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This Article is From Aug 14, 2014

क्या ज्यादा गंभीर हो गए हैं हम?

Ravish Kumar, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 12:43 pm IST
    • Published On अगस्त 14, 2014 21:31 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 12:43 pm IST

नमस्कार मैं रवीश कुमार। देश एक गंभीर दौर से गुज़र रहा है। इस गंभीरता के कारण हमें गंभीरता के दौरे पड़ने लगे हैं। दुनियाभर के वैज्ञानिक इस बात पर शोध कर रहे हैं कि कहीं गंभीरता में अपना हिन्दुस्तान तमाम देशों को पीछे न छोड़ दे। आज कोई कह रहा था कि हम भारत के लोग की जगह हम भारत के गंभीर लोग लिखा होना चाहिए। गंभीरता का बोझ अगर कहीं हैं तो यहीं है यहीं हैं यहीं है। इससे पहले कि हमारी नागरिकता भारतीयता के साथ साथ गंभीरता भी हो जाए एक सुझाव आ गया है।

और ये सुझाव 'नन अदर दैन' यानी किसी और ने नहीं बल्कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया है। वे इस बात को लेकर गंभीर हैं कि संसद में हास्य-विनोद कम हो गया है। लेकिन सरकारी विज्ञापनों में मंत्रियों नेताओं की हंसती तस्वीरों को देख ऐसा नहीं लगता। इन तस्वीरों में वे हंसते-हंसते 'स्टिल' हो गए हैं लेकिन 'रीयल लाइफ' में उनकी हंसी किसी ने 'स्टील' कर ली है यानी चुरा ली है।

संसद में हास्य व्यंग्य के मौके बीच बीच में आते रहते हैं, लेकिन मुद्दे ही ऐसे होते हैं कि उनके चेहरे पर गंभीरता की अक्षांश और देशांतर रेखाएं गहरी हो जाती हैं।
हमारे सांसद काम बहुत करते हैं और ये बात मैं गंभीरता से कह रहा हूं। दस लाख लोगों का प्रतिनिधित्व करना समस्याएं सुनना, शोक से लेकर हर्ष तक के कार्यक्रमों में जाना, सरकारी काम करना, संसदीय काम करना 'टू मच' से भी ज्यादा 'टू मच'। एक बार सांसद चुनने के बाद हम अपनी सारी उम्मीदें उन पर ट्रांसफर कर देते हैं और वो पूरी करते-करते यहां से वहां ट्रांसफर होते रहते हैं।

इसीलिए लंच ब्रेक के साथ हंसी ब्रेक भी हो या फिर प्रश्नकाल शून्य काल की तरह हंसी विनोद काल भी हो। बस आज एक दिन के लिए थोड़ी अतिरिक्त आज़ादी लेकर हम सांसदों पर टीका-टिप्पणी कर रहे हैं। इससे ज़्यादा कोई और इरादा नहीं है।
हमें पता है कि 14 अगस्त को राज्यसभा में सांसद जया बच्चन जी ने यह बात कही है कि एक प्राइवेट एफएम का रेडियो जॉकी सांसदों या नेताओं का मज़ाक उड़ा रहा था। अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहा था। उन्होंने कहा कि रेडियो जॉकियों ने संसद की ख़बरें देना शुरू कर दिया है और वे बहुत सारे सांसदों की नकल करते हैं। जया जी ने जानना चाहा कि सरकार इस बारे में क्या करेगी। सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर जी ने भी कह दिया कि सांसदों का मज़ाक उड़ाने या उनकी आवाज़ निकालने वाले एफ एम रेडियो जॉकी पर कार्रवाई की जाएगी। जया जी की इस शिकायत से सोशल मीडिया सदमे में हैं।

अब ये जानकर मैं भी सहम गया कि आज हास्य व्यंग्य पर प्राइम टाइम करूं कि न करूं। संसद की कार्यवाही पर व्यंग्य करने के लिए द्विअर्थी संवादों या अभद्र भाषा के इस्तेमाल से बचना चाहिए। मगर मंत्री की फाइल से तय होगा या सांसद की प्रोफाइल से।

जावड़ेकर जी से भी अपील है कि अगर वे ही हास्य व्यंग्य की रक्षा नहीं करेंगे तो हम प्रधानमंत्री की इस अपील पर कैसे चलेंगे कि हास्य विनोद की कमी हो गई है। हास्य विनोद और मज़ाक में फर्क होता है। इस बारीक अंतर को समझते हुए सवाल पूछने वाले एंकर की तरह मैं भी कुछ सवाल करना चाहता हूं।

क्या प्रधानमंत्री को सिर्फ संसद में हास्य विनोद की कमी दिखती है। क्या उन्हें देश में इसकी कमी नहीं दिखती। वे कब-कब हंसते हैं और वे कब-कब नहीं हंसते हैं। मेरे इन चारों सवालों का उन्हें हंसते हंसते जवाब देना चाहिए। एक आखिरी सवाल कि क्या वे अगले किसी सत्र में अखिल भारतीय हंसी विधेयक लाने की सोच रहे हैं। यदि हां, तो कृपया बतायें कि अभी तक इसके लिए गंभीर प्रयास क्यों नहीं हुए। क्यों हमारा देश हास्य कुपोषण के कारण संयुक्त राष्ट्र की लॉफ्टर रिपोर्ट में बांग्लादेश से भी नीचे है। ठीक है कि ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं है, मगर किसी दिन आ गई तो।

लेकिन तब क्या कीजियेगा जब कोई मोदी विरोधी आरोप लगा दे कि उनके पीएम बनते ही गंभीरता घट गई है। विनोद ही विनोद है। कुछ लोग गंभीरता बचाओ आंदोलन शुरू कर सकते हैं। कुछ लोग उनके हंसने की बात पर देश के तमाम हालात गिनाकर रोना शुरू कर सकते हैं और एक दिन ऐसा आ सकता है जब उन्हें हास्य व्यंग्य को लेकर सवर्दलीय बैठक बुलानी पड़ जाए। फिर भी हमने सोचा कि 15 अगस्त के मौके पर हंसी की गंभीरता पर बहस की जाए। क्या हम वाकई कम हंसते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम ख़ुद से नहीं हंसते हैं। मगर कोई हंसा दे तो हंस देते हैं। अगर हम ख़ुद से हंसने वाले होते तो कपिल देव के रहते कपिल शर्मा कैसे लोकप्रिय हो जाते।
कपिल शर्मा आज एक ब्रांड है। उन चीज़ों के भी ब्रांड हैं जिनका हंसी से कोई लेना-देना नहीं। हमने सुना है कि कपिल जी इतने बड़े ब्रांड हैं कि जो सामान इनके काम का नहीं होता उसका विज्ञापन ही नहीं करते। कोई फिल्म बुरी बन जाती है तो लोग हास्य संत कपिल शर्मा की शरण में आते हैं। कपिल शर्मा रात को टीवी पर न आयें तो लोग उसके अगले दिन भी नहीं हंसते हैं। अमृतसर का यह नौजवान हंसते हंसते करोड़पति बन गया।
हमारे आज के मेहमान भगंवत मान हंसाते हंसाते आम आदमी पार्टी से सांसद बन गए। हमारे एक और मेहमान राजू श्रीवास्तव भी सांसद होते होते बच गए। जा रहे थे सपा में तो मोदी जी ने कहा कि वहां जाकर क्या हंसोगे बीजेपी में आ जाओ खूब हंसोगे। अच्छे दिन आने वाले हैं। बाकी के मेहमान सुनील पाल, दिनेश बावरा और प्रताप फौजदार के सांसद न बन पाने की वजहों का अभी तक पता नहीं चल सका है।

फिर भी ये सभी किन्हीं अज्ञात कारणों से विख्यात हो गए हैं। मगर आज इसलिए प्राइम टाइम में प्राप्त हुए हैं ताकि 15 अगस्त के मौके पर आपको हंसा दे। उम्मीद है कि हम किसी लाइन को क्रास नहीं करेंगे। मज़हब, जाति या नारी विरोधी जुमलों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। मैंने अपने मेहमानों को बुलाते समय शर्तें लागू, तो कहा था मगर गलती इनकी है कि इन्होंने नहीं सुना था।

(प्राइम टाइम इंट्रो)

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