हमने schoolfee@ndtv.com पर आप लोगों से स्कूलों में हो रही वसूली के बारे में जानकारी मांगी थी. हमें कई राज्यों, ज़िलों और शहरों और गांवों से ई-मेल आए हैं. सबने ई-मेल करते वक्त लूट शब्द का ख़ूब इस्तेमाल किया है और एक नया शब्द स्कूलों के संदर्भ में आ रहा है. बूचड़खाना. कई ई-मेल में कहा गया है कि स्कूल बूचड़खाने से भी बदतर है. तो ये हैं उनकी कल्पनाओं के स्कूल जो अपने बच्चों को रो गाकर उसी बूचड़खाने में भेज रहे हैं. सैकड़ों ई-मेल पढ़ना मुमकिन तो नहीं है मगर कइयों को पढ़ते वक्त लगा कि माता पिता काफी डरते हैं. कई लोगों ने सावधानी बरती है कि नाम न पता चले, कइयों ने नाम नहीं दिया है और कइयों ने मेल करने के लिए नए नए आईडी से मेल बनाए हैं. एक जनाब ने तो अमेरिका ने हाल ही में बम गिराया है उसी के नाम पर ई-मेल बनाकर अपनी व्यथा भेजी है. मदर ऑफ ऑल बम के नाम से. ढेरों ई-मेल से पता चलता है कि स्कूल चाहे सांसद का हो, सेना के पूर्व अधिकारी का हो, व्यापारी का हो या फिर मीडिया घराने वालों का हो, सब में माता पिता की मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है. मीडिया घरानों के स्कूलों में भी दोहन वैसा ही है. श्रीनगर जहां दिन रात हंगामा है वहां भी स्कूल वाले उसी तरह वसूल रहे हैं जिस तरह से भारत के स्कूल वाले. चेन्नई और बंगलुरू से हमें बहुत सारे ई-मेल मिले हैं.
महाराष्ट्र के अमरावती, मुंबई, पुणे, ठाणे, नाशिक, नागपुर से ई-मेल आए हैं. मध्यप्रदेश के भोपाल, इंदौर, रीवा, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, सिधी, ग्वालियर, जबलपुर, बुरहानपुर, छत्तीसगढ़ के रायपुर, दुर्ग, भिलाई, उड़ीसा के भुवनेश्वर, पारादीप से ई-मेल आए हैं. यूपी के 20 से भी अधिक शहरों या ज़िलों से मेल आए हैं. सहारनपुर, मुज़फ्फ़रनगर, मोरादाबाद, ग़ाज़ियाबाद, पिलखुआ, नोएडा, देवरिया, गोरखपुर, बस्ती, मऊ, आज़मगढ़, वाराणसी प्रमुख हैं. हरियाणा के 10 से अधिक शहरों से ई-मेल आए हैं. भिवाड़ी, रेवाड़ी, कुरुक्षेत्र, करनाल, फ़रीदाबाद, बल्लभगढ़, कैथल प्रमुख हैं. राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, भिलवाड़ा और उदयपुर से लोगों ने पत्र लिखे हैं. गुजरात के अहमदाबाद, गांधीनगर, राजकोट, भावनगर, सूरत, वडोदरा से पत्र आया है. झारखंड के रांची, बोकारो जमशेदपुर, कोडरमा से भी ई-मेल आया है. बिहार के पटना, दरभंगा, भागलपुर, मोतिहारी और हिमाचल के सोलन, मंडी ,शिमला से मेल आए हैं. पंजाब के भी कई शहरों से ई-मेल आए हैं. असम के जोरहट और गुवाहाटी से भी लोगों ने लिखा है.
हमें पता है कि भारत में अच्छे प्राइवेट स्कूल हैं. जो अच्छे स्कूल हैं उन्हें हमारी जनसुनवाई से आहत होने की ज़रूरत नहीं है. हम बात उन स्कूलों की कर रहे हैं जो अनाप शनाप तरीके से पैसे लेते हैं. एक मेल में प्रधानमंत्री मोदी से अपील की गई है कि स्कूलों पर सर्जिकल स्ट्राइक ज़रूरी हो गया है. किसी स्कूल को अनुमति नहीं है कि वो यूनिफॉर्म या किताब की कच्ची रसीद दे. नगद में फीस ले. ये सब टैक्स चोरी के लिए हो रहा है. हम ई-मेल में किये गए दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर सके हैं लेकिन इन्हें पढ़ते हुए लग रहा है कि इन्हें प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की सज़ा दी जा रही है. ई-मेल को पढ़ते हुए हम वसूली के कुछ उदाहरण आपके लिए चुने हैं.
राजकोट के एक स्कूल ने 250 के योगा मैट के लिए 1500 लिया. जोरहट, असम के स्कूल में हेयरबैंड के लिए 100 रुपया लिया गया. बंगलुरू का एक स्कूल 100 मीटर की दूरी का ट्रांसपोर्ट फीस 1500 रुपया ले रहा है. जयपुर के एक स्कूल ने 50 रुपये की डायरी 350 रुपये में बेची. इंदौर के एक स्कूल में ज़बरन हेल्थ प्रीमियम लिया जबकि माता-पिता ने बच्चे का बीमा कराया है. सोनिपत से ई-मेल आया है कि मेरी स्टेशनरी की दुकान है फिर भी बच्चों की कॉपी स्कूल से ख़रीदता हूं. आज़मगढ़ के एक नर्सरी स्कूल में हर साल ड्रेस चेंज होती है, फिरोज़ाबाद के एक नर्सरी स्कूल में हर दिन अलग ड्रेस होती है. फ़रीदाबाद के एक स्कूल ने मैजिक ओरल पेन के लिए 1790 रुपये लिये हैं. बटन पर स्कूल के नाम लिखे होते हैं जिसे स्कूल से ही खरीदना पड़ता है. यूनिफॉर्म बेचने के लिए स्कूल ऑनलाइन दुकानें खोल रहे हैं.
गुवाहाटी से एक माता-पिता ने लिखा है कि पिछले साल हम लोगों ने आंदोलन किया तो इस साल स्कूल में फीस नहीं बढ़ी मगर इस साल स्कूल ने इतिहास की एक किताब के लिए 1500 रुपये लिये हैं. अगर उनका दावा सही है तो हमें शर्म आनी चाहिए. हमारे दर्शक विक्रमजीत ने बताया है कि पूरे चीन में एक ही स्कूल यूनिफॉर्म है. वहां बच्चे ट्रैक सूट पहनते हैं. स्वाति ने लिखा है कि वे हाल ही में भारत से अमरीका आईं हैं. यहां कोई स्कूल यूनिफॉर्म नहीं होता है. भारत में हमें स्कूलों का शोषण भुगतना पड़ रहा था. भारत में भी कुछ स्कूलों में नर्सरी के बच्चे को स्कूल यूनिफॉर्म नहीं लगता है. दिल्ली में ही एक ऐसा स्कूल है, नर्सरी के दो साल तक कोई यूनिफॉर्म नहीं है. स्कूल कहता है कि बच्चा पुराना कपड़ा ही पहनकर आए वही उचित होगा. लेकिन मैं दो चार अच्चे स्कूलों की बात नहीं करूंगा. मैं भारत के तमाम शहरों में स्कूलों के भीतर हो रही लूट की बात कर रहा हूं. पहले टीचर की सैलरी को लेकर राजकोट से आए एक मेल की बात करना चाहता हूं. अगर इस ईमेल की सूचना सही है तो राजकोट का एक स्कूल अधिक सैलरी टीचर के अकाउंट में जमा करता है. सभी टीचर का एटीएम स्कूल प्रबंधन के पास है. उनका पासवर्ड भी. सैलरी जमा होने के बाद प्रबंधन पैसा निकाल लेता है. ऐसा ही एक मेल यूपी से आया था कि चेक पहले ले लेते हैं, टीचर के अकाउंट में पैसा जमा होता है और निकाल लिया जाता है. ये टीचर की हालत है. स्कूल में पढ़ाने वाले माता-पिता भी डरे हुए हैं. टीचर भी डरे हुए हैं. स्कूलों के ज़रिये लोगों पर गुलामी थोपी जा रही है.
अब आ जाते हैं ट्रांसपोर्ट पर. बसों में सुरक्षा नियमों के पालन में भारी लापरवाही की शिकायत आई हैं. 50 की क्षमता वाली बसों में 100-100 बच्चे ठूंस कर भेजे जाते हैं. बसों में फर्स्ट एड किट नहीं रखी होती है. बसों का रखरखाव भी ख़राब होता है. बस चालक सड़क नियमों का पालन नहीं करते. स्कूल बसों की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने व्यापक निर्देश भी दिये हैं. कई स्कूल पालन भी करते हैं और ज़्यादातर नहीं भी करते हैं. जैसे किसी स्कूल के लिए बस या वैन किराये पर ली जाएगी तो उस पर ऑन स्कूल ड्यूटी लिखा होना चाहिए. बस के ड्राईवर की यूनिफॉर्म भी तय कर दी गई है. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ड्राइवर के पास बस में सवार सभी बच्चों की एक सूची होनी चाहिए. जिसमें बच्चों के नाम, क्लास, घर का पता, ब्लड गुप, स्टॉपेज, रूट प्लैन होना चाहिए. बस की खिड़कियों पर horizontal grills होनी चाहिए. बस में आग बुझाने वाला उपकरण होना अनिवार्य है. बस पर स्कूल का नाम और टेलीफ़ोन नंबर लिखा होना अनिवार्य है. स्कूल बस में कम से कम एक अटेंडेंट होना चाहिए. स्कूल बसों में स्पीड गवर्नर लगे होने चाहिए. स्कूल की गाड़ी का रंग हाईवे येलो होना चाहिए और बीच में 150 एमएम की हरी पट्टी चारों ओर बीचों बीच होनी चाहिए. अगर स्कूली बच्चों की उम्र 12 साल से कम है तो बस की क्षमता के डेढ़ गुना से ज़्यादा बच्चे नहीं ले जाए जाने चाहिए.
आज कल कई स्कूल पीली वाली बस तो खरीदने लगे हैं मगर बहुत से बच्चे अभी भी वैन से ही जाते हैं. बस का किराया तय करने का कोई सर्वमान्य फार्मूला नहीं है. किसी किसी स्कूल में तो घर 100 मीटर दूर है फिर भी बस से जाना अनिवार्य है. ऐसा कुछ माता पिता ने ई-मेल कर बताया है. हमने एक परिवहन अधिकारी से बसों का हिसाब किताब समझा है. 42 सीटर बस का उदाहरण लेते हुए उन्होंने बताया कि एक सामान्य स्कूल बस एक लीटर डीज़ल में 5 किलोमीटर चलती है. उदाहरण के लिए ऐसी एक बस हर रोज़ चालीस किलोमीटर का आना-जाना करती है. इस तरह एक दिन में आठ लीटर डीज़ल की खपत होती है. अगर स्कूल महीने के 25 दिन चलता है जो आम तौर पर नहीं होता, तो (25X8) = 200 लीटर डीज़ल एक बस में लगता है. 60 रुपये लीटर के हिसाब से एक बस में 12,000 रुपये का हर महीने डीज़ल लगेगा. इस पर हर महीने 5000 रुपये की मेंटीनेंस कॉस्ट लगा दीजिए. बस के छह टायर साठ हज़ार के आते हैं, तो इस मद में पांच हज़ार रुपए हर महीने लगा दीजिए. ड्राइवर की सैलरी - 15000, हेल्पर की सैलरी - 6000. इस तरह एक गाड़ी पर हर महीने 43000 रुपए लागत आई. 43000 = ( 12000 + 5000 + 5000 + 15000 + 6000).
हर दिन चालीस किमी की दूरी तय करने वाली एक बस पर हर महीने औसतन 43,000 का ख़र्च आता है. इसमें बस की किस्त शामिल नहीं है. मान लीजिए 30,000 रुपये किस्त होती है बस की. तो इस हिसाब से हर महीने बस की कुल लागत पड़ेगी 73 हज़ार रुपए. अगर बस में 42 बच्चे ही सफर करते हैं तो एक महीने में बस के लिए 1738 रुपये का खर्च आएगा. लेकिन हमने देखा है कि 500 मीटर से लेकर दो किमी की दूरी के लिए भी स्कूल बस फीस के नाम पर दो से तीन हज़ार या उससे भी अधिक लेते हैं.
This Article is From Apr 17, 2017
प्राइम टाइम इंट्रो : क्या ट्रांसपोर्ट के नाम पर भी स्कूलों में लूट मची है?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
-
Updated:अप्रैल 17, 2017 22:24 pm IST
-
Published On अप्रैल 17, 2017 22:24 pm IST
-
Last Updated On अप्रैल 17, 2017 22:24 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं