नमस्कार मैं रवीश कुमार। आपने टूथपेस्ट के विज्ञापनों में देखा होगा कि कैसे हर साल एक ही पेस्ट के कई रंग के डिब्बे आ जाते हैं। हर डिब्बा दावा करता है कि वो दूसरे से अलग और अबकी बार नया है। हिन्दुस्तान की राजनीति का भी यही हाल है। भारत की सभी पार्टियां खुद को बार-बार लांच करती रहती हैं। हिन्दुस्तान की राजनीति में नरेंद्र मोदी एक नई विभाजक रेखा के रूप में उभर चुके हैं। जो भी हो रहा है या तो इनके साथ आने के लिए हो रहा है या फिर इनके ख़िलाफ़ जाने के लिए।
अगर मोदी न होते तो जंतर-मंतर रोड पर मुलायम सिंह यादव के घर छह राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि जमा नहीं होते। समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव, जनता दल युनाइटेड के नीतीश कुमार, शरद यादव, जनता दल सेकुलर से एचडी देवेगौड़ा, आरजेडी से लालू प्रसाद यादव, इंडियन नेशनल लोकदल के दुष्यंत चौटाला समाजवादी जनता पार्टी के कमल मोरारका ने अपनी संख्या को सहेजने का प्रयास किया। जिस वर्तमान परिस्थिति के कारण ये कभी अलग हुए होते हैं उसी वर्तमान परिस्थिति के नाम पर एक भी हो जाते हैं। बदली हुई परिस्थिति राजनीति की वो स्थिति है जो कभी भी किसी को भी बदलने की सहज अनुमति देती है। जेडीयू के नेता नीतीश कुमार ने कहा कि जो पुराने जनता परिवार के घटक हैं वो संसद में कई मुद्दों पर मिलकर स्टैंड लेंगे। संसद के अंदर भी और बाहर भी। इसके लिए जनता परिवार 22 दिसंबर को दिल्ली में धरना प्रदर्शन का एक साझा कार्यक्रम करेगा। जिसमे यह सवाल उठेगा कि बीजेपी ने किसानों से वादा किया था कि पचास फीसदी मुनाफे की गारंटी के साथ न्यूनमत समर्थन मूल्य दिया जाएगा। उसका क्या हुआ।
इन छह नेताओं ने मुलायम सिंह यादव को जिम्मेदारी दी है कि वे इन सबको मिलाकर एक दल बनने की प्रक्रिया की देखरेख करें। नीतीश कुमार ने भी कहा है कि कंफ्यूज़न न हो इसके लिए ज़रूरी है कि एक पार्टी बने।
इस एकजुटता के कारण संसद में इस जनता परिवार की ताकत 45 हो जाती है। लोकसभा में 15 और राज्यसभा में 30। हिन्दू अखबार में स्मिता गुप्ता ने लिखा है कि वोट शेयर के हिसाब से यह गठबंधन तीसरा बड़ा समूह हो जाता है। अगर यह मिलकर चुनाव लड़ते तो लोकसभा की 16 सीटें और जीत सकते थे।
चुनाव हो चुके हैं इसलिए पेपर पर जोड़ घटाव करने से कोई लाभ नहीं है। यह ज़रूर है कि जनता परिवार चाहे जितनी बार बिखरा हो या अप्रासंगिक हो गया हो, लेकिन भारतीय राजनीति में कांग्रेस के वर्चस्व को तोड़ने में इनकी भूमिका बीजेपी से कम कामयाब नहीं है बल्कि बीजेपी को भी सहारा इसी परिवार से मिला है।
आज यह परिवार बीजेपी के फैलते वचर्स्व से लड़ने के लिए एक जुट हो रहा है तो स्थितियां वैसी नहीं हैं जैसी सत्तर के दशक में थी। जनता परिवार के सामाजिक सह जातिगत आधार के मुकाबले नरेंद्र मोदी मल्टी पैकेज के रूप में लांच हो चुके हैं। वे पिछड़े भी हैं ग़रीब भी हैं बिजनेसमैंन हैं गवर्नेंस गुरु हैं विश्व नेता हैं और प्रशासक भी। इसलिए दलित और पिछड़ों के भी बड़ी मात्रा में बीजेपी की तरफ जाने की बात होती है।
इन नेतृत्व और संगठन के स्तर पर क्या कुछ ऐसा पेश करने की क्षमता और जज़्बा रखता है तो जनता परिवार के सामाजिक आधार की नई पीढ़ी को भी आकर्षित करे और एक विपक्ष के रूप में जनता को भी। क्या लोग यकीन करेंगे कि लालू नीतीश के नेतृत्व में या नीतीश लालू मुलायम के नेतृत्व में काम करेंगे। लालू यादव औ मुलायम सिंह यादव समधी होने जा रहे हैं। हमारी राजनीति में क्षेत्रीय दलों की भूमिका का ठीक से मूल्यांकन नहीं हुआ। जबकि कई बार ये दल काम के आधार पर दोबारा भी चुन कर आते रहे फिर भी इनकी छवि बैड ब्वाय की ही है। विकास पुरुष होकर भी जाति की छवि से बाहर नहीं आ पाते। केंद्र में भले स्थायी सरकार न दे पायें हों लेकिन राज्यों में किसी से कम टिकाऊ साबित नहीं हुए हैं। इनके अच्छे दिनों की छवि भी एक भौगोलिक सीमा में ही कैद हो कर रह जाती है।
अक्तूबर 2013 और फरवरी 2014 में चार वाम दलों और एआईडीएमके, जेडीयू, सपा, एजीपी, जेडीएस और बीजेडी की बैठक हुई थी। लेकिन चुनाव आते आते तीसरा मोर्चा की चर्चा भी समाप्त हो गई। तब अरुण जेटली ने कहा था कि तीसरे मोर्चे को लेकर बीच-बीच में जो प्रयोग होते रहते हैं वो कभी सफल नहीं हुए हैं। थोड़े दिनों के बाद यह मोर्चा समाप्त हो जाता है। कई हारे हुए दलों के साथ गठबंधन बनाने का फार्मूला सफल नहीं हो सकता। लेकिन चुनाव के तुरंत बाद बिहार में जब उप-चुनाव हुए तो जेडीयू, आरजेडी ने कांग्रेस से मिलकर बीजेपी से थोड़ी बढ़त बना ली। समाजवादी पार्टी ने भी यूपी मे सीटे जीत लीं। इसके बावजूद आप इस प्रयोग को फिलहाल गेम चेंजर नहीं कह सकते। उधर, बीजेपी को रोकने के लिए अक्सर साथ रहने वाले वाम दल फिर साथ आ चुके हैं। अपनी ताकत दिखाने के लिए इसी महीने कोलकाता में रैली करने जा रहे हैं।
जनता परिवार का नाम सामने आते ही इतने सारे क्या जुड़ने लगते हैं कि कुछ क्या आप भी अपनी तरफ से जोड़ सकते हैं। प्राइम टाइम
This Article is From Dec 04, 2014
फिर करीब आया जनता परिवार का दल
Ravish Kumar, Rajeev Mishra
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Updated:दिसंबर 04, 2014 21:47 pm IST
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Published On दिसंबर 04, 2014 21:44 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 04, 2014 21:47 pm IST
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