आदेश और अध्यादेश के चक्कर में नेशनल एंट्रेंस एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट नीट (NEET) फंस गया है। क्या सरकार ने नीट के ख़िलाफ अध्यादेश का कदम वाकई ज़मीनी हकीकत के आधार पर उठाया है या उसके सामने कृत्रिम विरोध की तस्वीर पेश की गई। 10 मई को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि इसी साल से नीट होगा। एक मई के एआईपीएमटी को नीट वन मान लिया गया और 24 जुलाई को नीट टू कराने के आदेश दिये गए। इस बीच संसद में और सर्वदलीय बैठक में कई दलों के सांसदों ने नीट के आदेश को निरस्त करने की मांग की। शुक्रवार के रोज़ केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तय किया है कि 24 जुलाई को नीट टू होगी। हमारे सहयोगी अखिलेश शर्मा के अनुसार 1 मई को हुई नीट वन की परीक्षा बरकरार रहेगी। राज्य सरकारों को इस साल अपनी परीक्षा कराने की छूट दी गई है। यानी वो 24 जुलाई की नीट से बाहर हो गए हैं। जिन प्राइवेट मेडिकल कालेजों में सरकारी कोटा नहीं है वे अपनी परीक्षा करा सकेंगे। ये भी नीट टू से बाहर हो गए हैं। यानी ऐसे कॉलेजों को नीट के दायरे से बाहर कर दिया गया है। जिन प्राइवेट कालेज में सरकारी कोटा है वहां नीट होगी, यानी 24 जुलाई को होगी। यह छूट सिर्फ एक साल के लिए दी गई है।
छात्रों की आशंका इस साल को लेकर नहीं है। अगले साल को लेकर भी है कि कहीं यह अध्यादेश नीट की व्यवस्था को समाप्त करने का तरीका तो नहीं है। उनकी समस्या ये है कि प्राइवेट मेडिकल अपनी परीक्षा तो ले लेते हैं मगर उनके यहां बहुत सी सीटें नॉन रेज़िटेंड इंडियन के नाम से रख दी जाती हैं। ये सीटें बाद में अमीर और पहुंचवालों के बच्चे ख़रीद लेते हैं और डॉक्टर बन जाते हैं। कहीं कहीं एक-एक करोड़ का डोनेशन चलता है। आम छात्रों को लगा कि नीट के दायरे में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज आने से उन सीटों पर भी उनका दावा बन सकेगा। बल्कि यह आम धारणा है कि मोटी कमाई और किसी को भी डाक्टर बना देने की रियायत के कारण प्राइवेट मेडिकल कालेजों को छूट मिलती रही है। आखिर उन प्राइवेट कॉलेजों को नीट टू की परीक्षा से बाहर क्यों किया गया है जिनमें सरकार का कोटा नहीं है। प्रसाद काथे ने मुंबई के कुछ अभिभावकों से बात की जो नीट की व्यवस्था समाप्त कर देने के पक्ष में हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी पूरी सुनवाई के दौरान इस बात पर नज़र रखा कि किसी भी तरीके से प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को छूट न मिले। कई छात्रों से मैंने खुद भी बात की जिनका कहना है कि साधारण घर के बच्चे के पास सिर्फ सरकारी मेडिकल कॉलेज की सीट रह जाती है जबकि अमीर बच्चों के पास उनकी सीट के अलावा पैसे देकर डॉक्टर बनने का विकल्प रहता है। इसलिए केंद्र सरकार के अध्यादेश को लेकर कई राजनीतिक दलों ने एतराज़ जताया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि 'हम सब जानते हैं कि कई प्राइवेट कॉलेजों के एडमिशन में कितनी धांधली होती है। बड़ा पैसों का खेल चलता है। प्रतिभाशाली बच्चों को छोड़कर पैसे वालों के बच्चों से भारी भरकम राशि लेकर उन्हें दाखिला दे दिया जाता है। इस अधिकांश पैसे का लेनदेन दो नंबर में होता है। आप से निवेदन है कि नीट को बंद करने का कोई अध्यादेश न लाया जाए नहीं तो लोगों को संदेश जाएगा कि केंद्र सरकार काला धन संचय करने वालों का साथ दे रही है।'
एनसीपीने भी ऐतराज़ जताया है। कांग्रेस पार्टी ने भी अपनी प्रेस कांफ्रेंस में नीट की परीक्षा को निरस्त करने के अध्यादेश के ख़िलाफ बयान दिया है।
लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट और डेंटिस्ट एक्ट का सहारा लेते हुए प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को अपनी प्रवेश परीक्षा कराने की अनुमति दे दी है। इसके पहले केंद्र सरकार ने राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ बैठक की थी जिसमें कई राज्यों ने नीट की परीक्षा को टालने के लिए कहा था। पहले कहा जा रहा था कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेज नीट के तहत ही रहेंगे। मगर अब उन्हें भी आज़ादी दे दी गई है।
भाषा के सवाल पर हमने पिछले प्राइम टाइम में रिसर्च किया था कि क्या प्राइवेट कॉलेज अंग्रेज़ी के अलावा स्थानीय भाषाओं में प्रवेश परीक्षा लेते हैं। राज्यों में सरकारी मेडिकल कॉलेज की परीक्षाएं तो अंग्रेज़ी के अलावा अन्य भाषाओं में होती हैं लेकिन हमने पाया कि प्राइवेट कॉलेज अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा में इम्तहान नहीं लेते हैं। कहीं स्थानीय भाषा का सवाल उठाकर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों को नीट से बाहर निकालने का रास्ता तो नहीं बनाया गया।
Association of Management of Unaided Private Medical and Dental Colleges, Maharashtra (AMUPMDC) की वेबसाइट से पता चला कि प्रश्न पत्रों का माध्यम अंग्रेज़ी ही होगा। महाराष्ट्र में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की परीक्षा अंग्रेजी में होती है। कर्नाटक कामन एंट्रेस टेस्ट, कामेड की परीक्षा सिर्फ अंग्रेज़ी में होती है। कामेड के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों का इम्तहान होता है। उड़ीसा में ज्वाएंट एंट्रेंस एग्ज़ामिनेशन होता उसमें सिर्फ अंग्रेज़ी में ही इम्तहान होते हैं। हरियाणा के भी कई प्राइवेट मेडिकल कॉलेज अंग्रेज़ी में इम्तहान लेते रहे हैं।
अगर भाषा का सवाल है तो हरियाणा के रोहतक पीजीआई की प्रवेश परीक्षा अंग्रेज़ी में ही क्यों होती है। हिन्दी में क्यों नहीं होती। रोहतक पीजीआई के तहत तीन मेडिकल कॉलेज हैं। उड़ीसा में भी सरकारी कॉलेजों की परीक्षा अंग्रेज़ी में होती है। मोदी सरकार ने अध्यादेश लाने में देरी नहीं की लेकिन जब सुप्रीम कोर्ट नीट के बारे में सुनवाई कर रही थी और फैसले दिये जा रही थी तब मोदी सरकार के विज्ञान व प्रोद्योगिकी मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने ट्वीट कर सुप्रीम कोर्ट को बधाई दी थी। डॉक्टर हर्षवर्धन पेशे से डॉक्टर हैं।
मोदी सरकार के एक मंत्री ने जिस फैसले को ऐतिहासिक बताया है उसी के ख़िलाफ उनकी सरकार के मंत्रिमंडल ने अध्यादेश लाने का फैसला किया। 2014 में स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए डॉक्टर हर्षवर्धन ने रंजीत राय कमेटी का गठन किया था। कमेटी ने सितंबर 2014 को अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि नेशनल कमिशन फार ह्यूमन रिसोर्सेस फॉर हेल्थ बिल लाने का सुझाव दिया था लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया। 2010 में भी प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से एक मसौदा राज्यसभा में रखा गया था जिसके मुताबिक एमसीआई का पुनर्गठ करना था। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को नेशनल कमिशन फॉर ह्यूमन रिसोर्सेस फॉर हेल्थ बना दिया जाए। इसका काम देश में स्वास्थ शिक्षा की व्यवस्था का एक विश्वसनीय मानक बनाना था।
कई लोगों ने नीट के आदेश को मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया में सुधार की शुरुआत के रूप में भी देखा था। सवाल उठ रहे थे कि एमसीआई भ्रष्टाचार को लेकर सवालों के घेरे में रहती है वो जब इम्तहान लेगी तो संदेह फिर से उठेंगे। मशहूर वकील राजीव धवन ने दि वायर नाम की वेबसाइट पर लिखे अपने लेख में यह सवाल उठाया है। राजीव धवन का कहना है कि आप पूरी तरह भरोसा नहीं कर सकते कि सरकार जो इम्तहान कराएगी वो सही ही होगी। मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाला सबके सामने है। वहां किस तरह सरकारी अधिकारियों और नेताओं ने मिलकर फर्ज़ी एडमिशन कराए ये सबने देखा है। धवन का तर्क है कि मनिपाल जैसे प्राइवेट कॉलेज की परीक्षा पर सवाल नहीं उठा है। धवन ने मणिपाल को प्रसिद्ध और ईमानदार कहा है। TMA pai(2002) केस में 11 जजों ने फैसला दिया। उस फैसले में कहा गया था कि सिर्फ सरकार ही स्कूल और कॉलेजों की शिक्षा समस्या का हल नहीं कर सकती है, इसके लिए public private partnership की ज़रूरत है। बगैर सरकारी मदद के चलने वाले प्राइवेट कॉलेजों को दाखिले से लेकर फीस के मामले में आज़ादी होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 मई की सुनवाई में साफ किया है कि पहली नज़र में ये नहीं साबित हो रहा है कि NEET के लागू होने से राज्य के अधिकारों या अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों पर प्रभाव पड़ेगा। क्योंकि NEET सिर्फ अपनी मेरिट लिस्ट जारी करके राज्यों को देगा और वो अपने नियमों के हिसाब से, डोमिसाइल के हिसाब से, अल्पसंख्यक और आरक्षण के हिसाब से छात्रों को दाखिला दे सकते हैं। जो भी सवाल उठे हैं वो सभी सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान उठे हैं। कुछ लोगों ने यह ज़रूर कहा कि नीट अच्छी व्यवस्था है इसे अगले साल से लागू किया जाना चाहिए था मगर क्या वाकई छात्रों के बीच नीट को लेकर नाराज़गी है। या नाराज़गी की कहानी गढ़ी गई है।
This Article is From May 20, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : क्या वाकई छात्रों के बीच NEET को लेकर नाराज़गी है?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:मई 20, 2016 21:41 pm IST
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Published On मई 20, 2016 21:41 pm IST
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Last Updated On मई 20, 2016 21:41 pm IST
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