व्‍यापमं घोटाला : एक के बाद एक मौत के पीछे साजिश?

नई दिल्‍ली:

सोमवार सुबह दैनिक भाष्कर की इस ख़बर में ये लिखा है कि बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बनने के बाद कैलाश विजयवर्गीय पहली बार भोपाल आए तो स्वागत में गाड़ियों का काफिला इतना लंबा हो गया कि दो घंटे का जाम लग गया। इस जाम में फंसी एक एंबुलेंस में नवजात बच्ची थी जिसे जल्दी अस्पताल ले जाने के लिए उसका पिता एंबुलेंस का दरवाज़ा पीटता रह गया। डॉक्टरों ने कहा कि आधा घंटा पहले ये बच्ची आ जाती तो जान बच सकती थी।

कैलाश विजयवर्गीय से जब पत्रकार अक्षय सिंह की मौत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पत्रकार वत्रकार क्या होता है, हमसे बड़ा पत्रकार होता है क्या। जिस पार्टी के महासचिव बने हैं उनके नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी खुद को सेवक बताते हैं। सेवक की पार्टी के महासचिव खुद को सबसे बड़ा बताते हैं।

कैलाश विजयवर्गीय का कहना है कि मीडिया ने उनके उस बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है जिसे आप कैमरे में उन्हें साफ-साफ बोलते देख सकते हैं। व्‍यापमं की व्यापकता की हालत ये है कि मध्य प्रदेश के डॉक्टरों की जमात कैमरे पर बोलने से घबरा रही है। 4 जुलाई 2014 और 4 जुलाई 2015 को यानी साल भर के अंतर पर एक ही तारीख के दिन जबलपुर मेडिकल कॉलेज के दो-दो डीन की मौत हो जाए, सोचिये चंद्रकांता संतति लिखने वाले देवकीनंदन खत्री जी भी बेहोश हो जाएं। आगाथा क्रिस्टी तो भोपाल आकर पागल ही हो जाएंगी।

जबलपुर मेडिकल कॉलेज इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां के 99 छात्रों के खिलाफ मामला चल रहा है जिनका फर्ज़ी तरीके से मेडिकल में एडमिशन हुआ था। यहां इन मुन्नाभाइयों की जांच चल रही है। सबसे पहले मध्य प्रदेश के बेहतरीन फॉरेंसिक एक्सपर्ट डॉक्टर डी.के. साकल्ले की मौत की खबर आती है कि उन्होंने मिट्टी का तेल डालकर खुद को जला लिया। उसके बाद 4 जुलाई को दिल्ली के एक होटल में साकल्ले की जगह डीन बने डॉक्टर अरुण शर्मा की मौत की ख़बर आती है। पुलिस ने उनके कमरे की जांच की तो शराब की खाली बोतल और दवा की पत्ती मिली है। अभी तक यही कहा गया कि दोनों के संबंध व्‍यापमं मामले की जांच से हैं लेकिन सोमवार को अतिरिक्त महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव ने कहा कि इनका संबंध व्‍यापमं की जांच से नहीं था।

जांच तो डॉक्टर बी.के. गुहा की कमेटी कर रही है। लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन जबलपुर चैप्टर के अध्यक्ष सुधीर तिवारी का कहना है कि दोनों का संबंध व्‍यापमं की जांच से था। डॉक्टर तिवारी ने अपनी सुरक्षा की भी मांग की है। फिलहाल इस तस्वीर में कांग्रेस के उनके साथी डंडा लिये सुरक्षा कर रहे हैं। प्राइम टाइम की प्रस्तावना पढ़े जाने के वक्त भी वहां लाठी लिये मौजूद हैं या नहीं, मैं पुष्टि नहीं कर सकता।

डॉक्टर बी.के. गुहा ने हमारे सहयोगी संजीव चौधरी से कहा है कि बीजेपी सांसद फगन सिंह कुलस्ते ने फर्ज़ी डॉक्टरों को सस्पेंड न करने का दबाव डाला था। संजीव ने डॉक्टर साकल्ले की मौत को लेकर उनके कई डॉक्टर मित्रों से बात की लेकिन कोई भी कैमरे पर बात करने का साहस नहीं जुटा सका। फर्ज़ी मुन्नाभाइयों के मामले में पहली एफआईआर 2010 में जबलपुर के गढ़ा थाने में दर्ज हुई थी। 2010 में मामला खुला तो पता चला कि 2008 से ही मुन्ना भाई एडमिशन पाए हुए हैं।

- 2008 के 14 छात्रों के खिलाफ एफआईआर किया गया
- 2009 के 27
- 2010 के 16
- 2011 के 6
- 2012 के 21
- 2013 के 9 मुन्ना भाइयों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज हुआ है

फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान किस आधार पर दावा करते हैं कि उन्होंने सबसे पहले 7 जुलाई 2013 को इस मामले को उजागर किया। वैसे 2000 में छत्तरपुर में एफआईआर दर्ज हो चुका था जब कांग्रेस की सरकार थी। इस बीच इंदौर से आनंद राय जो इस मामले को उजागर कर रहे हैं उनकी पत्नी गौरी राय का तबादला उज्जैन कर दिया गया है।

12 जून को तबादला हुआ है लेकिन आदेश इसी शनिवार को वेबसाइट पर डाला गया। गौरी राय के दो साल का बच्चा है। इस असुरक्षा के माहौल में व्हीसल ब्लोअर की पत्नी का तबादला जोखिम भरा हो सकता है। आनंद राय को जान का ख़तरा है। इसके लिए उन्हें सुबह से शाम तक के लिए गार्ड भी मिलता है। यह पूरे विश्व का पहला ख़तरा है जो घड़ी देखकर 11 बजे शुरू होता है और शाम सात बजे छुट्टी कर लेता है क्योंकि आनंद राय को इसी समय के लिए एक गार्ड मिलता है। ग्वालियर के आशीष को भी एक साइकिल सवार सिपाही सुरक्षा प्रदान कर रहा है। यह भी दुनिया का पहला ख़तरा है जो इस सिद्धांत पर कायम है कि आशीष को हमला करने वाला कभी स्कूटर बाइक से नहीं आएगा, आएगा तो पैदल या साइकिल से ही।

55 एफआईआर, 2500 आरोपी, 2000 गिरफ्तार और 500 फ़रार। व्यापकता देखिये इस व्यापमवा की। सोमवार को मध्य प्रदेश के अख़बारों की ख़बरों के अनुसार बीजेपी नेता गुलाब सिंह और उनके बेटे शक्ति प्रताप सिंह की तलाश में एसआईटी की टीम ने दिल्ली, भोपाल से लेकर भिंड तक कई बार दबिश दे चुकी है। इन पर इनाम घोषित किया जा सकता है। गुलाब सिंह मुख्यमंत्री के करीबी न होते तो
- उन्हें राज्य मंत्री का दर्जा न मिलता।
- राज्य पिछड़ा आयोग के विशिष्ट सदस्य थे।
- उनका बेटा शक्ति सिंह पीएमटी में चौथा रैंक लाकर फरार न होता।

यही नहीं शिवराज सिंह के पूर्व पीए प्रेम प्रसाद की बेटी का भी व्‍यापमं से एडमिशन हुआ है। एसआईटी चीफ के मुताबिक व्‍यापमं मामले में अभी तक संदिग्ध मौतों की संख्या 35 हो चुकी है। इनमें से 10 रोड एक्सिडेंट में मारे गए हैं, 5 ने आत्महत्या की है, 4 की मौत शराब या ड्रग्स से हुई है और दो की दिल का दौरा पड़ने से। 48 घंटे में तीन संदिग्ध मौत। क्या सब कुछ संयोग ही है। राजस्थान पत्रिका की यह क्लिपिंग बताती है कि इंदौर के एमजीएम मेडिकल कॉलेज के छात्र दीपक वर्मा की संदिग्ध परिस्थिति में मौत हो गई। दीपक ने 2008 में इस कॉलेज में दाखिला लिया था। दीपक के पिता का दावा है कि वो इस घोटाले से संबंधित हर राज़ को जान गया था इसलिए उसकी हत्या की गई। अखबार की रिपोर्ट मध्य प्रदेश सरकार के दावे को गलत साबित करती है कि किसी ने भी मौत के ख़िलाफ़ कोई संदेह प्रकट नहीं किया है या जांच की मांग नहीं की है। पिछले दिनों व्‍यापमं से जुड़े राजेंद्र आर्य की मौत के बाद उनकी पत्नी ने आरोप लगाया कि पुलिस उनसे पैसे मांग रही थी।

पिछले हफ्ते एसआईटी के चीफ रिटायर जस्टिस चंद्रेश भूषण ने हमारे सहयोगी सिद्धार्थ रंजन दास से कहा कि एसटीएफ से जुड़े दो जांचकर्ताओं ने अपनी सुरक्षा को लेकर चिन्ता ज़ाहिर की है। इन अफसरों ने चीफ को बताया है कि इस घोटाले से जुड़े कुछ प्रभावशाली लोगों ने उन्हें देख लेने की धमकी दी है। एसआईटी चीफ ने इसकी जानकारी जबलपुर हाई कोर्ट को दी है। दोनों जांचकर्ताओं ने 15 मामलों में चार्जशीट दायर की है।

महान एसआईटी के भरोसे एसटीएफ। एसटीएफ को धमकी मिलती है तो उसका भरोसा कोर्ट। लगता है धमकी देने वाले मौज कर रहे हैं। क्या मध्य प्रदेश की सरकार एसआईटी को भी सुरक्षा नहीं दे पा रही है। यह घोटाला सिर्फ मरने वालों की संख्या के चलते खतरनाक नहीं है बल्कि इसलिए भी है कि न जाने कितने मेहनती बच्चों के अरमानों का ख़ून कर नेताओं, अफसरों और एजेंटों के बच्चे डॉक्टर बन गए। मध्य प्रदेश में पिछले छह सालों में विभिन्न पदों पर 1 लाख 40 हज़ार भर्तियां हुईं हैं।

आपको जांच और जेल पर इतना ही भरोसा है तो एक छोटी सी प्रेरक कहानी और सुन लीजिए। आप रंजीत डॉन हैं। आपकी योग्यता को देखते हुए रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने बिहार विधान परिषद के लिए उम्मीदवार बनाया है। रामविलास पासवान मोदी मंत्रिमंडल में सहयोगी हैं और रंजीत डॉन मोदी के नाम पर भी वोट मांग रहे हैं। आप मेडिकल, इंजीनियरिंग और कई परीक्षाओं में पेपर लीक कराने के आरोपी हैं लेकिन आप देश छोड़कर भाग जाने वाले डॉन नहीं हैं। क्या हुआ जो सीबीआई का केस चल रहा है और आपने डेढ़ साल की जेल सेवा भी की है। आप जैसे प्रतिभाशाली नेता को मेरी तरफ से बधाई। वैसे भी पत्रकार वत्रकार आलोचना करके कर ही क्या लेगा। मेहनती छात्र रंजीत डॉन से प्रेरणा पा सकते हैं।

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जांच का श्रेय तो सब ले रहे हैं, घोटाले की ज़िम्मेदारी किसकी है।