गिरधारीलाल डोगरा, जम्मू-कश्मीर में 27 साल तक वित्त मंत्री रहे और 26 बार बजट पेश करने का मौका मिला। नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस में जीवन भर रहे गिरधारी लाल डोगरा के दामाद हैं बीजेपी के वरिष्ठ नेता और वित्त मंत्री अरुण जेटली। गिरधारीलाल डोगरा की जन्मशताब्दी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी, वित्त मंत्री जेटली, मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद और कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने भी शिरकत की। एक कांग्रेसी नेता की जन्मशती पर ऐसा समागम राजनीति का एक दुर्लभ और सुखद क्षण तो है ही, लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली गिरधारी लाल जी के दामाद न होते तो क्या ऐसा संगम होता। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने कहा कि सदा कांग्रेसी रहे गिरधारीलाल डोगरा जी 26 बजट पेश करने के बाद भी अपने लिए एक घर नहीं बना सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बात मार्के की कही न तो गिरधारीलाल जी ने अपने दामाद को विचारधारा बदल अपने पाले में आने के लिए कहा न दामाद ने अपने ससुर के रसूख का कोई इस्तमाल किया। दोनों अपने अपने कर्मों से अलग-अलग रास्ते पर चले।
यहीं पर कहते-कहते प्रधानमंत्री हल्के अंदाज़ में कह गए कि आज तो हम जानते हैं कि दामादों के कारण क्या-क्या बातें होती हैं। सब हंस तो पड़े लेकिन कांग्रेस को लगा कि प्रधानमंत्री ने रॉबर्ट वाड्रा पर टिप्पणी की है। बस बचाव और हमला शुरू होते ही बात परिवारवाद पर पहुंच गई। शकील अहमद ने कह दिया कि व्यक्तिगत बात नहीं करनी चाहिए। मोदी जी भी किसी के दामाद होंगे। उससे पहले प्रधानमंत्री ने कहा कि गिरधारीलाल डोगरा पर लगे चित्रों में एक भी तस्वीर में उनका परिवार नहीं है। सिर्फ अंतिम संस्कार के वक्त की तस्वीर में परिवार दिखता है। यह बात उनके मन को छू गई।
प्रधानमंत्री की इस बात पर मैं अपनी टिप्पणी करना चाहता हूं। क्या हमने मान लिया है कि आदर्श नेता वही है जो अपने परिवार को दूर रखता है। यह कहां और कब साबित हुआ है। इस लिहाज़ से राष्ट्रपति ओबामा तो बहुत बुरे होंगे जो अपने परिवारों के साथ सार्वजनिक रूप से दिखते हैं। राजनीति को संन्यास समझ लेना अजीब तर्क है। अमरीका में पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन राष्ट्रपति के चुनाव में उतरने जा रही हैं। बुश खानदान से एक और राष्ट्रपति बनने के लिए आ गए हैं। नए वाले का नाम है जैब बुश। हर लोकतंत्र में परिवारवाद एक नासूर बन चुका है।
इन पीढ़ियों के सहारे नेताओं और कारपोरेट का रिश्ता भी खानदानी लेवल पर चलने लगा है। अगर सब मानते है कि परिवारवाद नासूर है तो क्या हमारे नेताओं या दलों में साहस है कि परिवारवाद या दामादवाद के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दें। सब इस मुद्दे को पाल पोसकर रखते हैं ताकि कमज़ोर वक्त में ढेला मारने के काम आए। हमारा लोकतंत्र चंद परिवारों की गिरफ्त में आ गया है। यह एक बड़ी समस्या तो है लेकिन परिवारवाद का मतलब भी खुलकर समझ लेना चाहिए। परिवारवाद की बुनियाद सिर्फ
- ख़ानदानी और ख़ून के रिश्तों पर आधारित नहीं होती।
- कई बार कारोबारी और दोस्ताना वजहों से भी पारिवारिक रिश्ता बन जाता है।
- जैसे ललित मोदी के साथ सुषमा स्वराज और वसुंधरा राजे का पारिवारिक संबंध
- कई बार उद्योग के कुछ हिस्सों का सरकार पर इतना प्रभाव दिखने लगता है कि हम इसे परिवार की जगह क्रोनी कैपिटलिज्म बताने लगते हैं।
- क्रोनी कैपिटलिज़्म का मतलब कुछ लोगों के समूह का पूंजी और सत्ता पर नियंत्रण
राबर्ट वाड्रा एक मिसाल हैं तो एनडीए वन के टाइम वाजपेयी के दामाद का नाम भी ऐसे प्रसंगों में लिया जाता था। व्यापमं जैसे घोटाले में एक अलग किस्म का परिवारवाद दिखता है तो 2जी घोटाले में आपने एक खास किस्म का परिवारवाद देखा ही। इसी सात अप्रैल को हिन्दू अखबार में रुक्मणी श्रीनिवासन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि हमारे 130 सांसद राजनीतिक ख़ानदानों से आते हैं।
- लोकसभा में समाजवादी पार्टी 100 परसेंट पारिवारिक पार्टी है
- आंध्र प्रदेश की टीडीपी के 44 फीसदी सांसद राजनीतिक परिवारों से आते हैं।
- सबसे कम खानदानी किस्म के सांसद जयललिता की पार्टी से आते हैं।
- इसके दो ही सांसद विधायकों के बेटे हैं।
कांग्रेस की पहचान ही परिवारवाद से होती है, होनी भी चाहिए। लेकिन यह परिवारवाद अकाली दल या शिवसेना या अपनी पार्टी में क्यों नहीं दिखता। कांग्रेस क्यों नहीं परिवारवाद पर कुछ कहती है। बीजेपी के भीतर भी परिवारवाद के अनेक उदाहरण मिलेंगे।
- राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह सांसद हैं।
- छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह के बेटे भी सांसद हैं।
- एनडीए के दो सहयोगी अकाली दल और शिवसेना का परिवारवाद भी विख्यात है।
- अनुप्रिया पटेल का अपना दल भी परिवारवाद की विरासत पर खड़ा है।
- रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पारिवारिक रूप से सबसे लोकतांत्रिक पार्टी है।
राष्ट्रीय जनता दल के लालू प्रसाद यादव ने तो कह ही दिया है कि हमारा बेटा चुनाव नहीं लड़ेगा तो क्या भैंस चरायेगा। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में भी उनके भतीजे अब पावर सेंटर बन चुके हैं। आंध्र की तेलगु देशम पार्टी के मुखिया और मुख्यमंत्री चंद्राबाबू नायडू के बेटे भी पार्टी में सक्रिय हो गए हैं। गुरुवार को रायपुर में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का एक बयान अखबारों में छपा है
रायपुर भास्कर की हेडलाइन है- राजनीति में वंशवाद कोई बुराई नहीं है मीडिया की चिन्ता न करें। नई दुनिया की हेडलाइन है राजनीति में वंशवाद जायज़ है। मुझे नहीं पता कि छत्तीसगढ़ के विधायकों को प्रबोधन देते वक्त स्पीकर महाजन किसे सर्टिफिकेट दे रही हैं। राहुल गांधी को या बादल परिवार को या फिर अपनी पार्टी के भीतर फैले परिवारवाद को। बाद में कहा कि परिवारवाद अच्छा है ये नहीं कहा मगर कोई परिवार का आता है तो बुरी बात नहीं है। स्पीकर महाजन भूल गईं कि परिवारवाद और वंशवाद तो लोकसभा में मुद्दा था। पत्रकारों का नहीं बल्कि बीजेपी का था।
दामादवाद या परिवारवाद अगर भ्रष्टाचार के प्रतीक हैं तो इन्हें बचाने में सब क्यों जुटे रहते हैं। किसी नेता से पूछिये तो जवाब आता है कि हमने तो अपने घर में भ्रष्टाचार देखा ही नहीं। वो तो पड़ोसी के घर में रहता है। वैसे प्रधानमंत्री के दामाद शब्द से कांग्रेस चिढ़ी तो राहुल गांधी ने जो कहा वो क्या था
किसानों की बात आई.. हम ordinance पास करेंगे भईया... तीन बार ordinance पास किया। दम नहीं है। पार्लियामेंट में पास नहीं होने देंगे हम.. देख लेना। एक इंच ज़मीन नहीं जाएगी 56 इंच की छाती 5.6 इंच की छाती हो जाएगी 6 महीने में।
56 इंच की अच्छी भली छाती 5.6 इंच की। मुझे ये उपमा पसंद नहीं आई लेकिन पर्सनल बनाम पर्सनल यही तो राजनीति है। भ्रष्टाचार दूर कौन कर रहा है। सीबीआई या हमारे नेता। भ्रष्टाचार को दूर करने एक और आया था। लोकपाल। फिलहाल वही दूर हो गया है। सवाल यह है कि कब तक परिवारवाद या दामादवाद के नाम पर राजनीतिक भ्रष्टाचार से बचा जाता रहेगा।