 साल के युवा का फेफड़ा 20% कम काम कर रहा है। हर तीन में एक दिल्ली वाले का फेफड़ा कमजोर हो गया है। चलिए अब प्रदूषण की बात कर लें। क्योंकि इस मुहिम का असली मकसद प्रदूषण कम करना ही माना जा रहा है। पहले दिन सरकार ने दावा किया कि प्रदूषण का स्तर कम हुआ है। लेकिन विपक्ष ने कहा कि कोई असर नहीं पड़ा है।

कई लोगों ने सरकार के दावे के खिलाफ अपने आंकड़े पेश किए। लेकिन पहले क्या स्थिति थी। अक्टूबर के महीने में करीब 60 फीसदी दिन ऐसे थे जब प्रदूषण या तो खतरनाक या बहुत खतरनाक था। नवंबर में रेड अलर्ट वाले दिनों की संख्या बढ़कर 96% हो गई और पिछले महीने यानी दिसंबर में हर रोज प्रदूषण का स्तर खतरनाक था। तो क्या अब दिल्ली में प्रदूषण घटा है। बिल्कुल नहीं घटा है ऐसा नहीं है लेकिन यह सही है कि वायु प्रदूषण का स्तर अभी भी सुरक्षित सीमा में नहीं है। लेकिन क्या इस योजना का कुछ भी असर नहीं हुआ। हमने अपने आंकड़ों के आधार पर 31 दिसंबर और 15 जनवरी की तुलना की कोशिश की। दोनों दिनों के शाम चार बजकर सात मिनट के सबसे ज्यादा प्रदूषित 10 जगहों को अगर देखें तो 31 दिसंबर को दस में से पांच सबसे ज्यादा प्रदूषित जगह दिल्ली में थीं। वहीं अगर 15 जनवरी का आंकड़ा देखें तो अब दस में से दो सबसे ज्यादा प्रदूषित जगह दिल्ली में हैं।

दिल्ली सरकार ने भी प्रदूषण पर अपने आंकड़े रखे हैं। सरकार का दावा है कि दिसंबर में PM 2.5 का स्तर 600 से ज्यादा था। ऑड-ईवन के दौरान PM 2.5 का स्तर 400 से ज्यादा रहा। ऑड-ईवन के दौरान बॉर्डर के इलाकों में प्रदूषण ज्यादा रहा, शहर के अंदर प्रदूषण करीब 20-25% तक कम हुआ है। अगर ऑड-ईवन न होता तो PM 2.5 का स्तर 600 से ज्यादा होता। इन आकंड़ों को अलग-अलग तरीके से देखा जा रहा है। सवाल उठ रहा है कि दुपहिया वाहनों से 30 फीसदी से ज्यादा प्रदूषण होता है। धूल से 56 फीसदी प्रदूषण होता है जबकि गाड़ियों से सिर्फ 9 फीसदी प्रदूषण होता है। तो क्या धूल रोकने के लिए भी सरकार कोई अभियान चलाएगी। कोई सिस्टम कायम करेगी। दिल्ली सरकार ने इन मामलों में एक कार्ययोजना अदालत के सामने रखी है। एक सवाल यह भी है कि क्या दिल्ली की जनता ने ट्रैफिक जाम से राहत महसूस की। इस सवाल पर सबकी राय बंटी हुई है। कई लोगों ने कहा कि दिल्ली की सड़क बहुत दिनों बाद हल्की नजर आई।

एनडीटीवी ने अपनी तरफ से एक एंबुलेंस चलाया यह देखने के लिए, एक खास दूरी के बीच एंबुलेंस को कितना समय लगता है। हमने पाया कि पहले दस किमी की दूरी तय करने में जिस एंबुलेंस को 35 मिनट लगते थे अब वह एंबुलेंस 18 मिनट में पहुंच गया। यानी 17 मिनट की बचत हुई। क्या यह वक्त कीमती नहीं है। चार साल से एंबुलेंस चला रहे संजय सिंह ने बताया कि पिछले दो हफ्तों में काफी राहत महसूस हुई है। हमारी गाड़ी जाम में नहीं फंसी है। अन्य लोगों ने भी बताया कि उन्हें भी घर से दफ्तर के बीच फेरे लगाने में पंद्रह से बीस मिनट की बचत हुई है।

ऑड-ईवन स्कीम के खिलाफ हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक याचिका दाखिल की गई। लेकिन हाईकोर्ट ने ऑड-ईवन के नोटिफिकेशन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि साथ में यह निर्देश भी दिया कि अगली बार सरकार उन सवालों पर भी जरूर विचार करे जो इस दौरान उठाए गए हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की। देश के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा कि लोग प्रदूषण की वजह से मर रहे हैं और आप इस योजना को चुनौती दे रहे हैं। यहां तक कि खराब हालत के चलते सुप्रीम कोर्ट के जज भी कार पूल कर रहे हैं। यह याचिका पब्लिसिटी स्टंट लगती है और याचिकाकर्ता अखबार में अपना नाम छपवाना चाहता है। शहर की आबोहवा साफ करने के लिए सरकार ही नहीं हम सबको मिलकर सहयोग करना होगा।

अब सब अच्छा-अच्छा है तो 16 जनवरी से दिल्ली वालों की एक दूसरी परीक्षा होने जा रही है। अगर 15 दिनों तक दिल्ली के लोगों ने जुर्माने के डर के बिना इस योजना में सहयोग किया तो क्या वे आगे जारी रखेंगे। क्या वे तब भी ऑड-ईवन का पालन करेंगे जब यह लागू नहीं होगा। जनभागीदारी का असली स्वरूप तो अब सामने आएगा।

(रवीश कुमार NDTV इंडिया में सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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